जिन्नातों की सच्ची कहानियाँ - भाग 27 सोनू समाधिया रसिक द्वारा डरावनी कहानी में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
  • हीर... - 28

    जब किसी का इंतज़ार बड़ी बेसब्री से किया जाता है ना तब.. अचान...

  • नाम मे क्या रखा है

    मैं, सविता वर्मा, अब तक अपनी जिंदगी के साठ सावन देख चुकी थी।...

  • साथिया - 95

    "आओ मेरे साथ हम बैठकर बात करते है।" अबीर ने माही से कहा और स...

  • You Are My Choice - 20

    श्रेया का घरजय किचन प्लेटफार्म पे बैठ के सेब खा रहा था। "श्र...

  • मोमल : डायरी की गहराई - 10

    शाम की लालिमा ख़त्म हो कर अब अंधेरा छाने लगा था। परिंदे चहचह...

श्रेणी
शेयर करे

जिन्नातों की सच्ची कहानियाँ - भाग 27

महबूब जिन्न, भाग - 6

By :- Mr. Sonu Samadhiya 'Rasik '

विशेष - यह कहानी सत्य घटना से प्रेरित है।


पिछले अध्याय से आगे....

“हाँ, शबीना बेटा...! रात को गाँव वाले और हम सब तुम्हें ढूंढ रहे थे। हर जगह ढूंढने के बाद जब तुम हमें नहीं मिली तो गाँव वालों को शक़ हुआ कि तुम्हें जिन्नात उठा ले गए हैं, लेकिन रात होने की वजह से सभी लोग जिन्नातों के डर से उजड़ी मस्जिद नहीं गए, सभी लोगों ने सुबह जाने का फैसला किया और जब सुबह सभी वहां गए तो तुम हमें बेहोश मिली।”


“मैं वहां कैसे पहुंच गई?”

“तुम्हें कुछ भी याद नहीं..? या अल्लाह हम पर रहम कर.... हमारी बेटी को जिन्नातों के साये से दूर रखना।”


“आ गई होश में आप..?”

शबीना के अब्बू भी वहां पहुंच चुके थे, वो बहुत ही गुस्से में थे।



“वो अब्बू... मुझ से गलती हो गई.... हमें माफ़ कर दें... अगली बार ये गलती, दोबारा नहीं होगी.... ।”



“आज से आपका स्कूल जाना बंद.. आप घर में ही रहेंगी... मुझे कोई भी गुंजाइश नहीं चाहिए... ये मेरी सख्त हिदायत है... आपको पता होना चाहिए कि ये बाकया सालों बाद हुआ है कि किसी जिन्न ने लड़की को अगवा कर लिया है।”



“लेकिन अब्बू.....”


“बस मुझे कुछ नहीं सुनना..... चलो सब.. मैंने पीर बाबा से सभी बंदोबस्त करा लिए हैं।”

सभी लोग शबीना को लेकर अपने घर पहुंच चुके थे। शबीना को शकील की फिक्र सता रही थी। पता नहीं वो कैसा होगा? वो चाह कर भी किसी से पूछ भी नहीं सकती थी और अब वह घर पर ही रहेगी, क्योंकि उसका स्कूल जाना बंद हो चुका था। उसके पास एक ही जरिया था शकील से मिलने का वो भी बंद हो गया था।

उसका दिल शकील के बिना अब कहीं भी नहीं लग रहा था, वो बैचेन हो उठी।


शाम की नमाज अदा करने के बाद शबीना के अब्बू ने शबीना को एक अभिमंत्रित ताबीज दिया, जो उन्हे दरगाह के फकीर पीर बाबा ने शबीना को जिन्नातों के बुरे साये से बचने के लिए दिया था।


शबीना ताबीज को लेकर अपने कमरे में चली गई। उसने ताबीज को टेबल पर रख दिया, किसी भी अंजाम की परवाह किए बगैर.... क्योंकि वह जिन्नातों के वजूद पर यकीन नहीं करती थी।

“हे, मेरे मौला...! जिस तरह से आपने मेरी हिफाजत की.. उसी तरह से मेरे शकील की हिफाजत करना, उसे जहाँ भी रखो, महफूज़ रखना. .... मेरी ख़ातिर... प्लीज मेरे मालिक....।”

पीछे से आई हल्की हवा ने शबीना को अपनी आँखें खोल ने पर मजबूर कर दिया। उसने पीछे मुड़कर देखा तो शकील उसके कमरे में उसके सामने खड़ा था।


“शकील....!” - शबीना खुशी से झूमती हुई शकील के गले से लिपट गई।

शबीना की खुशी का कोई ठिकाना नहीं रहा था।

“तुम ठीक हो न......”


“श्श्श....!धीरे बोलो कोई सुन लेगा। मैं नहीं चाहता कि हमारी मुलाकात में कोई दखलंदाजी करे।”


To be continued..... (कहानी अभी जारी है)


कहानी को अपना सपोर्ट ♥️जरूर करें, धन्यवाद 🙏🏻 🤗♥️
साथ ही मुझे Instagram पर फॉलो करना न भूलें मेरी insta I'd है @SonuSamadhiyaRasik

(©SSR'S Original हॉरर)
💕 राधे राधे 🙏🏻 ♥️