जिंदगी के रंग हजार - 8 Kishanlal Sharma द्वारा कुछ भी में हिंदी पीडीएफ

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जिंदगी के रंग हजार - 8

सन 1971 में मेरा रिश्ता तय हो गया था।
रिश्ता तय का मतलब चट मंगनी पट ब्याह नही।आजकल तो हो जाता है।लेकिन मेरे साथ ऐसा नही हुआ।सितम्बर1971 में सगाई हुई और शादी जून1973 में हुई इसकी वजह थी मोहरत का न होना।वैसे आजकल जन्मपत्री मिलाने का सिर्फ नाटक होता है क्योंकि अगर जन्मपत्री न मिले या मोहरत न निकले तो पंडित उल्टे सीधे रास्ते से सब कुछ कर देते हैं
लेकिन न हमारी तरफ से न ही लड़की पक्ष की तरफ से ऐसा प्रयास किया गया।जो मोहरत निकला उसी को मानकर शादी का निर्णय लिया गया।
और इस लम्बे दौरान के बीच दोनों परिवारों में सम्पर्क बना रहा।
और इस बीच एक और घटना हो गयी।यह बात है मेरा रिश्ता पक्का होने के दिन की।मैं अपने साथ मकान मालकिन को भी ले गया था।जब हम दूसरे दिन लौटे तब हमें ईद गह स्टेशन पर ही मोहल्ले के लोग मिले थे
असल मैं मकान मालकिन के6 बच्चे थे।3 लड़के और 3 लड़की।सबसे छोटी लड़की की तबियत खराब हुई और वह मर गयी थी।उन दिनों टेलीफोन आम नही थे।इसलिए सूचना कैसे मिलती।और फिर हमें ताजगंज श्मशान जाना पड़ा था।
और 24 जून को मेरी शादी थी।मैं कुछ दिन पहले अपने गांव बसवा चला गया था।बारात24 जून को ट्रेन से गयी थी।उसी ट्रेन से मेहताजी और उनके साथ सैनी और जे सी शर्मा भी मेरी शादी में आये थे।
शादी के लिय मैं एक महीने की छुट्टी लेकर आया था।पता ही नही चला कब एक महीना बीत गया।और मुझे तीन बजे की ट्रेन पकड़ने के लिए आना था।उन दिनों गांव से बांदीकुई आने के लिए गिनी चुनी बसें चलती थी।वो भी जरूरी नही समय पर आ ही जाए।और उस दिन बस नही आई और मैं जा नही पाया।
अगले दिन में दोपहर वाली ट्रेन से गया था।घर पर यानी अपने कमरे पर पहुचते ही सबसे पहले मैं बड़े बाबू यानी मेहताजी के घर जाकर आया था।फिर मैं स्टेशन अपने ऑफिस गया था।मुझे मालूम था।ऑफिस के कुछ लोगो ने बड़े बाबू के कान जरूर भरे होंगे।इसीलिए मैं सबसे पहले मेहताजी के घर गया था।
मुझे देखते ही जे सी कहने लगा,"बड़े बाबू नाराज हो रहे थे।तुम कल नही आये
मैने उन्हें यह नही बताया कि मै बड़े बाबू से मिल आया हूँ
जैसा मैं पहले ही बता चुका हूँ।काम की पूजा है।मैं बड़े बाबू का आज्ञाकारी होने के साथ सभी काम मे परफर्केट हो चुका था।
और सन1973 की दीवाली पर में गांव नही जा पाया और बाद में मैंने पत्नि को आगरा बुला लिया था।छोटे भाई के साथ वह आगरा आ गयी थी।
पत्नी के आने के बाद एक दिन मेहताजी ने हम दोनों को खाने के लिए आमंत्रित किया था।
और मैं पत्नी के साथ उनके घर गया था।फिर अक्सर वे हमें अपने घर बुलाते रहते थे।
उनके साथ मेरी बहुत सी यादे जुड़ी है।उनके कोई संतान नही थी।उनकी पत्नी का झुकाव अपनी बहन के बच्चों की तरफ था।यह सत्य है कि अगर कोई निसंतान दम्पति हो तो रिश्तेदार माल हड़पने को तैयार रहते है।
इस बात का जिक्र अक्सर मेहताजी करते थे।उनके साडू के बच्चे उनसे मांगते ही रहते थे।अब कुछ उनसे जुड़ी याद जो अक्सर याद आती है