पधारो म्हारो देस - यात्रा डायरी Prafulla Kumar Tripathi द्वारा यात्रा विशेष में हिंदी पीडीएफ

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पधारो म्हारो देस - यात्रा डायरी

मित्रों, इस बार 2023 के वर्षान्त में मित्र मंडली के साथ रंगीलो राजस्थान विशेष रूप से जयपुर की सैर पर निकल रहा हूं।वैसे राजस्थान पहले से कई बार का घूमा हुआ है।हर बार का अनुभव शानदार रहा है।
आपको बता दूँ कि भारत गणराज्य के क्षेत्रफल के आधार पर राजस्थान सबसे बड़ा राज्य है।सर्वप्रथम 1800 ई मे जार्ज थामस ने इस प्रांत को राजपूताना नाम दिया। प्रसिद्ध इतिहासकार जेम्स टाड ने इस राज्य का नाम रायथान या राजस्थान रखा।
इस राज्य की एक अंतरराष्ट्रीय सीमा पाकिस्तान के साथ 1070 km जिसे रेड क्लिफ रेखा के नाम से जानते है, तथा 4850 km अंतर्राज्यीय सीमा जो देश के अन्य पाँच राज्यों से भी जुड़ा है।
वैसे आज का पहला पड़ाव मथुरा वृन्दावन... मथुरा नरेश को मत्था टेकना आवश्यक है.....
फिर कल सुबह गुलाबी नगरी के लिए निकलूंगा....
राजस्थान की राजधानी है जयपुर।आमेर के तौर पर यह जयपुर नाम से प्रसिद्ध प्राचीन रजवाड़े की भी राजधानी रहा है। इस शहर की स्थापना 1728 में आंबेर के महाराजा जयसिंह द्वितीय ने की थी। जयपुर अपनी समृद्ध भवन निर्माण-परंपरा, सरस-संस्कृति और ऐतिहासिक महत्व के लिए प्रसिद्ध है।तो मित्रो, Stay with me for my onward journey......
❤️❤️❤️❤️❤️
मथुरा
मेरी दृष्टि में मथुरा के 10 प्रमुख दर्शनीय स्थल इस प्रकार हैँ -(अगर कुछ छूटे तो क्षमा चाहूंगा )-
दिल्ली से लगभग 150 किलोमीटर दूर उत्तर प्रदेश राज्य में स्थित मथुरा को भगवान कृष्ण के जन्मस्थान के रूप में जाना जाता है। मथुरा युमना नदी के किनारे बसा भारत का एक प्रमुख प्राचीन शहर है, जिसका वर्णन प्राचीन हिंदू महाकाव्य रामायण में भी मिलता है। इसके साथ ही इस पवित्र जगह के अपने कई ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व भी हैं। मथुरा भारत में पर्यटकों और तीर्थयात्रियों के सबसे पसंदिदा धार्मिक स्थलों में से एक है जहां पर कई धार्मिक मंदिर और तीर्थस्थल भी हैं। मथुरा भारत में सबसे पुराने शहरों में से एक है जो अपनी प्राचीन संस्कृति और परंपरा के चलते पर्यटकों के लिये आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। खास दर्शनीय स्थल –
1-कृष्ण जन्म भूमि मंदिर
2-द्वारिकाधीश मंदिर
3-राधा कुंड
4- कंस किला
5-मथुरा संग्रहालय
6-कुसुम सरोवर
7- रंगजी मंदिर
8- बरसाना
9-मथुरा के घाट –
10-गोवर्धन
11-वृन्दावन
मथुरा का इतिहास तो लगभग सभी जानते हैँ। फिर भी, कुछ जानकारियां दे रहा हूं
मथुरा का इतिहास करीब 2500 साल पुराना है। इस शहर को बृज भूमि के रूप में भी जाना जाता है, मथुरा वो जगह है जहाँ श्री कृष्ण ने जन्म लिया था। मथुरा इतना प्राचीन शहर है कि इसका उल्लेख हिंदू महाकाव्य रामायण में और अलेक्जेंड्रियन खगोलशास्त्री टॉलेमी के लेखों में भी मिलता है। यह एक हिंदू धार्मिक स्थल होने के साथ ही बौद्धों और जैनों के लिए भी बहुत महत्वपूर्ण स्थान है।
यह भी मैंने पढ़ा है कि लगभग 400 ईस्वी में कुषाण राजवंश के शासन के समय चीनी राजदूत फा ह्यन ने मधुरा शहर में बड़ी संख्या में बौद्ध मठों के होने का उल्लेख किया था। इसके कुछ समय बाद यह शहर मुस्लिम शासकों के अधीन हो गया था इस दौरान महमूद गजनवी ने यहां के ज्यादातर मंदिरों को ध्वस्त कर दिया गया था। गजनवी का पालन करते हुए बाद में औरंगजेब ने भी इस पवित्र शहर में तोड़फोड़ की। इसके कुछ समय बाद अंग्रेजो ने इस शहर पर अपना कब्ज़ा कर किया।
जब बाद में ह्वेन त्सांग एक यात्री ने मथुरा का दौरा किया तब यहां महन्त की संख्या 2000 से 3000 तक गिर गिया थी इसके बाद पंथ के पुनरुत्थानवादी हिंदू आंदोलन ने इस धार्मिक स्थल को राख से वापस उठाया और यहां के मंदिरों को पुनर्जीवित किया।
कृष्ण जन्म भूमि मंदिर” को हिंदू देवता भगवान कृष्ण के जन्मस्थान के रूप में जाना जाता है। भगवान कृष्ण विष्णु के 8 वें अवतार थे, जो मथुरा में एक जेल की कोठरी में पैदा हुए थे। अब उस जेल की कोठरी वाले स्थान पर एक मंदिर है, जहाँ पर हर साल लाखों पर्यटक और श्रद्धालु दर्शन करने आते हैं। कृष्ण जन्म भूमि मंदिर मथुरा के सबसे प्रमुख दर्शनीय स्थलों में से एक हैं यहाँ पर हर साल जन्माष्टमी और होली के त्योहार के समय भारी संख्या में तीर्थयात्री आते हैं।
द्वारकाधीश मंदिर मथुरा का एक प्रसिद्धमंदिर है जिसका निर्माण लगभग 150 साल पहले भगवान कृष्ण के एक भक्त ने करवाया था। मानसून की शुरुआत में यह मंदिर अपने अद्भुत झूले उत्सव के लिए जाना-जाता है। इस मंदिर में भगवान कृष्ण की मूर्ति को “द्वारका के राजा” रूप में सजाया गया है और उन्हें यहाँ बिना मोर के पंख और बांसुरी के साथ दिखाया गया है। राधा कुंड मथुरा का प्रसिद्ध तीर्थ स्थल है जिसको भारत में वैष्णवों के लिए एक प्रमुख तीर्थ स्थान माना जाता है।कुंड का इतिहास राधा और कृष्ण के दिनों का है जो उनके प्रेम के बारे में बताता है। यहाँ पर हर साल हजारों पर्यटक घूमने के लिए आते हैं।क्रूर कंस तो आपको याद होंगे ही? उस क्रूर कंस का किला भीअपनी कहानी बता रहा है। यह बहुत प्राचीन किला है, जो भगवान कृष्ण के मामा को कंस समर्पित है। यह किला एक मथुरा का एक बहुत ही लोकप्रिय पर्यटक स्थल है इस किले का निर्माण अकबर के नवरत्नों में से एक राजा मानसिंह प्रथम ने करवाया था। यमुना नदी के किनारे स्थित यह किला एक अद्वितीय हिंदू और मुगल शैली की वास्तुकला का अनूठा नमूना है। बता दें कि किला लापरवाही की वजह आज जीर्ण-शीर्ण हो चुका है लेकिन आज भी यह किला मथुरा आने वाले पर्यटकों को रोमांचित करता है। गोवर्धन पहाड़ी भी आप जा सकते हैँ जो पास ही है।गोवर्धन हिल मथुरा से 22 किमी दूर वृंदावन के पास स्थित है जो यहां आने वाले पर्यटकों द्वारा सबसे ज्यादा देखे जाने वाले पर्यटन स्थलों में से एक है। इस पहाड़ी का उल्लेख हिंदू धर्म के कई प्राचीन ग्रंथों में मिलता है और इसे वैष्णवों के प्रमुख तीर्थ स्थलों में से एक माना जाता है। इतिहास की माने तो एक बार मथुरा के अपने गांव को भयंकर बारिश और आंधी से बचाने के लिए भगवान कृष्ण ने गोवर्धन पहाड़ी को अपनी एक उंगली पर उठा लिया था। इस पर्वत को बेहद पवित्र माना जाता है और गुरु पूर्णिमा के मौके पर गोवर्धन पूजा में भक्तों द्वारा इस पर्वत 23 किलोमीटर नंगे पैर पैदल चलकर चक्कर लगाते हुए भक्ति यात्रा की जाती है। भगवान कृष्ण ने अपने गाँव को बचाने के बाद सभी लोगों से इस पहाड़ी की पूजा करने के लिए कहा था, यही कारण है कि आज भी दिवाली के एक दिन बाद गोवर्धन पूजा जरुर की जाती है। सरकार ने अन्य प्रमुख शहरों की तरह यहां भी मथुरा संग्रहालय बनाया है जो शहर में सबसे ज्यादा देखी जाने वाली जगहों में से एक हैं। इस संग्रहालय का निर्माण वर्ष 1874 में किया गया जो अपनी अनूठी वास्तुकला और महत्वपूर्ण कलाकृतियों के लिए जाना जाता है जिसकी वजह से यह भारत सरकार द्वारा जारी किए गए डाक टिकटों पर भी दिखाई दिया है। इस संग्रहालय में कुषाण और गुप्त साम्राज्य के प्राचीन पुरातत्व निष्कर्ष हैं। कुसुम सरोवर जो गोवर्धन और राधा कुंड के बीच स्थित है। बता दें कि सरोवर एक सुंदर जलाशय है जिसका निर्माण राजसी बलुआ पत्थर से किया गया है। इसके जलाशय में सीढ़ियां लगी हुई है जिसका इस्तेमाल तालाब में उतरने के लिए किया जा सकता है। मथुरा आने वाले पर्यटक कुसुम सरोवर में तैराकी और डुबकी भी लगाते हैं। इस सरोवर के पास कई मंदिर भी है जो मथुरा यात्रा के समय देखे जा सकते हैं।और, अब रंगजी मंदिर inवृंदावन जो मथुरा मार्ग पर स्थित है। यह मंदिर भगवान श्री गोदा रणगामणार को समर्पित है जो कि भगवान विष्णु के एक अवतार है। रंगजी मंदिर की वास्तुशिल्प दक्षिण भारतीय पैटर्न का पालन करता है। लेकिन इसका बाहरी डिजाइन उत्तर भारतीय पैटर्न का है। बरसाना की याद है आपको? बरसाना एक ऐतिहासिक स्थल( नगर पंचायत) है। बरसाना माता राधा का जन्म स्थान है, यह ब्रज भूमि का क्षेत्र है बरसाना में श्री राधा रानी मंदिर स्थित है जिसे देखने लाखों भक्त यहां आते हैं। अब, मथुरा के घाट यहां वैसे पुराने समय में कई घाट हुआ करते थे लेकिन वर्तमान में यमुना नदी के तट पर स्थित मथुरा में आज कुल 25 घाट स्थित है। इन घाटों का संबंध भगवान कृष्ण के समय से बताया जाता है। ऐसा माना जाता है कि यहां स्नान करने से भक्तों के पुराने पाप धुल जाते हैं। मथुरा आने वाले तीर्थयात्री यहां के घाट पर पवित्र नदी यमुना में स्नान करना अपना सौभाग्य मानते हैं।
घाटों में विश्राम घाट सहित चक्रतीर्थ घाट, कृष्ण गंगा घाट, गौ घाट, असकुण्डा घाट, प्रयाग घाट, बंगाली घाट, स्वामी घाट, सूरज घाट और ध्रुव घाट आदि के नाम हैं।
और हां, यह तो बताना भूल ही गया कि मथुरा अपने मिठाइयों और दुग्ध उत्पादों के लिए जाना-जाता है। बता दें कि पेड़े यहां की खास चीज़ है। इसके अलावा मथुरा में आपको खाने में कचौरी, जलेबी, पानीपुरी, समोसा, चाट, आलू टिक्की और लस्सी का स्वाद जरुर लेना चाहिए। इसके अलावा आप यहां के स्थानीय भोजनालय में उत्तर भारतीय भोजन भी ले सकते हैं।
क्या पूछा आपने? मथुरा घूमने का सबसे अच्छा समय क्या है?
मेरा उत्तर है कि जो भी लोग मथुरा जानने की योजना बना रहे हैं और यह जानना चाहते हैं कि मथुरा जाने का सबसे अच्छा समय कौनसा है तो बता दें कि यहां आप अक्टूबर से मार्च के महीनों में जा सकते हैं। इन महीनों में मथुरा का मौसम सुहावना होता है। हालाँकि होली के समय और जन्माष्टमी, कृष्ण के जन्मदिन पर यहां उत्सव मनाया जाता है। अगर आप इन उत्सव में शामिल होना चाहते हैं तो होली और जन्माष्टमी का समय एक खास अनुभव करने के लिए मथुरा जाना बहुत अच्छा है।
आज इतना ही, अब अगली पोस्टिंग वृन्दावन की घुमाई के बारे में.....
तब तक के लिए बाय बाय! जय राधे! जय जय कृष्णा!!
प्रफुल्ल कुमार त्रिपाठी,
वृन्दावन से।
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20दिसम्बर 2023-जयपुर प्रवास का दूसरा दिन... कल तो पूरा समय मथुरा से जयपुर आने और शाम को खाटू धाम में खाटू श्याम का दर्शन करने में व्यतीत हुआ। आज जयपुर घुमाई। आपके लिए कुछ जानकारी....
राजस्थान की राजधानी - जयपुर जयपुर शहर भारत के सबसे बड़े राज्य राजस्थान की राजधानी है। जयपुर राजस्थान का जोधपुर महानगर के बाद दूसरा बड़ा शहर है।इसे पिंक सिटी अथवा गुलाबी नगरी भी कहते है, इसको सबसे पहले स्टैनली रीड ने पिंक सिटी बोला था ।आप जानते ही होंगे कि जयपुर की स्थापना आमेर के महाराजा सवाई जयसिंह (द्वितीय) ने की थी।यूनेस्को द्वारा जुलाई 2019 में जयपुर को वर्ल्ड हेरिटेज सिटी का दर्जा दिया गया है।
यह खूबसूरतशहर तीन ओर से अरावली पर्वतमाला से घिरा हुआ है।इसकी पहचान यहाँ के महलों और पुराने घरों में लगे गुलाबी धौलपुरी पत्थरों से होती है जो यहाँ के स्थापत्य की खूबी है। 1876 में तत्कालीन महाराज सवाई रामसिंह ने इंग्लैंड की महारानी एलिज़ाबेथ प्रिंस ऑफ वेल्स युवराज अल्बर्ट के स्वागत में पूरे शहर को गुलाबी रंग से सजा दिया था। तभी से शहर का नाम गुलाबी नगरी पड़ा है। राजा जयसिंह द्वितीय के नाम पर ही इस शहर का नाम जयपुर पड़ा।
जयपुर भारत के टूरिस्ट सर्किट गोल्डन ट्रायंगल (India's Golden Triangle) का हिस्सा भी है। इस गोल्डन ट्रायंगल में दिल्ली, आगरा और जयपुर आते हैं भारत के मानचित्र में उनकी स्थिति अर्थात लोकेशन को देखने पर यह एक त्रिभुज (Triangle) का आकार लेते हैं। इस कारण इन्हें भारत का स्वर्णिम त्रिभुज इंडियन गोल्डन ट्रायंगल कहते हैं। दिल्ली से जयपुर की दूरी 280 किलोमीटर है। आपको बता दूँ कि ये शहर चारों ओर से दीवारों और परकोटों से घिरा हुआ है, जिसमें प्रवेश के लिए सात दरवाजे हैं।बाद में एक और द्वार भी बना जो 'न्यू गेट' कहलाया। पूरा शहर करीब छह भागों में बँटा है और यह 111 फुट (34 मी.) चौड़ी सड़कों से विभाजित है। प्रासाद भाग में हवा महल परिसर, व्यवस्थित उद्यान एवं एक छोटी झील हैं। पुराने शहर के उत्तर-पश्चिमी ओर पहाड़ी पर नाहरगढ़ दुर्ग शहर के मुकुट के समान दिखता है। इसके अलावा यहां मध्य भाग में ही सवाई जयसिंह द्वारा बनावायी गईं वैधशाला, जंतर मंतर, जयपुर भी हैं।
जयपुर को आधुनिक शहरी योजनाकारों द्वारा सबसे नियोजित और व्यवस्थित शहरों में से गिना जाता है। देश के सबसे प्रतिभाशाली वास्तुकारों में इस शहर के वास्तुकार विद्याधर भट्टाचार्य का नाम सम्मान से लिया जाता है। ब्रिटिश शासन के दौरान इस पर कछवाहा समुदाय के राजपूत शासकों का शासन था। 19वीं सदी में इस शहर का विस्तार शुरु हुआ तब इसकी जनसंख्या 1,80,000 थी जो अब बढ़ कर 2001 के आंकड़ों के अनुसार 13,7,119 और 2012 के बाद 20 लाख हो चुकी है। यहाँ के मुख्य उद्योगों में धातु, संगमरमर, वस्त्र-छपाई, हस्त-कला, रत्न व आभूषण का आयात-निर्यात तथा पर्यटन-उद्योग आदि शामिल हैं। जयपुर को भारत का पेरिस भी कहा जाता है।
इस शहर के वास्तु के बारे में कहा जाता है कि शहर को सूत से नाप लीजिये, नाप-जोख में एक बाल के बराबर भी फ़र्क नहीं मिलेगा। इस प्रकार के धरोहर होना हमारे भारत देश के लिए एक गर्व की बात है ।
हां, यहां सैलानियों, आपके घूमने की जगहें इस प्रकार हैं।
सिटी पैलेस,जयपुर/जंतर मंतर/हवा महल/गोविंद देवजी का मंदिर/सरगासूली/राम निवास बाग गुड़िया घर/बी एम बिड़ला तारामण्डल/गलताजी जैन मंदिर/मोती डूंगरी/ लक्ष्मी नारायण मंदिर/स्टैच्यू सर्किल/ गैटोर/आमेर/शीला माता मंदिर/पुराना शहर/जयगढ़ किला/सांगानेर/बगरू/रामगढ़ झील/चौमू-सामोद/बैराठ/सांभर/जयसिंहपुरा खोर/माधोगढ़ आदि....
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