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उत्पल बहुत सलीके से चलने वाला ! खास प्रकार से, बड़ी नफ़ासत से हर चीज़ का स्तेमाल करने वाला और हर चीज़ को बड़ा व्यवस्थित रखने वाला!उसका चैंबर इतना व्यवस्थित रहता कि हमारे पूरे संस्थान को संभालने वाले भी इतनी व्यवस्था नहीं रख पाते थे संस्थान में ! शुरू-शुरू में संस्थान के वे कर्मचारी उसके चैंबर की सार-संभाल करते थे जो सबके कमरों को संभालते थे लेकिन वह जल्दी ही उनसे परेशान हो गया | उसने अम्मा से कहा था कि अपना चैंबर वह खुद व्यवस्थित रखेगा | उसे किसी की ज़रूरत नहीं थी | और सच में ही उसका हर चीज़ का कलात्मक चयन और उनकी सार-संभाल का तरीका उसके चैंबर की ओर सबको आकर्षित करता |
एक बार बहुत पहले उसके चैंबर में काम करते हुए बातचीत के दौरान उसने मुझे बताया था कि उसके पास इसीलिए काम करने वाले लोग टिक नहीं पाते कि उसे हर चीज़ व्यवस्थित चाहिए | उसने बड़ी मुश्किल से अपने एक कुक को बहुत अच्छी तरह सिखाया-पढ़ाया था कि किस चाकू व किस छुरी से क्या सब्ज़ी काटनी चाहिए और किस प्रकार एक ही आकार की जिससे वह देखने में भी उतनी ही सुंदर लगे जितनी खाने, में स्वादिष्ट !
“कैसे सीख गए हो इतना ? ”मेरे आश्चर्य पर उसने कहा था |
“क्यों –अकेला नहीं रहा इतने साल? ” हाँ, मैंने मन में सोचा था कि यह बात तो ठीक ही है कि हॉस्टल में रहने वाले या घर से बाहर रहने वाले बच्चे अपने आप ही बहुत कुछ सीख जाते हैं और बेहतर सीखते हैं क्योंकि उन्हें ऊँगली पकड़कर सिखाने वाला कोई नहीं होता | वे गलत करते हैं, फिर सही करने की कोशिश करते हैं और अंत में बेहतर ही सीखकर समाज में अपना व्यक्तित्व निखारकर जीवन में सफ़ल होते हैं |
कितनी बातें साझा करता था वह मुझसे ! मैं सोचती ही रह जाती कि कमाल का बंदा है!बिना किसी कारण ही मेरा मन उससे अपनी तुलना करने लगता और मुझे मन में हँसी आती कि मैं एक स्त्री होकर कितनी अलग थी इन सब चीज़ों में ! मैंने उससे यह भी पूछा था कि क्या वह सामिष व्यंजन भी अपने आप बनाता है और उसके उत्तर ने मुझे चौंकाया दिया था कि वह पक्का शाकाहारी है !
“क्यों? तुम्हारे बंगालियों में तो माछ-भात के बिना चलता ही नहीं है ? ”मैंने उत्सुकता दिखाई थी |
“मुझे पता था न आप मिलने वाली हो मुझे, पक्की ब्राह्मण!तब कैसे मैं----? ”और हम दोनों ही ठठाकर हँस दिए थे | कितने पागलपन की बातें हम दोनों के बीच में होतीं और मुझे सच में, बड़ी गंभीरता से लगता कि काश!ईश्वर को यदि हमें मिलाना ही था तो हमें हमउम्र तो बनाता |
मेरी ज़िंदगी में न जाने ऐसे कितने लोग आए थे जो मुझसे प्यार का दावा करते थे लेकिन किसी में मुझे कुछ कम लगा तो किसी में कुछ और नतीज़ा? बड़ा सा शून्य ! कभी ऐसा महसूस ही नहीं हुआ कि सच में मुझे प्यार का अहसास भी हुआ हो और यह---? कैसी-कैसी भावनाएँ जगाता रहा था मेरे मन में!
जब वह मेरे से काफ़ी खुल गया था और उसने अपने प्यार का इज़हार मुझसे कई बार किया था तब अपने और भी कई मित्रों की बातें साझा की थीं | मैं अपनी उम्र के कारण उसके प्यार को मन में ही रख सकती थी, बस---
“मेरा दोस्त है न आशीष ---”एक दिन उसने कुछ बताने के लिए मुझसे जानना चाहा |
“वो ही जो तुम्हारे साथ यहाँ एक/दो बार आया भी है न ? ”मुझे उसके कुछ दोस्तों के बारे में जानकारी तो थी जो कभी-कभी यहाँ आते रहते थे |
“हाँ, तुमने मिलवाया भी तो था | ”
“वो ही----उसकी एक गर्ल फ्रैंड है---”उसने बताया |
“अब इस उम्र में तो होगी न गर्ल फ्रैंड, कहाँ अजीब बात है | एक तुम्हारी ही नहीं है | ”मैंने शिकायती लहज़े में उससे कहा |
“क्यों? तुम हो न मेरी गर्ल फ्रैंड---”उसने तुरंत ही उत्तर दिया और मैं सकपका गई |
“पागल हो तुम, मैं गर्ल फ्रैंड हूँ ? मैं बुड्ढी फ्रैंड हूँ----”मैंने कहा |
“कोई बात नहीं, अब मेरी बात सुनोगी या नहीं ? ”
“सुनाओ न, क्या कहना चाहते हो? ”
“हाँ, वह खाना बहुत अच्छा बनाता है और पता है उसकी गर्ल फ्रैंड सोफ़े पर बैठी रहती है | ”
“ऐसा कैसे हो सकता है? यह तो गलत है | चलो अभी मुहब्बत के नशे में हैँ दोनों लेकिन शादी के बाद यही गर्ल फ्रैंड उसे दुश्मन लगने लगेगी | ”मैंने कहा |
“सीधी सी बात है, कोई भी काम मिल बाँटकर करना तो ठीक है लेकिन जैसे अकेली लड़की करे तो गलत है, इसी तरह से अकेला लड़का करे वह भी तो गलत है | ”मैंने फिर से कहा |
“कुछ खास बात होगी उसमें, ”मैंने अपनी आदत के अनुसार फिर से कह बैठी---
“खास क्या आम भी नहीं है, बहुत इंटेलीजैन्ट हो ऐसा भी तो नहीं है | ”उत्पल ने कहा |
“तुम्हें क्या पता? कुछ तो होगा---ऐसे ही थोड़े ही---” मेरी बात सुनकर वह मुस्कराया फिर बोला;
“मैंने देखा है न उसे, बहुत ही साधारण सी है बुद्धि से भी और देखने में भी----“उत्पल बोला |
ऐसा कैसे हो सकता है, मैं सोचने लगी थी फिर मैंने कहा था;
“यह थोड़ी होता है ! अगर होता तो तुम दो बार रिलेशंस बनाकर छोड़ न देते ! वो भी अपनी ही उम्र के साथ! फिर मेरी बात तो जाने ही दो----”कहीं न कहीं मुझे उसके उन रिलेशन्स से भी तो तकलीफ़ हुई थी | नहीं होनी चाहिए थी | मेरे जैसे सब सूखे से तो होते नहीं हैं जो पतझर के दिनों में प्रेम की बात करें | इंसान को मन और शरीर दोनों की जरूरत होती हैं |
“मैंने नहीं छोड़ा, उन दोनों ने ही कुछ दिन बाद छोड़ दिया | ”उसने बताया |
“क्यों? इतने अच्छे हो तुम, हर बात में दखल रखने वाले। प्यार करने वाले ! फिर ? ”मुझे उत्सुकता हो रही थी, उसके बारे में जानने की |
“तुम कह रही हो, मैं हर तरह से अच्छा हूँ, तब भी तुम मेरा प्यार समझ नहीं पा रही हो---हाँ, मैं एक बात तो करता था—जो शायद----”वह चुप हो गया |
“ऐसा क्या करते थे तुम ? ”पूछना ही था |
“मैं कई बार उनकी कॉल्स का जवाब नहीं देता था | ”उसने धीरे से कहा |
“अच्छी बात है क्या? ”मुझे वाकई उसकी बात अच्छी नहीं लगी थी | ऐसे अगर कोई जवाब न दे तो दूसरे को कितना अपमानित महसूस होगा!
“बाद में मुझे मेरे एक फ्रैंड ने समझाया तो लगा, ठीक नहीं हुआ | शायद वह बात कुछ हमारे ‘पैच-अप’ के बारे में हो !”वह कुछ उदास तो था, स्वाभाविक भी था | रिश्तों का टूटना अधमरा हो जाना होता है |
“तुम्हें ऐसे ही लग रहा है कि हम साथ रह सकते हैं, तुम्हारी-मेरी आदतों में तो कितना फ़र्क है, पता चला कुछ ही दिनों में मुझसे बोर हो गए और----”मैंने सीधी-सच्ची बात कही थी |
“पहले से ही सोच लो, जुडने की बात बाद में, पहले टूटने की बात सोचो---”वह थोड़ा सा भिन्ना सा गया |
ऐसी ही कितनी-कितनी बातें उसके साथ हुईं थीं मेरी फिर भी मैं कभी आगे नहीं बढ़ पाई | आज उसे देखते ही मुझे क्या हो गया था? मैं जितनी असहज थी, उतना ही वह सहज ! यह छोटी उम्र का प्यार करने वाला लड़का कितने विवेक से बात कर सकता था और मैं बिलकुल विवेकहीन !
“अगर चाहो तो अभी देर नहीं हुई है अमी---”उसने मुझे समझाने के लिए कहा शायद लेकिन मुझे इस बात में भी उस पर खीज आई | क्यों? आखिर चाहती क्या थी मैं ?