POINT OF VIEW books and stories free download online pdf in Hindi

दृष्टिकोण - 9 - QUESTION

लॉक-डाउन में कभी-कभी हम परिवार के साथ टीवी देख लिया करते थे ... 
उन दिनों हमने संदीप महेश्वरी का एक विडिओ देखा था - UNSTOPPABLE - उसमे उन्होंने कहा था की हमें किसी बात का जवाब ना मिले तो उस बात को नॉर्मल समज लेते है.. और फिर एक दिन आता है की हम धीरे धीरे सवाल करना बंध कर देते है। 


तब मुझे लगा,"क्या सवाल वो ही सवाल होता है जिसमे सायंस जुड़ा होता है ? 
इंसान के हालातो को लेकर मन में उठता सवाल भी सवाल ही होता है.."
तब एक बात पक्की हो गयी मेरे मनमे - की - चाहे कोनसा भी हो सवाल बंध नहीं होना चाहिए  ... 
जमाना चाहे कोई भी हो, ये इंसानी फितरत है की उनके मन में सवाल उठे..और ये हमारी जिज्ञासा वृत्ति की वजह से है.. बात सिर्फ इतनी ही है - की -  उस सवाल के बारे में सोचना है या उस उठे हुए सवाल को मन में ही दबा देना है ये हमें तय करना है... 

दूसरे दिन हमने रामानंद सागर की रामायण देखी .. 
फिर मेरे मन में इतने सवाल उठे की बस पूछो मत.. और वो कुछ ऐसे थे,.. 

जब राम ने सीता को जंगल में भेजने का निर्णय लिया, तब राम ने सच में अपनी ही पत्नी के ऊपर शक किया था ?  

क्या ये शक राम को उस धोबी के कहने पर हुआ था ? अगर उस धोबी के कहने पर हुआ था तो राम की अपनी सोच उस धोबी से भी कम थी ?

अगर बेशूमार प्यार होने के बावजूद भी क्या राम सिर्फ जनता को दिखाने के लिए ही सीता को वनमे भेज रहे थे ? और अगर वैसा था तो क्या वो अपनी पत्नी के साथ अन्याय नहीं कर रहे थे ?

क्या बिना सबूत सीता के चारित्र्य पर सवाल करने वाले धोबी को राम दंड नहीं दे सकते थे ? 

धोबी को दंड करने की बजाए श्री राम अगर सीता को वन जाने का दंड दे रहे थे तो क्या वो अपनी ही पत्नी को बिना सबूत गुनहगार नहीं ठहरा रहे थे ?

सीताका साथ ना देकर राम जनता के सामने खुद भी सीता को गलत नहीं दिखा रहे थे ?  

अगर सीता को अयोध्या वापस लाकर फिरसे वन में ही भेजना था तो रामने अपनी वीरता का प्रमाण देने के लिए सीता को रावण से छुड़ाया था ? 

सीताने अपने आप को सालो तक बिना राम के सुरक्षित रख्खा ही था..  तो क्या सच में सीता को रावण से सुरक्षित रहने के लिए राम की जरुरत थी ?

क्या राम ने सीता की साइड देखने की कोशिश की थी ?

अगर राम सीताकी बात सुने बिना उसे वनमे भेजने का निर्णय ले , तो वो अपनी जनता को अपने एकतरफा निर्णय का प्रमाण नहीं दे रहे थे ?

क्या जनता में से किसीको ये सवाल नहीं हुआ की कल अगर सीता जैसा शक किसी और औरत पर किया जाए तब उस औरत के साथ भी सीता जैसा ही सुलूक किया जाएगा और सीता की तरह उस औरत की बात भी नहीं सुनी जाएगी ?

गर्भावस्था में अपनी ही औरत को जंगल में छोड़ने का फेंसला राजा की योग्यता को  सिद्ध करता है या राजा की योग्यता को कम करता है ?

गर्भावस्थामें एक औरत सबसे ज्यादा अपने पतिसे  मेंटल, इमोशनल, और  फिज़िकल सपोर्ट की अपेक्षा रखती है। ज्ञानी राम को इतना ज्ञान नहीं था क्या ? और इन सब सुख से सीता को वंचित रखने में क्या सिर्फ उस धोबी का ही हाथ था ? कोई कुछ भी कहे सच में सच्चाई की तहे तक जाना राजा की ड्यूटी नहीं थी ?  

क्या राम ने पति हो कर एक बार भी नहीं सोचा था, और उनके पति-पत्नी के रिश्ते में भरोसे की नींव नहीं थी क्या ?

अधर्मी रावण के वहां अपने आप को सुरक्षित रखा है ये प्रमाण देने की जरुरत सिर्फ सीता को क्यों हुई ? क्यों किसी धोबन ने उठकर ये सवाल नहीं किया की क्या राम भी सीता को उतने ही लॉयल थे ?

अगर किसी धोबन ने आवाज उठा कर ये पूछा होता की - " जितनी परीक्षा सीता से ली जाए उतनी ही राम से भी ली जाए.. आख़िरकार राज्याभिषेक रामका होने वाला था सीता का नहीं..   हमें राजा का टेस्ट चाहिए सीता का नहीं... " - तो क्या उसकी बात को सुना जाता ? 

क्यों माता कौशल्या को ये सवाल नहीं किया गया की अपने बेटे को अपनी बीवी पर भरोसा करना क्यों नहीं सिखाया ? क्या सीता कौशल्या की बेटी होती तब भी कौशल्या माँ चुप रहती ?

क्यों राजा दशरथ को नहीं पूछा गया - की - आप ने अपने बेटे को दोनों पक्ष की बात सुनकर फेंसला लेने की शिक्षा क्यों नहीं दी ?

क्यों सीता की माँ सुनयनाने सीता का गर्भ के साथ वन में जाने का विरोध नहीं किया ? क्यों वो अपनी बेटी को अपने घर नहीं ले आयी ?  

क्यों सीता ने अपनी माँ से नहीं पूछा की "अपनी मर्जी से ब्याह किया था तब और अपनी मर्जीसे राम के साथ १४ साल वन में गयी थी तब आपने मेरा साथ दिया था, लेकिन मेरे चरित्र पर सवाल हो रहा हो तब, और मुझे घर से निकाला जा रहा हो तब, आपने मेरा साथ क्यों नहीं दिया ?"     

सीताने अपने पिता जनक से क्यों नहीं पूछा की में जमीं से निकली हुई ना होकर आपकी अपनी बच्ची होती तब भी आप राम को कोई सवाल नहीं करते ? जब किसी और की बात सुनकर मेरे चारित्र्य पर सवाल हो रहा हो और मुज पर अन्याय ना हो रहा हो तब भी आप ये सब होने देते ?      

इतनी समज जनता में नहीं थी क्या की वो इतना देख पाए - की - "राजा दशरथ ने वो किया जो रानी कैकेयी ने कहा .. और रानी कैकेयी ने वो कहा जो नौकरानी मंथरा ने कहा,.. मतलब ये हुआ की एक नौकरानी भी राजा को हिला सकती है"

मंथरा के इतने बड़े मनसूबे को इतने बड़े राजमहल में कोई नहीं पहचान पाया ? आखिरी दिन तक ? क्या सुरक्षा प्रबंध इतना कमजोर था की रातोरात इतना बड़ा फेंसला बदल दिया जाए और कोई कुछ न कर पाए ??

क्या प्राण जाए पर वचन न जाए ये सिर्फ कहने की बात थी ? क्युकी पिता के वचन का पालन करने के लिए राम ने सीता के साथ फेरे लेते वक्त दिए हुए सारे वचन तोड़ डाले ?   

जिस धोबी की बात को मान कर महल त्याग करने का आदेश था उस धोबी को मिल कर उसकी आँख में आँख डाल कर सीता ने उसे इतना एहसास क्यों नहीं करवाया - की - वो रावण जैसे शक्तिशाली राजा जो महान शिवभक्त था उसके सर्वनाश का कारण बन सकती है तो उसके चारित्र्य पर बिना वजह ऊँगली उठाने वाले एक इन्सान का क्या हाल कर सकती है ?? 

राजा की योग्यता सिद्ध करके, अगर पति की योग्यता साबित ना कर पाए वैसा राजा जनता को स्वीकार्य था ? और अगर था तो उस सोच वाली जनता की बात सुनकर राजरानी को (गर्भावस्था के दरमियान जंगल में अकेले) छोड़ने का निर्णय सही था ? 

क्या राजा राम को सीता का त्याग करना चाहिए था या संसार की सोच बदलने का प्रयास ? 

इन सब के बाद,

क्या सीता को कभी भी कोई सवाल नहीं हुआ होगा ?

या फिर,क्या सवाल करने का हक़ सीता को नहीं था ? 

या फिर,क्या सीता ने सब को माफ़ कर दिया था ?

अन्य रसप्रद विकल्प

शेयर करे

NEW REALESED