तीन लोक से न्यारी काशी Prafulla Kumar Tripathi द्वारा यात्रा विशेष में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
  • आखेट महल - 19

    उन्नीस   यह सूचना मिलते ही सारे शहर में हर्ष की लहर दौड़...

  • अपराध ही अपराध - भाग 22

    अध्याय 22   “क्या बोल रहे हैं?” “जिसक...

  • अनोखा विवाह - 10

    सुहानी - हम अभी आते हैं,,,,,,,, सुहानी को वाशरुम में आधा घंट...

  • मंजिले - भाग 13

     -------------- एक कहानी " मंज़िले " पुस्तक की सब से श्रेष्ठ...

  • I Hate Love - 6

    फ्लैशबैक अंतअपनी सोच से बाहर आती हुई जानवी,,, अपने चेहरे पर...

श्रेणी
शेयर करे

तीन लोक से न्यारी काशी

तीन लोक से न्यारी - काशी (यात्रा डायरी )-
20 दिसम्बर 2022 की देर शाम हम काशी नगरी में पहुंचे. सीधे होटल हिन्दुस्तान इंटरनेशनल पहुंचे. फ्रेश होकर मंगलवार दिन को देखते हुए हनुमान जी के दरबार में हम सभी ने अपनी हाज़िरी लगाई. मोबाइल ले जाना प्रतिबन्धित था. ख़ूब भीड़ तो थी लेकिन वह व्यवस्थित थी इसलिए दर्शन ठीक से हो गया.बताया जाता है कि यह
वो मंदिर है जहाँ तुलसीदास को हनुमान जी ने दिए थे दर्शन.
धर्म, ज्ञान और मोक्ष की नगरी वाराणसी में कई ऐसे धर्म स्थल हैं जो सिद्ध हैं, चमत्कारिक हैं और भक्तों के बीच खासे लोकप्रिय हैं। अपने घाटों के लिए विश्व भर में प्रसिद्ध वाराणसी अपने मंदिरों के लिए भी जाना जाता है। काशी विश्वनाथ, दुर्गाकुंड, अन्नपूर्णा मंदिर, विशालाक्षी मंदिर और तुलसी मानस मंदिर समेत कई ऐसे मंदिर हैं, जो सनातन हिन्दू धर्म का केंद्र हैं। इनमें से ही एक मंदिर है हनुमान जी को समर्पित संकट मोचन मंदिर। इसी मंदिर में हनुमान जी ने रामचरितमानस की रचना करने वाले तुलसीदास जी को दर्शन दिए थे। बताते चलें कि वर्ष 2006 में इस मंदिर में आतंकी हमला भी हुआ था लेकिन इस्लामी कट्टरपंथी, हिंदुओं को अपने आराध्य के दर्शन करने से नहीं रोक पाए।
लोगों का यह विश्वास है कि
गोस्वामी तुलसीदास ने की थी मंदिर की स्थापना.
सन् 1631 से 1680 के बीच रामभक्त गोस्वामी तुलसीदास ने ही इस मंदिर का निर्माण करवाया। मान्यता है कि अपने काशी प्रवास के दौरान तुलसीदास गंगा स्नान के पश्चात एक सूखे पेड़ पर एक लोटा जल डाल दिया करते थे। ऐसा करते हुए उन्हें कई दिन हो गए। इसी क्रम में एक दिन जब तुलसीदास ने उस पेड़ पर जल डाला तब उसमें से एक प्रेत (कई मान्यताओं में यक्ष) प्रकट हुआ। उसने कहा, “क्या आप भगवान राम से मिलना चाहेंगे? मैं आपको उनसे मिला सकता हूँ।“ इतना सुनते ही तुलसीदास प्रसन्न हो गए। तब उस प्रेत ने कहा कि राम से मिलने से पहले उनके अनन्य भक्त हनुमान से मिलना पड़ेगा। इसके बाद उस प्रेत ने तुलसीदास से बताया कि गंगा घाट के किनारे राम मंदिर के पास एक कुष्ठ रोगी बैठा होगा, वो ही हनुमान जी हैं।

प्रेत के बताए अनुसार जब तुलसीदास जी उस रोगी के पास पहुँचे तब वह आगे बढ़ गया। इस पर तुलसीदास ने उस रोगी के पैर पकड़ लिए और कहा, “मुझे पता है कि आप ही हनुमान जी हैं, कृपया मुझे दर्शन दें।“ जिस क्षेत्र को आज अस्सी के नाम से जाना जाता है, वहाँ पहले सघन वन था और उसी स्थान पर अंततः हनुमान जी ने तुलसीदास जी को दर्शन दिए। तुलसीदास के अनुरोध पर ही हनुमान जी उस क्षेत्र में मिट्टी का रूप धारण कर स्थापित हो गए। इसके बाद ही तुलसीदास ने संकट मोचन हनुमान मंदिर का निर्माण कराया।

यह भी माना जाता है कि जब तुलसीदास वाराणसी में रहकर रामचरितमानस की रचना कर रहे थे तब उनके प्रेरणा स्रोत हनुमान जी ही थे। आज वर्तमान संकट मोचन मंदिर के परिसर में जो पीपल का विशाल वृक्ष है, उसी के नीचे बैठकर तुलसीदास ने रामचरितमानस का एक बड़ा हिस्सा लिखा है। वर्तमान दृश्य मंदिर की स्थापना पंडित मदन मोहन मालवीय ने सन् 1900 में कराई, जिन्होंने बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना भी की थी ।

संकट मोचन मंदिर में विराजित हनुमान जी की मूर्ति अत्यंत मनमोहक है। मूर्ति पर सिंदूर का लेप किया गया है। इसके अलावा मंदिर में भगवान राम की मूर्ति भी स्थापित की गई है, जो हनुमान जी की मूर्ति के ठीक सामने है। परिसर में एक अत्यंत प्राचीन पीपल का वृक्ष और एक गहरा कुआँ भी है, जिसे जाल लगाकर अब ढक दिया गया है। संकट मोचन मंदिर को वानर मंदिर के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि मंदिर के आसपास फैले गहन जंगल में बहुतायत मात्रा में बंदर हैं।
7 मार्च 2006 को वाराणसी में सीरियल बम ब्लास्ट हुए थे। इस दिन रेलवे कैंट, दशाश्वमेघ घाट और संकट मोचन हनुमान मंदिर में इस्लामी आतंकियों ने बम ब्लास्ट किये थे। संकट मोचन मंदिर में जब यह विस्फोट हुआ, तब मंदिर में हनुमान जी की आरती चल रही थी। इस हमले में मंदिर में 7 लोगों की जान गई थी। हालाँकि यह बम ब्लास्ट भी भगवान राम और हनुमान भक्तों को मंदिर आने से नहीं रोक पाया और मंदिर में पुनः उसी तरह श्रद्धालु आने लगे जैसे विस्फोट के पहले आते थे।
हमलोगों ने हनुमान जी से आप सभी फेसबुक फ्रेन्डस के लिए भी आशिर्वाद मांगा है!
देर रात हम दुर्गा कुंड भी गये और वहां दर्शन किये, पुष्प अर्पित किये.
पेट पूजा भी अब आवश्यक लग रही थी इसलिए लंका स्थित "सागर रत्ना" का शाकाहारी सु स्वादिष्ट भोजन लाभ लेकर हम सभी अपने होटल वापस आ गये. काशी यात्रा की आज की डायरी यहीं तक.. शेष फ़िर..