सिद्धार्थ रेलवे जंक्शन पर अंकिता को चारों तरफ ढूंढता है और जब उसे शक होता है कि शायद अंकिता इसी ट्रेन में चढ़ गई है तो वह भी उस ट्रेन में चढ़ जाता है।
प्यार में दिल पर चोट खाई अंकिता को रेलवे स्टेशन पर उतर कर अगल डिब्बे में ढूंढते ढूंढते चार रेलवे स्टेशन निकल जाते हैं और फिर अंकिता बहू ढूंढने के बाद सिद्धार्थ को एक डिब्बे में मिल जाती है, लेकिन जब दुखी अंकिता रेल से उतरने को कतई भी तैयार नहीं होती है तो इस मुसीबत के में जब सिद्धार्थ को कुछ भी समझ नहीं आता है, तो वह अंकिता का हाथ पकड़ कर अंकिता के साथ चलती ट्रेन से पूल आने पर नदी में कूद जाता है।
सिद्धार्थ अपने स्कूल कॉलेज मोहल्ले का बहुत अच्छा तैराक था, लेकिन अंकिता तैरना नहीं जानती थी, इसलिए अंकिता को किनारे पर लाने में सिद्धार्थ को बहुत मुश्किल होती है और किनारे पर पहुंचने के बाद सिद्धार्थ की और भी मुश्किल बढ़ जाती है, क्योंकि चारों तरफ घना जंगल था, चारों तरफ घना जंगल देखकर सिद्धार्थ घबरा जाता है, क्योंकि जंगल में जंगली जानवरों की बहुत तेज तेज आवाज़ें गूंज रही थी। सिद्धार्थ को ऐसा महसूस हो रहा था कि आज हमारी जान बचाना मुश्किल है, लेकिन वह फिर भी हिम्मत नहीं हर कर जंगल से निकलने की कोशिश नहीं छोड़ता है।
सिद्धार्थ इस वजह से और ज्यादा दुखी हो रहा था कि अंकिता बार-बार यह कह रही थी कि "मैं अब धोखेबाज इंसानों की बस्ती में नहीं रहना चाहती हूं, इसलिए मैं इस बियाबान जंगल में ईश्वर का नाम लेकर अपना जीवन बिताना चाहती हूं, मुझे प्रेम शब्द से नफरत हो गई है।"
तब सिद्धार्थ अंकिता की बकवास बार-बार सुनकर परेशान होकर उसके चेहरे पर जोरदार थप्पड़ मार कर कहता है "मेरी बात ध्यान से सुनो मैंने तुम्हें दिलो जान से प्यार किया है, लेकिन आज तक तुमने मेरे प्यार की कदर नहीं की और उस टोनी के लिए जो तुम्हारा यौन शोषण करके तुम्हें दुनिया में अकेला अपमानित होने के लिए छोड़ना चाहता है, उसके पीछे अपने मां-बाप बहन रिश्तेदारों दोस्तों जान पहचान वालों सभी को दुख देकर अपना जीवन बर्बाद करने की सोच रही हो।"
सिद्धार्थ की इस बात को समझ कर अंकिता भी उसके साथ जंगल से बाहर निकालने की कोशिश करने लगती है, लेकिन दोनों को ही पता नहीं था कि हम घर से कितना दूर है और किस जंगल में फंस गए हैं।
तभी रात के अंधेरे में पैदल चलते-चलते उन्हें जंगल में काली माता का मंदिर दिखाई देता है।
मंदिर को देख कर दोनों को तसल्ली होती है कि मंदिर है यहां कोई ना कोई इंसान जरूर मिलेगा, देर में या जल्दी और मंदिर के पास पहुंचते ही उन्हें एक वृद्ध पुजारी मंदिर का ताला बंद करके अपने घर साइकिल जाता हुआ दिखाई देता है। अंकित सिद्धार्थ बुजुर्ग पुजारी को आवाज देकर रोकते हैं।
अंकिता सिद्धार्थ पुजारी को रेल से कूदने की और उस से पहले की सारी बात बताते हैं।
वह बुजुर्ग पुजारी अपनी साइकिल बिन चलाएं हाथ से पकड़ कर धीरे-धीरे उन्हें पैदल-पैदल अपने घर ले कर जाता है और उनको समझाता है कि "रात को मेरे घर आराम करके सुबह यहां पास में एक छोटा सा रेलवे जंक्शन है, वहां से अपने घर के लिए रेल पकड़ कर अपने घर सुख शांति से पहुंच जाना।
बुजुर्ग पुजारी के घर में उसकी बुजुर्ग पत्नी के अलावा कोई नहीं था, बुजुर्ग पुजारी की कोई संतान नहीं थी, एक छोटा भाई था, वह अपने बीवी बच्चों के साथ शहर में रहता था और वहीं शहर के मंदिर में पूजा पाठ करके अपने परिवार का गुजारा चलता था।
बुजुर्ग पुजारिन सिद्धार्थ अंकिता को पति-पत्नी समझ कर दोनों का अपने घर एक छोटे से कमरे में सोने के लिए बिस्तर लगा देती है।
वैसे भी गरीब पुजारी का घर बहुत छोटा था, लेकिन दिल दोनों पति-पत्नी का बहुत बड़ा था।
सिद्धार्थ अंकिता को यह भी डर था कि अगर हमने पुजारिन को बताया कि हम दोनों पति-पत्नी नहीं है, तो शायद यह हमें अपने छोटे से घर में रात ना बिताने दे, इसलिए वह खाना खाकर चुपचाप उस छोटे से कमरे में सोने चले जाते हैं।
सिद्धार्थ तो पहले ही अंकिता का दीवाना था, अब धीरे-धीरे अंकिता को भी यह एहसास होने लगा था कि सिद्धार्थ जैसा लड़का दुनिया में मिलना मुश्किल है, इसलिए मैं सिद्धार्थ के प्रेम में धीरे-धीरे डूबती जा रही हूं।
और रात के 3:00 बजे नंदू की क्रोधित बेचैन भटकती आत्मा सिद्धार्थ और अंकिता के सामने आकर खड़ी हो जाती है।
और अंकिता से कहती है "तुम मुझे और सिद्धार्थ को छोड़कर किसी टोनी नाम के लड़के से शादी करने जा रही थी, इसलिए इस गुनाह की सजा तुम्हारे लिए सिर्फ मौत है।"
नंदू की आत्मा की यह बात सुनकर सिद्धार्थ अंकिता दोनों घबरा जाते हैं, क्योंकि नंदू की बेचैन क्रोधित भटकती आत्मा अब सिद्धार्थ का भी कहना नहीं मान रही थी और रेल से नदी में कूदने की वजह से अंकिता के गले का जीसस क्राइस्ट का लॉकेट कहीं टूट कर ना जाने कहां गिर गया था।
इसलिए अंकिता और भयभीत हो रही थी कि अब नंदू की आत्मा मेरे प्राण लेकर ही मानेगी।
उसी समय सिद्धार्थ की नजर कमरे में छोटे से मंदिर पर जाती है, उस मंदिर में माता की मूर्ति रखी हुई थी और मूर्ति के पास माता रानी के सिंगर का सामान रखा हुआ था जैसे कंगी सिंदूर आदि।
सिद्धार्थ तुरंत मंदिर से सिंदूर की डिब्बी उठाकर सिंदूर से अंकिता की मांग भर देता है और उसके अंकिता की मांग भरते ही नंदू की क्रोधित बेचैन भटकती आत्मा सिद्धार्थ अंकिता को आशीर्वाद देकर वहां से अदृश्य हो जाती है, लेकिन जाते-जाते यह कह कर जाती है कि "मेरे छोटे भाई सिद्धार्थ को अपनी पसंद की पत्नी मिल गई है, अब मैं तुम्हारी बहन सीमा के पास जा रहा हूं, क्योंकि सीमा मेरी पसंद की पत्नी है।
नंदू की क्रोधित भटकती बेचैन आत्मा के कमरे से शांति से गायब होते ही सिद्धार्थ अंकिता चैन की सांस लेते हैं।
और अंकिता की नजरों में सिद्धार्थ का महत्व और बढ़ जाता है, क्योंकि सिद्धार्थ सच्चे हमदर्द जैसे उसकी बार-बार मदद कर रहा था।