एक योगी की आत्मकथा - 39 Ira द्वारा आध्यात्मिक कथा में हिंदी पीडीएफ

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एक योगी की आत्मकथा - 39

ईसा-क्षतचिह्न-धारिणी कैथोलिक संत टेरेसा नॉयमन—

“भारत लौट आओ। पन्द्रह वर्षों तक मैंने धीरज के साथ तुम्हारी प्रतीक्षा की है। शीघ्र ही मैं शरीर त्याग कर अनंत धाम चला जाऊँगा । योगानन्द, चले आओ!”

एक दिन जब मैं माऊण्ट वाशिंगटन स्थित अपने आश्रम में ध्यान कर रहा था, तब अचानक आश्चर्यजनक रूप से श्रीयुक्तेश्वरजी की आवाज़ मुझे अपने अन्तर में सुनायी दी। दस हज़ार मील की दूरी को पलक झपकते ही पार कर उनके सन्देश ने बिजली की भाँति मेरे अन्तर में प्रवेश कर लिया।

पन्द्रह वर्ष! हाँ, मुझे एहसास हुआ यह सन् १९३५ है। मैंने अमेरिका में अपने गुरुदेव की शिक्षाओं का प्रसार करते हुए पन्द्रह वर्ष बिता दिये हैं। अब वे मुझे वापस बुला रहे हैं।

थोड़ी देर बाद मैंने अपना यह अनुभव अपने एक प्रिय मित्र जेम्स जे. लिन को बताया । प्रतिदिन क्रियायोग के अभ्यास से उनकी आध्यात्मिक उन्नति इतनी हो गयी थी कि मैं प्रायः उन्हें "संत लिन" कहता हूँ। उनमें तथा दूसरे अनेक पाश्चात्यों में बाबाजी की उस भविष्यवाणी की पूर्ति देखकर मैं अत्यन्त आनन्दित होता हूँ कि प्राचीन योग मार्ग के माध्यम से पाश्चात्य जगत् में भी ईश्वर-साक्षात्कारी संत पैदा होंगे।

श्री लिन ने उदारतापूर्वक मेरी यात्रा के व्यय का सारा भार उठाने का प्रस्ताव रखा। इस प्रकार पैसे की समस्या हल होते ही मैंने जहाज से यूरोप होते हुए भारत जाने की तैयारी की । मार्च १९३५ में मैंने सेल्फ़ रियलाइज़ेशन फेलोशिप को चिरस्थायी बनाने के लिये उसे कैलिफोर्निया राज्य के कानून के अंतर्गत एक धर्मनिरपेक्ष, अलाभार्जक संस्था के रूप में पंजीकृत करा लिया। मेरे पास अपना जो कुछ था, वह सब अपनी पुस्तकों के सर्वाधिकारों सहित मैंने सेल्फ़- रियलाइज़ेशन फ़ेलोशिप को दान कर दिया। दूसरी अधिकाँश धार्मिक एवं शैक्षणिक संस्थाओं की तरह ही सेल्फ़- रियलाइज़ेशन फेलोशिप भी अपने सदस्यों एवं अन्य लोगों के दान पर चलती है ।

मैंने अपने शिष्यों से कहा: “मैं वापस आऊंगा। अमेरिका को मैं कभी नहीं भूलूँगा।”

लॉस ऐंजिलिस में मेरे मित्रों द्वारा मुझे दिये गये विदाई-भोज के दौरान मैं लम्बे समय तक उनके चेहरे निहारता रहा। मेरे मन में कृतज्ञता से ओतप्रोत विचार आया: “हे प्रभु! जो आपको ही एकमात्र दाता मानकर स्मरण करता है, उसके लिये मानवों के बीच कभी मित्रता की मधुरता का अभाव नहीं हो सकता।”

न्यूयॉर्क से मैं ९ जून १९३५ को यूरोपा नाम के जहाज पर सवार होकर चल पड़ा। मेरे साथ दो शिष्य थे एक मेरे निजी सचिव श्री सी. रिचर्ड राइट और दूसरी सिनसिनाटी की एक वृद्ध-सी महिला, मिस एटी ब्लेच । विगत सप्ताहों की अतिव्यस्तता और भागदौड़ के बाद समुद्र यात्रा के शान्तिपूर्ण दिन बड़े सुहावने लग रहे थे। पर यह शान्ति अल्पकालिक ही रही; आधुनिक जहाजों की तेज गति के कुछ खेदजनक पहलू भी हैं !

अन्य उत्सुक पर्यटकों की भाँति ही हम लोग भी विशाल और प्राचीन महानगरी लंदन में घूमे। लन्दन पहुँचने के दूसरे दिन मुझे कैक्स्टन हॉल में एक विशाल सभा को संबोधित करने का निमन्त्रण मिला। इस सभा में व्याख्यान शुरू करने से पहले सर फ्रांसिस यंगहसबैण्ड ने लंदन के श्रोताओं को मेरा परिचय दिया।

हमने सर हैरी लॉडर के अतिथि बनकर उनके स्काटलैंड की एस्टेट में एक दिन आनन्द में बिताया। कुछ दिन बाद हम लोग इंग्लिश चैनल को पार कर यूरोप महाद्वीप पहुंचे क्योंकि मैं बवेरिया की एक विशेष तीर्थयात्रा करना चाहता था। मैंने विचार किया कि कोनरस्त्रुथ की महान् कैथोलिक संत टेरेसा नॉयमन से मिलने का यही एकमात्र अवसर मुझे मिल सकता है।

कई वर्ष पहले मैंने टेरेसा नॉयमन के बारे में एक आश्चर्यकारक लेख पढ़ा था। उस लेख में उनके बारे में जो जानकारी दी गयी थी, वह इस प्रकार थी :

(१) टेरेसा नॉयमन का जन्म १८९८ में गुड फ्राइडे के दिन हुआ था। जब वे २० वर्ष की थीं, तब एक दुर्घटना में वे अंधी हो गयीं और साथ ही उन्हें पक्षाघात भी हो गया ।

(२) "द लिटिल फ्लावर" के नाम से सुविख्यात लिसो की संत टेरेसा की कृपा से १९२३ में उनकी दृष्टि चमत्कारिक ढंग से वापस आ गयी। बाद में टेरेसा नॉयमन का पक्षाघात भी ठीक हो गया।

(३) १९२३ से ईश्वर के प्रसाद रूप में चर्च से दिये जाने वाले छोटे से वेफ़र के अतिरिक्त टेरेसा नॉयमन ने अन्न-जल का पूर्ण परित्याग कर दिया है।

(४) १९२६ में टेरेसा नॉयमन के माथे पर, छाती तथा हाथ-पावों पर ईसामसीह के पवित्र घाव प्रकट हो गये। सूली पर चढ़ाये जाने से पूर्व और सूली पर चढ़ाये जाने के दौरान ईसा मसीह को जो-जो यातनाएँ दी गयीं, उन सब यातनाओं को वे प्रति शुक्रवार* को अपने शरीर में अनुभव करती हैं।

(५) टेरेसा नॉयमन को केवल अपने गाँव की सरल जर्मन भाषा ही आती है, परन्तु शुक्रवार के इन अनुभवों के दौरान भावावेश में वे कुछ ऐसे वाक्यों का उच्चारण करती हैं, जिन्हें विद्वानों ने प्राचीन फिलिस्तीनी भाषा के रूप में पहचाना है। अपने इस दिव्य दर्शन के दौरान उचित अवसरों पर वे हिब्रू या यूनानी भाषा भी बोलती हैं।

(६) चर्च के अधिकारियों की अनुमति से कई बार टेरेसा नॉयमन को वैज्ञानिक निरीक्षण में भी रखा गया। 'प्रोटेस्टेन्ट जर्मन' समाचार पत्र के संपादक डॉ. फ्रिट्ज़ गर्लिक इस "कैथोलिक पाखण्डी" का भंडाफोड़ करने के लिये कोनरस्थ गये थे, पर मन में श्रद्धा लिये लौट आये और उन्होंने उन का पूर्ण श्रद्धाभाव के साथ जीवन चरित्र लिख डाला ।

हमेशा की तरह मैं किसी सन्त से मिलने के लिये लालायित रहता था, चाहे मैं पूर्व में रहूँ या पश्चिम में जब हम लोग १६ जुलाई को कोनरस्त्रुथ पहुँचे, तो मैं आनन्द से पुलकित हो उठा। बवेरियाई किसानों को हमारी फोर्ड कार ( इसे हम लोग अमेरिका से अपने साथ लाये थे) और उसमें बैठे अलग-अलग प्रकार के लोगों एक युवा अमेरिकन पुरुष, एक प्रौढ़ महिला और कोट के कॉलर के नीचे अपने लम्बे केशों को दबाये एक श्यामवर्णी भारतीय को देखकर काफी कुतूहल हो रहा था ।

टेरेसा नॉयमन का घर साफ-सुथरा था। घर के पास ही स्थित पुराने कुएँ के पास सुन्दर सुन्दर फूल खिले हुए थे। परन्तु अफ़सोस ! घर बन्द और सुनसान था। पड़ोसियों और उस समय पास से गुज़र रहे पोस्टमैन को भी कोई जानकारी नहीं थी। इतने में वर्षा भी होने लगी। मेरे साथियों ने लौट चलने की राय दी।

“नहीं,” मैंने दृढ़ता के साथ कहा, “जब तक टेरेसा नॉयमन के पास पहुँचने का कोई न कोई सूत्र मेरे हाथ नहीं लगता, मैं यहाँ से हिलने वाला नहीं ।”

दो घंटे बाद भी हम उस बेज़ार करती वर्षा में अपनी कार में ही बैठे रहे । मैंने शिकायत भरा निःश्वास छोड़ते हुए कहाः “भगवन्! यदि उन्हें यहाँ नहीं होना था, तो आप मुझे यहाँ तक लाये ही क्यों ?”

इतने में एक अंग्रेज़ी-भाषी व्यक्ति हमारे पास आकर खड़ा हो गया । उसने नम्रतापूर्वक अपनी सहायता प्रदान की।

उसने कहा: “मैं निश्चित तो नहीं जानता कि टेरेसा नॉयमन कहाँ है, परन्तु वे प्रायः ही यहाँ से ८० मील दूर आइक्स्टाट विश्वविद्यालय में वहाँ के विदेशी भाषाओं के प्रोफेसर फ्रान्ज़ वुट्ज़ से मिलने जाती हैं।”

दूसरे दिन सुबह हम लोग कार से छोटे-से शान्त नगर आइक्स्टाट में जा पहुँचे। डॉ. वुट्ज़ ने प्रेमपूर्वक अपने घर में हमारा स्वागत किया। “हाँ, टेरेसा नॉयमन यहीं है।” उन्होंने टेरेसा नॉयमन के पास सन्देश भेजा कि कोई उनसे मिलने आये हैं । सन्देश ले जाने वाला शीघ्र ही उनके उत्तर के साथ वापस आया।

“यूँ तो बिशप ने मुझे उनकी अनुमति के बिना किसी से मिलने के लिये मना किया है परन्तु भारत के इस सन्त से मैं अवश्य मिलूँगी ।”

उनके इन शब्दों ने मेरे हृदय को छू लिया। डॉ. वुट्ज़ के पीछे-पीछे मैं सीढ़ियाँ चढ़कर ऊपर के बैठकखाने में गया । टेरेसा नॉयमन तुरन्त ही वहाँ आ गयीं। उनसे शान्ति और आनन्द निःसृत हो रहा था। उन्होंने काला गाऊन और सफेद मस्तकावरण धारण कर रखा था। उनकी आयु इस समय ३७ वर्ष की थी, परन्तु वे उससे काफी कम उम्र की दिख रही थीं। उनके चेहरे पर एक शिशु-सुलभ मोहकता और उत्फुल्लता झलक रही थी। स्वस्थ, सुगठित शरीर, गुलाबी गाल और आनन्दी स्वभाव! और यह वो सन्त है जो सदा निराहार रहती हैं !

टेरेसा नॉयमन ने अत्यंत सौम्यता के साथ मुझसे हाथ मिलाया। एकदूसरे को ईश्वर-प्रेमी के रूप में पहचानते हुए, हम दोनों के मु खों पर मौन मिलन की मृदु मुस्कान खेल रही थी ।

डॉ. वुट्ज़ ने कृपापूर्वक दुभाषिये का काम किया। जब हम लोग बैठ गये, तो मेरे ध्यान में आया कि टेरेसा नॉयमन कुतूहल के साथ अपनी भोली-भाली नज़र से मुझे देख रही थीं। स्पष्ट था कि बवेरिया में हिन्दु कभी-कभी ही दिखायी देते थे।

“क्या आप कभी कुछ नहीं खातीं ?” मैं स्वयं उनके मुख से सुनना चाहता था ।

“नहीं, प्रतिदिन सुबह ६ बजे केवल एक 'होस्ट'** के अलावा मैं कुछ नहीं खाती । ”

“यह होस्ट कितना बड़ा होता है ? ”

"वह कागज़ के समान पतला और छोटे सिक्के के आकार का होता है।" फिर उन्होंने कहा: “मैं उसे केवल ईश्वर के प्रसाद के रूप में लेती हूँ; यदि वह ईश्वर को अर्पण किया हुआ न हो, तो मैं उसे निगल नहीं पाती।”

“आप केवल उसी पर बारह वर्षों तक तो जीवित नहीं रह सकतीं ?”

"मैं ईश्वर के प्रकाश से जीवित रहती हूँ।"

कितना सरल उनका उत्तर था, बिल्कुल आइनस्टाइन की तरह !

“मैं समझता हूँ आपको यह ज्ञान है कि आपके शरीर में प्राणशक्ति आकाश, सूर्य और हवा से आती है।”

तुरन्त उनके चेहरे पर मुस्कराहट खिल उठी। "बड़ी खुशी हुई यह देखकर कि आप जानते हैं मैं कैसे जीवित रहती हूँ।"

आपका पवित्र जीवन ईसा मसीह द्वारा कहे गये उस सत्य वचन की अभिव्यक्ति है कि 'मनुष्य केवल अन्न से ही जीवित नहीं रहेगा, बल्कि ईश्वर के मुख से निकलने वाले प्रत्येक शब्द से जीवित रहेगा ।***”

मेरे इस स्पष्टीकरण से वे पुनः खुश हो गयीं। “सचमुच ऐसा ही है । आज इस पृथ्वी पर मेरे जीवित रहने का एक कारण यह सिद्ध करना भी है कि मनुष्य केवल अन्न से नहीं, बल्कि ईश्वर के प्रकाश से जीवित रहता है।”

“क्या आप दूसरों को भी अन्न के बिना जीवित रहना सिखा सकती है।”

ऐसा प्रतीत हुआ कि इस प्रश्न से उन्हें कुछ आघात-सा लगा। “मैं ऐसा नहीं कर सकती । ईश्वर की ऐसी इच्छा नहीं है।”

जब मेरी दृष्टि टेरेसा नॉयमन के मज़बूत, सुन्दर हाथों पर पड़ी, तो उन्होंने प्रत्येक हाथ के पिछले हिस्से में बना हाल ही में भरा एक-एक वर्गाकार घाव दिखाया। प्रत्येक हथेली पर भी हाल ही में भरा अर्धचंद्राकार घाव दिखाया। इनमें से प्रत्येक घाव हाथ के आर-पार था । यह दृश्य देख कर मुझे लोहे की चौकोर लम्बी-लम्बी कीलों का स्मरण हो आया, जिनका सिरा अर्धचंद्राकार होता है। इन कीलों का पौर्वात्य देशों में अभी भी उपयोग होता है, पर पश्चिम में कहीं मैंने ऐसी कीलें नहीं देखीं।

तत्पश्चात् टेरेसा नॉयमन ने हर सप्ताह में आने वाले अपने उन अनुभवों के बारे में कुछ बताया। “एक असहाय दर्शक की भाँति मैं ईसा मसीह की सारी वेदनाओं को देखती रहती हूँ।” प्रत्येक सप्ताह में गुरुवार की मध्यरात्रि से लेकर शुक्रवार के दोपहर एक बजे तक के लिये उनके घावों के मुँह खुल जाते हैं और उनसे रक्त बहता रहता है। इस प्रक्रिया में उनके १२१ पौण्ड के वज़न से १० पौण्ड वज़न कम हो जाता है। अपने इस सहानुभूतिपूर्ण प्रेम में अत्यंत तीव्र यातना सहते हुए भी टेरेज़ा नॉयमन अपने प्रभु के इन साप्ताहिक दर्शनों की आतुरता से प्रतीक्षा करती रहती हैं ।

उसी क्षण मेरी समझ में आ गया कि नये नियम (New Testament) में वर्णित ईसा मसीह के जीवन और क्रॉस पर उनकी मृत्यु की ऐतिहासिक सत्यता के बारे में सभी ईसाइयों में विश्वास की पुनः प्रतिष्ठा करा देने और
गैलिली के उस महान् सन्त (ईसा मसीह) तथा उनके भक्तों के बीच अमर सम्बन्ध का रोमांचक प्रदर्शन करने के लिये ही ईश्वर ने टेरेसा नॉयमन के विलक्षण जीवन का सृजन किया है।

फिर प्रोफ़ेसर वुट्ज़ ने सन्त टेरेसा नॉयमन के विषय में अपने कुछ अनुभव बताये ।

उन्होंने कहाः “टेरेसा सहित हम कुछ लोग प्रायः कई दिनों तक जर्मनी में दृश्यावलोकन के लिये यात्रा करते रहते हैं। और मज़ा देखिये – टेरेसा नॉयमन कुछ भी नहीं खातीं, हम सब दिन में तीन बार भरपूर भोजन करते हैं। वे सदा गुलाब के फूल की तरह तरो-ताज़ा रहती हैं, थकान उन्हें छूती भी नहीं । हम बाकी लोगों को जब भूख लगती है, तो हम रास्ते किनारे होटलों को ढूँढने लगते हैं और टेरेसा नॉयमन दिल खोलकर हँसती रहती हैं।”

और इसके साथ प्रोफ़ेसर ने उनकी शारीरिक अवस्था के बारे में एक दिलचस्प बात बतायी । “टेरेसा नॉयमन कुछ भी नहीं खातीं, इसलिये उनका पेट सिकुड़ गया है । मल-मूत्र उनके शरीर में तैयार ही नहीं होता, परन्तु उनकी पसीने की ग्रंथियाँ काम करती हैं, इसलिये उनकी त्वचा हमेशा नरम और दृढ़ रहती है ।”

विदा लेते समय मैंने टेरेसा नॉयमन से उनके उस अनुभव के समय उपस्थित रहने की इच्छा व्यक्त की ।

उन्होंने शालीनतापूर्वक कहा: “हाँ, हाँ! अगले शुक्रवार को कृपया आप कोनरखूथ आइये । बिशप आपको अनुमति दे देंगे। मुझे बहुत खुशी है कि आप मुझसे मिलने यहाँ आइक्स्टाट तक आये ।”

टेरेसा नॉयमन ने हाथ मिलाकर कई बार हिलाया और हम लोगों को बाहर छोड़ने गेट तक आयीं। श्री राईट ने कार का रेडियो चालू कर दिया । टेरेसा नॉयमन उत्साह के साथ हँसते हुए उसे चारों ओर से देखने लगीं। वहाँ बच्चों की इतनी भीड़ जमा हो गयी कि टेरेसा नॉयमन फिर घर के अन्दर चली गयीं। हमने उन्हें एक खिड़की में खड़े देखा । वहाँ से वे हमारी ओर देखकर बच्चों की तरह हाथ हिला रही थीं ।

दूसरे दिन टेरेसा नॉयमन के दो भाइयों से भेंट हुई। दोनों ही अत्यन्त भद्र और मिलनसार हैं। उनके साथ बातचीत से पता चला कि टेरेसा नॉयमन रात में केवल एक-दो घंटे ही सोती हैं। शरीर में इतने सारे घाव होने के बावजूद वे सतत सक्रिय और उत्साह से भरपूर रहती हैं। उन्हें पक्षियों से अत्यंत प्रेम है, एक जलाशय की मछलियों की भी वे देखभाल करती हैं और प्रायः अपने बगीचे में काम करती रहती हैं। उनका पत्रव्यवहार भी काफी बड़े पैमाने पर चलता रहता है। कैथोलिक लोग उन्हें प्रार्थना और रोग निवारण की खातिर आशीर्वादों के लिये लिखते रहते हैं। अनेक साधक उनके आशीर्वाद से गम्भीर बीमारियों से ठीक हो गये हैं।

उनके तेईस वर्षीय भाई फर्डिनान्ड ने बताया कि उनमें प्रार्थना के माध्यम से दूसरों के रोग अपने शरीर में लेकर भोगने की शक्ति है। एक बार टेरेसा नॉयमन के चर्च के एक आदमी को गले का कोई रोग हो गया था। वह पादरी बनने की तैयारी कर रहा था। उस समय टेरेसा नॉयमन ने प्रार्थना की कि उस युवक के गले का रोग उनके अपने गले में आ जाय। बस, उसी समय से उन्होंने अन्न-पानी छोड़ दिया है।

शुक्रवार की दोपहर को हम लोग कार से बिशप के घर गये। बिशप महाशय ने मेरे लम्बे बालों को कुछ विस्मय से देखा। उन्होंने तुरन्त हमें आवश्यक अनुमति पत्र लिखकर दे दिया। इसके लिये कोई शुल्क नहीं था। चर्च ने यह जो नियम बना दिया था, वह केवल टेरेसा नॉयमन को साधारण यात्रियों की भीड़ से बचाने के लिये था, क्योंकि आरम्भ के वर्षों में दर्शक हज़ारों की संख्या में शुक्रवार को कोनरखूथ में जमा हो जाते थे।

हम कोनरखूथ में शुक्रवार को सुबह करीब साढ़े नौ बजे पहुँचे। मैंने देखा कि टेरेसा नॉयमन के घर की छत के कुछ हिस्से में शीशा लगा हुआ था ताकि उन्हें भरपूर प्रकाश उपलब्ध हो । यह देखकर हमें खुशी हुई की अबकी बार घर का दरवाज़ा बन्द नहीं था, बल्कि सहर्ष स्वागत करने के अंदाज़ में पूर्ण खुला था। हम लगभग बीस अन्य लोगों की कतार में खडे हो गये। उन सबके पास भी अनुमति पत्र थे । कई तो उस भावावस्था को देखने के लिये बहुत दूर-दूर से आये थे।

प्रोफ़ेसर के घर में मेरी पहली परीक्षा में टेरेसा नॉयमन उत्तीर्ण हो गयी थीं, क्योंकि उन्होंने अंतर्ज्ञान से जान लिया था कि मैं केवल कौतूहल की शान्ति के लिये नहीं, बल्कि आध्यात्मिक कारणों से उन्हें देखना चाहता था।

मेरी दूसरी परीक्षा इस बात से संबंधित थी कि सीढ़ियों से ऊपर उनके कमरे में जाने से पहले उनके मन में चल रहे विचार जानने के लिये और उनकी अंतर्दृष्टि को दिखने वाले दृश्य देख पाने के लिये मैंने एक यौगिक भावावस्था में प्रवेश कर लिया, जिससे उनके अन्तर्जगत् के साथ मेरा संबंध जुड़ जाय। फिर मैंने उनके कमरे में प्रवेश किया, जो दर्शकों से भरा हुआ था। टेरेसा नॉयमन एक पलंग पर सफेद परिधान में लेटी हुई थीं। श्री राइट मेरे ठीक पीछे ही थे। कमरे का विलक्षण और भयंकर दृश्य देखकर मैं दरवाज़े की चौखट के पास ही विस्मयचकित होकर खड़ा रह गया।

टेरेसा नॉयमन की निचली पलकों से रक्त की लगभग एक इंच चौड़ी धार लगातार बह रही थी। उनकी आंखें ऊपर की ओर उठकर ललाट के मध्य में स्थित आध्यात्मिक चक्षु पर लगी हुई थीं। उनके मस्तक पर लपेटा हुआ वस्त्र “काँटों के ताज” से हुए घावों से निकलने वाले रक्त से लथपथ हो गया था। उनके श्वेत परिधान पर हृदय के ऊपर लाल धब्बा बन गया था । यह रक्त उनके शरीर के बायें तरफ हुए एक घाव से निकल रहा था, जिस स्थान पर युगों पूर्व ईसा मसीह के शरीर में सैनिक ने भाला चुभोया था।

टेरेसा नॉयमन के दोनों हाथ मातृ-करुणा के आग्रही भाव में ऊपर उठे हुए थे; उनके चेहरे पर यातना की छाया और दिव्य आभा, दोनों दिखायी पड़ रही थीं। उनका शरीर पहले से काफ़ी दुबला दिखायी दे रहा था और वह आन्तरिक तथा बाह्य, कई प्रकार के सूक्ष्म परिवर्तनों से युक्त प्रतीत हो रहा था । वे धीरे-धीरे किसी विदेशी भाषा में अस्पष्ट-सा कुछ बोल रही थीं। उनकी अतींद्रिय दृष्टि को दिखने वाले लोगों से वे किंचित काँपते होठों से बोल रही थीं।

चूँकि मैंने पहले ही उनकी चेतना के साथ अपना अन्तर्संबंध जोड़ लिया था, अतः मुझे वह सब दिखायी देने लगा जो उन्हें दिख रहा था। वे ईसा मसीह का उपहास करती भीड़ के बीच से लकड़ी का क्रॉस उठाये जाते देख रही थीं। अचानक व्याकुल होकर टेरेसा नॉयमन ने अपना सिर ऊपर उठाया क्योंकि ईसा मसीह नीचे गिरकर क्रॉस के भारी वज़न के नीचे दब गये थे। इसी के साथ वह दृश्य लुप्त हो गया। प्रचण्ड करुणा और खेद के वेग से क्लान्त होकर टेरेसा नॉयमन तकिये पर निढाल हो गयीं ।

उसी समय मुझे अपने पीछे धड़ाम से कुछ गिरने की आवाज़ सुनायी दी। एक पल के लिये पलटकर देखा तो चित अवस्था में एक शरीर को उठाये दो आदमी बाहर ले जा रहे थे। परन्तु उस समय मैं अपनी अधिचेतन भावावस्था से बाहर आ ही रहा था, इसलिये धराशायी हुए उस व्यक्ति को पहचान नहीं सका। मैंने फिर से अपनी दृष्टि टेरेसा नॉयमन के चेहरे पर स्थिर की। रक्त-धाराओं में डूबा वह चेहरा मुर्दे के समान पीला पड़ गया था, परन्तु अब उस पर शान्ति छायी थी और पवित्रता उससे निःसृत हो रही थी। बाद में मैंने अपने पीछे की ओर दृष्टि दौड़ायी तो देखा कि श्री राइट अपने गाल पर हाथ दबाये खड़े थे और उनके गाल से रक्त निकल रहा था ।

मैंने चिंतित होकर पूछा: “डिक ! क्या तुम ही गिर पड़े थे ?” “हाँ, वह भयावह दृश्य देखकर मुझे चक्कर आ गया था।" मैंने सांत्वना देते हुए कहा: “खैर, फिर से आकर वही दृश्य देखने का साहस तो तुममें है।”

और भी दर्शनार्थी हमारे पीछे कतार में खड़े थे, अतः श्री राइट और मैं मन ही मन टेरेसा नॉयमन से विदा लेकर उनकी उपस्थिति से पवित्र हुए उस स्थान से बाहर आ गये ।

दूसरे दिन हम लोग दक्षिण की ओर मार्गक्रमण करने लगे। हमें इस बात की खुशी थी कि हमें ट्रेनों पर निर्भर नहीं रहना पड़ रहा था और हम देहात में जहाँ चाहे अपनी फोर्ड कार रोक सकते थे। जर्मनी, हॉलैंड, फ्रांस तथा स्विट्ज़रलैण्ड के आल्पस् पर्वतों में से यात्रा करते हुए हमने यात्रा के एक-एक पल का पूरा पूरा आनन्द लिया । इटली में हम लोग विनम्रता की साक्षात् मूर्ति असिसी के सेंट फ्रांसिस का दर्शन करने के लिए विशेष रूप से गये। हमारी यूरोप-यात्रा यूनान में आकर समाप्त हुई। यूनान में हम लोगों ने एथेनियन मन्दिरों के दर्शन किये और वह कारागार भी देखा जहाँ सुकरात ने विषपान किया था । जहाँ-वहाँ सफेद, लगभग अर्धपारदर्शी से प्रतीत होने वाले पत्थर में कलाकृति करते हुए यूनानियों ने जिस प्रकार अपनी अद्भुत कल्पनाओं को साकार रूप दिया है, उसे देखकर मन उनकी प्रशंसा किये बिना नहीं रह सकता ।

यूनान से हम लोग जहाज़ पर सवार हुए और भूमध्य सागर को पार कर फिलिस्तीन में उतर गये । उस पवित्र भूमि में कई दिनों तक रोज़ भ्रमण करके तीर्थयात्रा के महत्त्व का मुझे और भी अधिक एहसास हो गया। सूक्ष्मग्राही हृदय के लिये फिलिस्तीन में ईसा की महिमा सर्वत्र व्याप्त है। मैंने श्रद्धाभाव से ईसा मसीह के साथ बेथेलहैम, गतसमनी, कैल्वरी, पवित्र माऊण्ट ऑफ ओलिब्ज़ की पदयात्रा की तथा जॉर्डन नदी एवं गैलीली के समुद्र के तटों पर चला।

जहाँ ईसा का जन्म हुआ था वह नाँद, जोसफ की बढ़ई की दूकान, लाज़ारस की कब्र, मार्था और मेरी का घर, ईसा के अंतिम भोज का कमरा — इन स्थानों के भी हम लोगों ने दर्शन किये । वह प्राचीन काल सजीव हो उठा; युग-युगान्तर के लिए ईसा मसीह द्वारा वहाँ अभिनीत किये गये दिव्य नाटक के दृश्य पर दृश्य मेरी दृष्टि के सामने प्रकट होने लगे ।

अब मिश्र, उसका आधुनिक शहर कैरो और प्राचीन पिरामिडों को हमने देखा । फिर जहाज़ से लाल सागर को पार करते हुए विशाल अरब सागर में और सीधे भारत !


* [द्वितीय विश्व युद्ध के समय से ईसा की वेदनाओं का अनुभव उन्हें प्रत्येक शुक्रवार को नहीं होता, बल्कि केवल कुछ त्यौहारों के समय ही होता है। उनके जीवन पर लिखी गयी पुस्तकें हैं: 'टेरेसा नॉयमन: ए स्टिग्मैटिस्ट ऑफ़ अवर डे' तथा 'फर्दर क्रॉनिकल्स ऑफ़ टेरेसा नॉयमन ।' ये दोनों पुस्तकें फ्रेडरिक रिट्टर ह्वॉन लामा द्वारा लिखी गयी हैं। ए. पी. शिमबर्ग द्वारा लिखित 'द स्टोरी ऑफ़ टेरेसा नॉयमन' १९४७ में प्रकाशित हुई। ये सभी पुस्तकें ब्रूस शिंग कंपनी, मिलवॉकी, विसकॉन्सिन द्वारा प्रकाशित की गयी हैं। जोहान्स स्टायनर द्वारा लिखी गयी 'टेरेसा नॉयमन' एल्बा हाऊस, स्टेटन आयलैंड, न्यू यॉर्क से प्रकाशित हुई है।]

** [आटे का अभिषिक्त वेफ़र।]

*** [ मनी ४:४ (बाइबिल)। मनुष्य के शरीर की बैटरी केवल जड़ अन्न से ही नहीं, बल्कि सारे ब्रह्माण्ड में व्याप्त स्पन्दनशील महाप्राण (ओम्, नादब्रह्म या शब्द) से जीवित रहती है। यह अदृश्य शक्ति मेरुशीर्ष (Medulla Oblongata) के द्वार से शरीर में प्रवेश करती है। शरीर में यह छठा केन्द्र गर्दन के ऊपर पिछले हिस्से में मेरुदण्ड के पाँच चक्रों के ऊपर स्थित होता है (चक्र प्राणशक्ति का प्रसारण करने वाले केन्द्र होते हैं)।

शरीर के लिये आवश्यक महाप्राणशक्ति (ओम्) का मुख्य प्रवेश द्वार मेरुशीर्ष मनुष्य की इच्छा शक्ति के केन्द्र कूटस्थ चैतन्य (दोनों भौहों के बीच स्थित) के साथ ध्रुवता से सीधे जुड़ा होता है। मेरुशीर्ष से प्रवेश करने वाली महाप्राणशक्ति तब मस्तिष्क में स्थित सातवें चक्र सहस्त्रार में संग्रहित हो जाती है। सहस्रार मनुष्य में अनन्त संभावनाओं का केन्द्र है। बाइबिल में ओम् को पवित्रात्मा (Holy Ghost) या सृष्टि की कारक शक्ति कहा गया है। “क्या ? तुम नहीं जानते कि तुम्हारी देह पवित्रात्मा का मन्दिर है, जो तुम में बसा हुआ है और तुम्हें परमेश्वर की ओर से मिला है, और तुम स्वयं अपने नहीं हो ?". १ कुरिन्थियों ६ : १९ (बाइबिल) । ]