एक थी नचनिया - भाग(३०) Saroj Verma द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

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एक थी नचनिया - भाग(३०)

जब हम सबने हवाई फायर सुना तो दंग रह गए और सबको अन्देशा हो गया था कि डकैत गाँव में आ चुके हैं और ये शादी का घर है तो शायद यहीं चोरी करने आएँ हैं और तभी काँधे पर बंदूक टाँगें,काले कुरते,सफेद धोती में,कमर में गोलियों की बेल्ट लगाएँ,सिर पर बड़ा साफा और माथे पर लाल तिलक लगाएँ हुए एक डाकू ने हमारे घर के आँगन में प्रवेश किया,जिसे देखकर सब भौचक्के रह गए और उसने कहा....
"कहाँ गए गजेन्द्र परिहार! कौन से बिल में घुसा बैठा है?",
गजेन्द्र परिहार मतलब वो मेरे बाबूजी को पुकार रहा था,लेकिन उस समय बाबूजी निडर होकर उसके सामने आकर बोले....
"हाँ! बोल! ले मैं आ गया तेरे सामने,इतना क्यों भौंक रहा है?" बाबूजी ने कहा...
"उस दिन अदालत में तू भौंका था और आज मैं तेरे घर में भौंक रहा हूँ",डाकू बोला....
"अब भौंक लिया हो तो जा यहाँ से",बाबूजी बोले....
"मैं तो सोच रहा था कि तू मुझसे डर जाएगा,लेकिन तू तो शेर की तरह मेरे सामने आकर खड़ा हो गया रे! तुझे क्या लगा तू जज की कुर्सी पर बैठकर मेरे लिए फाँसी की सजा सुनाएगा और ये मुझे मंजूर हो जाएगा, आज तक ऐसा कोई जज पैदा नहीं हुआ जो लखना डकैत की सजा मुकर्रर कर सके", डकैत बोला...
"सुन! ज्यादा बकवास मत कर,ये बता कि तू चाहता क्या है?" बाबूजी ने पूछा....
"तेरी मौत चाहता हूँ जज!....तेरी मौत",लखना बोला....
"ये तो इस जन्म में नामुमकिन है"बाबूजी बोले.....
"अच्छा! तो ठीक है तेरी मौत की बात छोड़ते हैं, सुना है तू आज नई नवेली बहू लाया अपने बेटे के लिए,मुझे वो दे दे ,मैं उसी से काम चला लूँगा",लखना डकैत बोला....
"कुत्ते! मैं तेरी जुबान खींच लूँगा",मेरे भइया जोर से चीखते हुए बोले....
"ओह....तो कुत्ते के पिल्ले के मुँह में भी जुबान है,तो चलो पहले मैं इसी का काम तमाम कर देता हूँ", लखना डकैत बोला.....
"नहीं! ऐसा कुछ मत करना,भगवान के लिए मेरे बेटे को छोड़ दो",अम्मा भागते भइया के पास आकर बोली.....
"ओह.....तो भाभी जी भी गूँगीं नहीं हैं,तो फिर आप ही पहले चली जाइए,सुहागन होकर मरेगी तो पुण्य मिलेगा"
और लखना डकैत ने अपनी बंदूक से अम्मा के पेट में गोली दाग दी और गोली लगते ही अम्मा वहीं धरती पर गिर पड़ी ,अम्मा को गोली लगते ही माहौल में सन्नाटा सा छा गया,मैं ये सब उस कोठरी की खिड़की के पर्दे के पीछे से देख रही थी और ये देखकर मैं बाहर आना चाहतीं थी,लेकिन सभी भाभियों ने मेरे हाथ पैर पकड़ रखे थे और मेरा मुँह दबा रखा था,वें नहीं चाहती थीं कि मेरे साथ कोई भी अनहोनी हो और उन्होंने ना मुझे बाहर आने दिया और ना मेरे हाथ पैर छोड़े....
जब अम्मा रक्तरंजित होकर धरती पर गिर पड़ी तो भइया लखना डकैत की ओर लपके तब लखना डकैत ने उनके माथे पर गोली दाग दी और अब बाबू जी जब तक लखना डकैत का कुछ बिगाड़ पाते तो लखना ने उनके सीने पर दो गोलियाँ दाग दीं और वहाँ खड़े लोग अपनी मौत के डर से चूँ भी ना कर सकें क्योंकि अब तक जो डकैत बाहर खड़े थे तो वे सब भी घर के भीतर आ चुके थे,अब लखना डकैत नई बहू की ओर बढ़ने लगा वो उसे उठा ले जाने की फिराक में था और फिर नई बहू ने आगें पीछे कुछ नहीं देखा वो कुएँ के पास ही बैठी थी और अब वो बिलकुल अकेली थी,लखना डकैत उसकी ओर बढ़ ही रहा था कि वो झटके से उठी और भागकर उसने कुएँ में छलाँग लगा दी......
लेकिन लखना डकैत इतना सबकुछ होने पर भी वहाँ से नहीं गया,वो कुएँ में झाँककर तब तक देखता रहा जब तक कि नई बहू ने तड़प तड़पकर अपने प्राण ना त्याग दिए,जब उसे लगा कि अब बहू का शरीर को हरकत नहीं कर रहा है, अम्मा,बाबूजी और भइया के प्राण पूरी तरह से नहीं चले गए हैं तब तक वो वहीं ठहरा रहा और जब उसे तसल्ली हो गई कि अब कोई नहीं बचा है तो तब उसने घर में मौजूद सभी लोगों को धमकी दी कि यदि ये खबर पुलिस तक पहुँची तो किसी की खैर नहीं और ऐसा कहकर वो अपनी टोली के साथ वहाँ से चला गया....
उसके जाने के बाद भाभियों ने मुझे छोड़ा और मैं बाहर आकर सबकी लाशों पर अपना सिर रखकर बिलख बिलखकर रोने लगी,मेहमानों ने नई बहू को फौरन कुएँ से निकाला,लेकिन कोई फायदा नहीं था,वो दम तोड़ चुकी थी,उन मेहमानों में मेरे होने वाले ससुर भी थे और जब उन्होंने देखा कि अब मैं अनाथ हो चुकी हूँ तो उन्होंने रिश्ता तोड़ दिया और बाद में पता चला कि उन्होंने अपने बेटे की शादी कहीं और तय कर दी है और उस दिन के बाद मेरे सीने में इन्तकाल की ज्वाला जलने लगी और मैंने तब डाकू बनने का सोचा....
और फिर मुझे पता चला कि हमारे गाँव के बढ़ई का लड़का डाकू है इसलिए मैं अपनी फरियाद लेकर उस बढ़ई के पास गई और उस बढ़ई ने तब मुझे अपने लड़के से मिलवाया...
और मैं उस बढ़ई के लड़के साथ उसकी टोली में शामिल हो गई,उसका नाम गंगाप्रसाद था,उसने मुझे डाकू बनने के सभी गुण सिखाएँ और धीरे धीरे मुझे उससे प्यार हो गया और फिर हमने जगदम्बा माता के मंदिर में शादी कर ली,इसके बाद हमने लखना डकैत को खोजा और जब वो अपने टीले पर अकेला था तो मैंने और गंगा ने उसको घेर लिया और उस मुठभेड़ में गंगा ने मुझे बचाने की कोशिश की और खुद मारा गया क्योंकि उस समय मैं माँ बनने वाली थी और वो मुझे और बच्चे दोनों को बचाना चाहता था.....
लेकिन उस दिन लखना बच गया और वहाँ से भागने में भी कामयाब हो गया,उसकी टाँग में ही गोली लग पाई थी लेकिन वो जिन्दा था,बच्चे को जन्म देने के बाद मैंने उसे गाँव में एक भाभी के पास छोड़ दिया,वो बेचारी निःसन्तान थी,बच्चा पाकर उसकी सूनी गोद भर गई और मैं भी बच्चे की तरफ से निश्चिन्त हो गई फिर मैंने लखना डकैत को मारकर ही दम लिया और फिर मैं बीहड़ो में रहकर ही जीवन काटने लगी,डकैतियाँ तो डालती थी,लेकिन मैंने निर्दोषों को कभी नहीं मारा और फिर कई बार जेल गई और कई बार वहाँ से भागी भी और इस बार एक साहूकार के यहाँ डाका डालते हुए पकड़ी गई तब से यहीं हूँ, रागिनी मुस्कुराते हुए बोली.....
"और तुम्हारा बच्चा,वो कहाँ है?,श्यामा ने पूछा.....
"वो अपनी जसोदा माँ के पास है",रागिनी बोली....
"याद नहीं आती उसकी",श्यामा ने पूछा....
"आती है बहुत आती है",
ये कहते हुए रागिनी की आँखें भर आईं...

क्रमशः....
सरोज वर्मा....