व्योम से वसुन्धरा तक Choudhary SAchin Rosha द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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व्योम से वसुन्धरा तक

ताऊ राम सिंह का कच्चा घर जो कभी किसी महल से कम नहीं हुआ करता था। कितनी ही गौरैया,गुरसल आदि वहां प्रतिदिन क्रीडा किया करती थी। कितने ही यात्रियों ने उस घर की शरण ली थी। कभी कोई गर्मियों की चिल–चिलाती धूप से ठंडक पाकर तृप्त हुआ तो कभी किसी ने शरद हवाओं से उस घर की आड़ में राहत पाई। परंतु अब वह घर ढह चुका था और ताऊ राम सिंह हरने अपना नया घर गांव के बाहर अपने एक खेत में बना लिया था। आजकल वह पुराना डाहया हुआ घर मोहल्ले के बच्चों के खेलने का मैदान बन चुका है।

इसी खेल के मैदान में दो लड़के बैडमिंटन खेल रहे थे, दोनों ही जीत को अपने-अपने पक्ष में लाने के लिए बार-बार उलझ पडते थे परंतु फिर भी उन दोनों के बीच का प्रेम बड़ा गहरा था। इसी मैदान के पास एक घर है इस घर में एक लड़की रहती है ‘वसुंधरा’, जो उन दोनों में से एक लड़के से प्रेम करती है और वह लड़का है व्योम। व्योम भी उसको बहुत प्रेम करता है। तथा दूसरा लड़का है नीरद जो उनकी प्रेम कहानी से इतना ही अनजान है जितना कि बंदर अदरक के स्वाद से।
उस घर की ओर ही व्योम हमेशा खेला करता था ताकि उसे वसुंधरा दिख जाए और उसकी दूसरी तरफ नीरद खेला करता था जिसको दीवार सामने आने के कारण वसुंधरा के घर का कुछ भी दिखाई नहीं दिया करता था।
आज भी दोनों अपने-अपने स्थान पर ही खेल रहे थे। कुछ देर खेलने, आपस में उलझनें के बाद व्योम अचानक रुक गया हाथ में रैकेट जैसे था वैसे के वैसे ही रुक हुआ और कोक रैकेट के बराबर से होकर नीचे गिर गई। दूसरी ओर से जोर-जोर से शोर होने लगा मैं जीत गया,मैं जीत गया,मैं जीत गया परंतु व्योम फिर भी मुस्कुरा रहा था मानो आकाश धरती पर बरस कर उसको खिलता देख स्वयं भी खिल रहा हो। जब व्योम और वसुंधरा मिलकर खिल रहे हो और उनके खिलने की आहट बादलों(नीरद) को मालूम ही न हो ऐसा भला हो सकता है क्या? यही सोच कर व्योम ने जब नीरद की ओर देखा तो वह उसे ऐसे देख रहा था मानो व्योम की चोरी पकड़ी गई हो। अपनी चोरी को छुपाने के लिए व्योम ने दर्द का बहाना भर लिया और वसुंधरा को इशारों से वहां से भेज दिया परंतु नीरद फिर भी उसको ऐसी ही निगाहों से देखे जा रहा था। फिर व्योम दिखावटी दर्द से कराहने लगा।
व्योम : आऽऽऽई.....
नीरद : (बात पलटकर जैसे उसे कुछ पता ही न चला हो) अबे क्या हुआ? खेल ना
व्योम : रुक जा यार पता नहीं क्या हो गया दिल के पीछे कमर में दर्द हो रहा है।
नीरद : (थोड़ा हँसकर) आगे। दिल के पीछे नहीं आगे हो रहा होगा।
व्योम : (झूठा झुंझलाकर) यार नीरद तू हर समय मजाक में रहता है। (थोड़ा दर्द का बहाना करते हुए) सच में यार बहुत दर्द हो रहा है।
नीरद : अच्छा! देखूं (उसकी कमर को थोड़ा हाथ लगाकर मलते हुए) तो फिर खेलता नहीं क्या अब?
व्योम : ना यार, बहुत दर्द हो रहा है।
नीरद : चल तो फिर घर चल रहे है।
व्योम : नहीं, पर तू जा
नीरद : क्यों?
व्योम : यार दिख तो रहा है तुझे, कितना दर्द हो रहा है।
नीरद : तो ठीक है मैं भी यहीं बैठा हूं, मैं भी तेरे साथ ही चलूंगा।
व्योम : (एकदम से) नहीं, (फिर थोड़ा संभल कर) देख तू जा तुझे पता अधिक शाम हो जाएगी तो फिर रास्ते में कुत्ते मिलेंगे और तुझे कुत्तों से बहुत डर लगता है।
नीरद : हां
व्योम : हां देख इसलिए ही तो कह रहा हूं, तू जा। नहीं तो तू भी मेरे साथ ही चलता, मुझे क्या?
नीरद : हूं ठीक है तो भाई मैं चल रहा हूं। फिर अचानक कुछ सोचकर पर भाई जब तू रहेगा मेरे साथ तो कुत्ते क्यों चिपटेंगे और फिर तू अकेला आएगा तो कुत्ते तो तुझे भी चिपटेंगे या तुझे नहीं चिपटेंगे क्या?
व्योम : (झुंझल में) ओ यार, मेरे गुरु तू जा भाई मुझे नहीं चिपटते वे और उल्टा मैं ही उन्हें चिपट जाऊं। और रही मेरे दर्द की बात तो भाई जिस दिन यह दर्द तुझे उठेगा ना उस दिन याद करिए जब पता चलेगा तुझे यह दर्द कितना असरदार है।
नीरद : ठीक है ,ठीक है।
नीरद वहां से चला गया और व्योम फिर से वसुंधरा की आंखों की किरण बनकर चमकने लगा।

गांव के बाहर एक ऐसी सुनसान सी जगह,जहां पर लोग भी कम ही आते–जाते है। कुछ पेड़ खड़े हैं, कुछ खुला मैदान है और उन पेड़ों के बीच से एक रास्ता जा रहा है तथा एक सड़क मैदान के सामने से जा रही है जो उस तरफ के खेतों को मिलाती है। उन घने पेड़ों के बीच में वह सड़क अंधेरे में ऐसे प्रतीत होती है कि मानो गहरे दुखों में सुख की कोई एक किरण। उसी सड़क के बराबर से होकर जाती एक नाली में नीरद अपने पर दिए बैठा था मानो उस पानी के बहाव में मचल जाना चाहता हो। तभी पीछे से व्योम आया और आकर गुस्से में उसे पकड़ लिया। नीरद ने पीछे मुड़कर देखा तो वह गुस्से में लाल खड़ा है। नीरद के कुछ भी समझ में नहीं आया फिर भी वह हंसकर बोला –
नीरद : क्या हो गया? इतने गुस्से में क्यों है भाई?
व्योम : वहां क्यों गया था?
नीरद : (कुछ समझकर, फिर भी नाटक करते हुए) कहां?
व्योम : वसुन्धरा के पास
नीरद : ओ! वह सामने छत वाली। यार यह लड़कियां भी ना बहुत चालू होती है, सच्ची में। अब बता, बता दी ना सारी बात और बताई भी तो किसे, जिसे स्वयं ही नहीं पता कि वह स्वयं कितना गंभीर है।
व्योम : (नीरद के कॉलर पकड़कर) देख नीरद इस समय मुझे मज़ाक नहीं सूझ रही है। मुझे चुपचाप बता दे, सच में बहुत गुस्सा आ रहा है।
नीरद : कॉलर तो छोड़ तभी तो बताऊंगा। जब तुझे, तेरे प्यारे से मुखड़े को लाल होते अच्छे से देख लूंगा। (व्योम कॉलर छोड़ देता है) मैं प्यार करता हूं उससे बस यही पूछने गया था कि वह भी करती है क्या?
व्योम यह सुनकर अंदर ही अंदर दुखी तो बहुत हुआ परंतु कहा कुछ नहीं। वह वहां से चुपचाप चल दिया। जब व्योम वहां से थोड़ी दूर चला गया तो पीछे से नीरद ने आवाज दी–
नीरद : ओए सुन ओए
व्योम ने पीछे मुड़कर देखा तभी अचानक व्योम के कानों में एक आवाज सुनाई दी तथा व्योम नीरद को आवाज लगाकर वहां से उस आवाज की ओर दौड़ पड़ा। आवाज नीरद के कानों में भी पड़ी तो वह भी उसी की ओर दौड़ पड़ा। और फिर पीछे से व्योम को आवाज लगाकर बोला–
"भाभी है, वसुन्धरा भाभी है मेरी"। यह सुनकर व्योम का चेहरा खिल गया। उसके चेहरे पर एक प्यारी–सी मुस्कान आ गई तथा थोड़ी देर के लिए वह ठिठका, नीरद की ओर प्यार भरी आंखों से देखा और फिर उसी आवाज की ओर दौड़ पड़ा। नीरद भी मुस्कुराता हुआ उसके पीछे-पीछे दौड़ रहा था। अब वे दोनों उस आवाज के बहुत पास आ चुके थे सुनने से साफ पता चल रहा था कि वह किसी जानवर के कराहने की आवाज है। दोनों उस आवाज की ओर तेजी से दौड़ने लगे। पेड़ों से होकर खेतों में, खेतों से होकर सड़क पर जा पहुंचे तभी व्योम की नज़र एक खेत पर पड़ी जहां पर दो मोटे-मोटे आदमी एक गाय के बछड़े को काटने का प्रयास कर रहे थे और वह बछड़ा उनसे अपनी जान बचाने का प्रयास। यह देखते ही व्योम ने बड़ी फुर्ती से उनके छुरे को लात मार दी जो बस उस बछड़े की गर्दन पर चलने ही वाला था। इस अचानक हुए प्रहार से दोनों आदमी डर–सी गए क्योंकि चोरी करते समय चोर के शरीर का हर एक-एक अंग इतना सचेत रहता है कि एक पत्ते के हिलने की आहट भी उसे डर की पराकाष्ठा तक पहुंचा सकती है। उन्हें देखकर कल्लू कसाई गुस्से में बोला –
कल्लू कसाई – ओए कौन हो तुम ?
नीरद : (कातर स्वर में) शायद तेरी मौत!
दूसरा आदमी : मुझे लगता है शायद तुम दोनों की ही मौत तुम्हें यहां खींच लाई।
कल्लू कसाई – दोनों को समझाते हुए बोला – देखो तुम अभी बालक हो तुम रहने दो इन सब चीजों में पड़ने को। और फिर मैं कुछ गलत नहीं कर रहा हूं इनको ठिकाने से ही तो लगा रहा हूं वैसे भी यह किसके हैं कुछ पता नहीं। अगर तुम्हें इतनी ही दया आ रही है इनपर तो उन्हें कहो जो इनको छोड़ते हैं और फिर यह खेतों में इधर से उधर किसी का नुकसान करते, कुदान मारते ही तो फिरते हैं। वैसे भी ऐसा करने के बाद इनको जन्नत ही मिलने वाली है।
व्योम : (कल्लू कसाई का गला पकड़कर) और मुझे स्वर्ग क्योंकि अगर तेरे द्वारा इसे मारने से इसको जन्नत मिलती है तो किसी बेकसूर जीव की हत्या करने वाले को मारने से मुझे स्वर्ग मिलेगी। रही बात नुकसान की तो और कौन भुकतेगा नुकसान? किसान ही तो है वह जो जब तक इनकी सेवा ली जाती है इनसे सेवा लेते हैं और जब इनकी सेवा करने की बात आती है तो इन्हें छोड़ देते हैं लावारिस। अरे जब इंसानों ने जब तक इनकी मां ने दूध दिया तो उनका दूध पिया, फिर उनको छोड़ दिया। इन बछड़ों ,बैलों से जब तक काम लिया तो रखे, फिर इनको भी छोड़ दिया तो फिर यह नुकसान भी तो इंसानी कौम का ही करेंगे।
दूसरा आदमी : अबे ओ विद्वान जा अपना ज्ञान कहीं और झाड़ हमें अपना काम करने दे।
नीरद ने बिना कुछ बोले उस मोटे आदमी को जोर का चांटा रसीद कर दिया और बोला –
नीरद : चुप! तुझे दिख नहीं रहा दो बड़े बात कर रहे हैं तूने कुछ सीखा या नहीं। मैं बोला कुछ, नहीं बोला ना (फिर उसे एक चांटा और रसीद करता है) तो तू क्यों बोला। ला इसे चुपचाप मुझे दे दे नहीं तो ना तू बचेगा और ना तेरा यह कल्लू कसाई।
व्योम और नीरद ने उस बछड़े की रस्सियां खोलकर उसे छोड़ दिया। इस पर वह दोनों मोटे आदमी उन पर टूट पड़े। कभी वह दोनों उनके ऊपर तो कभी यह दोनों उनके ऊपर।
और वह बछड़ा अपनी नई-नई मिली आजादी को जीने के लिए दौड़ा चला जा रहा था दूर, कहीं दूर। शायद स्वार्थ–भरी इस मानवी दुनिया से दूर, बहुत दूर.....
Rosha