साथिया - 23 डॉ. शैलजा श्रीवास्तव द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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साथिया - 23

नियति बस में तो बैठ गई पर उसका पूरा ध्यान सार्थक और उसकी बातों पर ही था। उसके दिल में भी सार्थक के लिए फीलिंग थी और बस वह अपने परिवार से डर के कारण उससे दूर रहना चाहती थी, और उसका डर गलत भी नहीं था। वह जिस गांव और जिस माहौल से थी वहां प्यार मोहब्बत की कोई कीमत नहीं थी। बड़ी मुश्किल से और बहुत हाथ पैर जोड़ने के बाद तो उसे शहर में आकर पढ़ने की परमिशन मिली थी।

उसके पिता गजेंद्र सिंह खुद को गांव का भाग्य विधाता समझते थे तो वही निशांत भी उनके ही बताए रास्ते पर चल निकला था। सौरभ और आव्या थोड़ी अलग है और इन लोगों का ध्यान पढ़ाई लिखाई पर है। इन्हें इस तरीके की गांव की पुरानी रूढ़िवादी परंपराएं पसंद नहीं थी पर जब आपने उस परिवार में जन्म लिया है तो पसंद और नापसंद का कोई महत्व नहीं होता, आपको वह सब चीजें बर्दाश्त करनी होती हैं जो आपके परिवार में और आपके क्षेत्र में सालों से चली आ रही है।

प्रेम विवाह और वह भी दूसरी जाति में प्रेम विवाह यह ना तो अब तक नियति के गांव में पहले कभी हुआ था और ना ही पहले कभी मान्य हुआ था। और ना ही कभी मान्य होगा यह बात नियति बहुत अच्छे से जानती थी। और साथ ही यह भी जानती थी कि भले वह गजेंद्र सिंह की बेटी हो पर इस तरीके की कोई भी हरकत होने पर सजा उसे भी वही मिलेगी जो कि किसी भी सामान्य परिवार की लड़की या लड़के को मिलती है।

"मुझे माफ कर देना सार्थक जानती हूं कि मेरे इस तरीके से इग्नोर करने से तुम्हें तकलीफ हो रही है...! पर यह तकलीफ तो कुछ भी नहीं है पर अगर गलती से भी हमारी राहे एक हुई तो हम लोगों के ऊपर तो कहर टूट पड़ेगा। तुम्हें अभी अंदाजा भी नहीं है कि आगे क्या क्या हो सकता है?" नियति ने खुद से ही कहा पर ध्यान बार-बार सार्थक पर जा रहा था।

उधर गजेंद्र सिंह के घर पर सौरभ मास कम्युनिकेशन की पढ़ाई करने के लिए लिए दिल्ली जा चुका था पर अभी छुट्टियां थी इस कारण वह घर आ गया था।

"भैया कब तक रुकने का है आपका?" आव्या ने पूछा।

"थोड़े दिन रुक लूंगा और फिर अभी दिवाली भी आने वाली है ना तो सोच रहा हूं कि दिवाली के बाद चला जाऊंगा।" सौरभ ने कहा।

"और दिवाली पर शायद नेहा दीदी और सांझ दीदी भी आने वाले हैं।" आव्या बोली तो सौरभ के चेहरे पर मुस्कुराहट बड़ी हो गई।

आव्या ने उसकी मुस्कुराहट महसूस की।

" आप सांझ दीदी को पसंद करते हो ना भैया?" आव्या बोली।

"हां पसंद करता हूं पर अभी उससे कुछ भी कह नहीं सकता..! एक बार उसकी पढ़ाई पूरी हो जाए और मैं भी अपने पैरों पर खड़ा हो जाऊँ उसके बाद ही कोई बात करूंगा।" सौरभ बोला।

"तो इतनी परेशान होने की क्या बात है? हम दोनों एक ही जाति से हैं तो रिश्ता होने में कोई परेशानी तो आएगी ही नहीं।" आव्या बोली।

"जानता हूं इसलिए तो निश्चिंत हूँ कि आज नहीं तो कल सांझ इस घर में ही आएगी। बस एक बार उसके मन का हाल जानना चाहता हूं। उसे अपने दिल की बात बताना चाहता हूं पर उससे पहले जरूरी है कि मैं कुछ लायक बनू। जब सांझ लड़की होकर इंडिपेंडेंट बनना चाहती है अपने पैरों पर खड़ी होना चाहती है तो फिर मैं भी तो उसके लायक हो जाऊँ तभी आगे बात करूं?" सौरभ बोला।

"इतना सोचने की क्या जरूरत है भैया? आप कुछ करो ना करो तब भी उनके घर से कभी रिश्ते के लिए न नहीं होगी।" आव्या ने कहा।

"हां जानता हूं, ना नहीं होगी पर मेरे अपने कुछ उसूल अपने कुछ नियम है। मैं निशांत भैया के जैसा नहीं हूं कि हर कुछ जबरदस्ती करना चाहूं। मैं सामने वाले का दिल जीतने में विश्वास रखता हूं उसे जीतने में नहीं।" सौरभ ने कहा।

" इसीलिए तो आप सब से अलग हो भैया...; इस परिवार से अलग। हां पापा थोड़ा बहुत आप कैसे हैं और वह भी अभी ताऊ जी के कारण कुछ कहते नहीं है। पर मुझे तो समझ नहीं आता कि आप एकदम अलग कैसे हो? कहां ताऊजी पापा निशांत भैया और कहां आप एकदम हटकर सोच है आपकी।" आव्या ने कहा।

"हां मैं मानता हूं कि हम जिस परिवार में पैदा हुए हैं वहां का माहौल अलग है। मैं जब बाहर निकला हूं तो मैंने दुनिया देखी है और चीजों को समझा है। और इतना मुझे समझ में आ गया है कि जो गलत है वह गलत है। भले ही ये हमारा परिवार और हमारा गांव है पर यहां की परंपरा और रीति-रिवाज गलत है। और मैं उन्हें नहीं मानता। मैं तो चाहता था कि निशु भैया भी मेरे साथ चलें और पढ़ाई करें पर वो भी ताऊ जी के नक्शे कदम पर चलने लगे हैं। उन्हें वापस लाना मुश्किल है अब।" सौरभ ने कहा।

"सबकी अपनी अपनी सोच और अपनी-अपनी पसंद है भैया पर मैं भी बिल्कुल आपकी ही तरह सोचती हूं। मैं भी चाहती हूं मैं शहर जाकर अच्छे से पढ़ाई करूं। पर मुझे लगता है कि मुझे भी नियति की दीदी की तरह सिर्फ बस से आने जाने की परमिशन होगी मुझे बाहर रहने को नहीं मिलेगा।" आव्या ने कहा।

"अभी तो तुझे कॉलेज में पहुंचने में टाइम है। जब तू कॉलेज में पहुंचेगी तब मैं खुद बात करूंगा पापा से और ताऊ जी से और मैं जानता हूं ताऊजी भले ना माने और पापा कभी मेरी और तुम्हारी बात नहीं टालते और अगर उन्हें प्रॉब्लम होगी तो मै तुझे अलग नहीं छोडूंगा। तुझे अपने साथ रखूँगा फिर मेरे साथ रहने में तो शायद किसी को प्रॉब्लम ना हो।" सौरभ ने आव्या को समझाया।

*******
*अवतार सिंह का घर*

अवतार सिंह की पत्नी उनके पास आकर बैठी।

"और बात हुई बच्चियों से कि नहीं? कब आ रही है दोनों? अब तो दिवाली का त्यौहार पास आ गया है।" अवतार सिंह बोले।

"हां मेरी बात हो चुकी है दोनों दिवाली के एक दिन पहले पहुंच जाएंगी। नेहा मुंबई से दिल्ली आएगी और दिल्ली से सांझ को लेते हुए यहां आ जायेगी। आप चिंता मत कीजिए।" अवतार सिंह की वाइफ बोली।

"और हाँ सांझ के साथ नर्मी से पेश आना अब तो वो यहाँ रहती भी नहीं है।" अवतार बोले।
" जी..!"

*******
ईशान शालू को लेकर उसके घर के बाहर पहुंचा और उसने बाइक रोक दी।

शालू बाइक रुकते उतर कर नीचे खड़ी हो गई।

"चलो ध्यान रखना अपना कल मिलते हैं!" ईशान ने कहा तो शालू ने मुस्कुराकर गर्दन हिलाई और घर की तरफ बढ़ गई,

ईशान के चेहरे पर मुस्कुराहट आई और वह भी अपने घर निकल गया।

ईशान घर पहुंचा तो देखा और मैं ही मनु अक्षत और और साधना बैठे हुए हैं।

ईशान गुनगुनाता हुआ अपने कमरे की तरफ जाने लगा कि तभी साधना की आवाज उसके कानों में पड़ी।

'क्या बात है इतने खुश हो कि यह भी होश नहीं है कि तुम पूरे गीले हो और पूरा कमरा गंदा करते हुए जा रहे हो।" साधना बोली तो ईशान ने सिर परएक एक थपकी मारी और फिर साधना की तरफ देखा।

"सॉरी मम्मी इतना अच्छा मौसम है इतना अच्छा माहौल है मुझे कुछ ध्यान ही नहीं रहा सॉरी सॉरी..! ईशान बोला और जूते हाथ में लिए फिर लंबे लंबे कदम बढ़ाता हुआ अपने कमरे में चला गया।
साधना ने अक्षत और मनु की तरफ देखा तो दोनों ने अपने कंधे उचका दिए।

"लाट साहब के रंग कुछ बदले बदले से लग रहे हैं आजकल मुझे और तुम दोनों हो कि कुछ पता भी नहीं क्या हैकुछ चल रहा है? क्या इसका कहीं? " साधना ने हल्के-फुल्के अंदाज में बोला।

"उसका क्या चल रहा है आंटी...!उसका तो चलता ही रहता है?"मनु बोली तो अक्षत ने उसे घूर कर देखा।

"मतलब की पढ़ाई लिखाई और अभी प्रोग्राम था और शालिनी के साथ क्या जबरदस्त डांस किया था...! एकदम सिजलिंग परफॉर्मेंस थी आंटी ..! आप देखती तो देखती रह जाती हैं। वह है ना सॉन्ग टिप टिप बरसा पानी..! बिल्कुल उसी टाइप का एकदम हॉट डांस किया था।" मनु ने कहा।

"क्या यह सच कह रही है? " साधना ने अक्षत की तरफ देखा।

"मम्मी आप भी ना जानती हो ना इसको...! जब तक जब तक ईशान की डांट ना पड़वा दे...! उसकी खिंचाई ना कर ले इसका खाना ही नहीं हजम होता है। ऐसा कुछ भी नहीं है नॉर्मल परफॉर्मेंस थी बाकी आपको पता है कि ऐसी कोई भी बात होगी तो वह आपको जरूर बताएगा। और हां आज उसके चेहरे की मुस्कुराहट देखकर थोड़ा तो मुझे भी लग रहा है कि हवा कुछ अलग लय में बह रही है बाकी आप बिल्कुल भी फिक्र मत कीजिए वह आपको बताएगा और जरूर बताएगा। इतना गहरा है ही नहीं कि उसके पेट में कोई बात पच जाए।" अक्षत ने कहा तो साधना भी मुस्कुरा उठी।

"चलो तुम्हारे पापा भी आते होंगे मैं डिनर का इंतजार करती हूं तब तक ईशान भी आ जाएगा।" साधना बोली और किचन की तरफ चली गई।

साधना जाते ही मनु अक्षत के पास आकर बैठ गई।

"वैसे तुम्हें क्या लगता है कि ईशान और शालू का के बीच में वाकई में कुछ है यह सिर्फ दोस्ती है।" मनु ने पूछा।

"मुझे अभी कुछ नहीं पता है बस इतना जानता हूं कि ऐसा कुछ भी होगा तो इशू मुझे जरूर बताएगा। और हां अगर तुम्हें भी कोई पसंद होगा तो मुझसे मत छिपाना। सबसे पहले मुझे बताना।" अक्षत बोला।

"नहीं ऐसा कुछ भी नहीं है..! मेरी लाइफ में ऐसा कुछ भी नहीं।
मनु ने कहा।


" हां जानता हूं कि कुछ भी नहीं है पर कभी हो तब की बात कर रहा हूं और तुम बिल्कुल भी फिकर मत करना। मैं हूँ तेरे अगर तुम्हारे लिए सब सही होगा तो मैं तुम्हारा पूरा साथ दूंगा।" अक्षत ने कहा तो मनु ने गर्दन हिला दी।

शालू भी अपने कमरे में आई और सीधी वॉशरूम में चली गई। वैसे भी वह गीली हो गई थी।

उसने शॉवर चालू किया और उसके नीचे खड़ी हो गई ।

आंखों के आगे कुछ समय पहले के पल आ गए जब ईशान ने अपने दिल की बात उससे कही थी।

"ही इज सो स्वीट एंड आई रियली लव यू हिम..! आएम सो हैप्पी .. यस आएम सो हैप्पी।" शालू खुद से ही बोली और फिर रेडी होकर बाहर आ गई। जहां पर जहां पर अबीर और मालिनी डिनर के लिए उसका इंतजार कर रहे थे।


क्रमश:

डॉ. शैलजा श्रीवास्तव