जिंदगी के रंग हजार - 6 Kishanlal Sharma द्वारा कुछ भी में हिंदी पीडीएफ

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जिंदगी के रंग हजार - 6

मेहता साहिब
मेहता साहिब का नाम सुनते ही आपको तारक मेहता का उल्टा चश्मा याद आ गया होगा।
यह टी वी सीरियल है जो कई वर्षों से टी वी चैनल पर चल रहा है।।इस सीरियल में तारक मेहता एक प्रमुख पात्र के साथ साथ सूत्रधार भी है।ये सीरियल बच्चे बूढ़े जवान सब ने पसन्द जीकिया औऱ इसे दखते है।
लेकिन मैं तारक मेहता के उल्टे चश्मे के तारक मेहता की बात नही कर रहा
फिर
मैं अपने बॉस की बात कर रहा हूँ।उनका नाम था ओम दत्त मेहता मंझले कद के बलिष्ट शरीर के।उनका जन्म आज के पाकिस्तान में हुआ था वह सेकंड वर्ल्ड वार में उस समय देश पर अंग्रेजो का राज था।वह फ़ौज में थे और उन्हें मिश्र भेजा गया था।बाद में वहा से जब हटाया गया तब वह रेलवे मे आ गये।बुकिंग क्लर्क में उनकी पोस्टिंग बम्बई में हुई थी।बाद मे वह बुकिंग इंचार्ज बनकर ईद गाह स्टेशन आ गए।उस समय उनके पिताजी आगरा फोर्ट पर छोटी लाइन बुकिंग में इंचार्ज थे।जब वह रिटायर हुए तो उनसे बुकिंग का चार्ज ओम दत्त ने यानी बेटे ने बाप से चार्ज लिया था।
मेरी ई नियुक्ति अनुकम्पा पर रेलवे में कोचिंग क्लर्क के पद पर हुई थी।और मुझे कोटा मण्डल में पहली पोस्टिंग आगरा फोर्ट स्टेशन पर मिली थी।सन1970 में मुझे पहली पोस्टिंग आगरा फोर्ट स्टेशन पर मिली थी।
उन दिनों आगरा फोर्ट पर बड़ी लाइन के बुकिंग और पार्सल दफ्तर अलग और छोटी लाइन के अलग थे।और सब दफ्तरों के इंचार्ज अलग थे।उन दिनों मीटर गेज में बुकिंग में ओम दत्त मेहता और पार्सल मे जगदीश स्वरूप सक्सेना इंचार्ज थे
आगरा फोर्ट पर उस समय मैं सबसे जूनियर था।निरोति लाल चौबे बड़ी लाइन पार्सल में मारकर होने के साथ यूनियन के नेता भी थे।
वो मेरे साथ उदयपुर में ट्रेनिंग में थे।वो बेच छोटा था।उसमें हम 9 लड़के ऐसे थे जो अनुकम्पा पर भर्ती हुए थे औऱ छः लोग क्लास फोर्थ से प्रमोशन पर ट्रेनिंग में गये थे।2 कोटा डिवीजन से थे।उनमें से एक चौबे जी थे।वह ट्रेनिंग पास नही कर पाए थे।उनसे मेरी दोस्ती हो गई थी।उन्होंने मुझे छोटी लाइन पार्सल में लगवा दिया।और पूरे एक साल जब तक जगदीश स रूप सक्सेना रहे मैं पार्सल में काम करता रहा।फिर उनका ट्रांसफर कोटा हो गया था।
उसके बाद छोटी लाइन बुकिंग में स्टाफ की कमी होने पर मुझे वहा भेजा गया।
जैसा मैंने बताया इस ऑफिस के इचार्ज मेहता साहब थे।उनका रोब या रुतबा ऐसा था कि उनके ऑफिस में जाने से लोग डरते थे।मैने भी उनके किस्से सुन रखे थे।और उन्ही के पास मुझे भेजा गया था।स्टेशन के अन्य लोगो ने भी डरा दिया था।खैर नौकरी तो करनी ही थी।
उन दिनों मीटर गेज में3 खिड़की थी।एक खिड़की उच्च श्रेणी की थी।एक खिड़की एन ई रेलवे की थी।इस पर कासगंज, सोरो,काठगोदाम की तरफ जाने वाली ट्रेन के टिकट मिलते थे।औऱ तीसरी खिड़की पर 7 आप,5 उप और 101 ट्रेन के टिकट मिलते थे।5अप ट्रेन शामको जाती थी।यह ट्रेन अहमदाबाद जाती थी।इस खिड़की पर जबरदस्त भीड़ होती थी।उन दिनों कार्ड टिकट बिकते थे।जो भी पहली बार ऑफिस में आता उसे इसी खिड़की पर बुकिंग करायी जाती थी।इस खिड़की पर बुकिंग का मतलब था।पूर्णतया ट्रेंड हो जाना