चमकीला बादल - 16 - अंतिम भाग Ibne Safi द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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चमकीला बादल - 16 - अंतिम भाग

(16)

"यह बात तो समझ में आ गई लेकिन अभी तक यह नहीं समझ पाया हूं कि आखिर मैं इस प्रकार यहां क्यों लाया गया हूं? मैं तो आजीवन यहां तक न पहुंच सकता।"

"इसलिए लाए गए हो कि संसार वालों को हमारे प्रोजेक्ट विनाशकारी के बारे में बता सको। बहुत जल्द वापस भिजवा दिये जाओगे। मगर केवल तुम। संगही को यहीं एड़ियां रगड़ रगड़ कर मरना है।"

"तुम्हें इस रूप में देख लेने के बाद अब जिंदा रहने का सवाल ही नहीं पैदा होता।" संगही ने दांत पर दांत जमाकर कहा। मगर चमकीला रज उस चेहरे सहित गायब हो गया और संगही ने राजेश से कहा। "कदाचित उसका वास्तविक रूप यही था।"

राजेश कुछ कहने ही जा रहा था कि औरत ने उसके कंधे पर हाथ रख दिया और बोली।

"मैं कल्पना भी नहीं कर सकती थी कि तुम इतने महत्वपूर्ण आदमी हो।"

"क्या तुम जानती हो कि वह टी थर्टी बी अर्थात थारसा है?"राजेश ने पूछा।

"मैं क्या जानूं कि वह कौन थी? कितने ही चेहरे देखती रहती हूं। यह तो तुम दोनों की बातों से अनुमान हुआ कि तुम कोई महत्वपूर्ण आदमी हो।"

संगही ने जोरदार अट्टहास लगाया फिर सीना ठोक कर बोला।

"महत्वपूर्ण आदमी मैं हूं जिसे वह यातनाएं देकर मारना चाहती है।"

"ओह!" औरत ने बुरा सा मुंह बनाकर कहा। "तुम जैसे कितने ही आते है और बड़ों से सहमत न होने के कारण चींटियों की नजर हो जाते हैं।"

"मैं नहीं समझा?" राजेश जल्दी से बोल पड़ा।

"मांसाहारी चींटियां।" औरत ने कहा। "थोड़ी ही देर में हड्डियों के पंजर के अतिरिक्त और कुछ शेष नहीं बचता।"

संगही ने लापरवाही प्रकट करने के लिए कंधे सिकोड़े और फिर ढ़ीले छोड़ कर दूसरी ओर चलने लगा।

"तुमने इस आदमी को बचाकर अच्छा नहीं किया।" औरत ने मंद आवाज में कहा।

राजेश मौन रहा। संगही को चिंताजनक नेत्रों से देखे जा रहा था। फिर उसने संगही को आवाज दी। वह रुककर मुड़ा।

"कहां भागे जा रहे हो?" राजेश ने पूछा।

"कहीं भी नहीं। सोच रहा हूं कि कहीं तुम्हें क़त्ल ही न करना पड़े।" संगही ने कहा।

"वह किस खुशी में?"

"इस औरत के मामले में हस्तक्षेप न करना।" संगही नयन फुलाकर बोला।

"तुम भूल रहे हो कि यह मेरी औरत है।" राजेश ने कहा।

"अच्छी बात है। इसका भी निर्णय हो जाएगा।" संगही ने धमकाने वाले भाव में कहा। और फिर उसी गुफा की ओर बढ़ने लगा जिसमें वह औरत रह रही थी।

"देखो देखो। वह गुफा की ही ओर जा रहा है।" औरत ने कहा।

"तुम चिंता न करो। मैं उसे देख लूंगा।" राजेश ने कहा।

"देखो। मुझे उसकी आवाज से भी घृणा महसूस होती है।" औरत ने कहा। "मैं उसके साथ क्षण भर के लिए भी गुफा में न रह सकूंगी।"

"तो फिर?" राजेश ने पूछा।

"कहीं और चलेंगे।"

"क्या तुम उस स्थान की निशानदही कर सकोगी जहां यह सारे मीजाईल्स मौजूद है?"

"मैं क्या जानूं कि कहां रखे हैं?" औरत ने कहा। "और फिर तुमको उन मीजाईलो की चिंता क्यों है?"

"क्यों? क्या मुझे चिंता नहीं होनी चाहिए।" राजेश ने मूर्खों के समान पूछा।

"बिल्कुल नहीं होनी चाहिए। क्योंकि तुम तो वापस भिजवाए जा रहे हो।" औरत ने कहा। "हां, यदि यहां रहते तो फिर चिंता कर सकते थे।"

राजेश कुछ नहीं बोला। सोचने लगा था कि आखिर यह चक्कर क्या है? अगर थारसा अपने प्रोजेक्ट विनाशकारी के बारे में संसार वालों को सूचित ही करना चाहती थी तो फिर उसके दूसरे रास्ते भी थे। आखिर उसे ही इस कार्य सिद्धि का साधन क्यों बनाया जा रहा है? और फिर उसकी बातों पर किसे विश्वास होगा? यह तो कह ही नहीं सकेगा कि खुद थारसा ही उसे अपने उस स्टेशन तक ले गई थी और फिर उसे वापस भी कर दिया। यदि उसने किसी से यह कह भी दिया तो खुद संदेह का पात्र बन जाएगा। उससे बड़ी भारी भूल हुई। उसे थारसा के समक्ष यह समस्या रखनी चाहिए थी। उससे इस संबंध में पूछना चाहिए था। पता नहीं अब उससे बातें करने का अवसर मिलेगा या नहीं। वैसे अब अवसर मिलने की आशा बिल्कुल नहीं। फिर?

अचानक उसकी विचार शृंखला भंग हो गई। औरत उसे टहोका दे रही थी।

"क्या है?" उसने पूछा।

"चलो। क्या सोचने लगे थे?" औरत बोली।

"कुछ भी नहीं। मगर कहां चलूं?" राजेश ने पूछा।

"कई दूसरी जगह।"

"नहीं। यह असंभव है।" राजेश ने कहा। " हमें भी उसी गुफा में ही चलना होगा। मैं उसे अपनी नजरों में ही रखना चाहता हूं।"

"वह क्यों?" औरत ने पूछा।

"तुम नहीं जानती। वह बहुत ही खतरनाक आदमी है।" औरत उसे घूरने लगी फिर झल्लाकर बोली।

"अगर यही बात थी तो फिर तुमने उसे मर जाने क्यों नहीं दिया?" उन लोगों के हाथों से बचाया क्यों था?"

"अपने स्वभाव से विवश हूं।" राजेश कहा।

"क्या मतलब?"

"जब किसी एक आदमी को कई आदमी घेर लेते है तो मुझे बड़ा ताब आता है ‌और मैं अपनी जान की भी परवाह नहीं करता। कूद पड़ता हूं।" राजेश ने कहा। "यही बात उस समय भी हुई थी। यदि उसे एक ही आदमी ने घेरकर मार डालने की कोशिश की होती तो मैंने हस्तक्षेप न किया होता। मैं भी तुम्हारे ही समान दर्शक बना रहता।"

"अच्छी बात है।" औरत ने कहा। "तो फिर चलो उसी गुफा में।"

"उचित यही है।" राजेश ने कहा। "आओ चलें।"

किंतु जैसे ही दोनों गुफा में प्रविष्ट हुए संगही राजेश पर टूट पड़ा। राजेश उसके स्वभाव से भली भांति परिचित था। इसलिए पूर्ण रूप से सतर्क था। झुकाई देकर दूर जा खड़ा हुआ और आंखें निकाल कर बोला।

"क्या सचमुच तुम्हारी खोपड़ी उलट गई है?"

"मैं तुम्हें बांध कर मार डालूंगा। और फिर _ और फिर।" कहते हुए राजेश पर फिर छलांग लगा दी।

और अब कदाचित दोनों ही उस औरत की ओर ग़ाफ़िल हो गए थे। वह घाते लगा रहे थे पैंतरे बदल रहे थे। मगर अभी तक कोई किसी के बंधन में नहीं आ सका था।

"दूसरी ओर वह औरत एक कोने में पहुंची। चेहरे पर गैस मास्क चढ़ाया और किसी प्रकार की गैस के सिलिंडर का जेट खोल दिया।

हलकी सी आवाज के साथ गुफा में गैस‌ फैलने लगी।

राजेश और संगही दोनों ही के जेहन उस आवाज की ओर आकृष्ट हो गये थे। फिर संगही ने बड़ी फुर्ती से गुफा के मुख की ओर छलांग लगाई। किंतु धरती पर आने के बाद फिर न उठ सका।

राजेश का सिर भी चकरा कर रह गया था। उसने भी गुफा में से निकल जाने की कोशिश की थी। मगर वह सफल न हो सका। जेहन अंधकार में डूबता चला गया।

अब दोनों ही पास ही पास बेहोश पड़े हुए हैं।

और सिलेंडर का जेट बंद करके वह औरत चेहरे से गैस मास्क उतार रही थी। और जब उसने चेहरे से गैस मास्क उतारा तो उसके अधरों पर बड़ी अर्थपूर्ण मुस्कान थिरक रही थी।

 

======= समाप्त========