साथिया - 25 डॉ. शैलजा श्रीवास्तव द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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साथिया - 25

अक्षत और ईशान रेडी होकर निकल गए शालू से मिलने।


ईशान ने शालू को पहले ही समझा दिया था और यह भी कह दिया था कि साँझ को शक नहीं होना चाहिए कि अक्षत उसे देखने आ रहा है।

शालू साँझ के हॉस्टल पहुंची तो देखा साँझ अपनी पैकिंग कर रही थी।

" क्या हुआ कहां जाने की तैयारी है? "शालू ने बिस्तर पर फ़ैलते हुए कहाँ।

"शाम को दीदी आ रही है मेरी और कल उनके साथ गांव जाना है तो वही तैयारी कर रही थी..!" साँझ बोली।


"हां तो ठीक है कल जाना है ना...? आज तो फ्री है तो चल मेरे साथ बाहर घूम कर आते हैं!" शालू बोली।

"बाहर यूं अचानक से?" साँझ ने हैरानी से कहा।

"अरे अचानक से नहीं तुझे बताया है ना मेरे और ईशान के बारे में, तो बस ईशान चाह रहा था कि थोड़ा सा उसके साथ टाइम स्पेंड करूँ और मेरा अकेले जाने का बिल्कुल भी मन नहीं है तो सोच रही हूं तुझे लेकर चलूँ।" शालू बोली।

" ऐसा क्यों और तुम दोनों के बीच में मैं भला क्या करुँगी ..!" साँझ ने परेशानी से कहा।

"अरे क्या करेगी से क्या मतलब ? तुझे अपनी दोस्त की बिल्कुल भी परवाह नहीं है..!" शालू ने मुंह बनाकर कहा।

"मतलब?" साँझ ने नासमझी से उसे देखा।

"मतलब ईशान अच्छा लड़का मेरी जान पहचान का है मुझे प्यार करता है फिर भी पहली बार ऐसे जा रही हूं मतलब की डेट शेट पर तो अकेले में जाने में थोड़ा सा टेंशन हो रहा है। तुम चलोगी तो थोड़ा रिलैक्स रहेगा और वैसे भी मेरा दिल था तेरे साथ टाइम स्पेंड करने का और बीच मे ईशान ने अपना लगा दिया तो उसे भी मना नहीं कर सकती ना?" शालू बोली।

"ईशान को अच्छा नहीं लगेगा मेरा आना। समझ रही है तू... वह तुम्हारे साथ टाइम स्पेंड करना चाह रहा होगा मैं क्या करूंगी कबाब में हड्डी बन कर!" साँझ बोली।

" तू कबाब में हड्डी नहीं है। तू तो कबाब ही है हड्डी तो आज ईशान बना है हम दोनों के बीच। मैंने तेरा और मेरा मेरा प्लान बनाया था। उसने बीच में अपना लगा दिया है , तो ठीक है पर मुझे तो तेरे साथ टाइम स्पेंड करना था आ। फिर अच्छा लंबा ब्रेक होने वाला है दिवाली का तो हम दोनों का मिलना नहीं हो पाएगा और अब तो तू गांव भी जा रही है तो पता नहीं कब वापस लौटेगी? " शालू बोली।

"नहीं इतने ज्यादा दिन नहीं रुकूंगी। पढ़ाई का बहुत लॉस हो जाता है। बस दिवाली होते ही वापस आ जाउंगी...!" साँझ बोली।

"ठीक है तब भी जल्दी से रेडी हो जा चलते हैं हम...!" शालू बोली।

"पर मुझे बहुत काम था वाकई में..., पैकिंग करनी है..!" साँझ ने कहा।

" तो रात पड़ी है रात को कर लेना और फिर तेरी दीदी आ रही है ना वह भी तेरी हेल्प कर देंगी पर अभी मुझे कोई बहाना नहीं सुनना। तू मेरे साथ आ रही है मतलब आ रही है..!" शालू ने फरमान सुनाया तो साँझ भी मुस्कुराकर रेडी हो गई।


साँझ को लेकर शालू सीपी निकल गई। ईशान और अक्षत वहीं पर मिलने वाले थे।

" कनॉट प्लेस क्यों आए हैं हम लोग? " साँझ बोली।

" यही पर ईशान ने बुलाया है ना मुझे। मिलेंगे फिर खाएंगे पिएंगे और उसके बाद अपने घर अपने-अपने घर निकल जाएंगे..!" शालू बोली।

"अजीब है तुम लोगों का भी और मुझे पता नहीं क्यों इस तरह की चीजें कभी पसंद नहीं आती है। शायद इसलिए क्योंकि मैं गांव से आई हूं..!" साँझ बोली।

" अब इसमें गांव और शहर कुछ नहीं होता है। तूने बस अपने आप को दायरों में कैद कर रखा है। खुलकर सांस ले साँझ तू अब दिल्ली में है तेरे गांव में नहीं समझी। खुलकर जी...। पढ़ाई कर अपने सपने पुरे कर और हाँ अपनी खुशियों को भी नजरअंदाज मत कर। और फिर तेरे साथ मेरे जैसी फ्रेंड है फिर इतना क्यों घबराती है?" शालू बोली और और स्कूटर पार्क करके साँझ का हाथ पकड़ रोड की दूसरी साइड आ गई जहाँ पर ईशान और अक्षत खड़े हुए थे।।

शालू को देख इशान के चेहरा चमक उठा तो वही अक्षत के चेहरे पर भी एक दबी हुई मुस्कुराहट साँझ के देख कर आ गई पर उसने सामने से जाहिर नहीं किया जो कि उसके नेचर में भी नहीं था वरना ईशान की तरह अगर वह होता तो अब तक तो दस बार साँझ से अपने प्यार का इजहार कर चुका होता। पर अक्षत अलग था एकदम अलग। उसका प्यार एकदम प्योर था दिल से जुड़ा हुआ और वह साँझ से अपने दिल की बात अभी इस समय कहकर न हीं उसे किसी परेशानी में डालना चाहता था और ना ही खुद के लिए कोई प्रॉब्लम चाहता था। वह चाहता था कि पहले वह साँझ के लायक बन जाए उसके बाद ही उसे अपने दिल की बात कहे ताकि साँझ को भी अक्षत पर गर्व हो और वो उसके प्यार को एक्सेप्ट भी कर ले और अक्षत के ऊपर भी कोई प्रेशर न हो आगे अपनी एजुकेशन का या कैरियर का। जब तक वह अपने पैरों पर खड़ा नहीं हो जाता तब तक वह अपने दिल की बात नहीं बताना चाहता था।

सबका अपना-अपना नजरिया होता है। कुछ लोगों को अक्षत का नजरिया गलत लगता है तो कुछ को सही पर जो भी है अक्षत ऐसा ही है शुरू से उसने एक बार जो बात अपने मन में ठान ली उसी के हिसाब से काम करता था।।


साँझ की नजर भी ईशान के पास खड़े अक्षत पर गई तो उसके दिल की धड़कन खुद-ब-खुद तेज हो गई।

" मुझे तो पता ही नहीं था कि यह भी आने वाले हैं। चलो अच्छा हुआ जो मैंआज शालू के साथ आ गई। आज इसी बहाने इनको भी देख पाऊंगी और उनसे मुलाकात हो पाएगी.. फिर ना जाने कब दुबारा इन्हें देखना नसीब हो..!" साँझ ने मन ही मन कहा और नजर उठा अक्षत की तरफ देखा तो पाया कि वह भी उसे ही देख रहा है।

साँझ ने तुरंत नजरें झुका ली।



" हेलो शालू... !!हाय साँझ ..!" ईशान बोला।

" हेलो ईशान ... ! हेलो सीनियर... !!
सॉरी सॉरी भैया ...!" शालू बोली तो अक्षत मुस्करा उठा और साँझ की तरफ देखा जिसने हाय हेलो कुछ न कहा था।

"चलो चलें...!" ईशान ने कहा।

" कहां पर? "शालू बोली।

"यही पास में बहुत अच्छा रेस्टोरेंट है वहीं पर लंच करते हैं।वैसे भी लंच का टाइम हो रहा है तुम दोनों खाना खाकर तो नहीं आ गई..?" ईशान ने साँझ और शालू की तरफ देख कर कहा।

" नहीं बाबा मैंने तो कुछ भी नहीं खाया बाकी साँझ का मुझे पता नहीं है..!" शालू बोली।

" आपने लंच कर लिया है क्या...?" ईशान बोला।


" वो..!" साँझ ने बोलना चाहा।।

"कर भी लिया होगा तब भी कोई प्रॉब्लम नहीं है।आपको हमारे साथ जॉइन करना ही होगा..!"ईशान ने कहा तो साँझ ने हां में गर्दन हिला दी और उसी के साथ वह लोग चल दिए।।

ईशान ने शालू का हाथ अपने हाथों में थाम लिया और आगे बढ़ गया।

साँझ ने एक नजर उन दोनों को देखा फिर खुद ब खुद अपने कदम धीमे कर लिए। वह नहीं चाहती थी कि वह उन दोनों के बीच में बेवजह ही कबाब में हड्डी बने।

अक्षत ने जब देखा कि साँझ के कदम धीमी हो गए हैं तो उसने भी अपनी रफ्तार कम कर ली और साँझ के साथ कदम से कदम मिलाकर चलने लगा।

साँझ को जब एहसास हुआ कि अक्षत उसके साथ चल रहा है तो यह एहसास उसे एक अलग ही खुशी दे गया। उसने अक्षत की तरफ देखा। बस एक नजर देख कर फिर सामने देखने लगी पर उसके चेहरे पर आई हल्की सी मुस्कान ने उसके दिल का हाल बखूबी बयां कर दिया।

क्रमश:

डॉ. शैलजा श्रीवास्तव