भैरवी सारन्ध से मीठी मीठी बातें करते हुए उसे उस स्थान पर ले गई,जहाँ सब उसकी प्रतीक्षा कर रहे थे,जैसे ही सारन्ध उन सभी के समीप पहुँचा तो भैरवी सारन्ध से बोली....
"ठहरिए ना राजकुमार! मैं आपसे कुछ कहना चाहती हूँ",
"कहो ना सुन्दरी! मैं तुम्हारी मधु समान बातें सुनना चाहता हूँ"सारन्ध बोला...
"तो इस वृक्ष के तले तनिक देर बैठकर विश्राम करते हैं ना! मैं थक चुकी हूँ चलते चलते" भैरवी बोली...
"हाँ...हाँ...सुन्दरी क्यों नहीं",
और ऐसा कहकर सारन्ध वहाँ बैठ गया,इसके पश्चात सभी वहाँ आ पहुँचे,सभी को देखकर सारन्ध ने वहाँ से भागने का प्रयास किया किन्तु वो सफल नहीं हो सका,अचलराज और कौत्रेय अब उसे बंदी बना चुके थे,अब अग्निशलाका का प्रकाश किया जा चुका था और सारन्ध अब सभी को भलीभाँति देख सकता था,तब तक बालभद्र बना भूतेश्वर भी वहाँ पहुँच गया और अग्निशलाका के प्रकाश में बालभद्र बने भूतेश्वर को देखकर सारन्ध बोला...
"सेनापति बालभद्र आप! अच्छा किया जो आप मुझे खोजते हुए यहाँ आ पहुँचे,देखिए इन सभी ने मुझे बंदी बना लिया है,अब आप ही मेरी सहायता कर सकते हैं",
सारन्ध की बात सुनकर बालभद्र हँसने लगा,तब उसे हँसता हुआ देखकर सारन्ध आश्चर्यचकित होकर बोला....
"तो इसका तात्पर्य है कि आप भी इन सभी के साथ हैं",
"हाँ! मैं इन सभी के साथ ही हूँ",बालभद्र बना भूतेश्वर बोला....
"आपने पिताश्री के संग विश्वासघात किया",सारन्ध बोला...
"नहीं! मैंने तेरे पिता के संग कोई विश्वासघात नहीं किया ,क्योंकि मैं बालभद्र नहीं भूतेश्वर हूँ", भूतेश्वर बोला...
"तुम भूतेश्वर हो तो सेनापति कहाँ हैं"?सारन्ध ने पूछा....
"वो मुझे नहीं ज्ञात कि बालभद्र कहाँ है"?,भूतेश्वर बोला....
अब कालवाची सारन्ध के समक्ष आई और उसने बालभद्र को भूतेश्वर में बदल दिया और इसके पश्चात वो सारन्ध से बोली....
"सारन्ध! तू अत्यधिक अबोध है,पहले तू अपनी माता को नहीं पहचान सका और अब तुझे बालभद्र को पहचानने में भूल हो गई",
"तू कौन है"?,सारन्ध ने पूछा...
"मैं कालवाची हूँ,जो नर्तकी कर्बला बनकर तेरे पास आई थी और उसके पिंजरे में एक मैना थी,वो मैना कोई और नहीं तेरी माता थी,जिसने तुझे जन्म दिया है,किन्तु तू उसे पहचान सका,कितना अभागा है रे तू!", कालवाची बोली....
"कौन है मेरी माता? कृपा करके मुझे बता दो",सारन्ध बोला....
"तेरी बड़ी बहन और माता दोनों ही यहाँ उपस्थित हैं,पहचान सकता है तो पहचान ले और बचा ले अपने प्राण,नहीं तो आज तू मेरे हाथों से बचने वाला नहीं",कालवाची बोली....
"ऐसा मत करो कालवाची! मेरे भाई की हत्या मत करो",त्रिलोचना ने रोते हुए कहा....
और मूक-बधिर धंसिका अपने पुत्र को अपने हृदय से लगाकर रो पड़ी,किन्तु वो बोल कुछ ना सकती थी,केवल कालवाची से सांकेतिक भाषा में कहती रही कि मेरे पुत्र को कोई हानि मत पहुँचाना,तुम मेरे प्राण हर लो परन्तु मेरे पुत्र को कुछ मत करो, उसके अविरल अश्रु इस बात के साक्षी थे कि वो अपने पुत्र को कितना प्रेम करती है,उसे देखकर ऐसा प्रतीत होता था कि उसका मातृत्व उसके पुत्र के मार्ग में आई हर एक बाधाओं को समाप्त कर सकता है,इतने वर्षों का पुत्र बिछोह वो क्षण भर में समाप्त कर देना चाहती थी, अन्ततोगत्वा धंसिका की ममता विजय हुई और सारन्ध का अभिमान धंसिका की ममता के आगे धराशाई हो गया,अपनी माँ के हृदय के लगते ही सारन्ध का पुरुषत्व टूट गया और वो भी अपनी माँ के समक्ष फूट फूटकर रो पड़ा ,भाई और माता के अश्रुओं को देखकर भला त्रिलोचना कैसें शान्त रहती,वो भी दोनों के हृदय से लगकर रोने लगी....
ऐसी मार्मिक दृश्य देखकर सभी की आँखें द्रवित हो गई और तब कालवाची बोली....
"मैं सारन्ध को क्षमा कर सकती हूँ,बस वो मुझे वचन दे कि वो अपने पिताश्री को सही मार्ग में लाने हेतु हम सभी की सहायता करेगा"
"हाँ! यदि सारन्ध हम सभी को ऐसा वचन देता है तो हम सभी उसे कोई हानि नहीं पहुँचाऐगें"अचलराज बोला....
तब त्रिलोचना सारन्ध से बोली...
"सारन्ध! मेरे भाई! वचन दो कि तुम महाराज कुशाग्रसेन का राज्य उन्हें सौंपने में हम सभी की सहायता करोगे",
अब सारन्ध का हृदयपरिवर्तन हो चुका था,धंसिका की ममता ने उस के पाषाण हृदय को पिघला दिया था,अब वो वैसा सारन्ध नहीं रहा था,जैसा उसके पिता ने उसे बनाया था और वो उन सभी की सहायता हेतु तत्पर हो गया...
इसके पश्चात सभी ने सारन्ध को राजमहल लौट जाने को कहा किन्तु सारन्ध राजमहल नहीं लौटा और वो भी उन सभी के संग रहकर उनकी योजना में सम्मिलित हो गया और इधर राजमहल में जब गिरिराज को ये ज्ञात हुआ कि सेनापति बालभद्र आ चुके हैं तो उसे संदेह हुआ क्योंकि वो तो वैतालिक राज्य का कार्यभार बालभद्र के काँधों पर सौंप कर अपने राज्य लौटा था और उसने उसी समय वैतालिक राज्य संदेशा भेजा कि सेनापति बालभद्र शीघ्रता से मुझसे आकर मिलें,गिरिराज के आदेश पर बालभद्र शीघ्र ही गिरिराज के पास पहुँचा,तब गिरिराज ने उससे पूछा कि...
"आप रात्रि के समय राजमहल में आएँ थे",
तब बालभद्र ने कहा...
"नहीं! महाराज! आपके आदेश के बिना भला मैं वैतालिक राज्य छोड़कर यहाँ क्यों आऊँगा?",
जब गिरिराज ने बालभद्र का उत्तर सुना तो उसका संदेह पूर्णतः विश्वास में बदल चुका था कि वे सभी लोग जीवित हैं और राजमहल में सारन्ध भी नहीं है,इसका तात्पर्य है कि राजकुमार सारन्ध उन सभी के पास है,उन्होंने ही उसका आपहरण कर लिया है,अब गिरिराज को कोई भी मार्ग नहीं सूझ रहा था.....
और इधर उन सभी के मध्य एक विशेष प्रकार की योजना बन चुकी थी,उन सभी ने स्वयं को ये वचन दिया था कि इस बार वे पराजित नहीं होगें और इस बार वे सभी अपना लक्ष्य प्राप्त कर के ही रहेगें.....
और इधर गिरिराज ने सारन्ध की खोज प्रारम्भ कर दी,राज्य के सभी स्थानों पर उसने सैनिक और गुप्तचर भेजे,किन्तु वें सभी सैनिक और गुप्तचर उन्हें नहीं खोज पाएंँ क्योंकि वें सभी पंक्षी रूप में रह रहे थे,अब गिरिराज की चिन्ता बढ़ चुकी थी,उसे अपना पुत्र सारन्ध किसी भी दशा में सुरक्षित चाहिए था,गिरिराज को अभी तक ये भी ज्ञात नहीं था कि उसकी पत्नी धंसिका सारन्ध के साथ है....
और एक रात्रि जैसे ही सारन्ध को भागने का अवसर मिला तो उस रात्रि वो सभी के मध्य से भाग निकला और भागकर वो सीधा अपने पिता के पास पहुँचा.....
क्रमशः....
सरोज वर्मा....