यात्रा डायरी -नैमिष तीर्थ Prafulla Kumar Tripathi द्वारा यात्रा विशेष में हिंदी पीडीएफ

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यात्रा डायरी -नैमिष तीर्थ


अक्सर ज़िंदगी में ऐसा भी होता है कि आप दुनिया भर में घूमते रहते हो लेकिन अपने आसपास की मूल्यवान और गौरवशाली धरोहर से अनभिज्ञ होकर वहां नहीं जा पाते हो | ऐसा जानबूझ कर नहीं होता लेकिन होता अवश्य है |
इसकी एक ख़ास वज़ह यह है कि आज हमलोग पब्लिसिटी और सोशल मीडिया की सूचनाओं से घूमने के स्थल का चयन करते हैं और पब्लिसिटी और सोशल मीडिया की पोस्ट व्यावसायिक हितों को ध्यान में रखकर होती हैं |हाँ,एक बात और यह कि सरकार भी ऐसे स्थानों की पब्लिसिटी के प्रति उदासीन रहती है और ऐसे स्थलों को टूरिज्म या आर्काइवल पहुँच से दूर रखती है |
अब आप उ. प्र. के सीतापुर ज़िले में स्थित ऐतिहासिक स्थान नैमिषारण्य को ही उदाहरण स्वरूप ले लें | नैमिषारण्य, जिसे हिन्दुओं के एक प्रसिद्ध तीर्थ की संज्ञा दी गई है , लखनऊ से मात्र 80कि.मी.की दूरी पर सीतापुर जिले में स्थित है | रेल,बस,टैक्सी या दो पहिया वाहन से यहाँ पहुंचा जा सकता है | गोमती नदी इसके किनारे स्थित है और पडोस के जिले हरदोई की सीमा रेखा है | मार्कन्डेय पुराण में इस तीर्थ का 88000 (अठासी हज़ार) ऋषियों की तप:स्थली के रूप में जिक्र आना ही इसकी ऐतिहासिकता का प्रमाण तो है ही यहाँ एक बार जाकर इसके धार्मिक,पुरातात्विक,प्राकृतिक आकर्षण से भी आप मंत्रमुग्ध हुए बिना नहीं रह सकेंगे |मेरे साथ तो ऐसा ही हुआ है |

किन- किन से जुड़ा हुआ है नैमिषारण्य ?

नैमिषारण्य का मुख्य सन्दर्भ बहुत ही प्राचीन है | कहा जाता है कि शौनक ऋषि ज्ञान की पिपासा शांत करने के लिए ब्रम्हा जी के पास पहुंचे थे | ब्रम्हा जी ने उन्हें एक चक्र दिया और कहा कि इसे पृथ्वी पर चलाते हुए चले जाओ...जहाँ चक्र की ‘नेमि’ अर्थात बाहरी परिधि गिरे उस जगह को ही पवित्र स्थान समझ कर वहां आश्रम स्थापित कर लोगों को ज्ञानार्जन कराओ |शौनक के साथ कई अन्य ॠषि उस चक्र के साथ चल दिए | अंतत: उस चक्र की नेमि इसी स्थान पर गिर गई और भूमि में प्रवेश कर गई | तभी से यह स्थल चक्रतीर्थ तथा नैमिषारण्य नाम से विख्यात हो गया |
यह भी जानना आवश्यक है कि नैमिषारण्य का नाम निमिषा का अपभ्रंश है जिसका अर्थ है नेत्र की आभा |पौराणिक मान्यताओं की मानें तो यह स्थान 88000 ऋषियों का तपस्थल बन गया था |यहीं सूत जी ने अठारह पुराणों की कथा और उसका मर्म समझाया था |
महर्षि बाल्मीकि कृत रामायण में कहा गया है कि श्री राम ने यहीं गोमती के किनारे अश्वमेघ यज्ञ सम्पन्न कराया |द्वापर पर में श्री कृष्ण के भाई बलराम भी यहाँ आकर यज्ञ किये | महाभारत के अनुसार युधिष्ठिर और अर्जुन इस तीर्थ स्थल पर आये थे |

”आईने अकबरी” में भी इस जगह का ज़िक्र है |महाकवि नरोत्तम दास की जन्मस्थली बाड़ी भी इसी स्थल के समीप है |इसके अलावे और भी दर्शनीय स्थल इसके आसपास हैँ।आप एक बार वहाँ पहुंच जाइएगा तो लोकल लोगो से आपको जानकारी मिल जाएगी। चक्र तीर्थ में पंडों का हस्तक्षेप अवश्य मिला जिसकी कोई ख़ास आवश्यकता सामान्य पर्यटकों को नहीँ हुआ करती है।यदि आप पूजा पाठ और पितरो के लिए दान पुण्य करते हैँ तब अवश्य उनकी मदद लेनी होंगी। इसलिए पहले ही तय कर लेना ठीक रहेगा।प्राय : ग्रामीण लोग नैमिषारण्य आकर पूर्वजों के निमित्त श्राद्ध कर्म व पिडदान किया करते हैँ ।बताते हैँ कि यहां अथवा गया करने से पितरों को मोक्ष मिलता है