जिंदगी के रंग हजार - 9 Kishanlal Sharma द्वारा कुछ भी में हिंदी पीडीएफ

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जिंदगी के रंग हजार - 9

पत्नी की डिलीवरी पर मैं काफ़ी परेशान रहा था।और पत्नी की ऑपरेशन से डिलीवरी हुई थी।पत्नी को एक महीने तक अस्पताल रहना पड़ा क्योंकि कुछ टांके टूट गए थे।तब मैं मेहताजी के साथ मल्होत्रा अस्पताल गया था।मैं चाहता था।पत्नी को सरकारी अस्पताल से निजी में भर्ती करा दू।लेकि न वहा पर हमारी बात सुनकर उन्होंने सलाह दी थी कि शिफ्ट न किया जाए
बहुत सी यादे जुड़ी है।मेहताजी के साथ।एक बार जे सी शर्मा के भाई की शादी में मेहताजी के साथ मैं भाटिया ,सैनी और शांति लाल गए थे।उस रात हम रास्ता भटक गए और हमे रात भर भटकना पड़ाथा
मेहताजी के साथ बहुत सी यादे जुड़ी है एक बार उन्हें कानपुर भांजे की शादी में जाना था।छुट्टी भी ले ली थी।लेकिन उन्हें सुबह ही वापस ओफिस में देखकर हम चोंक थे।तब वह बोले,"मैं अपने को बहुत होशियार समझता था लेकिन
किस्सा इस तरह है
भात में देने के लिए सामान कपड़े आदि खरीदे थे।उन दिनों आगरा कैंट से पैसेंजर ट्रेन सुबह4 बजे चलती थी।सर्दियों का सीजन कोहरा खूब पड़ रहा था।सुबह 3 बजे स्टेशन पहुंच गए।चार लोग सीट पर सो रहे थे रजाई ओढ़कर ।मेहताजी पत्नी के साथ थे।2 आदमी एक सीट पर सो रहे थे।वे सीट छोड़कर नीचे सो गए।इन्होंने सामान का बक्स सीट के नीचे रख दिया था औऱ केंट से गाड़ी चलने के बाद टूंडला स्टेशन के आउटर पर रुक गयी थी।
उनमें से एक आदमी उतरते हुए बोला,"देखता हूँ।गाड़ी क्यो खड़ी हैं।
मेहताजी टोइलर्ट चले गए थे।दो और उठे
"वह आया नही
और बाकी के तीनों भी रजाई लेकर चले गए
काफी देर बाद गाड़ी चली थी।वे चारो नही लौटे थे।मेहताजी ने सोचा दूसरे डिब्बे में बैठ गए होंगे।टूंडला पर ट्रेन काफी देर के लिए खड़ी रहती थी।उनका ध्यान जब सीट के नीचे गया तब उन्हें पता चला।सामान गायब था।वे समझ गए वे लोग यात्री नही चोर थे। आगे जाकर क्या करते वापस आगरा लौट आये थे।
उन्होंने पत्र द्वारा सूचना भेजी थी।धीरे धीरे रिश्तेदारों को घटना के बारे में पता चला तो उनके आने का सिलसिला चालू हुआ।लोग समाचार लेने के साथ आगरा घूमने भी आते थे।वह और उनकी पत्नी परेशान हो गए औऱ कहते,"किसी को बताना भी सर दर्द है।
हम1975 में उदयपुर रिफ्रेशर कोर्स में गय थे आगरा फोर्ट से मैं मेहताजी और शिव सिंह खटोलिया गए थे।तबके और आज के उदयपुर में बहुत अंतर है।उस समय20 पैसे में गन्ने के रस का गिलास मिलता था।
मेरे स्वसुर जब रिटायर हुए उससे पहले वे भी मेरे साथ मेरी ससुराल गए थे।
सन 1980 के सितमर के महीने में उनका रेटियरमे त था।उन दिनों में 58 साल की उम्र में सेवा निवर्ती होती थी।तभी ये पॉलिसी बनी थी कि पब्लिक सेवा में कार्यरत स्टाफ का 4 वर्ष में ट्रांसफर होगा।कोटा मंडल में आगरा फोर्ट,कोटा,भरतपुर आदि स्टेशनों पर कार्यरत स्टाफ को 10 10 साल हो चुके थे।आगरा फोर्ट से भरतपुर या कोटा ट्रांसफर हुआ था
मेहताजी मुझसे बोले,"कोटा जाएगा
"नही।"मैं कोटा जाना नही चाहता थातब मेहताजी ने मेरा ट्रांसफर अपने प्रयास से ििइडगह क्रय था।
बाद में मुझे पता चला मेहताजी ने मेरा ट्रांसफर कोटा की जगह ईद गाह स्टेशन कराने के लिए बाबू को 300 रु दिए थे।
सेवा निवर्ती के बाद सिर्फ 3 साल ही वह जिंदा रहे थे