Kalvachi-Pretni Rahashy - 72 books and stories free download online pdf in Hindi

कलवाची--प्रेतनी रहस्य - भाग(७२)

किन्तु इधर त्रिलोचना,भूतेश्वर,धंसिका,भैरवी,रानी कुमुदिनी,प्रकाशसेन,मृगमालती और कौत्रेय भी योजना बना रहे थे कि किस प्रकार सभी को खोजा जाएंँ,किन्तु इतना तो उन्हें ज्ञात हो चुका था कि गिरिराज उन सभी को वैतालिक राज्य के बंदीगृह में बंधक बनाकर नहीं रखेगा,तभी धंसिका ने सभी से सांकेतिक भाषा में कहा....
"कहीं ऐसा तो नहीं कि उन्होंने उन सभी को उनके पुराने राज्य के बंदीगृह में बंधक बनाकर रखा हो",
धंसिका का ये विचार सभी को पसंद आया और सभी ने गिरिराज के पुराने राज्य जाने का निश्चय लिया और वें सभी वहाँ पहुँचे,किन्तु समस्या ये थे कि उन सबको कहाँ खोजा जाएंँ एवं सभी उन्हें खोजने हेतु योजनाएँ बनाने लगे किन्तु अत्यधिक विचार करने के पश्चात भी कोई भी योजना उन सभी के मस्तिष्क में ना आई और वे सभी गिरिराज के पुराने राज्य के आस पास के वन में भटकने लगे और एक रात्रि अन्ततः अचलराज,वत्सला,महाराज कुशाग्रसेन,सेनापति व्योमकेश एवं कालवाची ने उन सभी को खोज ही लिया,सभी को सकुशल देखकर रानी कुमुदिनी के संग उपस्थित त्रिलोचना,भूतेश्वर,कौत्रेय,भैरवी,कुशाग्रसेन के माता-पिता और धंसिका सभी प्रसन्न हुए,सभी ने पूछा कि आप सभी गिरिराज के बंदीगृह से मुक्त कैसें हुए?
तब महाराज कुशाग्रसेन ने सभी को बताया कि गिरिराज ने किस प्रकार मगधीरा राज्य के राजा विपल्व चन्द्र को उसके विरुद्ध कर दिया था और वो उन सभी को अपने राज्य बंदी बनाकर ले गया था,भोजन ना मिल पाने के कारण कालवाची की दशा बिगड़ती जा रही थी और उसने एक दिन भोजन हेतु मेरी हत्या करने का सोचा,परन्तु सेनापति व्योमकेश और वत्सला ने उसे समझाया,जिससे उसकी चेतना जागी,तब उसने साहस बटोरकर अपनी शक्तियों का प्रयोग किया और कारागार से मुक्त होकर उसने विपल्व की हत्या करके उसके हृदय को ग्रहण कर लिया....
सभी के मध्य यूँ ही वार्तालाप चल रहा था,तभी अचलराज ने महाराज कुशाग्रसेन से पूछा....
"महाराज! अब हमारी अगली योजना क्या होगी,क्योंकि अब हमें वैतालिक राज्य अपने आधीन करना ही होगा",
"हाँ! अचलराज! अब हम और अधिक दिनों तक ऐसे नहीं भाग सकते,अब समय आ गया है कि गिरिराज को उसके कर्मों का दण्ड मिल जाएं",महाराज कुशाग्रसेन बोले....
"तो महाराज! सर्वप्रथम हमें ये देखना होगा कि गिरिराज की निर्बलता किसमें हैं,वो कैसें आपके समक्ष झुक सकता है,ऐसा कोई कारण जिससे गिरिराज सरलता से आपकी मुट्ठी में आ जाए"सेनापति व्योमकेश बोले...
"आपका ये विचार विचारणीय है सेनापति व्योमकेश!",महाराज कुशाग्रसेन बोले....
"मैं कुछ कहूँ महाराज!",कौत्रेय बोला...
तब महाराज कुशाग्रसेन बोले...
"हाँ! बोलो कौत्रेय!,आप सभी को यहाँ अपना पक्ष रखने का अधिकार दिया गया है,आप सभी की योजनाओं एवं सहमतियों के बिना ये कार्य सफल नहीं हो सकता,मैं आप सभी के सुझावों का आदर करता हूँ,इस समय आप सभी ही मेरी प्रजा हैं,इसलिए आप में से कोई भी अपना विचार या सुझाव प्रकट करने में संकोच ना करे",
"हाँ! तो कहो कौत्रेय! तुम क्या कह रहे थे"?,भूतेश्वर बोला....
"मैं ये कह रहा था महाराज! कि गिरिराज की सबसे बड़ी निर्बलता उसका पुत्र है तो क्यों ना हम उसका आपहरण कर लें",कौत्रेय बोला....
तब धंसिका ने सांकेतिक भाषा में महाराज कुशाग्रसेन से कहा.....
"महाराज! कुछ भी हो,वें अब भी मेरे स्वामी हैं,कृपा उन्हें कोई हानि मत पहुँचाएगा,",
तब महाराज कुशाग्रसेन ने धंसिका को सांकेतिक भाषा में समझाया कि....
"हम सभी का ध्येय गिरिराज की हत्या करना नहीं है,हम सभी ये चाहते हैं कि गिरिराज का आचरण अच्छा हो जाए,वो एक सज्जन व्यक्ति बन जाएँ , मानव जाति का आदर करने लगे,मुझे पुनः अपना राज्य वापस मिल जाए,बस यही इच्छा है मेरी,आप चाहती हैं कि आप के स्वामी सुरक्षित रहें तो ऐसा ही होगा,मैं आपको वचन देता हूँ"
महाराज कुशाग्रसेन की बात समझकर धंसिका अति प्रसन्न हो उठी,तब त्रिलोचना महाराज कुशाग्रसेन से बोली....
"महाराज! आप मेरे पिता समान हैं और मैं आपकी पुत्री की भाँति हूँ,आपने मेरी माता कि विनती स्वीकार करके हम दोनों पर जो उपकार किया है उसे मैं जीवन भर नहीं भूलूँगीं"
"पुत्री त्रिलोचना! आभार प्रकट करने की कोई आवश्यकता नहीं है,जिस प्रकार भैरवी मेरी पुत्री है,उसी प्रकार तुम भी मेरी पुत्री हो,मैं कदापि ऐसा कुछ नहीं करूँगा जिससे आप दोनों माँ पुत्री को कोई भी कष्ट हो" महाराज कुशाग्रसेन बोले.....
"पुत्री! त्रिलोचना! मेरे पुत्र पर विश्वास करो,वो कभी भी ऐसा कुछ नहीं करेगा जिससे तुम दोनों को कोई कष्ट हो",कुशाग्रसेन के पिता प्रकाशसेन बोले....
"हाँ! पुत्री! तुम निश्चिन्त रहो,मैं कभी भी कुछ भी अनर्थ नहीं होने दूँगीं"कुशाग्रसेन की माता मृगमालती बोलीं...
"जी! दादी माँ!मुझे विश्वास है कि ऐसा कुछ नहीं होगा,आप सभी मेरे पिता को कोई भी हानि नहीं पहुँचाऐगें",त्रिलोचना बोलीं....
"तो अब आगें की योजना पर वार्तालाप प्रारम्भ करें",अचलराज बोला....
"तो तुम क्या कह रहे थे कौत्रेय! कि हम गिरिराज के पुत्र सारन्ध का आपहरण कर लें"सेनापति व्योमकेश बोले....
"हाँ! सारन्ध ही गिरिराज की सबसे बड़ी निर्बलता है,तो यदि हम उसका आपहरण कर ले तो हमारी योजना सरल हो सकती है",कौत्रेय बोला....
"हाँ! इस योजना पर विचार किया जा सकता है"भूतेश्वर बोला....
"किन्तु! हम सारन्ध का आपहरण किस प्रकार कर सकते हैं,उसके लिए तो हमे सारन्ध से समीपता बनानी होगी ,जो कि असम्भव है",कुशाग्रसेन के पिता प्रकाशसेन बोले....
"अब ये सोचो कि सारन्ध की निर्बलता क्या है,उसके आधार पर हम उसके आपहरण की योजना बना सकते हैं"अचलराज बोला....
"उसकी निर्बलता तो सुरा एवं सुन्दरी है,ये तो सभी को ज्ञात है किन्तु उसका आपहरण करेगा कौन? महल के भीतर जाकर उसका आपहरण करने का साहस भला किस में हैं?",भैरवी बोली....
"ये विचारणीय विषय है"कौत्रेय बोला....
तब कालवाची बोली....
"मैं तो पुनः रुप बदलकर वहाँ जा सकती हूँ ,किन्तु उसका आपहरण किस प्रकार करुँगी ,ये समझ नहीं आ रहा है मुझे",
"तुम रहने दो कालवाची! इस बार ये कार्य किसी और के ऊपर सौंपना होगा",अचलराज बोला...
"तो इस बार क्यों ना हम वहाँ भैरवी को भेजे"कौत्रेय बोला....
"मैं....मैं वहाँ जाकर क्या करूँगीं"?,भैरवी बोली....
"सारन्ध को मोहित करना होगा,इसके बाद का कार्य मैं और कौत्रेय सम्भाल लेगें",भूतेश्वर बोला....
"वो किस प्रकार सम्भव होगा"?सेनापति व्योमकेश जी ने पूछा...
"कालवाची को पुनः सहायता करनी होगी हमारी",कौत्रेय बोला....
"मैं तो मैं तत्पर हूँ तुम सभी की सहायता हेतु,किन्तु योजना क्या सोची है तुम लोगों ने"कालवाची ने पूछा...
तब कौत्रेय बोला....
"भैरवी को वहाँ कोई नहीं पहचानता,भैरवी सरलता से महल के भीतर जा सकती है",
"नहीं! अब भैरवी का महल के भीतर जाना सरल नहीं है क्योंकि गिरिराज अब अत्यधिक सावधान हो चुका होगा,वो अब राजमहल में आने जाने वाले हर व्यक्ति पर संदेह कर रहा होगा,इसलिए वो भैरवी पर भी संदेह करेगा",महाराज कुशाग्रसेन बोले....
"तो अब क्या किया जाए"?,अचलराज बोला....
और सभी इस विषय पर सोच विचार करने लगे....

क्रमशः....
सरोज वर्मा....



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