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रामप्यारी का प्यार

मंगसिर(मार्गशीर्ष/अगहन) का महीना अब दिनों की डोर पोह(पौष/पूस) को पकड़ाने वाला था। ठंड भी धीरे–धीरे अपने पैर पसार चुकी थी। सूर्य देवता भी अब बस कुछ ही क्षणों के लिए अपनी चादर से बाहर निकलते थे।

ऐसे दिनों में भी पानीपत के रोडवेज स्टेशन पर भीड़ कम नहीं थी। किसी को अपने घर जाने की जल्दी थी तो किसी को घर से अपने काम पर जाने की, कोई अपने यार दोस्तों की प्रतीक्षा में था तो कोई अपने विद्यालय,कॉलेज जाने के लिए घर से आया था। कोई अपनी प्रेमिका की प्रतीक्षा में था तो कोई अपने प्रेमी की।

इसी भीड़ में रोडवेज स्टेशन पर बनी एक सीट पर बैठी थी रामप्यारी। उसी की बगल वाली सीट पर कुछ लड़कियां और बैठी थी जिनमें एक लड़की कुछ सुंदर थी या कहूं वह स्वयं को सोच रही थी कि इन सब में मैं ही सुंदर हूं क्योंकि सामने वाली सीट पर बैठा रोहन इधर ही देख रहा था। तो उसने अपने बनावटी भाव–भंगिमा दिखानी शुरू कर दी जो अमूमन सभी लड़कियां दिखाती ही है। रोहन के मन में न जाने क्या सूझी वह उस लड़की के नहीं बल्कि रामप्यारी की आंखों से दिल में उतर जाने का प्रयास करने लगा। रामप्यारी काली थी या हो चुकी थी। पतला शरीर था, मोटी–मोटी आंखें, मुख पर मुस्कान ऐसे खिलती थी मानो कीचड़ में कोई कमल खिल रहा हो। वह स्टेशन और उसके आसपास से लोहा बीनती थी जो कुछ थोड़ा–बहुत लोहा इकट्ठा होता उसी को बेचकर अपने पूरे दिन का भोजन आदि करती थी फिर रात को वहीं बाहर स्टेशन पर अपने ही जैसे कुछ संगी–साथियों के संग सो जाती थी। ऐसी ठंड में जब लोग अपनी रजाइयों से बाहर निकलना भी पसंद नहीं करते तब वह और उसके साथी सुबह ही अपने काम में जुट जाते थे क्योंकि पूरी रात भी उन्हें नींद ही कहां आती थी। रोहन लंबी–चौड़ी कद–काठी का लड़का, भूरा रंग, गोल चेहरा, सुंदर नाक–नक्श, सुडौल शरीर। रामप्यारी की निगाहें जब रोहन पर पड़ी तो रोहन का यूं देखना उसे सामान्य–सा लगा। परंतु जब दोबारा रामप्यारी की निगाहें रोहन की निगाहों से मिली तो अब उसे कुछ सामान्य नहीं लगा कुछ अजीब–सी हरकत उसके हृदय में हुई क्योंकि रोहन के चेहरे का भोलापन था ही कुछ ऐसा की हर किसी को अपनी और आकर्षित करता था। उसके चेहरे से भोलापन ऐसे टपकता था जैसे पके शहतूत का रस उसे छूने मात्र से हाथो पर टपक पड़ता है।

रामप्यारी कभी नज़रे मिलाती, कभी नज़रे छुपाती, कभी नज़रे झुकाती उसके हृदय में अंदर ही अंदर प्रसन्नता की लहरें उछाले मारने लगी थी। एक ऐसी प्रसन्नता जिसको कभी उसने छुआ तक नहीं था वह उसको ऐसे ही नहीं खोने देना चाहती थी। उसकी वह प्रसन्नता अब अंदर समाहित नहीं होती थी वह मुस्कान के रूप में बाहर निकलने लगी, मुस्कान ऐसी की कामदेव भी उसके वशीभूत हो जाए। कुछ देर तक यही चलता रहा रामप्यारी रोहन की ओर देखे, मुस्कुराए और फिर शरमा जाए। रोहन भी सबसे निगाहें बचा कर रामप्यारी की ओर देखकर मुस्कुराता रहा। कुछ देर बाद रोहन ने अपने बैग से कॉपी और पेन निकाला एक पेज पर अपना नंबर लिखा और धीरे से रामप्यारी के पास जाकर रख दिया। रामप्यारी शरमा गई इतनी ठंड में भी उसके शरीर से पसीने छूटने लगे पर वह प्रसन्न थी उसके चेहरे की मुस्कान अब हंसी में परिवर्तित हो चुकी थी उसने वह कागज़ उठाया और अपने पास रखें एक पर्स में चुपचाप रख लिया। उस हंसी का आकर्षण ऐसा था कि रोहन उससे तब तक नहीं निकल पाया जब तक रामप्यारी को बाहर से किसी ने आवाज दी। रामप्यारी ने रोहन को जाने इशारा किया और वहां से हंसती–मुस्कुराती उस ओर चल पड़ी जहां से वह आवाज आई थी तथा रोहन भी उठा और अपने गांव की बस में जा बैठा।

आज रामप्यारी सच में प्यारी लग रही थी आज उसके चेहरे पर कोई उदासी नहीं थी, कोई दुख नहीं था केवल प्रसन्नता ही प्रसन्नता थी। आज वह उछल रही थी, नाच रही थी। ना किसी का भय था ना कोई दुख, कोई कुछ कहें भी तो उसको कोई परवाह नहीं थी। वह आज प्रसन्नता की लहरों में खो जाना चाहती थी अभी-अभी जिस समुद्र में उसने डुबकी लगाई वह उसमें डूब जाना चाहती थी। बाकी का पूरा दिन इसी प्रसन्नता में कटा तथा पूरी रात सुबह की प्रतीक्षा में कटी।

सुबह होते ही वह उसी सीट पर जाकर बैठ गई जहां कल बैठी थी तथा उसकी निगाहें चारों तरफ रोहन को ढूंढने लगी जब उसकी निगाहें भी और शरीर भी दोनों ही थक गए तब वह उठी और बसों के आसपास इस आस में घूमने लगी कि कहीं रोहन दिख जाए परंतु पूरे दिन की इस खोजबीन के बाद रोहन उसे कहीं न दिखा। कल की वह प्रसन्नता, आज उदासी में बदल गई थी। जब सारा स्टेशन शांत हो गया तथा अंधकार ने वहां अपना बसेरा डाल लिया तब भी वह उसी सीट पर आशा की एक किरण लिए बैठी रही। सारी रात भूखी–प्यासी ने वहीं बैठकर बिता दी कभी नींद में आंखें बंद हो जाती तो फिर अचानक खुल जाती। आज की रात उसे बहुत लंबी लग रही थी। सुबह हुई वह उठी और उठकर स्टेशन पर ही उसने मुंह हाथ धोएं तथा पास में ही एक दुकान से एक बिस्कुट का पैकेट खरीदा और इस सीट पर जाकर खाने लगी। अचानक ही उसकी आंखों में आंसुओं का समुंद्र भर आया जो अपनी सीमाएं लांघकर बस बहने ही वाला था। उसने अपनी चुन्नी के पल्लू में उस समुद्र को समेट लिया और ऊपर मुंह करके न जाने रामप्यारी राम से क्या बात करने लगी। लोगों की भीड़ में भी रामप्यारी अकेली थी उसके दुखों को बांटने वाला कोई नहीं था क्योंकि गरीब का गरीब के लिए दुख बांटने वाला आज कोई कहां मिलता है, सब अपने स्वार्थ के लिए गरीब का दुख बांटते हैं।

वह बैठी कुछ सोच ही रही थी तभी अचानक उसे वह पर्ची याद आई जिसे रोहन ने उसे दी थी उस पर रोहन का फोन नंबर लिखा था परंतु समस्या यह थी कि रामप्यारी या उसके किसी भी संगी–साथी के पास कोई फोन नहीं था। अब फोन पर भी बात कैसे हो। उसने चारों ओर निगाहें घुमाई तथा हिम्मत करके सामने बैठे एक ताऊ के पास गई और बोली “ताऊ मनै एक कॉल करणी सै, करवा दै” ताऊ उसे देखकर थोड़ा हिचकिचाया परंतु फिर भी बोला “हां, बता नंबर” रामप्यारी ने चुपचाप पर्ची ताऊ को पकड़ा दी। ताऊ ने नंबर मिलाया, घंटी गई पर किसी ने उठाया नहीं। “छोरी किसका सै नंबर यू उठाया कोनी, के बात सै”– ताऊ बोला। रामप्यारी ने गर्दन हिलाते हुए धीरे से कहा– “कुछ नि ताऊ“ और जाकर चुपचाप उसी सीट पर बैठ गई। आंखें अब भी रोहन को खोज रही थी कि कहीं से वह दिख जाए। कुछ देर बाद फिर उसने एक लड़के को रोका और बोली– “भाई एक कॉल करणी सै, करवादनै”। लड़का उसके चेहरे को देखकर समझ गया कि यह दुखी है वह बोला– “के बात सै”। रामप्यारी ने कहा– “कुछ नै भाई, कॉल करणी सै” यह कहते हुए उसकी आंखों में आंसू भर आए। यह देखकर लड़का कुछ न बोल सका उसने चुपचाप वह पर्ची ली जो रामप्यारी के हाथ में थी और अपने फोन में नंबर मिलाने लगा, घंटी गई, फोन उठा, उस लड़के ने फोन रामप्यारी की ओर कर दिया रामप्यारी ने बड़ी तत्परता से फोन लिया और बोली– “हेलो, हे..लो” यह कहते हुए उसकी जीभ लड़खड़ा रही थी तथा आंखों में भरा समुद्र अब अपनी सीमाएं लांघकर, बहने लगा था। उससे बात नहीं हो पाई तब उस लड़के ने फोन लिया, स्पीकर चालू किया और बोला– “हेलो कौन भाई” उधर से आवाज आयी– “आप कौन”।

लड़का : भाई सौरव जाट बोल्लूं सूं गांम नंगली ख़ास तै। तू कोण सै?

रोहन : अच्छा-अच्छा भाई! के हाल सै, ठीक सै? मैं बोलूं चौधरी रोहन गांम खेड़ी गुर्जर तै। पहचाणा नि कै......

दोनों एक–दूसरे को पहले से ही जानते थे इसलिए दोनों एक दूसरे के हाल-चाल पूछने में व्यस्त हो गए। कुछ देर बाद सौरव को रामप्यारी की याद आयी, उसने देखा तो रामप्यारी वहां नहीं थी।

रामप्यारी को अब उस लड़के का नाम भी पता चल गया था तथा उसके गांव का नाम भी पता चल गया था जिसे वह ढूंढ रही थी, जिसकी वह प्रतीक्षा कर रही थी। इसलिए वह वहां से सीधे खेड़ी गुर्जर गांव की बस में जा बैठी। दुखों से भरे उस चेहरे पर अब हल्की–सी मुस्कान थी। कुछ देर बाद वह बस चल पड़ी, बस के चलते ही रामप्यारी के प्रेमपूर्ण विचारों की बारात भी नृत्य करने लगी। तरह-तरह के भाव हृदय में उठते थे उन भावों की छवि उसके चेहरे पर क्रीडा करती स्पष्ट देखी जा सकती थी। उसे पूर्ण विश्वास था कि आज तो वह अपने प्रेम को पा ही लेगी, जिसके विरह में उसकी यह हालत हुई है आज तो उसका संग वह पा ही लेगी। लक्ष्य तक पहुंचने से पहले ही वह स्वयं को विजयी माने बैठी थी। कुछ देर बाद एक गांव के बस अड्डे पर जाकर वह बस रुकी परंतु उसके विचारों की बारात अब भी न रुकी। वह लगातार न जाने क्या-क्या सोच रही थी। कुछ देर बाद न जाने उसके मन में क्या विचार आया वह अचानक उठी, कुछ देर खड़ी रही और फिर बैठ गई। बस चल पड़ी। अगला स्टेशन रोहन का गांव ही था रामप्यारी बस से नीचे उतरी और चुपचाप पास में ही बने एक चबूतरे पर जाकर बैठ गई। न जाने उसके मन में क्या चल रहा था अब उसके चेहरे पर न कोई दुख था न ही कोई प्रसन्नता। थोड़ी देर बाद दूसरी ओर से पानीपत की बस आई वह चुपचाप उठी और जाकर उसमें बैठ गई।

न जाने उसके मन में क्या विचार आया कि वह अपने लक्ष्य तक पहुंच कर भी बिना उसे प्राप्त करें वापस चली गई। सम्भवत: वह समझ गई थी कि तेरे इस निश्चल, निस्वार्थ, सच्चे प्रेम को यह समाज, यह संसार कभी स्वीकार नहीं करेगा। अब प्रेम हृदय के भावों से नहीं अपितु भौतिकतावादी माया से किया जाता है।

हालांकि उसने पानीपत जाकर अपनी बायीं बांह पर अंग्रेजी वर्णमाला का अक्षर "R” अवश्य खुदवाया। न जाने रामप्यारी का पहला अक्षर “R“ था या रोहन का पहला अक्षर “R”।

Rosha


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