राम भक्त महावीर हनुमान Arun द्वारा प्रेरक कथा में हिंदी पीडीएफ

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राम भक्त महावीर हनुमान

हिंदुओं के देव-समूह में हनुमान सर्वप्रिय हैं। वे वास्तव में हैं तो पशु, किंतु मनुष्यों की तरह आचरण करते हैं। वे भगवान विष्णु के सातवें अवतार, सूर्यवंशी तथा अपने उत्कृष्ट इष्टदेव श्री राम के प्रति निस्वार्थ परम भक्ति के प्रतीक हैं। हनुमान में सारी शक्ति राम नाम के मूलमंत्र के निरंतर जप से आई जो कि कलियुग के लोगों के लिये महामंत्र है। ऐसा कहा जाता है कि यदि इस मंत्र का भक्ति भाव से जप किया जाए तो यह नाशहीन जीवन-चक्र से मुक्ति प्रदान करता है।

राम के प्रत्येक मंदिर में, राम के चरणों में नतमस्तक मुद्रा में हनुमान की मूर्ति होती है। जहाँ भी रामायण पढ़ी या गाई जाती है, वहाँ एक आसन हनुमान के लिए ख़ाली छोड़ा जाता है क्योंकि ऐसा माना जाता है कि जहाँ भी इनके परम प्रिय स्वामी राम की कथा का पाठ होता है, ये वहाँ सदैव विद्यमान रहते हैं।

संस्कृत शब्द ‘साधना’ का अर्थ है, ऐसी पद्धति जिसे अपनाकर कोई अभिलाषी या साधक अपनी चेतना के साथ संपर्क स्थापित कर सकता है। साधना सबसे सरल पद्धति, जप अथवा मन में ईश्‍वर के उस नाम को बारम्बार बोलते रहना है जिसकी हम कल्पना करते हैं। हनुमान के नाम से हमारे मन में ऐसी छवि बनती है जिसने अपने इष्टदेव केवल राम नाम को जपकर पूर्ण तरह आदर्श रूप प्राप्त कर लिया था तथा अपने इष्ट देव प्रभु राम के प्रति पूरी तरह से आत्म-त्याग कर दिया। विनयशीलता और निस्वार्थ भाव हमारे ज्ञान के मापदंड हैं। हम जितना अधिक ज्ञान लेते हैं, हमें उतना ही अधिक यह आभास होता है कि हम कितने अज्ञानी हैं और यह कि कितना कम कार्य हम स्वयं कर सकते हैं।

किंवदंती के अनुसार, हनुमान पवन-पुत्र हैं। वायु ही समस्त प्राणियों को जीवित रखती है। कोई भी जीव बिना भोजन व जल के कई दिन गुज़ार सकता है, किंतु वायु के बिना थोड़े समय भी जीवित नहीं रह सकता। वायु जीवन है। इसलिए हनुमान भी प्राणदेव अथवा श्‍वास जीवन के अधिष्ठाता कहलाते हैं।

वैष्णव धर्म के अनुयायियों का मानना है कि विष्णु की सहायता के लिए वायुदेव ने तीन अवतार लिए। पहले अवतार में, हनुमान के रूप में राम की सहायता की। दूसरे में, भीम के रूप में कृष्ण की सहायता की। तीसरे अवतार में, मध्वाचार्य (1197-76) के रूप में द्वैत कहे जाने वाले वैष्णव संप्रदाय की नींव डाली।

हिंदू प्रतीकवाद के संदर्भ में वानर, मानव मन का द्योतक है जो सदा चंचल और अशांत रहता है। यह केवल बंदर के समान मन ही है, जिसे मनुष्य पूरी तरह नियंत्रित कर सकता है। हम अपने इर्द-गिर्द के समाज को नियंत्रित नहीं कर सकते किंतु कठोर अनुशासन द्वारा अपने मन को सौम्य बनाकर वश में कर सकते हैं। हम जीवन का चयन तो नहीं कर सकते, किंतु उसमें अपनी प्रतिक्रिया का चयन अवश्य कर सकते हैं। निश्‍चय ही, हनुमान आदर्श चित्त के प्रतीक हैं तथा मस्तिष्क की श्रेष्ठता को दर्शाते हैं। वे सही रूप में भगवद्गीता के स्थित प्रज्ञ हैं। उनका अपने मन पर पूरा नियंत्रण है। ‘हनुमान’ नाम उनके चरित्र का संकेत देता है। यह संस्कृत के दो शब्दों - ‘हनन’ और ‘मन’ से बना है, जिसका अर्थ है, जिसने अपने अहंकार को जीत लिया है। योग के अनुसार तन, मन का ही विकार है। इस तरह, जिनका अपने मन पर पूरा आधिपत्य है, उन हनुमान का शरीर भी सर्वाधिक विकसित है। वे बजरंग बली हैं (जिनका शरीर वज्र के समान और गति विद्युत के समान है)। वे इतने बलशाली हैं कि पर्वत उठा सकते हैं और इतने दक्ष हैं कि सागर पार जा सकते हैं।

उनकी शक्ति सर्वविदित है और वे कायिक संस्कृति के संरक्षक हैं। उनकी प्रतिमाएँ पूरे भारत की व्यायाम शालाओं में स्थापित होती हैं और पहलवान अपना व्यायाम आरंभ करने से पहले उनकी पूजा करते हैं। सूर्य नमस्कार नामक योगासन, भक्ति-युक्त सभी योगासनों का मिला-जुला रूप है जिसकी रचना भी अपने गुरु सूर्य के सम्मान में स्वयं हनुमान ने की थी। उनके दैवी पिता वायु ने उन्हें प्राणायाम सिखाया। इन्होंने इसे मनुष्यों को सिखाया।

धर्म ग्रंथों में ऐसी बहुत-सी घटनाओं का उल्लेख मिलता है जहाँ हनुमान ने सूर्य और शनि सहित दिव्य नक्षत्रों पर अपनी शक्ति प्रदर्शित की। इसलिए उन्होंने नव-ग्रहों अथवा नौ नक्षत्रों पर अपना अधिकार जमा लिया। ये ग्रह हैं - सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, बृह्स्पति, शुक्र, शरीर-रहित राहु और सिर-रहित केतु। माना जाता है कि व्यक्ति जन्म-पत्री में इनकी दशा उसके भाग्य का निश्‍चय करती है। हनुमान की बहुत-सी प्रतिमाओं में उन्हें चोटी पकड़कर उसे कुचलते हुए दिखाया गया है। यह स्त्री ‘पनवती’ अथवा घातक ज्योतिष प्रभावों की मूर्त रूप है।

तांत्रिक और ओझा लोग, दुष्ट आत्माओं का आह्वान करने हेतु दैवी शक्तियों के नाम पर छल-कपट करते हैं। ऐसे लोगों से, अपनी सुरक्षा के लिए लोग हनुमान से प्रार्थना करते हैं। जब रावण ने ऐसे दो तांत्रिकों अहिरावण और महिरावण का आह्वान किया था, तो हनुमान ने उनके ऊपर पलटवार करते हुए उनका दमन करने हेतु काली का आह्वान किया था। बहुत-से तांत्रिक उनकी पूजा करते हैं क्योंकि उनके पास बहुत-सी सिद्धियाँ अर्थात् अपना आकार बदलने, आकाश में उड़ने जैसी अलौकिक शक्तियाँ हैं, जिन्हें उन्होंने कठोर ब्रह्मचर्य और तपस्या द्वारा प्राप्त किया है।

इस प्रकार, वे भक्ति और शक्ति की दुहरी विशिष्टताएँ प्रकट करते हैं। उनकी मूर्तियों में इन दो में से कोई एक विशिष्टता दिखाई पड़ती है।

चूँकि उन्होंने हिमालय से जादुई जड़ी-बूटी लाकर लक्ष्मण की जान बचाने में अहम भूमिका निभाई थी अतः वे आयुर्वेदिक पद्धति के संरक्षक भी हैं। बाद में उन्होंने उसी जड़ी-बूटी से शत्रुघ्न की भी प्राण रक्षा की थी।

योद्धा के रूप में, हनुमान के जोड़ का कोई नहीं है। वे अपने शत्रु को दबोचने के लिए बल और छल दोनों का प्रयोग करते हैं। रावण के साथ, युद्ध करते समय, उन्होंने कई बार ऐसा प्रदर्शित किया है। इन्होंने अपने शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने के लिए बल और बुद्धि दोनों का उपयोग किया है।

हनुमान कुशल कूटनीतिज्ञ भी थे। वे जानते थे कि किस तरह मृदु वचनों से, बिना बल प्रयोग किए, दूसरों के समक्ष अपना मत प्रस्तुत किया जा सकता है। वे राम का उद्देश्य जानने के लिए सुग्रीव के प्रवक्ता बनकर गए थे। सुग्रीव ने उन्हें एक बार फिर अपनी चूक के कारण क्रुद्ध हुए लक्ष्मण को शांत करने के लिए भेजा। राम ने उन्हें दो बार अपना दूत बनाकर सीताजी के पास भेजा, एक बार अपनी अँगूठी देकर लंका में, और दूसरी बार युद्ध के बाद, सीताजी को लाने के लिए। राम ने इन्हें अयोध्या में प्रवेश करने से पहले, भरत के पास भी उनका इरादा जानने के लिए भेजा था। जो भी इनके संपर्क में आए, वे सभी इनके कूटनीतिक ढंग से बात करने और मुग्ध कर लेने की कला से अत्यंत प्रभावित हुए।

हनुमान ने भाषा पर अपने अधिकार, व्याकरण ज्ञान और सही समय पर सही शब्दों के प्रयोग तथा सही संदर्भ में आदर्श भाषण-शैलीगत योग्यता से राम और रावण दोनों को प्रभावित किया।

यह और भी आश्‍चर्यजनक है कि हनुमान महान संगीतज्ञ भी थे। उन्हें देवी सरस्वती का आशीर्वाद प्राप्त था। वे वीणा बजाते थे और राम की प्रशंसा में गीत गाते थे। सर्वप्रथम, इन्होंने ही भजन, आराधना-गीत, कीर्तन किया और स्तुति-गीत गाए। इनका संगीत अपने आराध्य के प्रति प्रेममय उद्गार था और इसीलिए, उसमें पाषाण को भी द्रवित कर देने की शक्ति थी।

हनुमान एक आदर्श विद्यार्थी थे। वे पूरी तरह एकाग्रचित्त, उद्यमी, विनम्र, दृढ़संकल्प और प्रतिभाशाली थे। उन्होंने सूर्य को अपना गुरु बनाने के लिए दृढ़ निश्‍चय करके सौर-मंडल के लिए उड़ान भरी। फिर भी, उन्होंने अपनी प्रतिभा और विद्वता पर कभी घमंड नहीं किया, बल्कि विनम्र सेवक की तरह हमेशा राम के चरणों में ही बैठे।

हनुमान को नाम और ख्याति की कोई इच्छा नहीं थी। उन्हें पर्वतों और गुफाओं में रहना पसंद था। उन्होंने पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन किया। यह एक वानर के लिए विचित्र बात थी। महल में रहते हुए भी, वे साधु की तरह इंद्रिय-सुखों से दूर रहे। इसी के माध्यम से उन्हें इतनी आध्यात्मिक शक्ति प्राप्त हुई।

वे हठयोगी भी थे क्योंकि उन्होंने योगासनों और प्राणायामों का अभ्यास भी किया था। वे लययोगी भी थे क्योंकि उन्हें मंत्रों एवं यंत्रों की सहायता से भी मन को नियंत्रित करना आता था। इस प्रकार उन्होंने कई सिद्धियाँ और अलौकिक शक्तियाँ प्राप्त कर ली थीं।

यदि योग किसी के मन को नियंत्रित करने की विधि है तो हनुमान एक आदर्श योगी थे जिनका अपनी इंद्रियों पर पूर्ण नियंत्रण था जिसे उन्होंने अनुशासित जीवन-शैली और कठोरता से ब्रह्मचर्य पालन एवं निस्वार्थ भक्ति के द्वारा प्राप्त किया था। उन्होंने ईश्‍वर में आस्था और पूर्ण विश्‍वास के द्वारा अपने मन को नियंत्रित किया। उनके जीवन की प्रत्येक घटना, प्रभु से प्राप्त उपहार थी जिसे प्रश्‍न किए बिना, स्वीकार करना होता है। उनका जीवन ऐसा उत्कृष्ट उदाहरण है जिसे ईश्‍वर को किसी भी रूप में मानने वाले भक्तों को अपनाने की जरूरत है। वे हमें समझाते हैं कि ईश्‍वर तक पहुँचने के लिए किसी भक्त अथवा भक्तिन को कैसा जीवन जीना चाहिए। वे भक्ति की पराकाष्ठा के प्रतीक हैं और हिंदू उन्हें रुद्र अथवा भगवान शिव का ग्यारहवां अवतार मानते हैं। कहते हैं, एक बार नारद ने ब्रह्माजी से पूछा कि वे विष्णु का परम भक्त किसे मानते हैं। नारद को आशा थी कि ब्रह्माजी उन्हीं का नाम लेंगे, किंतु ब्रह्माजी ने उन्हें असुरों के राजा प्रह्लाद के पास भेजा जिनके लिए विष्णु ने नरसिंह रूप में अवतार लिया था। प्रह्लाद ने नारद को हनुमान के पास भेजा जिन्हें वे राम नाम का निरंतर जप करने के कारण विष्णु का परम भक्त मानते थे।

हनुमान आदर्श कर्मयोगी थे क्योंकि वे अनासक्त रहकर अपने कर्म करते थे और प्रत्येक वस्तु अपने प्रभु राम को समर्पित कर देते थे। उनके मन में अपनी बड़ाई की कोई कामना नहीं थी। पूरी रामायण में ऐसी कोई घटना नहीं है, जिसमें हनुमान ने अपने लिए कुछ किया हो। उन्होंने सभी साहसिक कार्य दूसरों के लिए किए। जब उन्होंने अपनी माता को युद्ध का विवरण सुनाया तो माता ने रावण को स्वयं मारकर और सीता का स्वयं ही उद्धार न करने के लिए, हनुमान की निंदा की क्योंकि ऐसा करने से राम से अधिक हनुमान की ख्याति हो जाती। हनुमान ने माता को उत्तर दिया उन्हें जीवन, ख्याति अर्जित करने के लिए नहीं, अपितु राम की सेवा करने के लिए मिला है। उनकी परम निस्वार्थता प्रमुखता से उस समय उभरती है, जब यह देखकर कि वाल्मीकि अपनी रचना से अत्यंत निरुत्साहित हो गए हैं, हनुमान अपनी अमर उत्कृष्ट कृति को समुद्र में फेंक देते हैं।

हनुमान ने अपना संपूर्ण जीवन दूसरों की सेवा में व्यतीत कर दिया। उन्होंने पहले सुग्रीव की और फिर राम की सेवा की। वे अपने दास्य भाव के माध्यम से भक्ति का आदर्श रूप प्रस्तुत करते हैं। इस प्रकार का समर्पण, अहंकार को नष्ट करने का उत्कृष्ट साधन है। उन्होंने विनम्रता से अहंकार रहित होकर पूर्ण समर्पण के साथ अपने कर्तव्यों का पालन किया। उन्होंने अविवाहित रहना और अपना परिवार न बनाना ही पसंद किया ताकि वे स्वयं को पूर्ण रूप से दूसरों की सेवा में लगा सकें। उन्होंने समर्थ होने के बावजूद, अपने स्वामी की आज्ञा का अतिक्रमण नहीं किया। उदाहरण के लिए, वे आसानी से रावण को मारकर, अपने बल पर ही लंका को जीत सकते थे, जैसा कि इनकी माता ने कहा भी था, किंतु इन्होंने ऐसा करने से स्वयं को रोक लिया क्योंकि वे अपने प्रभु के सच्चे सेवक बनकर उनकी आज्ञा का पालन करना चाहते थे।

वे सात चिरंजीवियों (जो इस सृष्टि के मौजूदा चक्र के ख़ात्मे तक जीवित रहेंगे) में से एक हैं। वे अपनी महान प्रतिभा के लिए जाने जाते हैं। कहते हैं, इन्हें नौ व्याकरणों (वेदों की व्याख्या) का पूर्ण ज्ञान है और इन्होंने स्वयं ही, सूर्यदेव से वेदों का ज्ञान प्राप्त किया था। ये विवेकशीलों में परम विवेकशील, शक्तिशालियों में परम शक्तिशाली और वीरों में महावीर हैं। वे जैसा चाहते, वैसा रूप धारण करने में समर्थ हैं, अपने शरीर को पर्वताकार कर सकते हैं तो अँगूठे के नाख़ून जितना छोटा भी कर सकते हैं। जो व्यक्ति इनका स्मरण करेगा, वह जीवन में सामर्थ्य, शक्ति, गौरव, समृद्धि और सफलता प्राप्त करेगा।

हनुमान विवेक, संयम, भक्ति, साहस, सदाचार और शक्ति के ‘सार’ हैं। राम को सीता से मिला देने में इनकी अपरिहार्य भूमिका की तुलना कुछ लोग, आत्मा को परमात्मा से मिलाने में सहायक गुरु से करते हैं।

राम, हनुमान के विषय में स्वयं कहते हैं, “वीरता, चतुराई, मनोबल, दृढ़ता, दूरदर्शिता, समझदारी, पराक्रम और बल ने हनुमान में आश्रय लिया है!” महर्षि अगस्त्य ने जब राम से कहा, “हे राघव! बल, गति और प्रतिभा में हनुमान जैसा कोई नहीं है,” तो उन्होंने भी अगस्त्य के विचार से अपनी सहमति प्रकट की है।

हनुमान, ‘राम’ मंत्र के जप द्वारा सुलभ हैं। इसी को उलटकर यह भी समझा जाता है कि प्रभु राम को पाने का सबसे सरल तरीक़ा, हनुमान की पूजा करना है। इनकी पूजा ‘शनि’ और ‘मंगल’ ग्रहों से जुड़ी होने के कारण शनिवार और मंगलवार को की जाती है। ये दोनों ही ग्रह, मृत्यु एवं शत्रुता से संबंधित हैं और अपने अशुभ प्रभाव से व्यक्ति के जीवन में तोड़-फोड़ करते हैं। हनुमान को अर्पित की जाने वाली वस्तुएँ अत्यंत सादी हैं। उत्तर भारत में सिंदूर, तिल का तेल, छिलके वाले काले चने तथा विशिष्ट वृक्ष (कैलोट्रोपिस जाइजेंटिका) की माला और दक्षिण भारत में पान के पत्तों की माला चढ़ाई जाती है। दक्षिण में इनकी मूर्तियों पर मक्खन मला जाता है और यह विचित्र बात है कि तेज़ गर्मी में भी मक्खन पिघलता नहीं है। इनकी मूर्ति पर चावल और दाल के बड़ों की माला भी चढ़ाई जाती है। सिंदूर के लेप का कारण अगले अध्यायों में बताया जाएगा। तथापि गूढ़ अर्थ में देखें तो लाल रंग, बल और पौरुष का प्रतीक है। तिल का तेल पहलवानों और व्यायाम करने वालों द्वारा शरीर की मालिश के लिए प्रयोग किया जाता है। मक्खन और दाल, प्रोटीन तथा ऊर्जा देते हैं और सहनशक्ति एवं माँसपेशियों के विकास के स्रोत माने जाते हैं।

सभी हनुमान भक्त दो प्रकार की धार्मिक सामग्री पढ़ते हैं - एक, रामायण का ‘सुंदरकांड’ जहाँ हनुमान ने लंका में माता सीता को खोजा, तथा दूसरा, तुलसीदास कृत चालीस चौपाइयों की ‘हनुमान चालीसा।’ जहाँ भी रामायण का पाठ होता है वहाँ एक विशेष आसन हनुमान के लिए अवश्य रखा जाता है क्योंकि ऐसी धारणा है कि रामायण-पाठ वाले स्थान पर हनुमान अवश्य मौजूद रहते हैं।

इनकी शारीरिक विशेषताएँ क्या हैं? क्या ये काले मुँह के लंगूर हैं या लाल मुँह के बंदर हैं? कभी-कभी, इन्हें लाल मुँह वाला सुनहरा बंदर बाताया जाता है। कहते हैं, लंका को जलाने के बाद, इन्होंने अपनी पूँछ से जब अपना चेहरा पोंछा तो वह काला हो गया।

हनुमान की पूँछ ऊपर की ओर घुमावदार है जो बल, फुर्ती और पौरुष की प्रतीक है। ये सोना, चाँदी, ताँबा, लोहा और टिन नामक पाँच धातुओं से बने कुंडल पहनते हैं और इन्हें पहनकर ही ये इस संसार में आए थे। सामान्य तौर पर, ये पहलवानों एवं व्यायामियों की भाँति केवल लंगोट पहनते हैं। इनकी प्रतिमाओं में इन्हें श्रीराम को नमन् करते या प्रहरी की मुद्रा में खड़े हुए तथा अपने बल को प्रदर्शित करते हुए दर्शाया जाता है। इनके एक हाथ में गदा और एक में पर्वत भी दिखाया जाता है।

हनुमान चालीसा में स्पष्ट तौर पर कहा गया है कि ऐसा कोई आशीर्वाद नहीं है, जो ये नहीं दे सकते! सीता माता ने इन्हें आठों प्रकार की सिद्धियाँ (अष्ट सिद्धि) तथा नौ प्रकार के वैभव (नवनिधि) देने का वरदान दिया था। एक श्रेष्ठ वरदान जो हनुमान से माँगा जा सकता है, वह आध्यात्मिक गुणों में वृद्धि का वरदान है, क्योंकि वे स्वयं भी इसी के लिए जाने जाते हैं।