उजाले की ओर - - - संस्मरण
==================
मित्रो
स्नेहिल नमस्कार
जीवन बड़ा अद्भुत है, सच कहें तो एक दौड़ सा लगता है और कभी सोता हुआ सा |सच बात तो यह है कि हम मनुष्य कभी भी संतुष्ट नहीं होते | सफ़ल होते हैं, तब और आगे की सोच शुरू हो जाती है और असफल होते हैं तब तो बिलकुल ही निराशा के पलड़े में जा बैठते हैं |
सोचकर देखें कि मनुष्य -जीवन में सफलता ज्यादा खतरनाक है या असफलता?
जब कभी व्यक्ति असफल होता है तो वह तरह तरह से अपना विश्लेषण करता है। अपनी कमियों ओर खूबियों को ढूंढता है। लोगों से अपने संबंधों को टटोलने की कोशिश करता है।
परन्तु सफलता मिलने पर अधिकतर लोग ऐसा नही करते हैं और धीरे धीरे सफलता उनके सिर पर चढ़कर बोलने लगती है। जिसका परिणाम यह होता है कि हम अपने ही लोगों से दूर होते जाते हैं और हमारी ऐसी ऐसी संगत में फंसने की सम्भावना बढ़ने लगती है जो हमें अधिक चढ़ा दे यानि कि हम एक गलत दिशा की ओर अग्रसर हो सकते हैं।
असफल होने पर हम डिप्रेशन में जा सकते हैं | यदि देखा जाए तो आजकल काफ़ी प्रतिशत लोग डिप्रेशन में जाते दिखाई देते हैं | इसका सबसे बड़ा कारण है आज का वातावरण जो अधिकतर दिखावे पर टिका होता है | हम जिधर देखें, उधर लोग नकल करते दिखाई देते हैं | एक की नई गाड़ी देखी तब डिप्रेशन हो गया, किसी का बड़ा घर देखा तो डिप्रेशन हो गया | अपने बच्चे बड़े, नामी स्कूल-कॉलेजों में नहीं पढे तो बच्चों को तो ठीक, माता-पिता को डिप्रेशन हो गया !
दूसरी ओर यदि सफलता का नशा चढ़ गया तब इंसान दूसरी तरह मदांध हो जाता है |वह अपने जैसा या अपने ऊपर किसी को समझता ही नहीं | वह भगवान बन जाता है और भगवान के सामने भला किसकी चली है ? जिस सफलता में अभिमान का नशा हो, दूसरों से स्वयं को बेहतर दिखाने या नीच दिखने की भावना पंप जाए वह सहज, सरल कैसे रह सकता है ? और बात बिगड़ती चली जाती है |
ईश्वर न करे यदि कोई अपने लक्ष्य में असफ़ल हो जाता है, वह दूसरी, तीसरी बार प्रयास करके सफ़लता प्राप्त कर सकता है | उसके साथ उसके वे मित्र खड़े रहते हैं जो वास्तव में उसका भला चाहते हैं, रिश्तेदार हैं, शुभचिंतक हैं और जरूरत पड़ी तो डॉक्टर और दवाइयां भी मिल जाते हैं । परंतु सफलता का नशा होने के बाद व्यक्ति इन सब को भूल जाता है। मतलब डिप्रेशन की तो दवा है परंतु सफलता के नशे की कोई दवा नही है क्योंकि इसको कोई बीमारी मानता ही नहीं है।
कहीं पढ़ था कि असफलता से इतने लोग ओर संबंध इतने बर्बाद नहीं होते हैं जितने सफलता से।
असफल होने पर व्यक्ति गिर कर खड़ा हो सकता है परंतु सफ़ल व्यक्ति खड़ा खड़ा गिर सकता है। हम अपने समक्ष प्रत्यक्ष देखते हैं कि फलों से लदे हुए पेड़ झुक जाते हैं । अर्थात् हम जितने ऊपर जाएं, जितने सफल हों उतना ही सरलता, सहजता, विनम्रता, सज्जनता का ध्यान रखें जिससे हमारे व्यक्तित्व, जीवन और हमारे संबंधों पर खराब प्रभाव न पड़े ।
हम सबका दिन सपरिवार क्रोधरहित व आनंदपूर्ण हो।
कल कल करता पानी बन जा, प्रेम-प्रीत के गीत गुनगुना
सबकी राम -कहानी बन जा -----!!
आप सबकी मित्र
डॉ, प्रणव भारती