प्रेम गली अति साँकरी - 93 Pranava Bharti द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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प्रेम गली अति साँकरी - 93

93---

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अगले दिन मौसी का पूरा परिवार दोपहर में ही आ गया | माता-पिता की दुर्घटना यानि उनके न रहने से, स्वाभाविक था मौसी और मौसा जी कुछ अधिक ही उदास थे | हम सबको उनके कोविड-अटैक के बारे में पता चल गया था लेकिन समय ऐसा कठिन था कि हममें से कोई भी उनको देखने नहीं जा पाया था | और तो और मौसा जी के दूसरे भाई भी माता-पिता को नहीं मिल पाए थे | यह सब उस हादसे में हुआ था जब उन्हें अस्पताल में बड़ी मुश्किल से जगह मिली थी लेकिन बहुत कम मरीज़ ही अपने घरों को वापिस लौट पाए थे | बहुत खराब दौर था, बड़ी कठिन, तकलीफदेह स्थिति! पहले तो रोगियों को अस्पताल में जगह ही नहीं मिल रही थी और जिनको किसी न किसी प्रकार अस्पताल में जगह मिली भी, उनकी बड़ी दर्दनाक स्थिति हो गई थी | कुछ पता नहीं था वापिस अपने घर लौटेंगे भी या नहीं? जो ठीक होकर लौट आए थे वे और उनके परिवार बहुत भाग्यशाली थे | 

पूरे संसार में ही उस समय आतंक की छाया थी | न जाने कितनी मुश्किल से एक-दूसरे से फ़ोन पर या वीडियो पर बात हो जाती थी वरना सब लोग आतंक के साये में जी रहे थे | लंबे समय के बाद वापिस आना और माता-पिता को न देखना मौसा जी के लिए बहुत पीड़ादायक था | न जाने उन दिनों में कितने लोगों के परिवार बर्बाद हुए थे | यह एक ऐसा कठिन समय था जिसने ताउम्र के लिए लोगों के हृदयों को पीड़ा का आगार बना दिया था | 

उन लोगों के आने के बाद अम्मा और मौसी काफ़ी देर तक एक-दूसरे से चिपटकर रोती रहीं | अंतरा भी अम्मा से और मुझसे चिपटकर खूब रोई, मैं उसकी दीदी थी | उसको मुश्किल से चुप कराया | अंतरा का जर्मन पति अल्बर्ट और उसकी किशोरी बिटिया आना दोनों अम्मा और मौसी को इतना रोते हुए देखकर चुपचाप इधर-उधर देख रहे थे | आना ने अपनी माँ अंतरा को मुझसे चिपटकर रोते हुए देखकर अपनी आँखों में आँसु भर लिए थे | मैंने आना के पास जाकर उसे अपने से चिपकाकर आँसु पोंछने की कोशिश की लेकिन वह बहुत कंफरटेबल नहीं लगी इसलिए मैं उसके सिर पर हाथ फेरकर वहाँ से हट गई | 

“अमी दीदी प्लीज़ डोन्ट माइंड, ये लोग इस स्थिति के आदी नहीं हैं | ”अंतरा के स्वर में जैसे क्षमा याचना थी | 

“आइ अंडरस्टैंड अंतु ---ऐसा मत कह---”मैंने अंतरा को अपने से चिपका लिया था | 

मज़े की बात यह थी कि अम्मा और कीर्ति मौसी, मैं और अंतरा ऐसे बातों में मशगूल हो गए कि भूल ही गए कि अल्बर्ट, मौसा जी और पापा तो बातें कर रहे हैं लेकिन वो किशोरी आना वहाँ बैठी इधर-उधर देखने के अलावा और क्या कर सकती थी! महाराज जब कॉफ़ी लेकर आए तब ध्यान आया कि इतने बड़े संस्थान में कितनी ही ऐसी चीज़ें हैं जिनमें आना को इंटेरेस्ट हो सकता है लेकिन प्रश्न यह था कि उसके साथ का कोई तो होना चाहिए था जो उसे संस्थान में घुमा सकता | 

“मैं गुड़िया को भेज देता हूँ, बेबी हिन्दी बोल रही हैं, वह सब घुमा देगी | ”महाराज ने स्थिति को परखते हुए कहा | 

“हाँ, महाराज , यह अच्छा रहेगा | ”मैंने कहा लेकिन फिर ध्यान आया कि गुड़िया कहीं व्यस्त न हो | कल ही तो सुधा की डिलीवरी हुई थी | मैंने महाराज से अपने मन में आई बात कही तो महाराज ने बताया कि गुड़िया घर पर ही है | रमेश और उसकी माँ हैं सुधा के पास | वे अभी जाकर भेजते हैं | उन्हें डिनर की व्यवस्था देखनी थी और डाइनिंग-हॉल में भी नज़र मारनी थी | क्राकरी, कटलरी से लेकर डाइनिंग टेबल के मैट्स, नैपकिंस तक सबका ख्याल महाराज ऐसे करते कि क्या कोई महिला कर सकती होगी | सब उन पर इतने रिलैक्स रहते कि उनके बिना संस्थान के भोजन और भोजन-कक्ष यानि डाइनिंग की कल्पना करना मुश्किल था | 

कुछ ही देर में महाराज ने अपनी बिटिया को भेज दिया और आना बड़े प्यार से उसके साथ उठकर चली गई | संस्थान कोई छोटा तो था नहीं और अब तो विक्टर, कार्लोस भी आ गए थे जिनके साथ खेलने में आना को बड़ा मज़ा आने वाला था क्योंकि वह और उसके पिता दोनों ही डॉग लवर्स थे | इनके अलावा कोविड के दिनों में संस्थान में कुछ और बदलाव हुए थे | संस्थान के हरे-भरे आकर्षित करने वाले बगीचे के एक तरफ़ एक्वेरियम और दूसरी तरफ़ छोटा स पॉण्ड बन चुका था जिसमें प्यारी प्यारी छोटी-छोटी बत्तखें तैरती रहती थीं | पॉण्ड के ऊपर विभिन्न फूलों के ऐसे अलग-अलग रंगों के पेड़ लगे हुए थे जिनसे छाया के साथ बगीचे की खूबसूरती न जाने कितनी गुणा बढ़ गई थी | पेड़ों से गिरने वाले पत्ते और फूल झरते और गंदगी हो जाती लेकिन यहाँ सब प्रकार की सुंदर व्यवस्था थी जिससे सफ़ाई बनी रहती और स्थान बहुत आकर्षक लगता | वहीं पर बैठने के लिए संगर्ममर की बैंचेज़ भी बनी थीं | यहाँ जो बच्चे आते, लौटकर जाना ही नहीं चाहते थे | 

“उत्पल इज़ नॉट हियर ?”अचानक मौसी ने अम्मा से पूछा | 

“बिलकुल, यहीं है | हाँ, वो तो तुम्हारी रिश्तेदारी में है न---आएगा वह डिनर पर, किसी काम से बाहर गया हुआ है | तुम लोगों के आने के बारे में मालूम है उसे | ”अम्मा ने मौसी को उत्तर दिया | 

“अब वह संस्थान में ही रह रहा है----”अम्मा ने खुलासा किया तो मौसी चौंकीं | 

“वह तो बाहर फ़्लैट में रहता था न ?फिर---?”

अम्मा ने सारांश में उत्पल के यहाँ आने की पूरी कहानी सुना दी | 

“बहुत अच्छा किया आपने---उस बेचारे को जीवन में इतना अपनापन और इतना प्यार कभी नहीं मिल सका | ”मौसी ने उदासी से कहा | 

“क्यों, ऐसा क्या हुआ?”अम्मा ने मौसी से पूछा फिर मौसी से बोलीं;

“हाल ही में इसकी कोई मौसी गुज़र गईं | यह जाना चाहता था लेकिन हम लोगों ने इसे जाने नहीं दिया | बहुत उदास रहा काफ़ी दिन---बड़े मुश्किल थे वे दिन---क्या इसकी सगी मौसी थीं वे?”अम्मा ने बताया और साथ ही प्रश्न भी दाग दिया | 

“बताऊँगी, बड़ी लंबी कहानी है | अब तो यहीं हैं, मिलते रहेंगे | ”मौसी बोलीं | 

मैं बातें तो अंतरा से कर रही थी लेकिन उत्पल का नाम सुनते ही मेरे कान उन दोनों बहनों की बातों का पीछा कर रहे थे | आखिर ऐसा क्या राज़ होगा इस लड़के के जीवन से जुड़ा?

अम्मा और मौसी नाना जी के घर का अभी कुछ नहीं कर पाईं थीं | उनकी बहुमूल्य पुस्तकें तो विश्वविद्यालय के पुस्तकालय में भेज दी गईं थीं किन्तु उस घर में इतना सामान अटा पड़ा था कि उसे संभालने का किसी के पास न तो समय था और न ही शक्ति! लेकिन कुछ तो करना ही था | कहते हैं न कि सामान बरसों का और पल की खबर नहीं !कितना सामान भरा पड़ा था नाना जी के घर में भी और धीरे-धीरे पुराना होता जा रहा था जिसकी वैल्यू भी कम होती जा रही थी और उसके लिए कोई जगह नहीं थी | 

मन अम्मा और मौसी की बातों से क्षुब्ध होता जा रहा था | अपने जीवन के लिए भी नहीं, अपनी पीढ़ियों के लिए जोड़ता रहता है आदमी और परिणाम होता है कि पीढ़ियाँ नए वातावरण और नए विचारों में घूमती हुई उस पाई-पाई जमा करके जोड़े हुए सामान की तरफ़ भूले से भी नहीं देखतीं | उनके लिए वह सामान बोझ बन जाता है जो उनके माता-पिता ने पेट काट-काटकर जोड़ा होता है | हाँ, बाहर जाकर भी माँ-बाप के पैसे पर उनकी दृष्टि टिकी रहती है | 

वैसे यहाँ ऐसी कोई बात नहीं थी लेकिन आज के जमाने में लोगों को देखकर उनके विचार जानकर, सुनकर ऐसी ही बातें ध्यान आती रहती थीं | वैसे भी मेरा दिमाग चलने में तो जैट की गति रखता ही था |