साथिया - 14 डॉ. शैलजा श्रीवास्तव द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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साथिया - 14



कुछ दिन यूं ही बीत गए। सांझ शालू और मनु अपनी अपनी पढ़ाई में लगी हुई थी तो वही अक्षत के फाइनल एग्जाम आने वाले थे तो वह भी अपनी तैयारी में लगा हुआ था। उसके बाद उसकी यह यूनिवर्सिटी छूट जाएगी इस बात का उसे बहुत अफसोस भी था पर उसने साथ ही साथ एक बात मन में तय कर ली थी।

"क्या क्या हुआ अगर यूनिवर्सिटी में मैं पढ़ाई नहीं करूंगा पर मनु को छोड़ने और लेने तो जा ही सकता हूं ना इसी बहाने सांझ की एक झलक भी देख लिया करूंगा। इससे ज्यादा मुझे अभी कुछ चाहिए भी नहीं। बस उसको देख लेता हूं तो तसल्ली हो जाती है। मुझे मेरा एम तो सिर्फ जज बनना है और जिस दिन में जज का एग्जाम क्लियर कर लूंगा उस दिन सांझ से अपने दिल की बात कहूंगा।" अक्षत ने खुद से ही कहा।


वही शालू और इशान की दोस्ती भी गहरी होती जा रही थीं। दोनो फोन पर बात करते ओर यूनिवर्सिटी में भी रोज मुलाकात होती। दोनो एक दूजे को समझ रहें थे और एक दूजे के साथ कम्फर्टेबल भी थे।

सुबह सुबह का टाइम अक्षत का घर।

" अच्छा सुनो अक्षत तुम अगर चाहो तो मत आया करो मुझे लेने के लिए..!! तुम्हारे एग्जाम आ गए हैं तुम अपनी तैयारी पर ध्यान दो मैं आ जाऊंगी..!" मनु ने कहा।

" कोई बात नहीं है..! आधे घंटे में कुछ फर्क नहीं पड़ता है मैं तुझे छोड़ दिया करूंगा और ले लिया करूंगा परेशान मत हो।" अक्षत ने कहा तो मनु मुस्कुराई।

अक्षत उसे लेकर कॉलेज निकल गया।

कॉलेज में मनु को ड्रॉप किया और तो मनु अपने क्लास की तरफ चली गई और हमेशा की तरह फिर से सभी स्टूडेंट्स में गौशिप शुरू हो गई अक्षत और मनु को लेकर।

सबको यही लगता था कि मानसी अक्षत की गर्लफ्रेंड है क्योंकि दोनों की बॉन्डिंग इतनी अच्छी थी और अक्षत हमेशा मनु को छोड़ने और लेने आता था भले वो कॉलेज में खुद रूके ना रूके। इसलिए सबको ऐसा ही लगता था। इस बात को कोई नहीं जानता था कि उन दोनों के बीच में असली रिश्ता क्या है और अक्षत और मनु ने भी कभी अपने रिश्ते को बाहर इस तरीके से दिखाने की कोशिश नहीं की क्योंकि उन्हें लगता था कि दुनिया को जो सोचना है सोचते रहे पर वह जानते हैं कि उनका मन साफ है।

अक्षत अपनी बाइक से टेक लगाकर खड़ा हो गया और सांझ के आने का इंतजार करने लगा तभी सामने से सांझ आती दिखाई दी।

गुलाबी कुर्ती के साथ ब्लैक जींस पहने। गुलाबी रंग उसके व्हीटिश रंग पर खूब जमता था या शायद अक्षत को लगता था।

सांझ को देख अक्षत के दिल की धड़कन एकदम से तेज हो गई।

"रोज देखता हुं तुमको पर आंखो की प्यास जेसे बुझती नही।
लाखो है यहां एक से एक हंसी पर ये नजर तुम बिन कहीं रुकती नहीं।
आंखो के रास्ते दिल मे उतर गया ये भोला सा मासूम चेहरा।
अब इस सूरत के सिवा दिल में कोई सूरत बसती ही नही।"

अक्षत खुद से बोला।


सांझ ने भी कनखियों से अक्षत की तरफ देखा और धीरे से आगे बढ़ने लगी कि तभी अक्षत की आवाज उसके कानों में पड़ी।

" सुनो ..!" और सांझ के कदम जहां थे वहीं रुक गए पर उसने पलट कर नहीं देखा तो अक्षत खुद ही उसके पास आकर उसके सामने खड़ा हो गया।

सांझ ने नजर उठाकर अक्षत की तरफ देखा तो पाया कि अक्षत अपनी गहरी आंखों से उसे ही देख रहा है।

सांझ ने न कोई सवाल नहीं न ज़बाब बस चुपचाप अक्षत की तरफ देखती रही।

"अब तो उन लोगों ने दोबारा परेशान नहीं किया ना आपको?" अक्षत ने कहा तो सांझ ने ना में गर्दन हिला दी।

" ओर अब करेंगे भी नहीं और आपको किसी से डरने की जरूरत नहीं है। आप बेफिक्र होकर अपनी पढ़ाई पर ध्यान दीजिए और कुछ भी परेशानी हो तो आप मुझे कह सकते हैं।" अक्षत अक्षत बोला।

" लेकिन आप तो अभी फाइनल एग्जाम के बाद कॉलेज नहीं आया करोगे ना?" सांझ के मुंह से एकदम से निकला तो अक्षत के चेहरे पर एक एक एक प्यारी सी मुस्कुराहट आई।

" आप कहोगी तो रोज आया करूंगा.!" अक्षत बोला तो सांझ ने आंखे छोटी कर उसकी तरफ देखा।

" आई मीन मानसी है ना मेरी दोस्त उसे छोड़ने के लिए मैं रोज आता हूं और जब तक दिल्ली में हूं मैं कॉलेज में रहूं या ना रहूं पर उसे छोड़ने और लेने आया करूंगा इसलिए जब भी कुछ बात हो आप मुझे बेझिझक कह सकती है।" अक्षत बोला तो सांझ गर्दन हिलाई और आगे बढ़ गई पर पर उसके उसका दिल खुशी से झूम उठा था यह बात जानकर कि अक्षत कॉलेज खत्म होने के बाद भी हो जाया करेगा।

"जानती हूं कि आपके साथ ना कोई रिश्ता है और ना ही आपका और मेरा कोई मेल पर फिर भी आपको देखने का मोह छोड़ नहीं पा रही हूं। आप आया करोगे तो कम से कम इसी बहाने आपको देख लिया करूंगी। मैंने आपसे कभी अपने दिल की बात नहीं कही और न कह पाऊंगी पर आपको देखकर इस दिल का सुकून तो पा ही लिया करूंगी।" सांझ ने मन ही मन कहा और अपने क्लास की तरफ बढ़ गई।

" देखा मै कहती थीं न कि अक्षत और मानसी के बिच रिश्ता है तभी तो रोज आता है उसे छोड़ने लेने।" तभी सांझ के कानो में आवाज आई और उसके चेहरे पर आई चमक गायब हो गईं।

" क्यों खुली आंखो से सपने देख रही हो सांझ। अक्षत चतुर्वेदी इस कोलेज का सबसे हैंडसम लडका तुम्हे देखेगा। बस दो बातें क्या कर ली खुद की औकात भूल गई। और फिर मानसी। कहां मानसी जेसी खूबसूरत लडकी ओर कहां सांझ जैसी एवरेज लडकी।" सांझ खुद से बोली और क्लास के अंदर चली गईं।


"मैं भी कितना बेवकूफ हूं आज तो मेरे दिल की बात जुबान पर आ ही गई थी..! नहीं नहीं अभी मुझे नहीं कहना है। अब कोशिश करूंगा कि उससे बात ना करूं । एक बार थोड़ी सी उसकी पढ़ाई प्रॉपर वे में आ जाए उसके बाद देखूंगा और फिर अभी मुझे भी तो जज का एग्जाम क्लियर करना है और जब तक मैं अपनी मंजिल नहीं पा लेता तब तक मैं उसे अपने दिल की बात नहीं कहूंगा।" अक्षत ने मन ही मन कहा और फिर अपने घर निकल गया।


उधर नियति के कोलेज में उस दिन फूटबाल का मैच था।

नियति भी अपनी क्लास के बाकी स्टूडेंट और अपनी खास दोस्त शिखा के साथ मैच देख रही थी। तभी उसकी नज़र सार्थक पर पड़ी।

उसे एकटक सार्थक की तरफ देखते देख शिखा ने छेड़ा।

" क्या बात है नियति तुम्हारी नज़र तो उस लड़के से हट ही नहीं रही!"

"नहीं नहीं ऐसा कुछ नहीं है!" नियति सकपका गई।

पर शिखा की आँखों से उसका सार्थक के प्रति सम्मोहन छिपा नहीं।

शिखा नियति की क्लासमेट थी, और खास सहेली भी इसी शहर मे रहती थी।

फुट्बाल के पीछे भागते भागते अचानक़ सार्थक की नजर दर्शकों में बैठी नियति पर पड़ी। गुलाबी सूट और खुले बालों में नियति बहुत प्यारी लग रही थी। उसके बालों की एक लट बार बार उड़कर उसके चेहरे पर आ रही थी। सार्थक तो जैसे उसे देखता ही रह गया। तभी सार्थक और नियति की नज़रे एक दूसरे से मिली तो दोनो का दिल धड़क उठा।शायद ये पहली नज़र का प्यार था जिसका एहसास दोनों को हो चुका था।

मैच खत्म हुआ नियति और शिखा अपने अपने घर चली गई।

अगले कुछ दिन यूं ही निकल गए।

नियती और सार्थक की एक दूजे से मुलाकात नही हुइ पर दोनो के ही दिलों में एक आग जल उठी थीं।


"अभी भी उसी लड़के के बारे में सोच रही है ना ?" नियति को लाइब्रेरी में पन्ने पलटते देख शिखा ने नियति को छेड़ा।

"ऐसा कुछ भी नहीं!" नियति किताब बंद कर बोली।

"मुझे लगता है, तुझे उस से प्यार हो गया है!" शिखा ने कहा।


"प्यार के लिए मेरी जिंदगी में कोई जगह नहीं है..!" नियति गहरी साँस लेक़र बोली।


"बड़ी बड़ी बातें सभी करते है पर इस इश्क़ मोहब्बत से बच कोई नहीं पाता!" शिखा ने हंसकर कहा।

"तुम्हारे शहर में होता होगा ऐसा, पर मेरे गाँव में खासकर मेरे घर में प्यार का नाम लेना भी गुनाह है मेरे बाबूजी तो मेरी जान ले लेंगे अगर ऐसा कुछ गलती से भी हुआ तो।" नियती बोली ।

" कुछ भी मत बोल।" शिखा ने कहा।

" मै सच कह रहि हुं शिखा । हमारे घर का माहौल अलग है। वहां इस प्यार मोहब्बत ओर खासकर ऊंच नीच जात बिरादरी को लेकर बहुत मान्यताएं है । वहां कभी मेरा प्यार मान्य नहीं होगा।" नियति बोलि।

" सिर्फ इसी डर से तू उसे देखते ही रास्ता बदल लेती है।" शिखा बोलि।

" यही समझ ले और तू भी ध्यान से सुन अगर कभी मेरे कदम बहके भी तो तू रोक लेना वरना प्यार की कीमत जान देकर चुकानी होगी मुझे।" नियति बोली और अपने गाँव की बस पकड़ने के लिए चली गई।


"एक्सक्यूज़ मी!" पीछे से आई आवाज से शिखा चौंकी।


" जी।" शिखा सार्थक को पहचान के भी नासमझ बनी राही।

"वो तुम्हारे साथ जो बैठी थी वो लड़की कौन है?" सार्थक ने आकर पूछा ।


"जी आप?" शिखा ने जानकर भी अनजान बनते हुए पूछा।

" मैं सार्थक बी एस सी, फर्स्ट ईयर. बताओ ना कौन थी वो?" सार्थक बैचेन था।


"प्यार की कीमत जान देकर चुकानी पड़ेगी!" , शिखा के कान में नियति के शब्द गूंज उठे।


"नहीं, में नहीं जानती, आप किस की बात क़र रहे है, मुझे देर हो रही है!" कहकर शिखा निकल गई।


"है भगवान अब क्या होगा, आग तो दोनों तरफ बराबर लगी हुई है. आज तो मैंने जैसे तैसे सम्हाल लिया पर ये सार्थक जिस तरह से नियति को ढूंढ़ रहा है पता नहीं आगे क्या होगा?" शिखा ने मन ही मन सोचा।

क्रमश:

डॉ. शैलजा श्रीवास्तव