विशाल, श्याम और शिव तीन दोस्त थे। उनकी दोस्ती ऐसी थी कि अगर तीनों में से कोई दिखेगा तो तीनों एक साथ दिखेंगे कुछ काम करेंगे तो तीनों एक साथ करेंगे उन तीनों की एक अलग दुनिया थी। कॉलेज की पढ़ाई, पढ़ाई से समय मिले तो कॉलेज कैंटीन,शाम को घूमना,आपस में खुलकर गप्प मारना बस यही थी उनकी जिंदगी।
उन तीनों में प्यार इतना की कोई रांझा भी क्या किसी हीर से करेगा।तीनों में एक दूसरे की जान बसी थी।
शिव उनमें कुछ अधिक होशियार था इसलिए पढ़ाई से संबंधित सारे काम वह करता था बाकी उन दोनों का दिमाग इन सब चीजों में नहीं चलता था उनमें श्याम तो जीवन के आनन्द लूटने में अधिक विश्वास रखता है वह तो सोचता है कि उसके पिताजी के पास बहुत धन हैं तो उसे क्या जरूरत है पढ़ाई में सिर खपाने की,किसी तरह स्नातक हो जाऊं फिर किसी शहजादी से उसकी शादी हो जाएगी तो वही सेवा करेगी अपनी तो। और हमारे विशाल जी थे अपनी गली के सबसे खतरनाक क्रिकेट खिलाड़ी।
एक दिन तीनों दोस्त कॉलेज की कैंटीन में बैठे थे। शिव बैठा कुछ सोच रहा था मानो कोई बहुत प्यारा–सा ख्याल देख रहा हो। वही उसी के पास विशाल और श्याम दोनों बैठे चाय की चुस्कियां के मजे ले रहे थे। तभी श्याम की नजर शिव पर पड़ी तो उसने इशारों में ही विशाल को कुछ बोला और फिर दोनों उसको ऐसे देखने लगे जैसे उस पर कोई शक हो कि सच में ही यह किसी ख्याल में खोया हुआ है या कुछ ऊपर देख रहा है। इसी प्रक्रिया में वे दोनों कभी शिव के मुंह की ओर देखते तो कभी छत की ओर। फिर अचानक विशाल की नजर शिव से मिली और विशाल ने शिव की ओर देखकर अपनी आंखें ऐसे मटकाई जैसे मानो पूछ रहा ही कि “ क्या हुआ ” । उस पर शिव ने भी विशाल की तरह ही अपनी आंखें मटका दी। तभी पीछे से श्याम बोला कि
श्याम : अबे ओए भोले–भाले शिव जी महाराज क्या हो रहा था? किसके सपने में खोए हुए थे?
शिव कुछ शरमा गया उसका वह भोला–सा चेहरा ऐसा प्रतीत होता था मानो स्वयं शिवाजी महाराज ही अपनी कोई अनुपम छटा बिखेर रहे हो। फिर हिचकिचाते हुए सा बोला “ कहां पर ? ”
श्याम : देख भाई माना तेरा नाम भोले का दूसरा नाम शिव है पर भोला है नहीं तू, इसलिए भाई तेरा लाभ इसी में है कि तू भोला बन भी मत।
विशाल : बात भी दे भाई भोला,नहीं तो मेरे पेट में हो रहा है गोला।
श्याम : हां तो गोला नहीं होगा तो लाला होगा जब कह रहा था भाई मत खा, इतना मत खा जब तो सांड की तरह खाए जा रहा था फिर तो गोला ही होगा और लेले ले ,यह भी ले, ले ये बिस्किट भी ले तू, चाय भी ले।
शिव, श्याम को रोकते हुए बोला – “अच्छा विशाल बता कैसा गोला बन रहा है, तेरी दवाई करते है।”
विशाल : कुछ नहीं भाई मैं तो ऐसे ही पूछ रहा था कि तू क्या सोच रहा था?
शिव : अरे तुम तो बेवजह ही बात का पतंगा बना रहे हो कुछ नहीं सोच रहा था मैं।
विशाल : अच्छा भाई चल कोई बात नहीं अब तू हमसे भी छुपाने लगा बात को।
शिव : अबे यार विशाल ऐसी बात नहीं है तुमसे कुछ छुपता है क्या भला?
शिव किसी के ख्याल में ऐसे खो गया मानो जैसे कोई बारिश की बूंद समुद्र की गहराई में खो गई हो। और ओंठ दबाकर कुछ गाने लगा –
“एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा"
उसको इस दशा में देखकर तथा उसका वह गीत सुनकर विशाल और श्याम दोनों अपनी-अपनी कुर्सियों से दो-दो फुट ऊंचे खड़े हो गए। क्योंकि उन्हें विश्वास ही नहीं हो रहा था वे कभी अपनी आंखों को मल–मलकर देखते तो कभी अपने कानों को बजाकर। शिव जो लड़कियों की परछाई से भी दूर भागता था,उनका होना भी उसके भय का कारण बन जाता था आज किसी लड़की के ख्वाब में खोया हुआ है।
विशाल : अच्छा जी ! तूने एक लड़की को देखा तो कैसा लगा....? डर लगा है ना, बता। तुझे डर नहीं लगा तू तो लड़की की परछाई से भी दूर भागता था।
शिव : नहीं भाई उस लड़की में कुछ और बात है वह सबसे अलग है, सबसे अलग। उसे देखते ही ऐसा लगा मानो वह मेरे लिए ही बनी हो, मानो कोई दिव्य–मूर्ति मेरे सामने आकर खड़ी हो।
विशाल : अच्छा जी ! श्याम की ओर मुड़कर सुन रहा है भाई लगता है शिव जी को पार्वती दिख गई।
श्याम : ओ पार्वती जी के भक्त चुप हो जा। शिव की ओर अग्रसर होकर “पर वह है कौन, कहां से आई है।"हां यह तो सच में ही सोचने वाली बात है विचार ने विषय है कुछ सोचने का प्रयास करता है
शिव : भाई वह थी कौन, कहां से आई है यह तो पता नहीं पर जो भी है वह मेरी है और जहां से भी आई है बस मेरे लिए आई है।
श्याम : (गंभीर होकर) बधाई हो तो भाई,दावत कर ले अब तो आखिर को मजनू बन गया।
शिव : पर यार उसे मैं अपने हृदय की बात बताऊं कैसे? कैसे वह अपने हृदय को मेरे नाम करेगी।
विशाल : हां यह तो सच में ही सोचने वाली बात है, विचारणीय विषय है (कुछ सोचने का प्रयास करता है)।
श्याम : (कटाक्ष करते हुए) रहने दे भाई तू रहने दे सोचने–विचारने को, दिमाग की एक आधी नस फट गई तो फिर हमारे नाम होगा।
शिव : भाई एक बात आ रही है मेरे दिमाग में
दोनों एक साथ बोलते हैं “क्या?”
शिव : हम तीनों मिलकर इस बार कॉलेज टॉप करेंगे, हां हम अबकी बार कॉलेज टॉप करेंगे।
विशाल : ऐं भाई क्या कह रहा है तू, मुझे सुनाई नहीं आ रही है। हलवा समझ रखा है क्या कॉलेज टॉप करना। देख भाई मुझे तो करना नहीं है, श्याम को करना होगा इससे पूछ। वैसे भी कौन–सा मुझे घरवाली मिल जाएगी जब भी मुझे तो भाभी ही मिलनी है।
श्याम : हां तुझे दिवा दूं बहुरिया(बहोड़ियां)। पहले ही हाथ खड़े कर दिए। फट्टू
विशाल : हां हूं भाई मैं तो फट्टू, तू ही बन ले बहादुर। कॉलेज टॉप करना कोई गंगा जी में नहाना थोड़ाई है जो गए गंगाजी पर और डुबकी लगा ली।
शिव : देख भाई विशाल चाहे रो कर करले या हंस कर ले, टॉप तो तीनों को ही करना पड़ेगा। जब हमने आज तक कोई भी काम अकेले नहीं किया तो टॉपर भी तो एक साथ ही बनेंगे और फिर चिंता क्यों कर रहे हो क्या पता कोई लड़की तुम्हें भी पसंद कर ले और फिर हमारी तीनों की ही शादी एक साथ हो जाए पर उसके लिए पहले टॉप तो करना ही पड़ेगा।
विशाल : अच्छा भाई फिर तो पढ़ना पड़ेगा आज से ही। शिव तू फर्स्ट आएगा, मैं सेकंड और यह क्या आएगा, यह आएगा थर्ड, वैसे भी थर्ड के लायक ही है यह।
तीनों कि हंसी से पूरा वातावरण कहके करने लगा।
विशाल अपने कमरे में सो रहा था। रात के लगभग 2:00 बजे थे। विशाल को एक भयंकर सपना दिखा। विशाल अचानक बहुत हड़बड़ा गया तथा उसने उठते ही शिव को फोन मिलाया, उधर शिव ने फोन उठाया तो उसी हड़बड़ाहट में विशाल ने शिव से पूछा कि
विशाल : कैसा है भाई, तू ठीक तो है?
शिव : शिव कुछ तो नींद में था, कुछ विशाल की यह हालात देखकर थोड़ा विचलित–सा तो हुआ पर फिर भी वह बोला – “हां मैं तो ठीक हूं क्यों, क्या हुआ मुझे तो कुछ भी नहीं हुआ पर तू बता तुझे क्या हुआ?
विशाल : बस कुछ नहीं भाई ऐसे ही एक सपना दिखा था।
शिव : सपना? ऐसा क्या देख लिया क्या अभी से ही लड़कियों के सपने आने लगे क्या?
राम : अरे नहीं भाई ऐसा नहीं है। पता नहीं कुछ अजीब–सा सपना था।
शिव : चल कोई बात नहीं ऐसे ही दिख गया होगा। अब सो जा तू ठीक है।
विशाल : हां भाई
दोनों अपने-अपने फोन रख कर सो गए। अचानक शिव को कुछ बेचैनी होने लगी, शिव की सांस तेज होने लगी। शिव की आंखें फटने लगी, अचानक वह नीचे गिरा और गिरते ही थोड़ी देर बाद इस शरीर को भूलोक में ही छोड़कर वह शिवलोक की ओर चला गया।
अगले दिन। कॉलेज की कैंटीन में दो मित्र आ चुके थे। इनमें से एक अभी आया नहीं था। दोनों ने उसकी काफी प्रतीक्षा की जब बहुत प्रतीक्षा करने के बाद भी वह नहीं आया तो उन्होंने विचार किया कि क्यों ना घर जाकर ही देखा जाए कि ऐसी क्या बात रही जो आज वह बिना बताए ही कॉलेज नहीं आया। दोनों उसके घर के पास पहुंचे ही थे कि बाहर से ही सामने उन्हें लोगों की भीड़ दिखने लगी। जैसे ही उस भीड़ को चीरकर वे दोनों आगे गए तो शिव का शव धरती पर पड़ा था और उसी के पास में बैठा था उसके परिवार का केवल एकमात्र सदस्य उसका बाप। उसके पास जाते ही दुख और आश्चर्य के भाव दोनों के चेहरे पर क्रीड़ा करते साफ नजर आ रहे थे। तभी विशाल के चेहरे के भाव कुछ बदलने शुरू हो गए उसके चेहरे पर कुछ अजीब से भाव आने लगे।
शिव के पिताजी ने अपने बुढ़ापे के एकमात्र सहारे शिव को अपनी गोद में उठा लिया और न जाने क्या-क्या उस निष्प्राण शरीर से कहने लगे। बेटा, उठ खड़ा हो। उठ जा ना, तू उठता क्यों नहीं? आज आ चल बाजार चलते हैं, देख सूरज कितना ऊपर चढ़ गया है। उठ बेटा,बहुत लेट हो गए आज हम। ओ मेरे पुत्र, ओ मेरे लाल आज मेरे साथ नहीं चलेगा तू, तेरा यह आप क्या आज अकेला ही जाएगा। नहीं मेरे बेटे तू अभी खड़ा होगा, अभी गहरी नींद में सो रहा है। देख आज सुबह का सारा काम भी बाकी पड़ा है, तू उठ कर मेरे साथ काम क्यों नहीं करवाता हो शिव, ओ मेरे पुत्र, तू आज उठता क्यों नहीं? उठ ना, तू मेरे साथ काम करवाएगा ना, क्यों बेटा करेगा ना तू मेरे साथ सारे काम।
बोल शिव बोल ........
वह बाप जिसने न जाने क्या–क्या सपने देखे होंगे , न जाने क्या–क्या उम्मीदें की होगी आज वह उन्हें अपने आंशुओ की बाढ़ में बहा रहा था।
शिव के पिताजी की यह दशा देखकर दोनों मित्रों से वहां न रहा गया। यह देखकर दोनों ही वहां से पीछे की ओर चले गए। दोनों ही बहुत टूट चुके थे। तभी विशाल का ध्यान भीड़ में ही बात कर रहे कुछ लोगों पर गया।
पहला आदमी : क्या हुआ भाई इसको? कल शाम तो यह मैदान से मेरे साथ ही आ रहा था। बहुत खुश भी लग रहा था। ईश्वर की माया देखो, आज सुबह ही यह क्या हो गया इसको?
दुसरा आदमी : पता नहीं मैं तो कल रात जब सोने वाला था तभी अचानक कुछ शोर हुआ किसी के गिरने की आवाज आयी। भाग कर गया तो देखा यह धरती पर पड़ा है, इसके पिताजी इसे संभाल रहे है और यह लंबी-लंबी सांस ले रहा था कुछ देर बाद ही इसकी देह शांत हो गई, एकदम शांत। नब्ज देखी तो कहीं ढूंढे ना मिलती थी।
यह बात सुनकर विशाल एकदम चौंक गया। अचानक उसने भाग कर शिव की चारों ओर से कोली भर ली और जोर-जोर से रोने लगा, आज कोई रोके तो भी वह ना रूकता था। बस रोता था, और न जाने क्या-क्या शिव से बातें करता था। आज जो हालात विशाल की थी वह केवल विशाल ही जान सकता था। यह देखकर,श्याम से भी न रहा गया। वह भी उन दोनों की कोली(बांहों में) भरकर खूब रोया,खूब रोया।
उसी रात। विशाल का रो-रो कर बहुत बुरा हाल था। ना नींद आती थी ना कहीं चैन ही मिलता था। न जाने कब जाकर उसकी आंख लगी फिर अचानक ही वह बेचैन–सा होने लगा,अजीब सी हरकत करने लगा। वह उठकर सपने में ही चलने लगा और न जाने किस दिशा में वह चलता ही गया
उधर श्याम सो रहा था उसके कमरे में हल्का–सा अंधेरा था और हल्की–सी रोशनी तभी अचानक धीरे-धीरे उसका दरवाजा खुला दरवाजे के पीछे से एक आदमी आया बिल्कुल काले कपड़े पहने और मुंह पर भी काला कपड़ा बांधे। काले अंधेरे में,काले कपड़े होने के कारण वह हल्का-हल्का सा ही दिख रहा था। अचानक वह श्याम की अलमारी की ओर बढ़ा तभी श्याम की आंख खुल गई और वह नींद में ही उसका हाथ पकड़ कर बोला – “कौन है?”
तभी उन दोनों की नजर एक दूसरे की नजर से मिली और दोनों ही एक दूसरे से डर गए तथा वह काला आदमी हड़बड़ाहट में वहां से भागने लगा तो इस हड़बड़ाहट में उसके हाथ में जो चाकू था उसने श्याम के हाथ को हल्का–काट दिया। श्याम ने झटके से अपना हाथ पीछे खींच लिया, यह मौका मिलते ही वह वहां से नौ दो ग्यारह हो गया। श्याम उठकर बाहर गया तो उसे सामने ही दरवाज़े के बाहर विशाल खड़ा दिखाई दिया। उसको देखकर वह चौंक गया, कुछ देर दोनों के नजरे मिला रही।फिर विशाल बोला –
विशाल : क्या हुआ?
श्याम : कुछ नहीं,चल मेरे साथ। चारों तरफ देखकर बोला – “तुझे क्या हुआ? तू इतनी देर रात यहां क्या कर रहा है?”
विशाल : कुछ नहीं
दोनों बाहर की ओर जाकर एक चबूतरें पर बैठ गए कुछ देर दोनों चुप बैठे रहे अचानक विशाल की नजर शाम के कटे हुए हाथ से बहते हुए खून पर गई।
विशाल : यह क्या हुआ श्याम? देख कितना खून बह रहा है तू चल घर वापस मेरे साथ मैं नहीं चाहता कि तुझे भी कुछ हो। हमारी तिगड़ी में से एक तो हमें अकेला छोड़कर चला ही गया है यह कहते-कहते उसकी आंखों से आंसू छलक पड़े अब तू भी मुझे अकेला करना चाहता है क्या? चलो मेरे साथ घर वापस,चलो श्याम
श्याम : यार इतना इमोशनल क्यों हो जाता है तू? मुझे भी रुलाएगा क्या? मुझे कुछ नहीं होगा और फिर तेरे जैसा दोस्त भी तो है मेरे साथ मुझे क्या होगा भला। मैं उसके...... यह कहते- कहते हैं वह रोने लगा फिर विशाल भी उसकी बाहों से लिपटकर खूब जोर-जोर से रोने लगा।
विशाल बहुत बुरा हुआ हमारे साथ। अब जब भी हम कभी आपस में लड़ेंगे तो कौन हमें डांट–कर फटकार कर चुप कराएगा। हमारे ज़रा–सा रूठ जाने पर भी कौन हमें गले से लगाकर थपथपाएगा। हमें सही और गलत का भेद कौन समझाएगा? कौन हमें गलत रास्ते पर चलता देख प्यार–से बैठा कर ऐसे समझाएगा? कौन यार विशाल,कौन .......
यह कहते–कहते वह ज़ोर–ज़ोर से रोने लगा। विशाल कुछ स्वयं को संभालते हुए कुछ श्याम को संभालते हुए बोला कि–
विशाल : मैं हूं ना तेरे साथ। हम अब गलती ही नहीं करेंगे, बिल्कुल नहीं करेंगे। भाई हम अच्छे से पढ़ेंगे और खूब पढ़ेंगे। शिव का सपना था ना हम टॉप करें तो अब हम टॉप करेंगे। पर यार तू चुप हो जा, देखिए मैं भी तो चुप हो गया हूं। तू रोएगा तो फिर मेरे से कहां संभला जायेगा। देख तू अब रोएगा नहीं बिल्कुल नहीं रोएगा। तू रोएगा तो देख, जो शिव हमें हमेशा खुश देखना चाहता था वह वहां ईश्वर की गोद में बैठा कितना परेशान हो जाएगा। उसकी आत्मा दुखी होगी, क्या तू ऐसा चाहता है......... नहीं चाहता ना, तो फिर बिल्कुल चुप हो जा, बिल्कुल चुप। वह दोनों रोते-रोते वहीं पर बैठ गए। थोड़ी देर बाद विशाल ने बोलना शुरू किया –
विशाल : तू क्यों रोता है पागल? तेरे से अधिक तो मैं दुखी हूं,मैं तो ऐसा भाग हूं जिसको सारा कुछ पहले से दिख चुका था। पर वह फिर भी अपने भाई जैसे दोस्त को नहीं बचा पाया। यार श्याम नहीं बचा पाया मैं उसको सब कुछ जानते हुए भी। मैं..... वह फिर से रोने लगा।
श्याम : चुप होजा मेरे भाई, चुप होजा, क्यों ऐसी अजीब–सी बाते करने लगा है तू?
विशाल : अजीब नहीं है यह बातें, यह बातें उसी भांति सच है जैसे पानी का बह जाना सच है। मुझे उस रात सपने में वह सब कुछ दिख चुका था तो उस रात घटा परंतु मैं फिर भी कुछ नहीं कर पाया।
श्याम : सपने में? (आश्चर्य में)
विशाल : हां सपने में, मैं तो आज वह सब भी सपने में देख चुका हूं जो तेरे साथ हुआ। इसलिए ही मैं भाग कर तेरे पास आया हूं क्योंकि मैं अब तेरे साथ कुछ भी अप्रिय नहीं होना देना चाहता था। अफ़सोस, जब तक मैं आया तेरे साथ भी यह हो गया। मुझे सब कुछ पहले से ही पता होने के बाद भी मैं आज भी कुछ नहीं कर पाया। श्याम आजकल मुझे जो भी सपने दिख रहे हैं मुझे लगता है वह सब सच हो रहे हैं। न जाने क्यों? मैं क्या करूं.....
श्याम : क्या कह रहा है तू विशाल ? तुझे हुआ क्या ? मेरी तो कुछ भी समझ में नहीं आ रहा है।
विशाल : चलो श्याम इसको समाप्त करते हैं। भाई इस पर कुछ सोच यार अब वह तो नहीं है जिसके होते हमें कभी सोचने की कोई जरूरत ही नहीं पड़ी। जिसने हमें कुछ सोचने ही नहीं दिया। बहुत कमीना* था वह। आंख से हल्के से एक मोती रूप आंसू टपक पड़ा।
तभी पीछे से एक जानी–पहचानी सी एक आवाज आई। दोनों ने चौंक कर पीछे मुड़कर देखा तो उन्हें अपनी आंखों और कानों पर विश्वास ही नहीं हुआ पर अबकी बार उन्होंने वह प्रक्रिया नहीं अपनायी जो पहले अपनायी थी। एकटक आंखें फाड़ कर बस देखते रहे। उनके सामने साक्षात शिव खड़ा था।
शिव : अबे ओ लाला कमीना* था नहीं कमीना* हूं।
तुम दोनों पागलों के बिना यह तीसरा पागल कैसे कहीं रह सकता है माना शरीर मेरा तुम्हारे साथ नहीं पर आत्मा तो तुम दोनों का पीछा कभी नहीं छोड़ती।
दोनों अवाक् से रह जाते है। अचानक दोनों एक साथ पूछते है – शिव तुम?
वह दोनों एक दूसरे के गले लगकर बहुत जोर-जोर से रोने लगे।
शिव : ओ मेरे विचारकों, तुम दोनों ने आज तक कुछ सोचा है जो आज कुछ सोचोगे। सोचने के लिए बुद्धि चाहिए जो तुम दोनों के पास है नहीं।(दोनों चुपचाप एक दूसरे को ऐसे देख रहे थे मानों यह सब जो भी हो रहा है उनकी समझ से परे हो)
अबे ऐसे क्या देख रहे हो, मैं ही हूं तुम्हारा शिव। मुझे बताओ आज तक हमने कुछ अकेले किया है जो आज तुम किसी समस्या का समाधान दोनों महान विचारक अकेले ही खोजने चले।
यह कहते हुए शिव हंसने लगा और बोला हंसो तुम भी। मैं ही हूं और जब भी, कहीं भी, किसी भी मोड़ पर तुम्हें शिव की थोड़ी–सी भी कमी महसूस होगी। शिव की कुछ भी जरूरत पड़ेगी यह देहरहित शिव तुम्हारे पास उस–उस हर मौके पर होगा। शिव हर पल हर क्षण तुम्हारे साथ रहता है, तुम्हारे साथ रहेगा। यह शिव तुम्हारा सानिध्य चाहता है, हमेशा तुम्हारा सानिध्य ही चाहता रहेगा। मैं तुमसे अलग नहीं तुम मुझसे अलग नहीं। वह दोनों हल्के–हल्के मुस्कुराने लगे। फिर सारा वातावरण उनके कहकहो से गूंज उठा।
रात्रि अब अपने पैर समेटने लगी थी और प्रभात गाजे–बाजे के साथ किरणों की बारात लेकर पृथ्वी पर प्रस्थान कर रही थी। अब वह तीनों मित्र प्रसन्नचित्त होकर इस बारात में शामिल हो गए थे।
Rosha