तब एकाएक कौत्रेय बोला...
"यदि सारन्ध राजमहल के बाहर किसी सुन्दरी से मिले ,तब तो सरलता से उसका आपहरण किया जा सकता है"
"हाँ! इस कार्य के लिए हमें राजमहल के किसी सदस्य की सहायता लेनी होगी",महाराज कुशाग्रसेन बोले...
"किन्तु! ये असम्भव है,वहाँ कोई भी हमारी सहायता नहीं करेगा",कुशाग्रसेन के पिता प्रकाशसेन बोले...
"इस कार्य में राजमहल का सदस्य ही हमारी सहायता कर सकता है",कालवाची बोली....
"ये कैसें सम्भव है कालवाची! तुम्हारी दृष्टि में ऐसा कौन है जो हमारी सहायता कर सकता है",भैरवी बोली...
"सेनापति बालभद्र हमारी सहायता करेगें",कालवाची बोली....
"किन्तु! उन्हें हमारी सहायता हेतु कौन सहमत करेगा",भूतेश्वर ने पूछा....
"मैं सहमत करूँगी",कालवाची बोली...
"किन्तु किस प्रकार सहमत कर पाओगी उस राक्षस को,वो भला गिरिराज के विरुद्ध जाकर हम सभी की सहायता क्यों करने लगा",कौत्रेय बोला....
"क्योंकि मैं ही बालभद्र बनकर सारन्ध को सुरा और सुन्दरी के लोभ में राजमहल के बाहर लेकर आऊँगीं, जिससे तब हम सरलता से सारन्ध का आपहरण कर सकते हैं",कालवाची बोली...
"नहीं! तुम पुनः संकट उठाने हेतु राजमहल में प्रवेश नहीं करोगी,इस बार यदि तुम्हें गिरिराज ने पहचान लिया तो वो तुम्हारे संग क्या करेगा,इसका हम सभी अनुमान भी नहीं लगा सकते",अचलराज बोला....
"तो मैं चला जाता हूँ वहाँ बालभद्र बनकर", भूतेश्वर बोला...
"हाँ! ये सम्भव है"व्योमकेश जी बोले...
"तो भैरवी और भूतेश्वर को भेजते हैं इस बार राजमहल में",महाराज कुशाग्रसेन बोले....
"किन्तु! यहाँ पर एक समस्या है",कुशाग्रसेन के पिता प्रकाशसेन बोले...
"कैसी समस्या पिताश्री"?,कुशाग्रसेन ने पूछा...
"वो ये कि यदि राजमहल के भीतर भैरवी के समक्ष कोई समस्या खड़ी हो जाती है तो वो कैसें सम्भाल पाऐगीं,क्योंकि उसे तो रुप बदलना भी नहीं आता,ऐसा कार्य तो केवल कालवाची ही कर सकती है", प्रकाशसेन बोले....
"ऐसी कोई समस्या नहीं होगी तात्श्री! मैं सब कुछ सम्भाल लूँगा"भूतेश्वर ने प्रकाशसेन से कहा....
"यदि तुम समस्याओं का समाधान कर सकते हो तो मुझे कोई आपत्ति नहीं,तुम भैरवी के संग राजमहल जा सकते हो",प्रकाशसेन से बोले....
"किन्तु! ये निश्चित है ना! कि गिरिराज सारन्ध के साथ अपने इसी राज्य में रह रहा है,यदि वो वैतालिक राज्य में हुआ तो"रानी कुमुदिनी ने पूछा....
"हाँ! ये निश्चित है वो वैतालिक राज्य में नहीं रह रहा होगा क्योंकि उसे भय होगा कि कहीं हम सभी उसे कोई हानि पहुँचाने वहाँ ना पहुँच जाएँ ,इसलिए वो इसी राज्य में होगा",अचलराज बोला....
"तो अब भैरवी को कैसें वहाँ भेजें?",त्रिलोचना ने पूछा...
"कुछ नहीं! बस भैरवी का उत्तम प्रकार का श्रृंगार करके उसे सेनापति बालभद्र के संग राजमहल के भीतर भेज दो",प्रकाशसेन बोले....
"तो अब ये निश्चित है,महल के भीतर भ्राता भूतेश्वर और मैं जाऊँगी",भैरवी बोली...
"तो सेनापति बालभद्र अब आप रात्रि के समय भैरवी को लेकर राजमहल में प्रस्थान करेगें",अचलराज ने भूतेश्वर से कहा....
"जी! अवश्य",
और ऐसा कहकर भूतेश्वर हँसने लगा एवं भूतेश्वर के संग और भी सब हँसने लगे,तब सायंकाल के पश्चात भैरवी का त्रिलोचना ने भलीभाँति श्रृंगार किया,अन्ततः कालवाची ने भूतेश्वर को सेनापति का रुप दिया और दोनों राजमहल की ओर चल पड़े,राजमहल के समक्ष पहुँचते ही द्वारपालों ने बिना किसी हस्तक्षेप के भैरवी और सेनापति बालभद्र बने भूतेश्वर को राजमहल के भीतर जाने दिया,वें दोनों भीतर पहुँचे और उन्होंने देखा कि राजमहल के स्तम्भों पर अग्निशलाकाएँ जल रहीं हैं एवं यथास्थानों पर सैनिक पहरा दे रहे हैं,अब समस्या ये थी कि वो किससे पूछे कि राजकुमार सारन्ध का कक्ष किस ओर है क्योंकि वें तो राजमहल के कक्ष,मार्ग और द्वारों से अपरिचित थे,दोनों सोच रहे थे कि किस ओर जाएँ तभी वहाँ एक सैनिक उनके समीप आकर बोला....
"अरे! सेनापति जी! अब वैतालिक राज्य से कब वापस आएँ?"
"आज ही वापस आया किन्तु तुम ये बताओ कि राजकुमार सारन्ध कहाँ हैं,अपने कक्ष में हैं या राजदरबार में हैं", बालभद्र बने भूतेश्वर ने पूछा...
"जी! इस समय वो अपने कक्ष में नहीं हैं,मैं वहीं से आ रहा हूँ",सैनिक बोला...
"ठीक है तुम जाओ,मैं अभी इन्हें लेकर महाराज के कक्ष में जा रहा हूँ"बालभद्र बने भूतेश्वर ने झूठ बोलते हुए कहा ....
"जी! बहुत अच्छा",
और ऐसा कहकर वो सैनिक वहाँ से चला गया और इधर बालभद्र बना भूतेश्वर और भैरवी सोचने लगे कि वो किस ओर जाएँ,तभी उनकी समस्या का समाधान हो गया और वहाँ पर सारन्ध आ पहुँचा,आते ही उसने ही बालभद्र से यही प्रश्न किया कि....
"अरे! सेनापति जी! आप राजमहल कब पधारे,वैतालिक राज्य में अब सब ठीक है ना!,उस कुशाग्रसेन और कालवाची का क्या हुआ? राजा विपल्व ने उनकी हत्या कर दी ना!",
"जी! राजकुमार सारन्ध! अब वैतालिक राज्य में सब व्यवस्थित है और राजा विपल्व का संदेश भी आया था कि उसने कुशाग्रसेन,कालवाची,वत्सला,व्योमकेश और उसके पुत्र अचलराज की हत्या करवा दी है,अब महाराज गिरिराज के सिर पर कोई संकट नहीं है",बालभद्र बने भूतेश्वर ने कहा....
"तब तो ये शुभ समाचार हुआ",सारन्ध ने कहा...
"जी! राजकुमार! अब महाराज और आपको चिन्ता करने की कोई आवश्यकता नहीं",बालभद्र बने भूतेश्वर ने कहा...
"वो सब तो ठीक है सेनापति बालभद्र जी! किन्तु आप ये बताएँ कि आपके संग ये सुन्दरी कौन है?", सारन्ध ने पूछा...
तब बालभद्र बने भूतेश्वर ने कहा....
"वही तो राजकुमार! ये मुझे मार्ग में मिली,मेरे समीप आकर मुझसे कहने लगी कि मेरी सहायता कीजिए,दो दिन पहले मेरे पिताश्री वन गए थे और अभी तक लौटे नहीं हैं,मैं उन्हें सभी स्थानों पर खोज चुकी हूँ परन्तु वें मुझे नहीं मिले,आप इस राज्य के सेनापति हैं आपको उन्हें खोजना ही होगा,नहीं तो मैं आत्महत्या कर लूँगी,तब भला मैं क्या करता,मुझे इस पर दया आ गई और मैं इसे अपने संग राजमहल ले आया, मैं इसे वचन दे चुका हूँ कि मैं रात्रि को इसके पिता को खोजने जाऊँगा"
"आप इतना कष्ट क्यों उठाते हैं सेनापति जी! मैं हूँ ना! इस राज्य का राजकुमार,मैं जाऊँगा इस सुन्दरी के पिता को खोजने,इनके संग",सारन्ध बोला....
"तब तो बहुत अच्छा राजकुमार! आपने तो मेरी समस्या हल कर दी,तो जाइए अभी इसी समय आप इस सुन्दरी के संग वन की ओर प्रस्थान कीजिए",बालभद्र बना भूतेश्वर बोला....
"हाँ! मुझे ये कार्य करने में अत्यन्त प्रसन्नता होगी कि मैं किसी सुन्दरी के काम तो आया",सारन्ध बोला....
"आपका हृदय कितना विशाल है राजकुमार! मैं तो समझती थी कि मुझ असहाय कि यहाँ कोई भी सहायता नहीं करेगा"भैरवी बोली....
"वो सब तो ठीक है सुन्दरी,पहले ये बताओ कि तुम्हारा नाम क्या है",सारन्ध ने भैरवी से पूछा...
"जी! मेरा नाम भैरवी है",भैरवी बोली....
"तो चलो भैरवी हम दोनों तुम्हारे पिताश्री को खोजने वन की ओर चलते हैं",सारन्ध बोला....
"जी! राजकुमार!"भैरवी तनिक लजाते हुए बोली....
और इस प्रकार सारन्ध भूतेश्वर और भैरवी की बातों में आ गया,पहले भैरवी के संग सारन्ध राजमहल से बाहर निकला और उनके पीछे पीछे भूतेश्वर राजमहल से बाहर निकला,वे दोनों अँधियारे में वन की ओर बढ़े चले जा रहे थे और बालभद्र बना भूतेश्वर उनका पीछा कर रहा था....
क्रमशः....
सरोज वर्मा....