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दृष्टिकोण - 12 - Break Up

दृष्टिकोण - 12  - Break Up

 

आपका रिश्ता चाहे जितना भी कम समय या लंबे समय तक चला हो, आप दोनों एक साथ आ गए हो और अब आप दोनों संयुक्त रूप से एक हो कर रहते हो,.. 

कुछ ऐसा होता है की आप अलग होना चाहते हो,.. चाहे वो डिवोर्स हो, या ब्रेक-अप,.. एक दूसरे से अलग होना इतना आसान नहीं होता,.. और जब आपको अलगाव का सामना करना पड़ता है, तब आप हिल जाते हो,.. 


ये विचार चाहे आपका अपना हो या सामने वाले ने लिया हुआ हो, अलग रहने का विचार अपने आपमें काफी चुनौतीपूर्ण होता है। 

अलगाव से दर्द और चोट की भावना हद से ज्यादा ही होती है। और, इंसान दर्द और चोट से आक्रोश और क्रोध या अवसाद और अकेलेपन में डूब जाता है।

अब दर्द में गिरने से अच्छा है - की - आप क्यों आहत महसूस करते हैं इसकी वास्तविक प्रकृति को समझें, ...  भले ही छोड़ने का निर्णय आपका अपना विचार था, फिर भी यह आपको उस स्थान पर पहुंचने में मदद कर सकता है जहां आप जीवन को शान से और अच्छी तरह से जी सकते हैं।

"आपको इसे समझने की आवश्यकता है:


जिसे आप अभी अपने आप को लोगो के सामने इंट्रोड्यूस करते हो, "मैं" कहते हुए - वह आपका शरीर है,.. जो आपको अपने पूर्वजो से मिला हुआ है,.. और जिसे आप 'मेरा दिमाग' कहते हैं वह भी 100% स्मृति है।


आप क्या देखते हैं, आप क्या सुनते हैं, आप क्या सूंघते हैं, आप क्या चखते हैं, आप क्या छूते हैं, ये सभी memories एकत्र करने के अलग-अलग तरीके है,.. आप जो देखते हैं और जिसे छूते हैं वह स्मृति का सबसे गहरा रूप है।

अब, जो दो लोग अलग होने की बात करते है, जिन्होंने अपनी भावनाओं, अपने शरीर, अपनी संवेदनाओं और अपने रहने के स्थान को share किया है / साझा किया है, उन्हें दुःख होता है चाहे वो एक दूसरे से नाराज हो कर भी अलग हो रहे हो,..  और वो इसीलिए, क्यों की वे दोनों की सारी यादे, उनकी सारी भावनाएँ, उनके बहोत सारे इमोशन, एक दूसरे में कई तरह से विलीन हो चुके होते है,.. और उन्हें अलग करना लगभग अपने आप को अलग करने जैसा बन जाता है। 


बिलकुल उस तरह जैसे की आप उन यादो को उन बातो को एक तरफ फेंकना या फिर किसी कोने में रख देना चाहते हो, लेकिन आपको लगता है कि वो यादे वो बाते वो सब कुछ जो भी आपने साथ मिलकर किया है वो सब मजबूरीवश आपसे खुद ही चिपक जाते है, और आप उन सब को अपने से दूर करने में नाकाम हो जाते है,.. 

यादे बाते या कोई भी वो चीज जो मजबूरी में आपसे खुद ही चिपक जाती है, अगर आप उसे तोड़ने की कोशिश करेंगे तो दर्द ही होगा। यह दुखदायी है, केवल इसलिए क्योंकि आप उस स्मृति को नष्ट करने का प्रयास कर रहे हैं जो आप ही हैं।

क्योंकि आप स्मृतियों का एक बंडल हैं, आपके जीवनसाथी के बारे में स्मृतियाँ निर्मित हो गई हैं। आप इससे ऐसे ही छुटकारा नहीं पा सकते। यह सिर्फ एक भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया नहीं है, यह एक बहुत ही शारीरिक प्रक्रिया भी है।

अब जब आपने अलग होने का फैसला किया है, चाहे किसी भी कारण से, आपको यह समझने की जरूरत है कि अलग होने का अनिवार्य रूप से ये मतलब है, की आपने उस चीज़ को मार डालने का मन बनाया है जो आपका अपना ही एक हिस्सा है। दर्द तो होगा ही,... !! 

अब, इसे शालीनता से कैसे संचालित किया जाए?”

“ज्यादातर लोग सोचते हैं कि अलग होने का सबसे अच्छा तरीका तुरंत दूसरे रिश्ते में कूदना है। लेकिन नहीं, ऐसा करने से आप अपने ही हृदय में और भी अधिक संघर्ष और उथल-पुथल पैदा करेंगे।

यह समझना बेहद जरूरी है कि जहेन में बसी हुई याददाश्त को एक निश्चित दूरी पर बनाए रखने के लिए शरीर को पर्याप्त समय चाहिए होता है,.. अन्यथा आप अपने आप को एक ऐसे स्थान पर प्रस्तुत कर देंगे जहां अपने आप को शांतिपूर्ण और आनंदमय बनाना अत्यंत कठिन कार्य बन जाएगा।

इसलिए, ये प्रक्रिया को प्रॉपर्ली निभाना बड़ा ही महत्वपूर्ण है।

आप केवल अपने साथी से अलग हो रहे है,.. आपको खुद को खुद से अलग करने की कोई ज़रूरत नहीं है। अक्सर हम अपने आपको उस इंसान से इतनी हद तक जोड़ देते है की उनसे बिछड़ना हमें वैसा लगता है जैसे की हम खुद से बिछड़ रहे हो,.. 


किसी तरह से खुद को संपूर्ण महसूस कराने के लिए, अपने साथी के साथ एक बंधन, एक साझेदारी बनाकर आपने अपने अस्तित्व को पोषित किया गया है,.. 


इस प्रकृति की अधिकांश साझेदारियाँ इसलिए बनाई जाती हैं क्योंकि आप स्वयं को अपर्याप्त, अधूरा महसूस करते है,.. आपको यह समझने की जरूरत भी उतनी ही है, की जब आप अलग होने का निर्णय करते हो, तब आप पहले खुदको सँभालने का निर्णय करने चाहिए,.. ।

यह अंदर की ओर मुड़कर देखने का समय है।
आप वैसे भी एक तलाक या ब्रेक-अप से गुज़र रहे हैं,.. जिसे टाला जा सकता था, लेकिन ऐसा हो रहा है,.. तो, कम से कम आप खुद को खुद से तलाक न दें।

आप एक अस्तित्व के रूप में, एक इंसान के रूप में, खुदसे अलग न रहें। और ये समझे और यह जान ले  कि आपका अस्तित्व एक संपूर्ण अस्तित्व है,... 

ये सच है - की - समाज में अपना जीवन चलाने के लिए हम एक दूसरे पर निर्भर हैं, मगर ये भी उतना ही सच है की हमारी परस्पर निर्भरता केवल हमारी बाहरी आवश्यकताओं के अनुसार है, लेकिन हमारा आंतरिक अस्तित्व अपने आप में पूर्ण है। 

 

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