नर्मदा के उदगम से यात्रा डायरी Prafulla Kumar Tripathi द्वारा यात्रा विशेष में हिंदी पीडीएफ

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नर्मदा के उदगम से यात्रा डायरी


भारत के मध्य प्रदेश राज्य के अनूपपुर ज़िले में स्थित एक तीर्थ नगर है अमर कंटक । यह विंध्य पर्वतमाला व सतपुड़ा पर्वतमाला के मिलनक्षेत्र पर मैकल पर्वतमाला में स्थित है।

यहाँ से नर्मदा नदी, सोन नदी और जोहिला नदी (सोन की उपनदी) का उद्गम होता है। यह हिन्दुओं का एक पवित्र तीर्थस्थल है।
अमरकंटक की ज़मीन से ऊँचाई1048 मी (3,438 फीट) हैँ और वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार यहां की आबादी (जनसंख्या) 8,416 हैँ।
आज शाम लगभग 4बजे जबलपुर से सड़क मार्ग से मैं सपत्नी यहाँ पहुंचा हूँ। रास्ता मनोरम हैँ। आज गोपाष्टमी होने के कारण गोपालक और ग्रामीण उत्सव मना रहे हैँ। गायों की,यादव कुल की पूजा वंदना हो रही हैँ।
मेरे ड्राइवर के अनुसार ग्रामीण आदिवासी समाज में इस दिन अपने जोड़े भी चुनने की आज़ादी रहती हैँ।युवा माला लिए गोल गोल घूम रहे हैँ.. युवतियाँ भी सजी धजी दिखाई दे रही हैँ। मैंने इस दृश्य के फोटो भी लिए।अब हम उस जगह हैँ जहां छत्तीसगढ की सीमा शुरू होती हैँ। बहुत गहन जाँच प्रक्रिया से गुजर कर हम कबीर चबूतरा पहुंचे हैँ। बताते हैँ यहां किसी समय संत कबीर ने विश्राम किया था।स्थल अत्यंत उपेक्षा का शिकार हैँ।
स्‍थानीय निवासियों और कबीरपंथियों के लिए कबीर चबूतरे का बहुत महत्‍व है। कहा जाता है कि संत कबीर ने कई वर्षों तक इसी चबूतरे पर ध्‍यान लगाया था। कहा जाता है कि इसी स्‍थान पर भक्त कबीर जी और सिक्खों के पहले गुरु श्री गुरु नानकदेव जी मिलते थे। उन्होंने यहां अध्‍यात्‍म व धर्म की बातों के साथ मानव कल्‍याण पर चर्चाएं की। कबीर चबूतरे के निकट ही कबीर झरना भी है। मध्‍य प्रदेश के अनूपपुर और डिंडोरी जिले के साथ छत्तीसगढ़ के बिलासपुर और मुंगेली की सीमाएं यहां मिलती हैं।
यहां की देख रेख कर रहे संत से मैंने एक इंटरव्यू भी रिकार्ड किया।
अब हम अपने मध्य प्रदेश पर्यटन के हालिडे होम में आ चुके हैँ।
चेक इन करके हमने फ्रेश होकर चाय पी और फिर निकल पड़े हैँ अन्य जगहों की सैर पर।
यहाँ अनेक रमणीय स्थल हैँ जो गंभीर रूप से उपेक्षा का शिकार हैँ।
फिलहाल हम यहां से लगभग 4 किलोमीटर दक्षिण में धुनी पानी नामक तीर्थ आ चुके हैँ जहां के बारे में कहा जाता है कि एक बार एक ऋषि तपस्या कर रहे थे और पास ही उनकी धुनी जल रही थी। तभी धुनी वाले स्थान से पानी निकला और धुनी को शांत कर दिया। तभी से इस स्थान का नाम धुनी पानी पड़ गया। आज भी यहां एक कुंड और बागीचा है।
हम जहां ठहरे हैँ पास ही में नर्मदाकुंड हैँ जो नर्मदा नदी का उदगम स्‍थल है। अभी हम कल्चुरी काल के मंदिर समूह को बाहर से ही देखते हुए आगे जा रहे हैँ।
इन कलचुरी काल के प्राचीन मंदिरों में आजकल कुछ काम चल रहा हैँ। इन मंदिरों को कलचुरी महाराजा कर्णदेव ने 1041-1073 ई. के दौरान बनवाया था। मछेन्‍द्रथान और पातालेश्‍वर मंदिर इस काल के मंदिर निर्माण कला के बेहतरीन उदाहरण हैं।
और अब हम हैँ सोनमुड़ा में।
सोनमुड़ा सोन नदी का उद्गम स्‍थल है। यहां से घाटी और जंगल से ढ़की पहाडियों के सुंदर दृश्‍य दिखाई दे रहे हैँ। सोनमुड़ा नर्मदाकुंड से 1.5 किलोमीटर की दूरी पर मैकाल पहाडियों के किनारे पर है। सोन नदी 100 फीट ऊंची पहाड़ी से एक झरने के रूप में यहां से गिरती है। सोन नदी की सुनहरी रेत के कारण ही इस नदी को सोन नदी कहा जाता है।एक पुजारी से हमने इंटरव्यू भी लिया।
और अब हम आ चुके हैँ मां की बगिया।
मां की बगिया माता नर्मदा को समर्पित है। कहा जाता है कि इस हरी-भरी बगिया से स्‍थान से शिव की पुत्री नर्मदा पुष्‍पों को चुनती दी थी। यहां प्राकृतिक रूप से आम, केले और अन्‍य बहुत से फलों के पेड़ उगे हुए हैं। साथ ही गुलबाकावली और गुलाब के सुंदर पौधे यहां की सुंदरता में बढोतरी करती हैं। यह बगिया नर्मदाकुंड से एक किलोमीटर की दूरी पर है।
कबीर चबूतरा
स्‍थानीय निवासियों और कबीरपंथियों के लिए कबीर चबूतरे का बहुत महत्‍व है। कहा जाता है कि संत कबीर ने कई वर्षों तक इसी जगह धूनी रमाई थी।
शाम गहन हो रही हैँ लेकिन यह क्या? यहां तो दूर से ही चमक बिखेर रहा हैँ सर्वोदय जैन मंदिर। हम अब मंदिर परिसर में हैँ।
यह मंदिर भारत के अद्वितीय मंदिरों में अपना स्‍थान रखता है। इस मंदिर को बनाने में सीमेंट और लोहे का इस्‍तेमाल नहीं किया गया है। मंदिर में स्‍थापित मूर्ति का वज़न 24 टन के करीब है। भगवान आदिनाथ अष्ट धातु के कमल सिँहासन पर विराजमान है कमल सिंहासन का वज़न 17 टन है इस प्रकार इस प्रकार प्रतिमा और कमल सिंहासन का कुल वज़न 41 टन है | प्रतिमा को मुनिश्री विद्यासागर जी महाराज ने 06 नवम्बर 2006 को विधि विधान से स्थापित किया, मन्दिर का निर्माण कार्य अभी भी सुचारू रूप से कार्यरत है।
अब शाम हो चुकी हैँ और हम वापस अपने हालिडे होम में।आज बस इतना ही...