मेरी मासूम बेटी Urvi Vaghela द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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मेरी मासूम बेटी

 

 

मुझे काफी लोग जानते है क्योंकि मैं प्रख्यात लेखक हूं l में समाज की जंजीरों के मुक्त स्वतंत्र विचारो वाला लेखक होने के बावजूद यह बात किसी को भी बताना नहीं चाहता था जो बात मैंने अपनी और मेरी बेटी धारा के बीच में ही रखना चाहा l वह आज लिखते हुए मुझे कोई शर्म नहीं और ना ही हिचकीचाहट, है तो सिर्फ सच बताने की साहस l

 

वह बारिश का मौसम था l रात को कमरे के बाहर बारिश हो रही थी पर भीतर आँसू की बरसात l बाहर हर कोना गिला था और भीतर मेरा हृदय l

 

 जो फिल्मों में देखने, किताबों में पढ़ने में इतनी तकलीफ नहीं देती थी जो आज हकीकत में हुई फिल्मों में देखना किताबों में पढ़ना आसान है परंतु उसकी महसूस करना सीखना है मुश्किल होता है इस बात मैंने आज जाने l मैंने कभी कल्पना भी नहीं की थी कि जो में जब धारा को लाइफ हॉस्पिटल में चुपचाप इस तरह अकेले बेड पर लेटे हुए देखूंगा और यह सपना भी नहीं हकीकत होगी l

मैं उसे दिन अपने करीबी दोस्त राकेश शर्मा की तबीयत पूछने सीधा मेरे जिगरी दोस्त नवीन की हॉस्पिटल लाइफ में पहुंच गया l जब भी मुझे या मेरे परिवार को कोई तकलीफ होती थी तो नवीन खुद आ जाता था हमें जाने की जरूरत नहीं थी पर आज तुम्हें अचानक से बिना बताए पहुंच गया था क्योंकि मैं बीमार तो नहीं था l 

 

कोई और भी ऐसे ही बिना बताए पहुंच गया था और वह धारा थी मेरी एक मेरी 22 साल की बेटी जो फूलों की कली थी और मैं उसका मालिक मैं अगर जिंदगी में सबसे ज्यादा प्यार किया हो तो बता रही थी इतना प्यार तो मैं अपने आप से भी कभी नहीं किया l

तारा मेरी सबसे अच्छी बेटी उनका भाई यानी मेरा बेटा ध्रुव तुम मुझे अक्सर कहता है कि पापा आपकी तो सिर्फ एक ही संतान है और वह धारा l

 

उसको अचानक ही है अबॉर्शन करवाने वाले विभाग में देखा तूने चौक गया l मेरे पीलो तले जमीन खिसक गई l ऐसा तो सपने में भी नहीं सोच सकता ऐसा हकीकत में बन गया l काश! यह सपना होता मैंने सोचा पर, नहीं था दुर्भाग्य से l मैं उसकी तरफ ही देखता रहा रह गया मानो कि वह चेहरा बदल जाए पर धारा मुझे देखकर अपना चेहरा ही फिर फेर लिया मुझे लगा कोई होगा कोई और होगा वह यहां कैसे मैंने अपने मन को मना लिया क्यों तो कोई शक नहीं था कि वह धारा ही है फिर भी भगवान ने तसल्ली करवा ही दी जब नवीन मुझे देखकर मिलने की जगह भाग गया l

 

मैं भी थोड़ा-थोड़ा घर चला आया l अब भी कहीं ना कहीं मन में ऐसा था कि यदि धारा घर पर मिल जाए तो यह बात झूठ निकले l इसी आशा से घर पर आया तो निराश होकर अपने कमरे में अपने आप को बंद कर लिया l

 

लग रहा था मानो जिंदगी थम गई मेरी धारा ऐसा कैसे कर सकती है मैं तो सोच भी नहीं सकता था धरने मेरे बारे में जरा सा भी नहीं सोचा क्या उनके प्यारे पापा उनके लिए कुछ नहीं उन्होंने उसने समाज के बारे में भी नहीं सोचा मैं तो इसी विचारों में खोया हुआ था मैंने कहा था कहा था धारा से जब वह अपने बॉयफ्रेंड अंश के साथ ज्यादा समय बिताती थी बेटा मर्यादा में रहना, ऐसा कोई भी काम मत करना जो तेरे पापा को बदनाम करें पर उसने…..

 

मैं सोचता रहा मैं सोचता रहा की कौन जिम्मेदार था इसके पीछे यह मॉडर्न जमाना नहीं जेनरेशन या मैं दी हुई बच्चों को स्पेस बच्चों को स्पेस धारा को दी हुई मैं स्पेस ने मुझे खाली कर दिया भीतर से l मैं मानता था कि आजकल अगर धारा किसी लड़की के साथ घूमती फिरती है तो क्या वह तो आज का कलर है पर पापा की बात को कोन माने? मैं यही सोचता रहा उसे पूरी रात l ना ही में सोया, ना ही में जिया l लग रहा था मानो कि यह सपना है और जल्दी-जल्दी खत्म हो जाए l पर काश यह सपना होता l

 

धारा के यह कारनामे के बारे में तो मुझे अभी पता चला पर उसने तो पहले ही ब्रेकअप कर लिया था l सारे जहां को पता है कि दोनों का अफेर था पर शुक्र है कि इस बात का किसी को पता नहीं चला वरना धारा की वजह से मेरी लेखक की जो इमेज है उसको बहुत फर्क पड़ता क्योंकि सब कहते के खूद तो अच्छा लिखते हो पर बेटी को नहीं सिखाया l उसने सोचा नहीं कि मेरा क्या हाल होगा l उससे कोन शादी करेगा? उसने परिवार की रिपीटेशन के बारे में भी…..

 

** ** ** ** 

 

पता ही नहीं लगा कि कब सुबह हो गई l सूर्यनारायण भगवान का प्रकाश कमरे में चारों ओर फैल गया l सारा कमरा जगमगा उठा किंतु मन में हृदय में केवल अंधकार ही था अज्ञान का, परंपरा का और नफरत का l कल रात मैंने कपड़े भी नहीं बदले थे l

 

जिसको मैं सबसे ज्यादा प्यार करता था, उनको आज नफरत करने लगा l उससे घृणा होने लगी सिर्फ उसकी एक गलती की वजह से l तब नहीं सोचा था आगे हकीकत क्या होगी l

 

कमरे में दस्तक हुई l मेरी पत्नी अंजलि थी l उसको कुछ नहीं पता था l अंजलि के साथ धारा भी थी l हालांकि तब मुझे नहीं पता था l धारा ने वही अपने प्यार भरे शब्दों से मुझे पुकारा जिस शब्दों, जिस आवाज पर में अपना जीवन, अपनी सारी संपदा वार जाता था, पर आज वह आवाज जहरीले सांप जैसी लगी l मैंने उनके इस प्यार भरे शब्दों के बदले में जहर उगल दिया जो कभी भी मेरे मुंह से नहीं निकाल पाए l कहा 

“धारा मुझसे बात मत करो”

यह वाक्य कितना आसान है बोलने में, समझने में, पर सुनने में _धारा को भीतर से बिल्कुल तोड़ दिया

 

धारा चली गई l उसका क्या हाल हुआ होगा l मैं अभी अंदाजा लगा सकता हूं पर तब मैं तुम्हें लगाना चाहता था ना मैं लगा सकता था l

 

मैं थोड़ी देर बाद अपने कमरे से बाहर निकाला l ऐसे ही मेरी नजर धारा के कमरे की ओर अपनी आप ही चली गई l कमरा अंदर से बंद था l उनकी हालत भी शायद मेरी हालत जैसी होगी l

 

  अंजलि ने ब्रेकफास्ट के वक्त बताया था की धारा ने कहा जब पापा खिलाएंगे तभी खाऊंगी l क्या हुआ वह तो बताने से रही l मुझे शूकून मिला कि यह बात हमारे बीच ही रहेगी अच्छा है l मेने अंजलि से कह दिया कि यह उसका नाटक है l आज तक उसकी सारी बातें मानी इसीलिए सर पर चढ़ गई है l हमारे बीच की बात है तुम नहीं बोल तो अच्छा है l

 

 मैं घर से निकल गया पता ही नहीं था कहां जाऊंगा l इस तरह से धारा से दूर कभी गया नहीं था l घर से चला तो गया पर अब तक मन तो उस अस्पताल के दृश्य पर ही टिका हुआ था l सोच रहा था कि पुराना जमाना अच्छा था, लड़कियों को स्वतंत्रता देने पर ऐसा ही होता है तो हमने टोका नहीं इसलिए दोष सिर्फ धारा का ही नहीं था l l पर उसने मुझे बताया भी नहीं पर अगर बताया होता तब भी क्या? मेरे लेखक हृदय ने मुझसे सवाल किया पर मैं जवाब नहीं दे सका l

 

मैं घर वापस आ गया जैसे गया था वैसे ही l अंजलि ने बताया की धारा ने कल से कुछ नहीं खाया और यह बात ज्यादा ना बढ़े और सबको पता ना चल जाए इसलिए धारा के पास खाने की थाली लेकर गया और साथ में एक चिट्ठी भी रखी थी जिसमें लिखा था

   “उम्मीद करता हूं यह बात घर में किसी को ना पता चल नहीं चाहता हूं कि मेरी तरह सब दुखी हो तुम्हारी इस करतूत की वजह से l”

 

शक तो था ही की धारा नहीं खायेगी क्योंकि वह मेरी बेटी है मेरी तरह जिद्दी l पर यकीन तो तब हुआ जब अगली सुबह वह मुझे बेजान सी मिली l एक पल के लिए तो में डर गया की कही उसने अपनी जान तो…. पर शुक्र था क्योंकि वह मेरी बेटी थी l ऐसा तो नहीं कर सकती

 

बाद में मैंने मेरे दोस्त नवीन को कॉल किया l वह जानता था कि में और धारा किस हालत में होंगे l उसने कहा की धारा का अबॉर्शन करवाना मुश्किल था पर वह मेरी बेटी थी तो मुश्किल से कर दिया lवह कमजोर थी और दवाई भी नहीं ली l मैंने उसे तुरंत दवाई देकर पानी पिलाया l वह जागी तो लगा कि उसने मेरे हाथों से अमृत पिया हो बाद में मुझसे माफी मांगने लगी l मैंने कभी उसको रुलाया नहीं खास कर तब जब वह बड़ी हो गई पर आज उसने मेरे पांव पड़कर रो रो कर मुझसे माफी मांगी पर मैं पत्थर दिल बन गया था l अपना पैर पटक कर चला गया l

 

धारा की हालत मुझसे भी बुरी थी पर उसने घर में किसी को भी पता नहीं चलने दिया l शायद यह स्त्री शक्ति होगी, जिसमे चाहे कितना भी भी दर्द हो तो सहन करने की क्षमता हो l अंश के साथ ब्रेकअप के बाद भी वह बहुत परेशान हुई पर मुझे उसने कभी भी ऐसा नहीं लगने दिया कि वह दुखी हैं l 

 

एक घंटा भी बात किए बिना ना रहने वाले हम बाप बेटी पूरा एक हफ्ता बिना बात के निकाल दिया l

 

** ** ** **

 

एक दिन क्या हुआ हम सब कॉमेडी मूवी देखते थे l हमारा रविवार का प्रोग्राम था जब सबको साथ बैठकर मूवी देखनी होती थी l मानो यह रिवाज हो क्योंकि सबको साथ बैठना भी जरूरी है क्योंकि आज कल नौकरी और काम के गतिशील युग में परिवार के साथ बैठने का वक्त कहा है ? इसलिए धारा और में भी साथ में बैठे थे l अचानक से धारा आई और मेरी गोद में अपना सिर रखकर सो गई l मैं चौंक उठा l मन हुआ की धारा के सर को उठाकर, मैं वहां से चला जाऊं पर अगर ऐसा करता तो अंजलि सब समझ जाती थी की बात सच में गंभीर है इसलिए मैंने ऐसा नहीं किया हालांकि मूवी कॉमेडी दृश्य से भरी हुई थी किंतु धारा के आंसू ने मेरी गोद को गिला कर दिया l मानो उसके आंसू मेरे नफरत को मिटा देना चाहते हो l\ मेरी गोद में मेरी बेटी इतने आंसू बहाए और मैं पुतला बना रहा हूं ऐसा कैसे हो सकता था? मैंने अपना हाथ उनके सिर पर रखा l धारा को हाथ ऐसा लगा जैसे भक्त को भगवान का हाथ लगता l शुकून भरा l

 

उस रात एक हफ्ते के बाद हम दोनों के बीच में बात हुई l धारा मेरे कमरे में आई और कहने लगी कि पापा मुझे जो सजा देनी है वह दो पर आप मुझसे बात करना बंद मत करो l आपके बिना मेरा जीवन जीवन ही नहीं l मैंने भी कहा कि यह बात तुमने तब नहीं सोची जब तुमने यह पराक्रम किया l क्या सच में इतनी बड़ी गलती थी फिर से उस लेखक हृदय ने सवाल पूछा l

 

धारा ने उसे वक्त कोई सफाई नहीं दी बस इतना ही कहती रही कि मेरी गलती है और मुझे माफ करो क्योंकि वह चाहती थी तो सिर्फ मेरी खुशी l मुझे दुखी नहीं करना चाहती थी l

 

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पार्टी में जाना जरूरी भी था और हितावह भी l मेरे दोस्त के बेटे की बर्थडे पार्टी थी l यूं तो मैं बच्चों की पार्टी में नहीं जाता क्योंकि वहां ज्यादातर बच्चे ही होते हैं पर नवीन ने मुझे फोर्स किया कि अगर मैं बाहर निकलूंगा तो मन बहल जायेगा l

 

  अचानक से मेने धारा का नाम सुना पहले तो लगा कि मेरा भ्रम था बाद में जब मैं पूरी बात सुनी तो वह बात मुझे यकीन दे गई इस बात का कि मेरी बेटी मासूम है l

 

“तुम्हारा तो ब्रेकअप हो गया ना ? क्यों किया धारा ने? ”

 

“छोड़ना अच्छा ही हुआ l उसके नखरे उठाने से नहीं बच गया ”

 

“पर बात तो क्या हुआ सर बता तो क्या हुआ?”

 

“उस दिन मेरे बर्थडे पर उसने वादा किया था जो मैं मागूंगा वह देगी इसलिए मैं उसे होटल ले गया l मेने उसे किस करने के लिए कहा l उसने मर्जी से किया भी l मैं जब करने लगा तो नखरे दिखाने लगी पापा को बीच में लाई l इतने महीने मेरे साथ घूमने के बाद सती सावित्री बन गई l”

 

“फिर क्या हुआ ? ”

“फिर में मर्द था क्या जानता नहीं की लड़की की औकात कितनी है मैंने तो कर लिया जो करना था”

 

“तो बाद में क्या किया उसने?”

 

इसलिए मेरी बेटी ने ब्रेकअप कर लिया मैं बीच में बोल उठा l

 

अंश हक्का बक्का रह गया l मुझसे माफी मांगने लगा पर तब मैंने कहा कि तुम्हारी जबरदस्ती की वजह से धारा प्रेग्नेंट हो गई और अबॉर्शन करवाना पड़ा और तो और मेने भी उसको दुखी किया गलती तो तुम्हारी थी पर सजा बेचारी मासूम बेटी को मिली l उस दिन पुलिस नहीं बुलाई पर ऐसी सजा देने की ठानी की पुलिस भी ना दे सके l मैं उनसे कहा कि तुम्हारी सजा ज्यादा तब होगी जब मैं तुम्हारी हैवानियत और मेरी बेटी की मासूमियत को कागज पर शब्दों की चाबुक से लिखूंगा तब तुम जेल में नहीं पर समाज में रहकर बदनाम होंगे l देखना कलम की ताकत l

 

तो यह थी वह बात में बताना चाहता था l यह बात , यह सजा सिर्फ धारा और अंश की नहीं किंतु मेरी भी है क्योंकि मेने भी गुनाह किया है जानना चाहोगे ?

 

जब मेरी पहली संतान धारा पैदा हुई तो मैंने उसे प्यार से पाला l ध्रुव का जन्म होते ही मैंने लड़के और लड़की में फर्क नहीं करना चाहता था पर आज समझ आया कि यह मात्र इच्छा बनकर रह गई थी l

बचपन से लेकर आज तक धारा को सलाह सुचन देता रहा l भले ही उसके भले के लिए हो किंतु बेटा ऐसा मत करना, ऐसा मत पहनना, रात को मत जाना, देर से ना आना आदि बातें में कहता रहा l उनको कपड़े पहनने का, किस तरह बात करने का तरीका, कब आना, कब जाना सबका ज्ञान देता था l जब उसके मोबाइल में कोई नोटिफिकेशन बजती थी तो लगता था कि कहीं कोई लड़का तो नहीं ? फोन चेक कर लूं ?

 

फिर मैंने यह सारी बात ध्रुव को नहीं बताई क्या मुझे उसे पर विश्वास था? या सिर्फ इसलिए कि वह लड़का था l स्कूल में मेने नहीं कहा कि जब टीनएजर था की लड़की की तरफ बुरी नजर से ना देखो l बहन की तरह देखो , लड़की के छोटे कपड़े पर नज़र मत डालो lउसका मोबाइल देखने का तो कभी मन नहीं किया l उसको कभी नहीं कहा कि रात को कहा था किसके साथ था l

 

धारा के बारे में पता चला कि अंश उसका बॉयफ्रेंड है तब मुझे बुरा लगा और मुझे अभी तक मालूम नहीं है कि अंश किस-किस के साथ घूमता है क्योंकि वह लड़का था ना l

 

मैं सोचता हूं की धारा को मैंने कहा था की मर्यादा में रहना अपने परिवार की इज्जत के बारे में सूचना पर ध्रुव को कभी नहीं कहा कि तुम भी किसी की के साथ ऐसा मत करना l हमारे परिवार की इज्जत तुम्हारे हाथ में है l अगर अंश के पिता ने भी उसे ऐसा कहा होता या फिर आज के सारे मां-बाप बेटे को ऐसी सीख दी तो आज मेरी मासूम धारा तो शारीरिक और मानसिक पीडा का भोग बनी वह कभी न बनती l क्या सिर्फ लड़कियां ही घर की इज्जत है लड़के नहीं?

 

यही सोच यही सोच रेप करने के बाद भी लड़कियों को चुप करना सिखा देती है और लड़कों को खुले आम जीने का अधिकार देती है

मैं अपने धारा की ओर का वर्तन के लिए कभी अपने आप को माफ नहींकर पाऊंगा l 

एक समाज से स्वतंत्र विचारों वाला में लेखक न जाने में कैसे

इस समाज का हिस्सा बन गया और दर्द दे बेटा अपनी मासूम बेटी को l