आपको वायु पुत्र तथा राम का दूत कहा जाता है, आपके नेत्र लाल हैं, आप सीताजी के कष्टों को दूर करने तथा दशानन का संहार करने वाले हैं, और आप लक्ष्मण को जीवन देने वाले हैं। –हनुमान स्तोत्रभगवान शिव और वायु जैसे सुप्रसिद्ध पिता होने के नाते, निस्संदेह मारुति साधारण बालक के नहीं थें। वे स्वभाव से अशांत, चंचल, ऊर्जावान और जिज्ञासु थें। उनमें अदम्य बल था और उनके शानदार कारनामों की कथाओं से ग्रंथ भरे पड़े हैं। उनसे संबंधित कथाओं में उनके द्वारा सूर्य तक लगाई गई छलाँग सबसे शानदार कथा है। वास्तव में, यही वह विस्मित करने वाली कथा है जिसके कारण उन्हें अपना सबसे लोकप्रिय नाम मिला — “हनुमान!”
वह बालक बहुत पेटू था। उसकी भूख कभी पूरी तरह शांत नहीं होती थी। उसके माता-पिता अपनी तरफ़ से उसे संतुष्ट करने का हर संभव प्रयास करते थे किंतु वह तृप्त नहीं होता था और सदा भोजन माँगता ही रहता था। एक वर्ष का होने तक, वह आस-पास के पड़ों पर चढ़कर फल खाने लगा था। एक दिन उसकी माता अंजना उसे अपने साथ नदी पर ले गई और उससे कहा कि उसके स्नान करके लौटने तक, वह नदी तट पर जितना चाहे खेल कर सकता है। वृक्षों के यथासंभव फल और कंद-मूल खाने के बाद भी उसे भूख लग रही थी। अचानक उसकी दृष्टि बड़े-से गोल नारंगी रंग के सूर्य पर पड़ी, जो उस समय उदय हो रहा था। मारुति को लगा कि वह कोई बहुत बड़ा फल है। उसने अपने माँ को बुलाकर उन्हें उस नए फल को दिखाना चाहा। माता अंजना ने सोचा कि मारुति ने किसी वृक्ष पर कोई नया फल देखा होगा, तो उन्होंने मारुति को वह फल खाने की अनुमति दे दी। बालक मारुति ने, बड़ी तत्परता से शानदार छलाँग लगाई और सूर्य की ओर आकाश में चला गया। जब अंजना स्नान करके नदी से बाहर आई तो उन्हें अपना पुत्र दिखाई नहीं दिया। वह चिंतित हो गई और उसे खोजने लगी। अंत में उन्होंने मारुति को सूर्य की ओर उड़ते हुए देखा। उन्होंने चिल्लाकर केसरी को बुलाया और दिखाया कि उनका पुत्र क्या करने जा रहा हैं। केसरी ने भी बालक को पकड़ने के लिए छलाँग लगाई किंतु वे वहाँ तक नहीं पहुँच पाए और नीचे गिर कर निराश हो गए। माता-पिता को समझ नहीं आ रहा था कि वे अब क्या करें।
आकाश के जीव, मारुति को आगे बढ़ता देख हैरान थे।
“वायु-पुत्र जितनी फुर्ती से चल रहें थे उनकी फुर्ती से न वायुदेव, न गरुड़ और न ही मस्तिष्क चल सकता हैं। यदि इसकी बालरूप में इतनी गति है तो बड़ा होने पर, इसकी गति कैसी होगी?”वायुदेव, मारुति के बिलकुल पीछे चल रहे थे ताकि सूर्य की गर्मी से बालक को बचाया जा सके। सूर्यदेव को लगा कि वह कोई अबोध बालक है। उन्हें यह भी पता था कि राम के रूप में भगवान विष्णु उस बालक के माध्यम से किस महान उद्देश्य को पूर्ण करने वाले थे, और इसीलिए सूर्यदेव ने मारुति को कोई क्षति नहीं पहुँचाई।
दुर्भाग्य से, उसी दिन सूर्य ग्रहण था और राहु नाम का ग्रह सूर्य को निगलने वाला था। अचानक मारुति ने देखा कि राहु (एक कुटिल ग्रह) सर्प के रूप में सूर्य को निगलने के लिए आगे बढ़ रहा था। वह जिज्ञासु वानर राहु को एक बड़ा-सा कीट समझकर उसके ऊपर झपट पड़ा और उसकी पूँछ पकड़ने की चेष्टा करने लगा। राहु अपनी जान बचाकर वहाँ से भागा और देवराज इंद्र की शरण में पहुँच गया। उसने क्रोधित होकर इंद्र से कहा, “आपने कुछ विशिष्ट दिनों पर मेरी भूख मिटाने के लिए सूर्य और चंद्रमा को मुझे सौंपा है लेकिन मैं अब देख रहा हूँ कि मेरा हिस्सा किसी अन्य प्राणी को दे दिया गया है। आज अमावस्या की रात है और मुझे सूर्य को ग्रसना है। अब देखिए क्या हो रहा है! यहाँ कोई अन्य प्राणी आकर मुझे रोक रहा है।”
इंद्र ने अपना घातक वज्र उठाया और अपने सफ़ेद ऐरावत हाथी पर सवार होकर उस उद्दंड वानर की ओर चल पड़े। इंद्र के कोप की अभिव्यक्ति के फलस्वरूप, आकाश में चारों ओर बादल गरजने लगे और बिजली चमकने लगी। परंतु वह नन्हा वानर उस भयानक दृश्य अथवा हाथी पर सवार बलवान वज्रधारी इंद्र को देखकर ज़रा-सा भी भयभीत नहीं हुआ। इसके विपरीत, इस दृश्य से उसकी उत्तेजना और बढ़ गई। उसे लगा कि उसे वाहन के रूप में हाथी की आवश्यकता है। मारुति ने ऐरावत को भी पकड़ने की कोशिश की। उसने हाथी की सूँड़ पकड़ी और उसकी पीठ पर कूद गया। शिशु वानर को सहसा अपने पीछे बैठा पाकर इंद्र हैरान हो गए और उन्होंने उसे मारने के लिए अपना वज्र उठा लिया। सही समय पर वायुदेव पहुँच गए और इंद्र को रोकने का प्रयास किया परंतु इंद्र पीछे हटने वाले नहीं थे।
वायुदेव बोले– “यह तो बालक है! आप कैसे देवता हैं, जो नन्हे-से बालक से युद्ध करने के लिए तैयार हो गए हैं?”
इंद्र ने उत्तर दिया, “यह बालक है किंतु यह सूर्य को निगलने का प्रयास कर रहा था। मैं सिर्फ़ इनकी सहायता के लिए आया हूँ।”
वायुदेव ने इंद्र को रोकने का भरसक प्रयास किया परंतु इंद्र ने अपने वज्र से मारुति की ठुड्डी पर वार किया जिससे मारुति की ठुड्डी पर स्थायी रूप से निशान पड़ गया। इसी से अंजना के पुत्र का नाम हनुमान पड़ा।
“ठुड्डी” को संस्कृत में ‘हनु’ कहते हैं। हालाँकि इंद्र का वज्र भी मारुति को मारने में विफल हो गया। परंतु उसके प्रभाव से वह हाथी की पीठ से नीचे गिर गया। मारुति बेहोश होकर गिरने लगा तो उसके पिता वायुदेव उसकी रक्षा के लिए आ गए और उसे बीच में ही थाम लिया।
अपने प्रिय पुत्र को गोद में असहाय अवस्था में लेटा देखकर वायुदेव को क्रोध आ गया। उन्होंने एक गहरी श्वास ली और ब्रह्मांड की सारी वायु अपने भीतर खींच ली। वायुदेव ने सोचा, “उन सबको, जिन्होंने अंजना के पुत्र को चोट पहुँचाई है, दम घुटने से मर जाने दो।” और वायुदेव एकांत में चले गए एव समूचा वायुमंडल भी अपने साथ ले गए। सभी प्राणियों का दम घुटने लगा। ब्रह्मांड के सभी लोग घबरा गए। वायु के अभाव में, प्रत्येक स्तर पर जीवन संकट में पड़ गया। ब्रह्मांड में कोई वस्तु हिल नहीं पा रही थी। ब्राह्मणों द्वारा वेदों का उच्चारण बंद हो गया तथा देवताओं के उदर सिकुड़ने लगे।
अंजना और केसरी अपने पुत्र के लौटने की प्रतीक्षा करते रहे लेकिन वह नहीं आया। जब उसका कुछ पता नहीं लगा तो वे रोने और दुख से अपनी छाती पीटने लगे।
“हे शिव! हे पार्वती! हमने पुत्र प्राप्त करने के लिए इतने कष्ट उठाए और अब वह हमसे इस तरह क्रूरतापूर्वक अलग हो गया है। हमने ऐसा क्या किया है जो हमें यह भोगना पड़ रहा है?”
उन्हें दुखी देखकर वायुदेव उनके समक्ष प्रकट हुए और उन्हें सांत्वना दी। “आपका पुत्र मेरे पास सुरक्षित है। मैं इंद्र और अन्य देवताओं को सबक सिखाने के लिए उसे कुछ समय अपने पास रखूँगा। चिंता न करें; मैं उसे आपके पास सुरक्षित वापस ले आऊँगा।”
इस आश्वासन को सुनकर मारुति के माता-पिता शांत हो गए।
चूंकि वायुदेव ने वायु चलने से मना कर दिया, तो पूरी पृथ्वी कष्ट झेलने लगी। साँस न आने से सभी जीव दम घुटने के कारण मरने लगे। ऐसा लगने लगा मानो बहुत जल्द संसार समाप्त हो जाएगा। इंद्र को अपने अविवेकी कृत्य के लिए बुरा लग रहा था । वे जानते थे कि इस पूरे प्रकरण के लिए वे स्वयं उत्तरदायी थे। उन्हें राहु के उकसाने पर भी वज्र का प्रयोग नहीं करना चाहिए था। सभी देवता दौड़कर वायुदेव को खोजने लगे। परंतु वायुदेव का कहीं पता न लगा। इसके बाद वे सभी भगवान शिव और भगवान विष्णु के पास गए और उनसे सहायता की याचना करने लगे। उन्हें सब कुछ पता था और वे यह भी जानते थे कि वायुदेव उस नन्हे बालक के साथ कहाँ थे। वे ब्रह्मा के साथ पाताल लोक में पहुँचे। उन्हें देखकर वायुदेव बहुत प्रसन्न हुए और प्रणाम किया। इसके बाद पूरी कथा सुनाई कि इंद्र और सूर्य ने किस तरह उनके पुत्र के साथ बुरा व्यवहार किया है।
ब्रह्मा, विष्णु और शिव ने वायुदेव को शांत किया और बालक हनुमान को बहुत से आशीर्वाद दिए। ब्रह्मा के स्पर्श करते ही मारुति ठीक हो गया। अब सभी देवताओं में उस बालक को वरदान देने की होड़ लग गई।
इंद्र ने कमल के पुष्पों की अपनी माला उतारकर बालक के गले में डाल दी और कहा, “चूंकि इस बालक की हनु मेरे वज्र से टूटी है, इसलिए इसे भविष्य में हनुमान (जिसकी ठुड्डी विकृत हो) के नाम से जाना जाएगा, और अब इसके ऊपर मेरे वज्र का भी कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।”
सूर्यदेव ने कहा, “मैं इसे अपने तेज़ का सौवा अंश प्रदान करता हूँ। जब इसके विद्याध्ययन का समय आएगा, तो मैं स्वयं इसे समस्त वेदों व शस्त्रों का ज्ञान दूंगा। शास्त्रों के ज्ञान में कोई इससे अधिक श्रेष्ठ नहीं होगा।”
जल के देवता वरुणदेव ने यह वरदान दिया कि मारुति को पानी का भय नहीं रहेगा। अग्निदेव ने उसे कभी क्षति न पहुँचाने का वरदान दिया।
मृत्यु के देवता, यमराज ने कहा “मारुति को कभी रोग नहीं सताएगा तथा वह कभी उसे प्रभावित नहीं करेगी।” उन्होंने यह भी कहा कि मारुति अपनी मृत्यु का समय स्वयं निर्धारित कर सकेगा।
यक्षराज कुबेर ने कहा कि उनकी गदा मारुति को युद्ध में मरने नहीं देगी और कभी क्लांत नहीं होगी।
शिव ने मारुति को चिरंजीवी (अमर) रहने का सर्वश्रेष्ठ वरदान दिया और कहा कि उनके किसी भी अस्त्र-शस्त्र से मारुति की मृत्यु नहीं होगी।
देवताओं के शिल्पी, विश्वकर्मा ने वरदान दिया कि मारुति पर उनके द्वारा बनाए किसी भी शस्त्र का प्रभाव नहीं पड़ेगा।
ब्रह्मा ने मारुति को एक और वरदान दिया कि ब्रह्मा के नाम के अस्त्र याने ब्रह्मास्त्र से भी मारुति को क्षति नहीं होगी तथा ब्रह्मांडीय युग की अवधि तक शारीरिक अमरत्व प्रदान किया। उन्होंने वायुदेव से कहा, “आपका पुत्र अजेय होगा। शत्रु सदा इससे भयभीत रहेंगे और इसके मित्रों को किसी बात का भय नहीं रहेगा। यह स्वेच्छा से अपना रूप बदल सकेगा तथा मन की गति से कहीं भी जा सकेगा। यह जो कार्य करेगा, उससे इसका गौरव बढ़ता जाएगा।”
इसके बाद विष्णु ने वायुदेव से कहा, “आपका यह पुत्र विष्णु का महान भक्त बनेगा। कोई भी इसे पराजित नहीं कर पाएगा। यह मेरे अवतार राम और उनकी पत्नी लक्ष्मी स्वरूपा सीता के लिए भाई के समान होगा।”
सभी देवताओं ने कहा कि धरती और स्वर्ग पर ऐसा कोई नहीं होगा जो बल और गति में मारुति की बराबरी कर सके।
अंत में, ब्रह्मा ने हनुमान को वायु एवं गरुड़ से अधिक बल तथा सर्वशक्तिमान वायु से भी तेज़ गति का वरदान दिया।
इस तरह, सभी देवताओं से आशीर्वाद प्राप्त करने के बाद, वायुदेव पृथ्वी पर लौट आए तथा सभी प्राणियों को दोबारा जीवन मिल गया। सभी एक बार फिर से सामान्य ढंग से साँस लेने लगे। इसके बाद वायुदेव, हनुमान को लेकर उसके माता-पिता के पास आए और उन्हें सारी कथा सुनाई। अपने पुत्र को मिले आश्चर्यजनक वरदानों के बारे में सुनकर उन्हें बहुत प्रसन्नता हुई। वे उसके नए नाम को सुनकर भी बहुत खुश हुए हालाँकि उसकी ठुड्डी पर लगे निशान को देखकर उन्हें दुख भी हुआ। तथापि उन्हें लगा कि वह निशान भी मारुति पर अच्छा लग रहा था।
इस घटना के बाद, देवताओं से अनेक तरह के वरदान प्राप्त करके हनुमान जोश से भर गए और तरह-तरह की शरारतें करने लगे। वे कभी वन में तपस्या कर रहे ऋषियों की निजी सामग्री छीनकर, पूजा के सामान को तितर-बितर करके उन्हें तंग करते तो कभी, उनके यज्ञ की कलछी व बर्तनों को तोड़ देते। वे कभी तपस्वियों की साधना भंग कर देते तो कभी उनके वल्कल वस्त्र फाड़ देते थे। हनुमान उनके पानी के घड़े और पादुकाएँ चुरा लेते थे और कभी ध्यान के दौरान उनकी दाढ़ी खींच लेते थे। वे उनके पावन पत्थरों को भी तालाब में फेंक दिया करते थे। चूंकि किसी में उन्हें रोकने का साहस नहीं था, उनकी हिम्मत बढ़ती गई। वे ऋषियों के बर्तन फोड़ देते, ग्रंथ फाड़ देते और उनके आश्रमों पर शिलाखंड फेंक दिया करते थे। केसरी और अंजना ने कई बार हनुमान को इस तरह की शरारतें करने से रोका, किंतु स्वयं को ब्राह्मणों के शाप से अभेद्य मानते हुए हनुमान ने उछलकूद करना जारी रखा। ऋषियों को उन सभी वरदानों का पता था जो हनुमान को मिले हुए थे और इसलिए वे उनकी शरारतों को, जब तक संभव हुआ, सहन करते रहे। अंत में जब हनुमान की शरारतें असहनीय हो गईं तो उन्होंने हनुमान को शाप दे दिया कि वे अपनी समस्त शक्तियों को भूल जाएँगे और अपनी उन शक्तियों को दोबारा तभी याद कर सकेंगे जब अन्य लोग हनुमान को उनकी याद दिलाएँगे। शाप के प्रभाव से हनुमान तत्काल ही अपनी शक्तियों को भूल बैठे और उनका व्यवहार सामान्य वानर जैसा हो गया।
कहते हैं, एक बार तो हनुमान ने देवताओं के पुत्रों को भी परेशान कर दिया था। देवताओं ने जब इंद्र से गुहार लगाई तो इंद्र ने उनको हनुमान से ही कुश्ती के दांव-पेंच सीखने को कहा ताकि समय आने पर देवतागण हनुमान से लड़ सकें। इस कथा में, हनुमान गुरु बन गए और फिर देवताओं ने उन्हीं से कुश्ती के गूढ़ रहस्य सीखे क्योंकि हनुमान कुश्ती में पारंगत माने जाते हैं।
‘सुंदरकांड’ में, जांबवंत नामक विशाल रीछ ने हनुमान को उनकी शक्तियों और क्षमताओं की याद दिलाई और उन्हें सीताजी को खोजने के लिए प्रेरित किया। इसी से, हनुमान को अपनी असाधारण योग्यताओं का ध्यान आया और उन्होंने लंका तक आश्चर्यजनक छलाँग लगाई तथा उस असंभव कार्य को पूर्ण किया।
युद्ध के दौरान उन्होंने अपनी विलक्षण क्षमताओं का परिचय दिया, किंतु जांबवंत को बार-बार उन्हें याद दिलाना और प्रेरित करना पड़ता था। इस कथा से यह भी पता लगता है कि हनुमान ऐसे देवता हैं, जिनकी सुप्त शक्तियों को ऋचाओं द्वारा जागृत किया जा सकता है। भूलने और याद करने का मूलभाव, जीवात्मा द्वारा आत्म-ज्ञान की दिशा में यात्रा का भी सूचक है।