कल के मुसहर Prafulla Kumar Tripathi द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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कल के मुसहर


बचपन में जब हमारे खेतोँ से गेहूं की फ़सल की मैनुअल कटाई हो जाती थी और उसे खेतों से गट्ठर बना कर खलिहान में पहुंचा दिया जाता था तो एक वर्ग विशेष के भूखे, नंगे, वस्त्रहीन बच्चे, महिलाएं और पुरुष खेतोँ में जुटकर चूहों की बिलों से गेहूं या अन्य अनाज के उन दानों को निकाल लाया करते थे जिसे चूहे खेत की पकी फ़सल से कुतर कर अपने बिलों में छिपा लिया करते थे। यह वर्ग न केवल उनके फिक्स डिपाजिट अन्न निकाल लाते थे बल्कि अगर चूहे मिल गए तो उनको पकड़ कर, भून कर खा भी जाते थे। ये वर्ग घूमन्तु हुआ करते थे।
बचपन में हमलोग बहुत आश्चर्य और रोमांच से इस दृश्य को देखते थे। बड़े बताते थे कि ये सभी मुसहर हैँ। ये घुमंन्तु हुआ करते हैँ और नेपाल और भारतवर्ष के इलाकों में पाए जाते हैँ। कुछ हठी किसान चूहों के बिल से उस निकले हुए अनाज का आधा हिस्सा भी ले लिया करते थे।कोयला खदानों से ये कोयला भी चुरा लाया करते थे। यह काम बहुत ही जोखिम भरा हुआ करता था लेकिन पेट की भूख क्या न करा दे?
मेरे बचपन के इस कौतूहल को शांति तब मिली जब मेरे अनुरोध पर पूर्वी उ. प्र. (गोरखपुर ) और आकाशवाणी के वार्ताकार समाजवादी चिंतक स्व. गुंजेश्वरी प्रसाद ने इस विषय पर आकाशवाणी गोरखपुर के लिए एक शोध परक आलेख लिखा और हम लोगो ने उसे सुना समझा ।
मुसहर एक प्रकार की जंगली जाति हुआ करती हैँ। इस जाति का व्यवसाय जंगली जड़ी - बूटी आदि बेचना है । कहते है, इस जाति के लोग प्रायः चूहे तक मारकर खाते हैं, इसी से मुसहर कहलाते हैं ।अब सुसंस्कृत समाज ने इन्हे रैट माइनरर्स का ख़िताब दे दिया है जो सुनने में अच्छा लगता है और पिछले दिनों उत्तराखण्ड के निर्माणाधीन सुरंग में फंसे इकतालिस मजदूरों के साथ घटित त्रासदी में उनको बाहर निकाल लाने के नायक बन कर उभरने वाले इस समुदाय के लिए सम्मानजनक भी।
मेरी समझ से यही मुसहर जाति के लोगो को अब परिषकृत शब्द और सम्बोधन में रैट माइनर्स कहा जा रहा हैँ।
उत्तर काशी के टनल में फंसे 41 मजदूरों को बाहर निकाल पाने में देशी विदेशी तकनीक के अंततः फेल हो जाने पर इन्हीं रैट माइनर जाति का योगदान सफल रहा है।असल में इसे कहते हैँ रैट होल माइनिंग।- ये मुसहर उर्फ़ रैट माइनर गैता , फावड़ा, टोकरी तथा रस्सी जैसे उपकरणों के सहारे ही यह पूरा काम करते हैं। एक आदमी खुदाई करता है और दूसरा कोयला या अन्य खनिज या मलबा इकट्ठा करता है। दल के अन्य सदस्यों के सहयोग से उसे बाहर निकाला जाता हैँ।अब रैट होल माइनिंग क्या है यह भी जानना ज़रूरी है।
रैट-होल खनन मैन्युअल ड्रिलिंग की एक विधि है, जिसे कुशल श्रमिकों द्वारा किया जाता है, जो मेघालय में सबसे आम है। संकीर्ण गड्ढे जमीन में खोदे जाते हैं, आमतौर पर इतने चौड़े कि एक व्यक्ति उसमें समा सके।इसी क्रम में याद आ रहा है किसी ज़माने में सेंध मारों के कौशल और उनकी कारगुजारी।
कई दशक पहले भारतीय गाँवो में इसी प्रकार सेंधमारों का कौशल देखने को मिलता था। अमीर घरों में अक्सर इन्हीं घूमन्तु समुदाय के लोगो द्वारा इसे अंजाम दिया जाता था।ऐसी सेंध लगाई जाती थी कि बस कमसिन काया का ही प्रवेश हो सके। कभी कभी वे सिर्फ़ कच्छा पहने, शरीर में चिकनी चीज़ें (तेल, मोबिल )लगाकर घुसते थे जिससे उनको आसानी से पकड़ा नहीँ जा सके। घरों से माल लेकर ये रातो रात गांव छोड़कर भाग जाते थे।अब तो पक्के मकान होने से सेंधमारी की कुशल चुराई की यह प्रथा भी लुप्त हो गईं हैँ।
भारतीय जन जीवन में एक प्रसिद्ध कहावत है कि घूरे के दिन भी फिरते हैँ।वे चूहे मारने वाले मुसहर आज हीरो बनकर उभरे हैँ और उनकी इस कला का सम्मान हो रहा है।
मतलब यह कि उत्तराखण्ड हादसे के बाद जब कि आधुनिकतम उपकरण समस्या का निदान करने में असफल रहे हों तब इस देसी मूसहर जाति की रैट हॉलिंग कला को विकसित करने की आवश्यकता है। उनकी कला और व्यवसाय पर लगाया गया प्रतिबंध हटाया जाना चाहिए।