सुखी - फिल्म समीक्षा Seema Saxena द्वारा फिल्म समीक्षा में हिंदी पीडीएफ

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सुखी - फिल्म समीक्षा

सीमा असीम सक्सेना द्वारा लिखी गयी सुखी फिल्म की समीक्षा ......

 

फिल्म का नाम है सुखी ।

कलाकार हैं शिल्पा शेट्टी, चैतन्य चौधरी, अमित साध, दिलनाज ईरानी, कुशा कपिला, पवलीन गुजराल और किरण कुमार आदि ।

इस फिल्म के लेखक हैं राधिका आनंद, पालोमी दत्ता और रुपिंदर इंद्रजीत।

निर्देशित किया है सोनाली जोशी ने ।

सुखी फिल्म के निर्माता हैं भूषण कुमार कृष्ण कुमार विक्रम मल्होत्रा और शिखा शर्मा ।

22 सितंबर 2023 को यह फिल्म सिनेमाघर में रिलीज हुई थी और अब नेटफ्लिक्स ओटीटी प्लेटफॉर्म पर आ गयी है और इसकी रेटिंग है मेरे हिसाब से मात्र दो ....

यह एक महिला प्रधान फिल्म है और महिला निर्देशकों की खासियत यह होती है कि जब वह महिलाओं के इर्द-गिर्द कोई कहानी बुनती हैं या उस पर कोई फिल्म बनाती हैं तो वह महिलाओं के भावनात्मक पहलू को स्क्रीन पर बहुत सही तरीके से पेश करती हैं क्योंकि वह एक महिला होने के नाते महिलाओं के जीवन में आने वाली तमाम परेशानियां, सुख-दुख, कठिनाइयों को बहुत अच्छे से समझ पाती हैं लेकिन फिल्म सुखी में महिलाओं की भावनाओं का कोई ऐसा पहलू कहीं दिखाई नहीं दिया है जो सिर्फ एक महिला लेखक या महिला निर्देशक के बूते की बात हो, नवोदित निर्देशिका सोनल जोशी ने महिलाओं की आम समस्याओं पर फिल्म तो बनायी है पर वो इस फिल्म को वे भावनात्मक तौर पर पर्दे पर सही तरीके से पेश नहीं कर पायी हैं ।

आपने वह कहावत तो सुनी ही होगी ना कि आदमी एक घर चलाता है और औरत पूरी दुनिया चलाती है । पति-पत्नी जीवन के दो पहियों के समान होते हैं अगर इसमें एक भी पहिया कमजोर पड़ जाता है तो जिंदगी में उथल-पुथल मच जाती है । कभी-कभी एक पुरुष इस बात का गुमान भी करता है कि वह तो घर चलाता है और महिलाएं दिन भर घर में करती ही क्या हैं ? वे घर में खाली पड़ी रहती हैं लेकिन किसी वजह से अगर एक स्त्री कुछ समय के लिए या अपनी खुशी के कारण कुछ दिन कहीं दूर चली जाती है तब उसे इस बात का एहसास होता है कि पत्नी घर और परिवार की कैसे छोटी-छोटी खुशी के लिए अपनी छोटी-छोटी खुशियों को छोड़कर या नजरअंदाज करके वह केवल घर को, बच्चों को, परिवार संभालती है । सुखी फिल्म में एक ऐसी ही महिला के किरदार में है शिल्पा शेट्टी ।

यह सुखप्रीत कालरा की कहानी है, उसे इस फिल्म में सुखी नाम से बुलाया जाता है । वह अपनी छोटी-छोटी खुशियों को भूल जाती है और अपने पति और अपनी बेटी की हर खुशी पर ध्यान देती है उनका ख्याल रखती है और अपनी खुशियों को भूलकर सिर्फ उनकी खुशियों के लिए ही अपने जीवन को जी रही होती है ।

रिश्ते के बीच में जब अहम् का टकराव होता है तो कितनी भी खुशहाल जिंदगी हो उसमें कड़वाहट आ ही जाती है । सुखी की कहानी चार महिला पात्रों के आसपास घूमती है, सबकी अपनी एक अलग-अलग कहानी है। शादी के 20 साल बाद जब 38 साल की सुखी अपने कॉलेज के दोस्तों से मिलने के लिए अनंतपुर से दिल्ली दो दिन के लिए अपने पति से यह कह कर जाती है कि उसे अब घर के कामों से थोड़ा ब्रेक चाहिए । यहीं से पति के मन में अहंकार का भाव जाग जाता है, उसे लगता है कि आदमी बिना ब्रेक के घर चलाता रहता है और औरत को लगता है कि उसे घर से ब्रेक चाहिए। सुखी अपने माता-पिता की इच्छा के विरुद्ध गुरु से शादी करती है इसलिए उसके पिता का कहना है कि तुमने जिंदगी का सबसे ज्यादा अहम फैसला हमें बिना बताये ही कर लिया है तो अब जिंदगी भी अकेले ही गुजारनी होगी इसलिए मां-बाप से सुखी के रिश्ते पहले से ही खराब है क्योंकि उसके मां-बाप ने उसके साथ रिश्ता यह कहकर खत्म किया था कि तुमने अपनी पसंद की शादी की है और तुमने यह फैसला खुद किया और हमारी सलाह या मशवरे की तुमने जरुरत ही नहीं समझी तो अब अपनी जिंदगी को जैसे चाहें जियो, तो वह अपने दोस्तों से ही मिलकर कॉलेज के दिनों, पुरानी यादों को याद ताजा करने के लिए और अपने लिए खुशी के कुछ पल चाहती है ।

कहानी का प्लॉट तो बहुत अच्छा चुना गया है, उसमें कई सीन इतने भावुक कर देने वाले हैं लेकिन पटकथा कमजोर होने के कारण बीच-बीच में अपना असर छोड़ देती है, कहानी की शुरुआत तो अच्छी होती है पर बाद में यह फिल्म जैसे एकता कपूर की सीरियल आती है ना टीवी पर ठीक उसी तरह से हो जाती है खिंची हुई और उभाऊ सी और फिर वह बेजान लगने लगती है उसको देखने का दिल नहीं करता। हर किसी महिला पुरुष के जीवन में छोटी-छोटी बातों पर लेकर कुछ ना कुछ मनमुटाव  होता ही रहता है।

प्रेम और आकर्षण में बहुत अंतर होता है इस अंतर को समझ कर बहुत खूबसूरत और एक भावनात्मक कहानी लिखकर स्क्रीन पर पेश की जा सकती थी। फिल्म तमाशा और धूम 3 में सहायक निर्देशक के रूप में काम करने वाली सोनल जोशी की बतौर निर्देशक यह पहली फिल्म है। सोनाल को अभी निर्देशन की बहुत सारी बारीकियों को सीखने की आवश्यकता है। उनको बहुत अच्छी कहानी भी मिली है और निर्माण में टी सीरीज और कई अन्य फिल्मों का निर्माण कर चुके विक्रम मल्होत्रा का साथ भी मिला है और साथ में एक बहुत अच्छी अभिनेत्री शिल्पा शेट्टी भी है लेकिन वह एक अच्छी फिल्म नहीं बना पाईं हैं। जैसे किसी को खाना बनाने के लिए सारी चीज दे दी जाती है लेकिन फिर भी कुशल न होने के कारण वह अच्छा खाना नहीं बनता है ना, ठीक उसी तरह से इस फिल्म का हाल हुआ है ।

सुखी फिल्म में शिल्पा शेट्टी ने बहुत ही निराशाजनक अभिनय किया है और उनके पति ने सामान्य भूमिका निभाई है और सबसे अच्छा काम किया है कुशा कपिला ने, जो शिल्पा शेट्टी से ज्यादा आकर्षक लगती हैं और अपनी परफॉर्मेंस से उन्होंने सबका ध्यान भी अपनी तरफ खींचा है, बाकी और कलाकार सामान्य ही हैं । फिल्म में बैकग्राउंड म्यूजिक और सिनेमा ऑटोग्राफी भी कुछ खास नहीं है । टाइम पास करने के लिए या जब आपके पास कुछ काम ना हो या कुछ और देखने को ना बचा हो या फिर आप महिला प्रधान फिल्म देखने के शौक़ीन हैं तो नेटफ्लिक्स पर घर में बैठकर कुछ अन्य घरेलू कामों को साथ में करते हुए यह फिल्म देखी जा सकती है।

सीमा सक्सेना