ताली वेब सीरीज समीक्षा । Seema Saxena द्वारा फिल्म समीक्षा में हिंदी पीडीएफ

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ताली वेब सीरीज समीक्षा ।

सीमा सक्सेना द्वारा लिखित

ताली वेब सीरीज की समीक्षा ।

ताली की आवाज थोड़ी फीकी रही, पर सुष्मिता के दम पर बनी रही

सीरीज ओ टी टी,  जिओ सिनेमा पर उपलब्ध है ।

कलाकार हैं, सुष्मिता सेन, नितीश राठौर, कृतिका देव, अंकुर भाटिया ।

निर्देशक हैं रवि जाधव ।

कुल एपिसोड हैं 6 ।

ताली सीरीज की कहानी एक बायोलाजिकल ड्रामा है ।

रेटिंग -3.5

ट्रांसजेंडर एक्टिविस्ट गौरी सावंत की निजी जिंदगी पर आधारित इस सीरीज में श्री गौरी सावंत के जीवन के जितने भी जरूरी पहलू है वह इस सीरीज में दिखाए गए हैं और सीरीज में उनके ट्रांस  के बारे में पता चलने से लेकर आखिर में किस तरह से उनका जेंडर चेंज हुआ, वह सब भी दिखाया गया है । गौरी यानी कि गणेश करीब ज्यादा 15 साल का एक लड़का है जो वह अपने घर से भाग गया है क्योंकि उसके पिता को उसके कारण लोगों के सामने बहुत शर्मिंदा होना पड़ता है । गणेश जब से घर से भागा उसी समय से गणेश के गौरी बनने का सफर शुरू हो जाता है । गौरी ने जिंदगी की हर मुश्किल का सामना किया है वो हर हालातो से लड़ी है पर उसने ना तो कभी भीख मांगी और ना ही उसने सेक्स वर्कर बनने की कभी कोई राह चुनी और इसका सबसे बड़ा कारण यह रहा कि वह सुंदर नहीं है क्योंकि ना तो वह गोरी है और न ही आकर्षक इसीलिए वह किसी को वह लुभाती भी नहीं है ।

पहले एपिसोड में दिखाया जाता है गौरी का बचपन, यानी गणेश जहां वह अपनी मां के पास खुद को बहुत सुखी और खुश महसूस करता है और वह अपनी माँ जैसे बनने के सपने देखता है । वह चाहता है वह अपनी मां जैसा बने गोल रोटियाँ बनाये और गोल बिंदी भी लगाये लेकिन उसके पिता उसे इस तरह से देखना बर्दाश्त नहीं कर पाते हैं । हालांकि उसे अपनी बड़ी बहन का हमेशा साथ मिलता है पर अचानक से माँ की मौत हो जाती है तो गणेश अकेला रह जाता है और फिर वह घर छोड़कर भाग जाता है और फिर शुरू होता है उसका ट्रांसजेंडर बनने का सफर ।

सीरीज में गौरी की तीन लड़ाईयों को दिखाने की पुरजोर कोशिश की गई है । पहली लड़ाई है आइडेंटिटी की, दूसरी लड़ाई है सर्वाइकल की और तीसरी लड़ाई है इक्वालिटी की लेकिन इक्वालिटी की लड़ाई दिखाने के चक्कर में गणेश के गौरी बनने की कहानी बीच में ही कहीं अपना दम तोड़ती हुई सी लगती है । गणेश का अपनी जिंदगी को अपने तरीके से जीने की सोच और ट्रांस कम्युनिटी की तरफ जो उसका झुकाव है उसे बहुत अच्छे से दिखाया गया है लेकिन परिवार का साथ न मिलने का अफसोस और शर्मिंदगी जो समाज से और अपने से मिलता है । उसे ऑडियंस को दिखाने में चूक जरूर हो गई है । आर्या में अपनी बेहद दमदार एक्टिंग की छाप दिखा चुकी सुष्मिता सेन कहीं-कहीं पर थोड़ी कमजोर नजर आती हैं, जैसे सेक्स चेंज ऑपरेशन का सीन हो या किन्नर की जिंदगी से इनफ्लुएंस होने का उसमें सुष्मिता थोड़ी हल्की सी लगी हैं ।

गौरी की लड़ाई एक प्रेरणा देने वाली कहानी तो है लेकिन यह कहानी इतनी मुखर इसलिए बन पाई है क्योंकि इसमें एक इतिहास भी जुड़ा हुआ है और इसे बनाना इतना आसान नहीं है । सुप्रीम कोर्ट में थर्ड जेंडर को मान्यता दिलवाने वाली श्री गौरी महाराष्ट्र इलेक्शन कमेटी की ब्रांड एंबेसडर बनने वाली पहली ट्रांसजेंडर की आप बीती को बयां करना असल में बहुत मुश्किल काम है ।

यह हम सब लोगों के लिए समझना उतना ही मुश्किल जैसे कि एक नासमझ बच्चे को पढ़ना लिखना सिखाना ।

ऐसे में ताली के डायरेक्टर रवि जाधव ने एक बड़ा बीड़ा उठाते हुए इस सीरीज का निर्माण किया है, उनके कंधों पर पूरी कम्युनिटी का भार जिसे वे अपनी मेहनत से पूरी तरह से मुकाम तक नहीं पहुंच पाए हैं । डायरेक्टर ने इतने सेंसिटिव सब्जेक्ट को उस दम से नहीं बनाया है । एक दमदार सीन को देखने के इंतजार में हम पूरा एपिसोड निकाल देते हैं, हालांकि 4 एपिसोड तो ऐसे ही निकाले हैं ।

पूरी सीरिज में आपाधापी, असमंजस, एक ट्रांस कम्युनिटी गुजरती है लेकिन उसे दर्शाने का तरीका थोड़ा कमजोर है आप भी लीड से ज्यादा उसके आसपास  के लोगों को अपने आप से कनेक्ट कर पाते हैं । एक आम इन्सान होने के नाते आप इस सोच में पड़ेंगे कि अगर हमारे घर में ऐसा होता तो हम भी वही सलूक करते, या फिर ऐसा ही तो होता है क्योंकि समाज में कोई भी इतनी जल्दी इन चीजों को स्वीकार नहीं कर पाता है ।

एक सीन आपको बेहद बेसब्री से देखने से इंतज़ार होता है वह है गणेश के गौरी बनने का लेकिन उस सीन को इतने आराम से निकाल दिया गया कि आप उसका इंपैक्ट दूर-दूर तक भी नहीं कर पाते हैं । एक सेमिनार के दौरान अपनी ही कम्युनिटी से बेइज्जत होने के बाद गणेश डिसाइड करता है कि वह सेक्स चेंज करने का ऑपरेशन करायेगा लेकिन उसके इस फैसले पर कोई असर नहीं पड़ेगा क्योंकि यहां ना तो ना बैकग्राउंड म्यूजिक ऐसा कमाल का है, ना ही नहीं सुष्मिता के डायलॉग में कोई दम है ।

सारे सीन ऐसे गुजरते चले जाते हैं जैसे कि कोई लोकल ट्रेन स्टेशन पर आई और गुजर गई। आपके मन में कई सवाल उठाते हैं कि अगर गौरी इतनी ज्यादा गरीब है कि वह छोटी सी खोली यानी कमरा लेकर किराए पर रह रही है, गुजारा करने के लिए होटल में वेटर की नौकरी कर रही है तो उसके पास बेहद महंगा सेक्स चेंज करने के लिए पैसे कहां से आ गये हैं और अगर कोई उसकी हेल्प कर रहा है तो क्यों क्यों कर रहा है और कैसे कर रहा है और सिर्फ इस पर ही इतना मेहरबान क्यों हो रहा है ?

गौरी को एक सेमीनार का बुलावा आता है जहां एक यूनिवर्सिटी में जाकर उसे स्पीच देनी है पहली बार की कोई भारतीय ट्रांसजेंडर विदेश में स्पीच दे रहा है, इसे देखकर आपको अनुमान लगेगा कि गौरी की कोई दमदार स्पीच दिखाई जायेगी लेकिन नहीं ऐसा कुछ नहीं होता आप पूर्ण रूप से निराश हो जाते हैं । आपको फ्लाइट का एक मिनट का कॉमेडी सीन दिखा कर ही सीन कट हो जाता है ।

अब जहां तक बात आती है सुष्मिता के भाव और पंच की तो सीरीज में दम नजर आता है, और लगता है कि इस सीरीज में जो चीज सबसे ज्यादा अच्छी है वो इसमें बीच-बीच में आने वाले कई पंच और डायलॉग हैं जो सही मायने में आपके जेहन में उतरते चले जाते हैं, जैसे कि इस देश को यशोदा की बहुत जरूरत है, मैं ताली नहीं बजाऊंगी बल्कि ताली बजवाऊँगी, जो गलत है उसे तो बदलना ही पड़ेगा, मुझे स्वाभिमान सम्मान और स्वतंत्रता तीनों चाहिए, भारत एक पुल्लिंग शब्द है फिर भी हम उसे माँ कहकर बुलाते हैं और मां अपने बच्चों में कभी कोई फर्क नहीं देखती है, ऐसे डायलॉग जिसे सुनकर आपको लगता है कि इस सीरीज में जान है ।

हालांकि सीरीज का एक हिस्सा है जो बेहद दमदार है और वह है इंटरव्यू का, जहाँ पर गौरी समानता के अधिकार पर बातें करती है और वह इतना अच्छा बोलती है कि एंकर की बोलती बंद हो जाती है बल्कि अपनी बातों से सही मायने में ऐसा इंप्रेस करती है कि चैनल में ट्रांसजेंडर के लिए दो सीटें भी आरक्षित करवा लेती है ।

गणेश के रोल के लिए कृतिका देव को कास्ट किया गया है, वही गौरी सावंत का चेहरा सुष्मिता सेन है इसमें कोई दो राय नहीं हैं कि सुष्मिता गौरी के रूप में एक सशक्त चेहरा है और उनकी ताली और उनकी आंखें आपको बेहद इंप्रेस करती है लेकिन अगर स्क्रीन प्ले और बैकग्राउंड पर भी ढंग से काम किया गया होता, तो इस सब्जेक्ट पर इससे अच्छी कोई और सीरीज हो ही नहीं सकती । गौरी सावंत की जिन्दगी से जनता को रूबरू कराने का इससे अच्छा डायरेक्टर के पास कोई दूसरा जरिया ही नहीं, हालांकि कहानी जबरदस्त है, लड़ाई भी दमदार है, पंच भी धांसू है लेकिन फिर भी यह सीरीज आपके दिल पर दस्तक देने में उतना कामयाब नहीं होती है, हां बिग बॉस में अपनी आवाज देने वाले विक्रम सिंह इस सीरीज में वकील के रोल दिखाई देंगे ।  उनका छोटा सा रोल है पर वह स्क्रीन पर बहुत अच्छे लगे हैं ।

सीमा असीम सक्सेना, बरेली