प्रेत लीला prabhat samir द्वारा डरावनी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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प्रेत लीला

डॉ प्रभात समीर

इतवार का दिन था। लगभग शाम के 6 बजे का समय था। मेहरा और मिसिज़़ मेहरा अपने घर के लॉन में बैठे शाम की चाय की चुस्कियाँ ले रहे थे कि तभी उन्हें अपने टामी के अजीब तरह से रोने की आवाज़ सुनाई दी। वह अक़्सर इस तरह रोया नहीं करता। किसी विपत्ति की आशंका से दोनों उसकी तरफ़ भागे।

कुछ देर पहले ही तो उनका टामी बॉल से खेल रहा था, बल्कि मिसिज़ मेहरा खुद भी उसके साथ खेलने में लगी हुई थीं। इधर उन्होंने चाय पकड़ी, उधर उसने बॉल छोड़कर पूरे लॉन का चक्कर लगा डाला। सब कुछ तो उनकी नजरों के सामने हो रहा था। पल भर में उसके साथ ऐसा क्या हो गया कि वह ऐसे रोने लगा। देखा तो नीटू कुत्ते के ऊपर गिरा हुआ था। कमाल था कि टॉमी रोता चला जा रहा था लेकिन नीटू को झटक कर उसने एक तरफ नहीं किया बल्कि उसका बोझ उठाए हुए वह ‘कूँ-कँू’ करता जा रहा था। मिसिज़़ मेहरा को नीटू के इस तरह गिरने पर बहुत गुस्सा और अपने टॉमी की वफ़ादारी पर प्यार आने लगा। किसी गै़र के बच्चे को भी इतनी हिफाज़त से अपने ऊपर सँभाले रखना….. देखकर मिसिज़़ मेहरा भावुक हो गईं।

नीटू यानी उनकी किराएदार का बेटा ऊपर के फ्लोर से पता नहीं कैसे नीचे लॉन में आ गिरा था। जिस टॉमी को मिसिज़़ मेहरा अपना ‘प्रिन्स‘ मानती थीं, वह आज इस तरह किसी ऐसे बच्चे का वज़न लेकर दबा पड़ा था जिसकी उनके घर में एक साधारण किराएदार से ज़्यादा कोई औक़ात ही नहीं थी।

नीटू की माँ कुछ समय पहले ही अपने बेटे के साथ मेहरा के घर में किराए पर आकर रहने लगी थी। नौकरीपेशा थी इसलिए घर से बाहर रहना ही पड़ता था। नीटू को भी अकेले ही खेलते रहने की आदत सी बन गई थी। छत की रेलिंग से झाँकता हुआ ज़रूर ही वह टॉमी को देख रहा होगा। हो सकता है कि रेलिंग पर चढ़ गया हो और नीचे आ गिरा हो। नीटू को मेहरा के घर में नीचे आकर खेलने की इजाज़त तो थी ही नहीं, इसलिए हादसा तो ऊपर से गिर कर ही हुआ था।

मिसिज़़ मेहरा को देखकर टॉमी और ज़्यादा रोने लगा। अपने टॉमी को इस तरह रोता देखकर मिसिज़ मेहरा की आँखों में आँसू आ गए। टॉमी भी अपनी माँ जैसी मालकिन की खुशी और दुख में फर्क करना जानता है। उनके आँसू देखकर उसने अपने शरीर को टेड़ा किया, नीटू का थोड़ा बहुत वज़न जो उस पर पड़ा था, उसे जमीन पर आहिस्ता से उतारा और मिसिज़़ मेहरा की तरफ भागा। मिसिज़़ मेहरा ने उसे सहलाते हुए मेहरा से कहा- ‘रोता जा रहा है, कहीं चोट तो नहीं आ गई? अब तक उन्होंने टॉमी को गोद में उठा लिया था और ‘माई सन,माई प्रिंस,’ कहती हुई वह उसे चूमती, पुचकारती जा रही थीं।

नीटू अगर अपनी माँ का इकलौता बेटा था तो टॉमी भी मेहरा का इकलौता कुत्ता था। देखा जाए तो वह नीटू से कहीं ज्यादा लाड़ला और दुलारा था। नीटू को उसकी माँ लावारिस समझ कर अकेला छोड़कर कभी भी चल देती थी जबकि मेहरा अपने टॉमी को एक पल को भी नज़रों से ओझल देखते थे तो बेचैन हो जाते थे।

उन्हें याद है कि कैसे एक बार उनका टॉमी घर से बाहर निकलकर भटक गया था। तब वह छोटा था, नादान था। तब किस तरह मेहरा उसकी तलाश में खुद भटकते फिरे थे। कितना पैसा उन्होंने उसे ढूँढ कर ले आने पर खर्च कर दिया था और कितनी कठिनाइयों से वे उसे वापिस ले पाए थे। दूसरी ओर नीटू की माँ थी जो अपने नीटू को निराश्रय छोड़कर कभी भी चल देती थी। मिसिज़़ मेहरा की समझ से यह बात एकदम बाहर थी कि एक औरत कैसे अपने बच्चे को इस तरह अकेला छोड़कर पैसे के पीछे भागी फिर रही थी।

टामी गोद से उतरकर पूँछ हिला-हिलाकर मिसिज़़ मेहरा से चिपटता जा रहा था। मिसिज़ मेहरा धीमी आवाज़ में मेहरा को कुछ-कुछ समझाती जा रही थीं। आस-पास के लोगों ने लॉन के आगे खड़ा होकर किसी अनहोनी को सूँघना शुरू कर दिया। उन्हें लगा कि कुछ गंभीर घटित हो गया है। यह तो मेहरा के लॉन में जाकर पता चला कि कैसे नीटू ने छत से गिरकर बेचारे टॉमी को डरा दिया था। टॉमी को चोट लगने की भी आशंका थी। मिसिज़़ मेहरा अपने टॉमी के शरीर की सलामती की जाँच में लगी थीं।

नीटू अभी भी ज़मीन पर बेहोश पड़ा था। मिसिज़़ मेहरा उसे अकेले हाथ लगाने से भी डर रहीं थीं।वह नीटू की माँ के आने के इन्तज़ार में थीं और तब तक नहीं चाहती थीं कि नीटू के गिरने और बेहोश होने का पता किसीको भी चले।वह लगातार औरों का ध्यान अपने टॉमी की ओर खींचती चली जा रही थीं। मेहरा  उलझन में थे। लोगों के आ जाने से उन्हें थोड़ा सहारा मिला और उन्होंने नीटू को उठवाकर एक तख़्त पर डलवाया।

नीटू की हालत देखकर, कुछ लोगों ने डॉक्टर को बुलाने का सुझाव दिया। कुछ उसे सीधे अस्पताल पहँुचाने के पक्ष में थे। मिसिज़़ मेहरा टॉमी के लिए दूध ले आने को अंदर गई हुई थीं। मेहरा पत्नी की सलाह के बिना कभी कोई निर्णय नहीं लेते ,लेकिन आज उन्होंने साहस करके कह ही डाला- ‘हाँ, डॉक्टर के यहां ले जाना तो इस समय बहुत ज़रूरी है।’ टॉमी के लिए दूध और नीटू के लिए पानी लेकर अपनी रसोई से निकलती मिसिज़ मेहरा ने मेहरा को आँखें दिखाईं और कहा- ‘कौन कहता है कि डॉक्टर के ले जाना ज़रूरी नहीं है लेकिन नीटू की माँ को तो आने दो। उससे किसने कहा था बेटे को ऐसे छोड़कर नौकरी करती फिरे ?’

लोगों ने नीटू के चेहरे पर पानी के छींटे देना शुरू कर दिए। कुछ एक उसके हाथ-पैरों की मालिश करके उसे गर्मी पहुंचाने की कोशिश कर रहे थे।  नीटू को डॉक्टर के यहाँ ले जाने का सुझाव देने वाले कुछ एक लोग इस व्यर्थ के ड्रामा से क्षुब्ध होकर वहाँ से खिसक लिए थे।

नीटू की मां की प्रतीक्षा करती हुई  कुछ एक महिलाएँ मिसिज़ मेहरा के और करीब खिसक आईं। एक ने कहा-

‘इस औरत की ऐसी कौन सी ड्यूटी है जो इतवार के दिन भी घर से बाहर रहती है ?’

दूसरी ने अपनी कलाई घड़ी देखी और मुस्कुराते हुए बोली- ‘और वह भी शाम को छह-सात बजे ?’-

’ऑफिस तो पांच बजे तक बन्द हो ही लेते हैं?’ महिलाएँ नीटू की माँ की नौकरी से खिसककर उसके व्यक्तित्व और चरित्र का विश्लेषण करने में जुट गईं। कुछ एक पुरुष भी रस लेने लगे। कभी धीमे, कभी तेज़ स्वर में उछलते वाक्य उस इलाके के बेरोमीटर का काम कर रहे थे जिससे वहाँ रहने वाले लोगों की मानसिकता को मापा जा सकता था। कुल मिलाकर संदेह और उससे पैदा हुए आरोपों का तापमान काफी बढ़ा हुआ था।

टॉमी ने दूध खत्म कर लिया था। इतने लोगों को देखकर वह सामान्य नहीं हो पा रहा था। मिसिज़ मेहरा उसकी इस तरह की बेचैनी से डर गई थीं। बार-बार मेहरा से कहतीं- ‘कहीं टॉमी कोई चोट तो नहीं खा गया?’

नीटू को अब तक हॉस्पिटल पहुँचाना ज़रूरी हो गया था। एक-दो लोगों ने उसकी नब्ज़ देखी, चल रही थी।  मेहरा ले चलने को तैयार भी हो गए लेकिन मिसिज़ मेहरा दूरदर्शी हैं, बहुत दूर तक सोच जाती हैं, बोलीं- ‘रास्ते में कुछ हो गया तो? इसकी माँ ने पुलिस केस कर दिया तो हम ही फँसेंगे।’ मेहरा दूर छिटक गए। पुलिस के पचड़े में कोई नहीं पड़ सकता था। अधिकाँश लोग वहाँ से हटकर अपने-अपने घर के दरवाज़ों पर जाकर खड़े हो गए और वहाँ से सारी स्थिति का जायज़ा लेने लगे।

कुछ एक के मन में मानवीयता पनप रही थी, परोपकार हिलोरें मार रहा था। उन्होंने नीटू को सहलाया, हिलाया-डुलाया तभी किसी को उसके माथे पर उभरी हुई एक गाँठ दिखाई दी। मिसिज़ मेहरा घबरा गईं। वह कैसे भी उसे अपने घर से हटा देने की जुगत में लगी थीं कि तभी उन्हें पड़ोस में रहने वाली करुणा का ध्यान आ गया। करुणा एम.डी. कर रही थी। सभी कहते थे कि अपने नाम को सार्थक करती हुई करुणा दया और करुणा की साक्षात मूर्ति है। अपने मरीजों के लिए उसके मन में अपार स्नेह और समझ भरी पड़ी है। करुणा की पढ़ी-लिखी माँ तो अक्सर अपनी बेटी को ‘फ्लोरेंस नाइटेंगिल’ और ‘मदर टेरेसा’ के मुकाबले में खड़ा करके बात करती थीं। करुणा घर में कम ही रह पाती थी लेकिन कुछ देर पहले ही मिसिज़ मेहरा ने उसे अस्पताल से लौटते हुए देखा था। उन्हें अपनी बुद्धि और याददाश्त पर पहली बार बहुत तरस आया। वह मन ही मन अपने को धिक्कारने लगीं। ’अगर कुछ देर पहले उन्हें करुणा की याद आ जाती तो नीटू नाम की इस बला से उन्हें कब का छुटकारा मिल गया होता। एक डॉक्टर के रूप में करुणा उसकी पूरी ज़िम्मेदारी ले लेती फिर आगे कुछ भी होता, उससे उन्हें क्या?’ खैर, अभी भी कुछ ख़ास देर नहीं हुई थी, उन्होंने खुद जाकर करुणा के घर का दरवाज़ा खटखटाया। पूरी घटना सुनते ही करुणा घर से निकल कर तेज़ी से नीटू को देखने के लिए चल दी कि तभी करुणा की माँ हिस्टीरिक हो उठीं और जोर से चीखीं - ‘नीटू छत से गिरा है, अगर मर-मरा गया तो ? शुरु होने से पहले ही मेरी बेटी का कैरियर तो ठप्प।’ करुणा को अपने मरीज़ों से बहुत प्यार होगा लेकिन इतना भी नहीं कि वह उनकी ख़ातिर अपना कैरियर दाँव पर लगा ले। वह नीटू तक पहुंच चुकी थी, लेकिन उसे बिना छुए लौट ली। करुणा को और उसकी माँ को इस बात का अफ़सोस ही बना रहा कि क्यों उसने मिसिज़ मेहरा का मान रखकर अपनी उपस्थिति मरीज़ के पास दर्ज करा ली।

तभी नीटू की माँ अपने दोनों हाथों में झोले लटकाए घर की ओर पैदल आती दिखाई दी। कुछ एक पड़ोसी जो अभी भी पड़ोसी धर्म निभाते हुए मेहरा के लॉन में खड़े थे, नीटू की माँ को देखकर नीटू के पास पहुंच गए। सभी ने अपने-अपने ढंग से नीटू की माँ को उसके गिरने की घटना के बारे में बताना शुरू कर दिया। नीटू की माँ के पास सबको अलग-अलग सुनने का समय नहीं था। उसे कुछ नहीं सूझा। सबकी आवाज़ों को सुनते हुए उसने तेज़ी से नीटू को उठाया और करुणा के दरवाजे़ पर पहुँच गई।

करुणा की माँ ने खिड़की से झाँका। नीटू को देखते ही वह ऐसे डर गईं जैसे किसी ‘भूत’ को देख लिया हो। उन्होंने बड़ी तुर्शी से कहा-

‘यहाँ खड़ी क्यों समय बरबाद कर रही हो ? इसे अस्पताल लेकर जाओ।’-

इतना कहते ही खिड़की बन्द हो गई।नीटू की माँ चलने को हुई कि तभी खिड़की एक बार फिर से खुली और करुणा की माँ ने खिड़की से ही कहा- ‘अगले छोर पर डॉ. बत्रा हैं। उनसे करुणा का नाम ले दोगी तो तुम्हारे हक़ में ही रहेगा।’ नीटू की माँ ने गुहार लगाई- ‘करुणा को साथ में भेज दीजिए।’ करुणा की माँ के माथे पर बल पड़ गए। नीटू की माँ के पास प्रतीक्षा करने का तो समय ही नहीं था।

वह वहाँ से चली तो कुछ सोचकर करुणा की माँ भी साथ में हो लीं। बातों-बातों में उन्होंने मिसिज़ मेहरा को नितान्त क्रूर और संवेदनहीन घोषित करते हुए नीटू की माँ को यह भी बता दिया कि खुद उनके घर में किराए के लिए कमरा खाली पड़ा है, अगर नीटू की माँ चाहे तो उनके घर में रहकर वह अपने नीटू को ज़्यादा सुरक्षित माहौल दे सकती है। नीटू की माँ को इस समय कुछ नहीं सूझ रहा था। ज़रा सी दूरी पर बनी डॉ. बत्रा की कोठी तक पहुँचना मुश्किल हो रहा था। किराए के कमरे का प्रस्ताव रखने के बाद करुणा की माँ ने करुणा की योग्यता, बड़े-बड़े डॉक्टरों से उसके सम्पर्क का चर्चा शुरू कर दिया। यह तो अच्छा हुआ कि सामने ही डॉ. बत्रा के नाम की प्लेट दिखाई दे गई नहीं तो उस दिन नीटू की माँ का धैर्य जवाब देने ही वाला था।

दूर से ही मरीज़ों की भीड़ दिखाई दे रही थी। नीटू की माँ ने अभी तक डॉक्टर को एक कुर्सी पर बैठे और मरीज़ों को एक-एक करके उनके पास जाते देखा था। यहाँ डॉक्टर खुद घूम-घूम कर एक-एक मरीज़ के पास पहँुच रहे थे, उनका हाल-चाल ले रहे थे, उनकी बीमारी की जानकारी ले रहे थे। नीटू की माँ प्रभावित हो गई। उस बड़े से हालनुमा कमरे के साथ ही एक छोटा सा कमरा था जिसमें एक भव्य कुर्सी, मेज़ थी जो निश्चित ही डॉक्टर के बैठने के लिए थी, साथ में एक कुर्सी मेज़ लिए एक लड़की बैठी थी। उसकी मेज़ पर रिसेप्शनिस्ट की तख्ती लगी थी। डॉ. की मेज के ऊपर ठीक सामने दीवार पर एक पोस्टर लगा था। नीटू की माँ की नज़र उस पर पड़ी, लिखा था-

‘हे ईश्वर, हम तेरे आभारी हैं कि तूने डॉक्टर के रूप में हमें मानवजाति की सेवा करने का अवसर दिया है।’

नीटू की माँ और भी प्रभावित हो गई। उसने मान लिया कि वह सही जगह पर अपने नीटू को लेकर आ गई है। डॉ. साहब की नज़र करुणा की माँ पर पड़ी।। वह और मरीजों को छोड़कर तेज़ी से उनकी ओर बढ़े। करुणा की माँ ने गर्व से नीटू की माँ को देखा। मुस्कुरा कर करुणा की माँ का स्वागत करते हुए उन्हें साथ में खड़ी नीटू की माँ दिखाई दी। उन्होंने रिसेप्शनिस्ट से अंग्रेज़ी में कहा- ‘इनकी मदद करो’ और अपने और मरीजों की तरफ़ बढ़ गए। करुणा की माँ ने आहिस्ता से कहा- ‘देखा, करुणा की वजह से सब कुछ कितने आराम से हो गया।’

नीटू की माँ अभी भी नीटू को गोद में लिए खड़ी थी, रिसेप्शनिस्ट ने पर्चा बनाने से पहले डॉक्टर साहब की फ़ीस की फरमाइश कर दी। दूर से डॉ. साहब अपनी फीस पर बराबर नज़र रखे हुए थे। अब नीटू की माँ की समझ में आया कि यहाँ-वहाँ बैठे, लेटे हुए मरीज डॉक्टर की फ़ीस जमा करके एक तरह से अपने आपको डॉक्टर के हाथों सौंप चुके थे और उसकी दयादृष्टि पड़ने की प्रतीक्षा में टाइम काट रहे थे। पैसे की रसीद लेकर नीटू की माँ डॉक्टर तक पहुँची, तब तक वह और मरीज़ों की ओर बढ़ चुके थे। नीटू की माँ का दिल डूबता जा रहा था। तभी एक लड़के ने आकर डॉ. की कुर्सी के पीछे पड़ी एक बड़ी मेज़ पर नीटू को लिटा देने का आदेश दिया और उसके आँख, नाक, कान, छाती, गुर्दे, फेफड़े सब टटोलने शुरू कर दिए। साथ में ही उसने नीटू को एक-दो इंजैक्शन भी दे डाले। नीटू की माँ ने आहिस्ता से कहा- ‘इसके छत से गिरने का तो बता दें।’ करुणा की माँ ने उसे तसल्ली देते हुए कहा- ‘डॉक्टर को आने दो, वो तो खुद एक-एक बात पूछेंगे।’ इतना कहकर एक बात और भी जोड़ दी-

‘वैसे डॉ. बत्रा बड़े पहुँचे हुए डॉक्टर हैं, मरीज़ को देखकर ही बीमारी समझ जाते हैं।’

तभी डॉ. बत्रा को सामने खड़ा देखकर नीटू की माँ ने एक साँस में उसके गिरने का सारा किस्सा बयान कर दिया। छत से गिरने की बात सुनते ही डॉ. बत्रा ने नीटू पर से अपना हाथ पीछे खींच लिया और कहा- ‘बच्चे को कोई भी बाहरी चोट तो है नहीं। बुखार-खाँसी जैसा भी कुछ नहीं है। छत से गिरा है ,दिमागी चोट हो सकती है। उसके गंभीर परिणाम भी हो सकते हैं। किसी न्यूरोलॉजिस्ट को तुरन्त दिखाइए।’ इंजैक्शन और दवा आदि के पैसे देने के बाद ही नीटू की माँ अपने नीटू को उस मेज़ से उठा पाई।

रोती हुई वह चलने को हुई तो डॉ. बत्रा को उस पर तरस आने लगा। वह बड़ी हमदर्दी के साथ बोले- ‘इसे छाया नर्सिंग होम’ में अभी दाखिल कर दीजिए। मेरा नाम ले देंगी तो आपके हक़ में ही रहेगा।’

दूसरी बार ‘हक़’ की बात सुनकर नीटू की माँ चौकी। डॉ. को देखते ही करुणा की माँ तो नीटू को भूलकर डॉ. बत्रा को यह बताने में लगी हुई थी कि कैसे वह बिना किसी स्वार्थ के अपना फर्ज़ समझकर नीटू की माँ के साथ यहाँ तक चलकर आई है। नीटू की माँ अकेली ही बेटे को लेकर ‘छाया नर्सिंग होम’ की तरफ भागी। पहुँचते ही नीटू को दाखिल कर लिया गया। नीटू की माँ ने चैन की साँस ली। सफेद कोट पहने दो लड़के उसकी जाँच करने लगे। एक के बाद एक टैस्ट करते जाने की प्रक्रिया शुरू हो गई। उसे एक बार फिर एक-दो इंजैक्शन ठोक दिए गए। ग्लूकोस की बोतल चढ़ाने का काम शुरू हो गया। नीटू की माँ पास में खड़ी उसके छत से गिरकर बेहोश हो जाने की पूरी घटना बताने में लगी थी। लड़के ‘हाँ’ ‘हूं’ करते हुए अपने काम में लगे हुए थे। दोनों आपस में कई बीमारियों के लक्षण, उनके प्रभाव और परिणामों का चर्चा भी करते जा रहे थे। यह सब देखकर नीटू की माँ फिर बेचैन हो गई। एक के बाद एक डॉक्टर के हाथों में पहुँचने के बाद भी नीटू की माँ को तसल्ली नहीं हो पा रही थी। उसने पास में खड़ी हुई एक नर्स से कहा- ‘बड़े डॉक्टर साहब देख लेते तो अच्छा रहता।’

-‘बड़े डॉक्टर तो कब के राउन्ड लेकर चले गए।’ -‘तो अब?’

-‘अब तो सुबह ही मुलाकात होगी।’

-‘इनमें से न्यूरोलॉजिस्ट कौन है?’-

‘न्यूरोलॉजिस्ट?’ इतना कहकर नर्स चुप हो गई। नीटू की माँ आशंकित हुई, उसने दोहराया- ‘इनमें न्यूरोलॉजिस्ट कौन है?’ नर्स ने कहा- ‘कोई भी नहीं। तुम्हें न्यूरोलॉजिस्ट का क्या करना है? बच्चे का इलाज हो रहा है, न !’

नीटू की माँ की दिमागी नसें फटने को आ रही थीं। किसी भी तरह उसका भटकाव खत्म होने पर नहीं आ रहा था। वह अभी तक अपने बच्चे को सुरक्षित हाथों तक नहीं पहुँचा सकी थी। वह ख़ामोश नहीं रह सकी, एक बार फिर बोली- ‘कोई तो होगा जो दिमागी चोट को समझ सके।’ नर्स झल्लाकर बोली- ‘यहाँ हड्डियों के डॉक्टर बैठा करते हैं।’

-‘तो फिर मेरे बच्चे का इलाज?’

- ‘इलाज में क्या कमी है, इलाज तो होगा।’

नीटू की माँ ने आपा खो दिया नर्स को झिंझोड़ते हुए बोली- ‘मर्ज़ जाने बिना कैसा इलाज?’ सामने के बैड पर पड़ा जिसका बच्चा अस्पताल के डॉक्टर और नर्स की दया और मेहरबानी पर निर्भर करता हो, उस बच्चे की माँ से ऐसी अशिष्टता की उम्मीद नर्स कर ही नहीं सकती थी। उसने और भी बदतमीज़ी से कहा-

‘कैसा मर्ज़? डॉक्टर बत्रा ने सारे टैस्ट कराने को भेजा है और वो तो रहे हैं।’

नीटू की माँ का मन किया कि झपटकर अपने बच्चे को उठाए और वहाँ से भाग ले लेकिन कहाँ भागे। बुदबुदाती हुई वह सुबकने लगी। वह क्या कुछ कहती जा रही थी, उसे खुद मालूम नहीं था। उसकी हालत देखकर नर्स ने अपना गुस्सा थूका और धीमे से बोली- ‘डॉ. चाणक्य के पास जाओ। बड़े न्यूरोलॉजिस्ट हैं।’

नीटू की माँ से हमदर्दी रखने वालों की कमी नहीं थी। एक के बाद एक उसके हिमायती और हमदर्द उसे मिलते जा रहे थे। पहले करुणा की माँ, फिर डॉ. बत्रा, ‘छाया नर्सिंग होम’ की नर्स और अब एक-दो पड़ोसियों के साथ नर्सिंग होम में पहुँचे हुए मेहरा। मिसिज़ मेहरा भी उनके साथ अवश्य आतीं, अगर टॉमी के रोने के बाद से उनका ब्लड प्रेशर न बढ़ गया होता तो। नर्सिंग होम में घुसते हुए मेहरा ने नर्स की बात सुन ली थी। वह नीटू का हालचाल पूछना भूल गए और बड़े जोर-शोर से अपने साथ आए हुए पड़ोसियों को बताने लग गए।

- ‘करुणा डॉ. बत्रा की जूनियर है। उनके पास नीटू को भेजना उसके हक़ में जाता है। और ‘छाया नर्सिंग होम’ डॉ. बत्रा की भाभी का है, नीटू को यहाँ भेजना उनके हक़ में रहेगा।’

एक बार फिर से ‘हक़’ की बात सुनकर नीटू की माँ का दिमाग चकराने लगा। वह चालाकियों और क्रूरताओं के दलदल में धंसती जा रही थी। उसने नीटू को देखा। नर्सिंगहोम के एक बैड पर पड़ा, बिना किसी डाइग्नोसिस और जानकारी के दवा, इंजेक्शन, ग्लूकोज़, नर्स, डॉक्टर की गिरफ़्त में जकड़ा हुआ उसका बेटा कैदखाने में कैद एक कैदी की तरह लग रहा था, जिसे वहाँ से छुड़ाकर ले जाना आसान नहीं था। नीटू की माँ नीटू को नर्स के भरोसे छोड़कर डॉ. चाणक्य की ओर भागी। जाते हुए  उसने नर्स को कहते हुआ सुना-

‘डॉ. चाणक्य से मेरा नाम लेना, तुम्हारे हक़ में ही रहेगा।’  ‘हक़’ शब्द का हथौड़ा एक बार फिर नीटू की माँ के दिमाग पर जाकर लगा। ‘हक़ ? कैसा हक़?’ इतने हक़परस्त लागों से वास्ता पड़ने पर भी अभी तक वह अपने बेटे को सही उपचार नहीं दिला पाई थी। ‘बेरहम, बेहया’ जैसे शब्द उसके दिमाग से आकर टकराने लगे।

वह सुनती थी कि डॉक्टर भगवान का रूप होते है लेकिन अपने नीटू को इस तरह इन भगवानों के हाथों में सोंपते और छोड़ते चले जाने में उसका भय बढ़ता जा रहा था। उसकी घबराहट बढ़ गई थी। न जाने क्यों उसे हर जगह पर हैवान दिखाई दे रहे थे।

डॉ. चाणक्य तक पहुंचने तक उसका मन और शरीर दोनों साथ छोड़ चुके थे। उसने कहा- ‘आप तो न्यूरोलॉजिस्ट हैं, न ?’ बाकी शब्द उसके गले में फँसकर रह गए थे। वह बुत बनी खड़ी थी। डॉ. चाणक्य ने उसे दिलासा दी, बड़े धैर्य से उसे सुना, तुरंत उसके साथ चलने को भी तैयार हो गए। नीटू की माँ ने मन ही मन भगवान से क्षमा माँगते हुए कहा- ‘मैं गलत थी, डॉक्टर तो भगवान का ही दूसरा रूप होते हैं।’ वह अपने में खोई हुई थी कि तभी उसने डॉ. को कहते हुए सुना-

- ‘कहाँ चलना है ?’

-‘छाया नर्सिंग होम ।’

सुनते ही डॉक्टर का तो अपना मानसिक संतुलन बिगड़ गया। उनके दिव्य रूप पर अशांति और क्रोध की परछाईं पड़ने लगी। अपने बदले हुए तेवर के साथ वह बोले –

‘बच्चे को वहां भर्ती करके आप यहाँ क्यों आई ? मैं मरीज़ को उसके घर पर या अपने नर्सिंग होम में ही देखता हूँ।’

डॉ. चाणक्य को कुछ और कहने का नीटू की माँ ने मौका ही नहीं दिया। वह रोती जा रही थी और कहती चली जा रही थी- ‘कहाँ है आपका नर्सिंग होम ? नीटू को आपके नर्सिंग होम में लाना, मेरे हक़ में रहेगा या नहीं ?’

एक और चक्रव्यूह से निकलकर बेतहाशा अपने बच्चे की  ओर दौड़ती हुई नीटू की माँ के सामने एक-एक करके करुणा, डॉ. बत्रा, जूनियर डॉक्टर, नर्स, डॉ. चाणक्य के चेहरे घूमते जा रहे थे। उनके पीछे खड़े मेहरा, मिसिज़ मेहरा, करुणा की माँ जैसे अनगितन मेहरबान लोग भी दिखाई दे रहे थे। सभी  के नाम, पते, ठिकाने, चेहरे अलग होने पर भी वे सब उसके सामने एकाकार हो गए थे। उसे लगने लगा कि वह किसी प्रेतलोक में से घूमकर आई है जहाँ इन जैसे अतृप्त प्रेत अपनी आकांक्षाओं और स्वार्थों की पूर्ति के लिए मरीज़ों से चिपटकर उनका लहू तब तक पीते रहते हैं जब तक उन्हें तन, मन और धन से निचोड़कर,निष्प्राण करके न रख दें।

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