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कंगन

कंगन

आज सुजाता सुबह जल्दी ही उठ गई । आज घर में बहुत बड़ा दिन था । विनोद की बहन नीलू की शादी थी ।विनोद नाश्ता करके शादी वाले हाल की तरफ़ निकल गया । नीलू भी ब्यूटी पार्लर की तरफ़ निकल गई । दस बजे तक सबने पहुँचना था तो सुजाता जल्दी जल्दी हाथ चलाने लगी। दो साल की उसकी बिटिया तनु जब बार बार माँ को तैयार होने में देर कराने लगी तो सुजाता ने उसके हाथ में खिलौनों की टोकरी पकड़ा कर उसे बिस्तर पर बिठा दिया और स्वयं इत्मीनान से तैयार होने लगी । आख़िर बहू है इस घर की सबकी नज़र उस पर भी तो होगी । निर्मला उसकी सासु माँ ने आकर बताया कि नीचे गाड़ी आ गई है । जल्दी से तनु को तैयार कर दो , मैं तुम्हारा कमरा ठीक कर देतीं हूँ । सुजाता तनु को तैयार करने में व्यस्त हो गई और निर्मला जल्दी जल्दी बिखरा कमरा समेटने लगी ।उठाकर तनु के खिलौनों की टोकरी अलमारी के उपर रखी । सुजाता ने तनु को सुन्दर सी घाघरा चोली पहनाई और झटपट दोनों गाड़ी में बैठ गई ।
गाड़ी हाल की तरफ़ चल पड़ी । तभी सुजाता का ध्यान अपनी सुनी कलाई पर गया और उसके मुँह से हाय राम !!जल्दी जल्दी में कंगन पहनना तो भूल गई ।झट से उसने अपनी बाज़ू साड़ी में छुपा ली । सुजाता कंगन पहनना नहीं बल्कि वो कंगन पहनना भूल गई थी जो सब गहनों में सबसे ज़रूरी थे । जो इस घर की किसी परम्परा को सँभाले हुए थे । एक धरोहर की भाँति एक बहू से दूसरी बहू के हाथ में थमाये जा रहें थे । यह कब से चला आ रहा था यह तो उसकी सास को भी नहीं पता था ।जब वो चार साल पहले इस घर की बहू बनकर आई तो उसके हाथ में कंगन देते हुए निर्मला ने कहा था…. सुजाता इसे सम्भाल कर रखना और हर तीज त्योहार शादी ब्याह में पहनना ।तब विनोद के पापाजी भी साथ खड़े मुसकराते हुए बोले थे, हाँ बहू सास की बात को पल्लू की गाँठ में बाँध लेना । बहुत ही खुश प्रकृति के व्यक्ति थे । अभी दो साल पहले एक दुर्घटना में अचानक से परिवार को अकेला छोड़ गये। माँ जी तो बिलकुल टूट गई थी । सुजाता ही थी जिसने सास को ही नहीं बल्कि सारा घर बड़े अच्छे से सम्भाल लिया था । जायदाद के नाम पर बस यही एक घर और नीलू की शादी के नाम का एक प्लाट ख़रीदा था बस उससे ज़्यादा कुछ नहीं छोड़ कर गये थे ।
विनोद जो कि अस्पताल में बतौर एक नर्स की नौकरी पर कार्यरत था । पापा के जाने के बाद विनोद के कंधों पर परिवार के अलावा बहन और माँ के खर्चो की भी ज़िम्मेदारी आ गई थी । मन से शायद इस ज़िम्मेदारी के लिए तैयार नहीं था तो ग़ुस्सैल और चिड़चिड़ा सा हो गया था । सुजाता विनोद के ग़ुस्से से बहुत डरती थी ।इसलिए पुरी कोशिश करती थी कि विनोद तक कोई तनाव वाली बात ना ही जाये । एक सुघड़ और समझदार बहू के सभी फ़र्ज़ बड़े अच्छे से निभा रही थी । निर्मला भी सुजाता को बहुत प्यार सम्मान देती थी ।शादी में पुरा समय सुजाता विनोद और निर्मला से अपनी कलाई छुपाती रही । शाम को शादी से निपट कर घर आकर जब वो अपने गहने डिब्बे में रखने लगी तो उसकी चीख निकल गई । कंगन डिब्बे में नही थे । दो मिनट सुजाता जैसे पत्थर सी हो गई ।फिर जल्दी से ख़ुद को सम्भाल पागलों की तरह कंगन ढूँढने लगी ।कंगन तो कहीं भी नहीं थे । अलमारी बिस्तर पलंग के नीचे तनु की खिलौने की टोकरी हर जगह निराशा ही हाथ लग रही थी । सुजाता ने झट से कमरे का दरवाज़ा बन्द किया और फूट फूट कर रोने लगी । कंगन अच्छे ख़ासे भारी थे ।
एक मध्य वर्गीय परिवार के लिए एक बहुत बड़ा आधार मुश्किल वक़्त के सहारे जैसे थे । सुजाता ने अपनी प्यारी सहेली कोमल को फ़ोन कर सारी बात बताई । उसने एक समझदार सहेली की तरह सलाह दी कि जाकर अपने पति और सास को सारी बात बता दो । वो सब मिलकर इस समस्या का हल निकाल सकते हैं । सुजाता विनोद को कैसे बताये वो तो अपने होंठों पर उसका ज़िक्र लाने से भी डर रही थी ।मायके जाकर माँ से भी बात की तो माँ ने भी यही सलाह दी परिवार की धरोहर खोईं है तुमने, भले ही इसमें तुम्हारी गलती है या नहीं लेकिन बताना तुम्हारा फ़र्ज़ है ।दिन बीतते गये राज यह सीने में दफ़्न उसे हर वक़्त सालता रहा । शादी ब्याह त्योहारों पर कंगन भारी है पहनने का मन नहीं कहकर सासु माँ को टालती रही । पति को बताने का कई बार मन भी किया, लेकिन उसके ग़ुस्सा चीखना चिल्लाना घर में क्लेश ऐसा ख़याल आते ही उसने ख़ुद को रोक लिया । इसी बीच सुजाता घर खर्च से बचने वाले पैसों को जोड़ने लगी । अपनी छोटी छोटी ज़रूरतों को मारने लगी , इच्छाओं को दबाने लगी , यह जानते हुए भी कंगन ख़रीदने भर की राशि वो कभी जुटा नहीं पाएगी । फिर भी एक आशा से ख़ुद को बांधे वो सालो आगे निकल आई । बिटिया तनु इक्कीस बरस की हुई तो अपने लिए इंजीनियर लड़का ढूँढ लाई । लड़का आस्ट्रेलिया जा रहा था और तनु शादी के बाद उसके साथ जाना चाहती थी । विनोद और सुजाता को घर बार सब अच्छा लगा तो महीने भर में तनु की विदाई की तैयारी शुरू कर दी । शादी के ख़र्चों के साथ साथ गहनों का भी इन्तज़ाम करना था । विनोद इस बड़े खर्चे के लिए अभी तैयार नहीं था । बिटिया ने शादी का फ़ैसला उसकी योजना से कुछ पहले ले लिया था ।
माँ ने सलाह दी बेटा तू चिंता मत कर हम वो ख़ानदानी कंगन बेच देंगे । तुम्हारा तो कोई बेटा है नहीं जो आगे बहू आयेगी । सुजाता ने जब यह सुना तो उसका शरीर काँपने लगा । बरसो से दबे राज का पर्दाफ़ाश होने जा रहा था । गुनाह के कटघरे में सवालों की बौछार में ख़ुद को देखने लगी । जल्दी कोमल को फ़ोन किया कि घर आजा आज मुझे तेरी ज़रूरत है । जल्दी से जाकर जमा किये पैसे भी गिनने लगी । चालीस हज़ार ही जोड़ पाई थी, पाई पाई बचाकर इतने बरसों में… पैसे हाथ में लेकर खड़ी थी कि तभी जगदीश जो कि घर की सफ़ेदी पेंट कर रहा था आकर बोला… दीदी जी आपके कमरे की अलमारी बहुत भारी है । थोड़ा खींचने में मदद करवा दो । सुजाता ने कहा ठीक है मैं आती हूँ । रूपये हाथ में दबाये सुजाता जगदीश की मदद करने आ गई । दोनों ने मिलकर जैसे ही अलमारी खिसकाई तो सुजाता के चेहरे पर हल्की सी मुस्कान आई । धूल और जाले से भरे नन्ही तनु के कुछ खिलौने अलमारी के पीछे बीच राह में अटके पड़े थे । शायद वो उस टोकरी से गिरे थे जो अक्सर वो उपर रखकर हाथ से धक्का देकर पीछे करते थे । जगदीश ने कहा दीदी जी आप अपना काम कर लीजिए यह सब मैं साफ़ कर लूँगा । सुजाता रूपये उठा कर चलने लगी जगदीश उठा उठा कर चीजें एक तरफ़ फेंकने लगा । एक ठक कीं आवाज़ ने सुजाता के पैरों को रोक लिया… यह आवाज़ कहाँ से आई जगदीश ?? सुजाता ने चौकन्ना होकर पूछा । दीदी जी यह कोई गहनों वाला पाउच है यहाँ से आई । सुजाता को याद आया इस पाउच के साथ अक्सर तनु खेलती रहती थी । माँ की तरह कुछ ना कुछ उसमें डालती रहती थी । सुजाता ने जैसे ही उस धूल से भरे पाउच को खोला तो आँखें उसकी फटी की फटी रह गईं । दोनों कंगन में आज भी वैसी ही चमक थी जो उसने पच्चीस साल पहले देखी थी । कंगन हाथ में थे सुजाता के विश्वास को यक़ीन नहीं आ रहा था ।
दो साल की तनु जो उसके साथ बैठी खेल रही थी उसने कब माँ के कंगनो को उठाकर पाउच में डाल दिया और पाउच अलमारी के पीछे कहीं अटका रहा कभी पीछे ध्यान ही नहीं गया ।वो फूट फूट कर रोने लगी । उसका रोना सुनकर सभी भाग कर आ गये । विनोद ने जगदीश की तरफ़ देखा वो भी निरूतर सा देख रहा था । तभी कोमल आ गई और आकर सुजाता के पास बैठ कर बोली क्या हुआ ?? सुजाता ने उसके हाथ में वो पाउच पकड़ा दिया । कोमल ने जब सारी बात बतानी शुरू की तो विनोद और निर्मला के चेहरे हैरान से सुजाता को देख रहे थे । निर्मला ने सुजाता को गले लगा लिया और प्यार करते हुए बोली पति को ना सही मुझे तो बता सकती थी । कब मैंने तुझमें और नीलू में फ़र्क़ किया । विनोद भी अपने ग़ुस्से की वजह से थोड़ा शर्मिंदा दिख रहा था और सोच रहा था…… काश उसने ग़ुस्से के साथ साथ पत्नी को विश्वास भी दिया होता । माँ ने कहा देख लिया अपने ग़ुस्से का परिणाम सालो तक बहू भीतर ही भीतर घुटती रहीं । विनोद ने सुजाता को हाथों से उठाकर खड़ा किया और बोला चलो अभी बाज़ार चलते है और आज तुम्हारे इन जमा किये पैसों से तुम्हारी दबीं सभी इच्छाओं को पुरा करते हैं । सास ने बडे प्यार से सुजाता के हाथ में वो कंगन पहनाकर उसका माथा चूम लिया..।।

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