एक थी नचनिया - भाग(२५) Saroj Verma द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

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एक थी नचनिया - भाग(२५)

फिर जुझार सिंह की बात से सबका मन खट्टा हो गया फिर वें सभी रेस्तराँ में थोड़ी देर रुककर वापस आ गए और जुझार सिंह से ये कहकर आए कि वें आपस में सलाह मशविरा करके बताऐगें कि आपके साथ कौन जाएगा,इसके बाद जब वें होटल लौटे और सबसे बताया कि जुझार सिंह रुपतारा रायजादा या विचित्रवीर रायजादा में से किसी एक को अपने साथ ले जाने की बात कह रहा है.....
तब रामखिलावन बोला....
"इसमें इतना घबराने की कौन सी बात है,डाक्टर बाबू तो वैसे भी उसी इलाके के हैं,उनके लिए तो ये आसान हो गया,वें वहाँ जाकर अपने अस्पताल का काम भी देख सकते हैं और जुझार सिंह से कह देगें कि मुझे तो मँहगें होटलों में रुकने की आदत है,इसलिए मैं तुम्हारे संग तो चलूँगा लेकिन तुम्हारे साथ ना रुककर किसी मँहगें होटल में रुकूँगा और जब भी तुम्हें मेरी जरूरत हो तो मुझे बुलवा लेना,इस तरह से वें अस्पताल में ही रहेगें और जुझार सिंह को लगेगा कि वो किसी मँहगें होटल में रह रहे हैं"
"हाँ! ये तो हो सकता है लेकिन एक अड़चन है",डाक्टर मोरमुकुट सिंह बोले...
"वो भला क्या"? माधुरी ने पूछा....
"मुझे उस होटल का पता भी तो जुझार सिंह को देना होगा,जहाँ मैं रुकूँगा और अगर मैं उसे किसी होटल का झूठा पता दे भी देता हूँ और कभी कभार वो मुझे खोजते हुए वहाँ पहुँच गया और मैं उसे वहाँ नहीं मिला तो फिर तो मैं उसके सामने झूठा साबित हो जाऊँगा,जो कि मैं नहीं चाहता",मोरमुकुट सिंह बोले...
"लेकिन डाक्टर भइया! इस समस्या का भी समाधान है मेरे पास ",दुर्गेश बोला....
तब माधुरी गुस्सा होकर बोली....
"तुम्हारे पास इस समस्या का क्या समाधान है? यहाँ इतने समझदार लोग तो समस्या का हल नहीं निकाल पा रहे हैं और तुम बड़े आए समाधान बताने वाले ,ये तो बुन्देलखण्ड की वही कहावत हो गई कि..."बड़े बड़े साँप थपड़िया मारें,बिच्छू जी तुम कहांँ हते"
"हाँ! मैं यहाँ बिच्छू बनकर ही आया हूँ",दुर्गेश बोला....
"तो बिच्छू महाराज! क्या समाधान हो सकता है इस समस्या का"?,माधुरी ने पूछा....
उस समय सभी दुर्गेश का मुँह ही ताक रहे थे कि दुर्गेश उस समस्या का क्या समाधान बताने जा रहा है,तभी दुर्गेश ने अपना मुँह खोला....
"मैं कह रहा था कि विचित्रवीर रायजादा बहुत अमीर है तो यही तो समस्या का हल है",
"क्या बकवास कर रहा है तू उतनी देर से,एक तो हम लोगों की साँसें अटकी हुईं हैं और तू है कि हम सबकी जान लेने पर तुला है,शरम नहीं आती झूठा ढ़ाढ़स बधाते हुए,विचित्रवीर का अमीर होना समस्या का ये कैसा समाधान हुआ भला"?, रामखिलावन गुस्से से बोला....
"वही तो मैं कहने जा रहा था बाऊजी!,पहले मेरी बात तो पूरी होने दीजिए",दुर्गेश बोला....
"अरे! उसे बोलने तो दीजिए! कहते हैं ना कि जहाँ तलवार काम नहीं आती ,वहाँ सुई काम आ जाती है,हो सकता है कि दुर्गेश के पास बहुत अच्छा आइडिया हो",डाक्टर मोरमुकुट सिंह बोलें....
"आप भी क्या डाक्टर बाबू! इस बेवकूफ की बातों में आ रहें हैं", मालती बोली....
"मैं बेवकूफ हूँ ना तो मत सुनो मेरा आइडिया",दुर्गेश रुठते हुए बोला...
"अरे! तुम बोलो दुर्गेश! शायद तुम्हारा आइडिया कारगर साबित हो",मिस्टर खुराना बोले....
"लेकिन आप सभी को तो मुझ पर भरोसा ही नहीं है,देखो ना माधुरी बुआ क्या कह रही है",दुर्गेश बोला....
"अब ज्यादा बकवास की ना तो मैं तेरे कान खेचूँगी,ये क्या नौटंकी लगा रखी है उतनी देर से,जल्दी बोल जो बोलना चाहता है",माधुरी गुस्से से बोली....
तब दुर्गेश बोला...
"मैं कह रहा था कि विचित्रवीर रायजादा तो बहुत अमीर है तो वो तो अस्पताल भी खरीद सकते हैं,नहीं तो अस्पताल के ट्रस्टी बनकर जुझार सिंह से ये कहें कि वो तो इस अस्पताल के ट्रस्टी हैं और यहाँ घर जैसी सुविधा है इसलिए वो किसी मँहगें होटल में ना रहकर अस्पताल में रहना ही पसंद करेगें और वें अस्पताल का टेलीफोन नंबर भी जुझार सिंह को दे सकतें हैं,जब भी जुझार सिंह को विचित्रवीर रायजादा को बुलवाना होगा तो वो उन्हें आसानी से टेलीफोन करके बुला लेगा",
अब दुर्गेश का आइडिया सुनकर सब दुर्गेश का मुँह ताकते रह गए,तो दुर्गेश ने सबसे पूछा....
"क्या हुआ? आप सभी को मेरा आइडिया पसंद नहीं आया क्या"?,
"क्या धाँसू आइडिया है दुर्गेश! मान गए तुम्हें,तुम सच में बहुत अकलमंद हो",मोरमुकुट सिंह बोलें....
"चलिए भाई! इस समस्या का समाधान तो गया,लेकिन हम सब वापस लौट जाऐगें तो माधुरी से शुभांकर दूर हो जाएगा जो कि इस नाटक का मुख्य किरदार है",खुराना साहब बोलें....
"तो अब ऐसा क्या किया जाए कि शुभांकर माधुरी से दूर ना हो",रामखिलावन ने पूछा....
"मैं एक बात कहूँ",डाक्टर मोरमुकुट सिंह बोलें....
"हाँ...हाँ...क्यों नहीं",खुराना साहब बोलें....
"अगर शुभांकर माधुरी को तहेदिल से चाहता होगा ना तो वो कोई ना कोई बहाना बनाकर माधुरी से जरूर मिलने आएगा",डाक्टर मोरमुकुट सिंह बोलें.....
"तो अभी शुभांकर को माधुरी की जुदाई बरदाश्त करने देते हैं और पहले जुझार सिंह की अकल ठिकाने पर लाने का सोचते हैं",खुराना साहब बोलें....
"यही सही रहेगा",रामखिलावन बोला....
"तो फिर मैं कल ही टेलीफोन करके जुझार सिंह को बता देता हूँ कि विचित्रवीर रायजादा जाऐगें उसके साथ", खुराना साहब बोलें....
"हाँ! देखते हैं कि अब वो ये बात सुनकर क्या कहता है",रामखिलावन बोला....
और फिर यही किया गया,खुराना साहब ने दूसरे दिन ही जुझार सिंह को टेलीफोन करके बता दिया कि विचित्रवीर रायजादा उनके साथ चलने को राज़ी हैं,वो जिस अस्पताल के ट्रस्टी हैं उसी में रहेगें,वो किसी मँहगें होटल में नहीं में नहीं रुकना चाहते,वें आपको अस्पताल का टेलीफोन नंबर दे देगें जब आपका जी चाहे तो आप उन्हें टेलीफोन करके बुला सकते हैं.....
जुझार सिंह इस बात के लिए फौरन राजी हो गया,क्योंकि वो भी अपने पुश्तैनी मकान और हवेली में वापस जाना चाहता था,उसको विरासत में जो सम्पत्ति मिली थी वो सालों से यूँ ही पड़ी थीं,उसे श्यामा डकैत से अपनी जान का खतरा था इसलिए वो उस हादसे के बाद अपने गाँव नहीं लौटा था.....
उसने सोच लिया था कि जब वो अपने गाँव लौटेगा तो अपने बेटे और बेटी को भी उसका गाँव दिखाने अपने संग ले जाएगा और उसने यही किया,कलकत्ता के घर को नौकरों के भरोसे छोड़कर वो शुभांकर और यामिनी के साथ अपने गाँव की ओर चल पड़ा,दो चार दिन तो सभी होटल में रुके क्योंकि तब तक हवेली की सफाई नहीं हुई थी और जब हवेली की साफ सफाई हो गई तो वें अपने गाँव पहुँचे और गाँव की सुन्दरता देखकर शुभांकर और यामिनी का दिल खुशी से भर गया,शहर की भीडभाड़ से दूर दोनों को गाँव की शान्ति बहुत सुकून दे रही थी....

क्रमशः....
सरोज वर्मा....