महिला पुरूषों मे टकराव क्यों ? - 80 Captain Dharnidhar द्वारा मानवीय विज्ञान में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
  • Lash ki Surat

    रात के करीब 12 बजे होंगे उस रात ठण्ड भी अपने चरम पर थी स्ट्र...

  • साथिया - 118

    अक्षत घर आया और तो देखा  हॉल  में ही साधना और अरविंद बैठे हु...

  • तीन दोस्त ( ट्रेलर)

    आपके सामने प्रस्तुत करने जा रहे हैं हम एक नया उपन्यास जिसका...

  • फाइल

    फाइल   "भोला ओ भोला", पता नहीं ये भोला कहाँ मर गया। भोला......

  • दरिंदा - भाग - 3

    प्रिया को घर के अंदर से सिसकियों की आवाज़ लगातार सुनाई दे रह...

श्रेणी
शेयर करे

महिला पुरूषों मे टकराव क्यों ? - 80

अभय अपनी पत्नी केतकी को अपलक निहार रहा है , केतकी पहले तो नजरे चुराती हुई लज्जाती है , फिर तो' केतकी की भी आंखे ठहर सी जाती है वह भूल जाती है... घर वाले उन दोनों को देख रहे हैं ।
अभय की मा ने दोनों को कुछ देर तो देखा.. फिर मुस्कुराकराती हुई बोली ..अभय ! पहले तू भीतर तो आजा ..फिर' केतकी को देखकर धीरे से बड़बड़ाकर कहती है घणी ही रात पड़ी है.. एक दूसरा नि अच्छासुं देख लियो ..केतकी लजाकर हल्की सी मुस्कुरा देती है । अभय को भी अपनी गलती का एहसास होता है वह भी नजरे नीची कर लेता है , अभय आगे बढ़कर अपनी मा के पांवो को छूकर प्रणाम करता है ..कस्तुरी की आंखे प्रेम से नम हो जाती है । कस्तुरी ने अभय को अपने हृदय से लगा लिया और आशीर्वाद दिया .. तेरी हजारी उम्र हो बेटा ! भगवान निरोगा राखे, और अब तू म्हाने जल्दी ही पोता को मुंह दिखा !
आगे बढकर अभय ने अपने पापा को प्रणाम किया ..खुश रहो बेटा ! औपचारिकता से अभय के पापा ने
पूछा.. रास्ते मे कोई तकलीफ तो नही हुई.. नही पापा कोई तकलीफ नही हुई।

घर के चोक मे एक चारपाई व दो तीन चेयर लगी थी । साथ मे एक स्टूल रखा था, अभय ने अपना बैग चारपाई पर रख दिया ।
सभी वही चोक मे बैठ गये ..केतकी अपनी सास के पीछे खड़ी थी और अभय को रह रहकर देख रही थी । सहसा कस्तुरी ने कहा ..बहु ! तुम चाय बनाकर ले आवो । केतकी ने हां मे अपना सिर हिलाया और चाय बनाने रसोई मे चली गयी ।
अभय ने एक लिफाफा अपनी कोट की अंदर की जेब से निकाला और अपने पापा के हाथ मे थमा दिया ..और बोला लो पापा ! अभय के पापा ने लिफाफा लिया और कस्तुरी को थमा दिया ..कस्तुरी ने अपने बेटे की ओर देखते हुए कहा ..कितना है ? अभय ने कहा दो लाख है मम्मी।
कस्तुरी लिफाफा लेकर अंदर रखने चली गयी । अभय ने कहा पापा जयपुर मे विद्याधर नगर मे कुछ फ्लैट बन रहे है ..मैने फार्म भरा है थ्री बी एच के तीस लाख मे मिल जायेगा। आर्मी की एक संस्था खुद बनाकर देगी । पैसे किस्तो मे तन्ख्वाह से कटते रहेंगे।
रसोई से केतकी चाय बनाकर ले आई थी उसने पहले अपने ससुर को चाय दी फिर अपने पति को चाय दी फिर अपनी सास की चाय पास रखी स्टूल पर रख दी और खुद रसोई मे चली गयी ।

अभय नहा धोकर फ्रेस होकर वापस चोक मे आकर बैठ गया । कुछ देर बाद सभी ने साथ बैठकर भोजन किया । देर रात तक अभय अपनी मम्मी व पापा के साथ बैठे बैठे बाते करता रहा । रात के दस बज गये थे अभय को जंभाई आई तो' ..अभय की मम्मी ने कहा बेटा ! बहुत रात हो गयी अब तू जाकर सो जा .. अभय भी यही चाह रहा था ।
उधर केतकी अपने रूम मे अभय का बेसब्री से इंतजार कर रही थी । तभी दरवाजा खुला .. मुस्कुराता हुआ अभय प्रवेश करता है .....
देर रात तक दोनो पति पत्नी जागते रहे । कब भौर हो गयी पता ही नही चला । मंदिर मे घड़ियाल बजने की आवाज सुनकर अभय ने कहा ..केतकी अब थोड़ा सो जाओ। केतकी ने हँसकर कहा ..इतने दिनो से सो ही तो रही थी ..केतकी ने मुस्कुराकर कहा आज लगता है सासू मा का दिया आशीर्वाद काम कर गया है , मुझे ऐसा लगता है । दोनो हंसने लग जाते है ..
उधर अभय की मम्मी कस्तुरी की सिसकने की आवाज आती है ..