प्रेम गली अति साँकरी - 92 Pranava Bharti द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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प्रेम गली अति साँकरी - 92

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संस्थान की पार्किंग में पापा की गाड़ी देखकर पता चल गया कि पापा आ गए थे, बिटिया के आने की खबर से वहाँ खुशी फैल गई थी | आखिर परिवार का एक सदस्य बढ़ गया था | पापा अपने कमरे के बाहर ही खड़े थे, उनके मुख पर भी मुस्कान खिली थी | 

“पधार गईं लक्ष्मी जी?कैसे हैं माँ बेटी। दोनों?” पापा ने मुस्काते हुए पूछा | 

“सब अच्छा है, बस सुधा का सीज़िरियन करना पड़ा | ”अम्मा ने बताया | 

“एक खुशखबरी मैं देता हूँ ---”पापा बोले | 

“अच्छा, क्या भला ?”अम्मा को उत्सुकता थी | उत्पल अपने कमरे की ओर बढ़ चुका था | 

“चलो, अंदर चलते हैं, आओ अमी , तुम भी आओ बेटा---थोड़ी कॉफ़ी हो जाए तब बातें ज़्यादा गर्म रहेंगीं—”पापा हँसकर बोले | 

“छोटू! जा बेटा तीन कॉफ़ी तो ले आ---”पापा ने उधर से ही छोटू को पुकारा, वह गार्ड के पास ही गेट पर खड़ा था | अम्मा-पापा का कमरा मेन गेट से अधिक दूरी पर नहीं था जबकि और सब कमरे और विद्यालय बड़े से प्रांगण के चारों ओर थे | विद्यालय से जुड़े सभी छोटे-बड़े चैंबर्स उसके साइड में थे और निवास दूरी पर | 

“अरे! हमारे साथ उत्पल भी तो था ---”अम्मा ने पीछे घूमकर देखते हुए कहा | 

“चल गया होगा---”मैंने बेरुखी सी दिखाई | 

“वो भी साथ में कॉफ़ी पी लेता---” अम्मा बुदबुदाईं | 

“मँगवा लेगा अम्मा –आप भी---” मैंने झुँझलाकर बड़बड़ सी की तो अम्मा कुछ नहीं बोली और पापा के पीछे कमरे में प्रवेश कर गईं | मैं भी उनके पीछे कमरे में पहुँच गई थी  | 

“हाथ-मुँह धोकर फ़्रेश होकर दो मिनट में आती हूँ---तुम भी धो लो अमी--”अम्मा ने मेरी ओर देखा | 

“जी, अम्मा ---आप धो लीजिए मैं भी यहीं धो लूँगी | ”अम्मा ने मेरी बात का कोई उत्तर नहीं दिया और कमरे में बनी लॉबी में चली गईं जहाँ उनका रॉयल बाथरूम था | 

“और खुश रमेश बाबू ?” पापा ने शायद यूँ ही कुछ बोलने के लिए मेरी तरफ़ देखकर पूछा | 

“जी पापा, लग तो रहा था खुश---”मुझे भी उन्हें उत्तर तो देना ही था | 

“देखा बेबी को ?” पापा ने सोफ़े पर बैठते हुए फिर पूछा | 

“नहीं, नहीं पापा, अभी कुछ देर थी | हम लोग आ गए---बल्कि महाराज की फैमिली भी आ ही रही है | महाराज को अपने किचन की चिंता रहती है न?”मैंने हँसकर कहा | 

“हाँ, यह तो सच है | अभी नहा-धोकर अपनी किचन में पहुँच जाएंगे वो----”

पापा और मैं यूँ ही इधर-उधर की बातें करते रहे, इतनी देर में अम्मा भी आ गईं | 

“जाओ अमी , हाथ मुँह धोकर फ़्रेश हो जाओ | अभी तो विनोदिनी मेरे सारे कपड़े निकालकर बैठी है | तुम्हारा नंबर आज नहीं आएगा | ” उन्होंने कहा और पापा के सामने वाले सोफ़े पर बैठ गईं | 

“कोई बात नहीं अम्मा, मैं तो सोच रही थी कि कुछ ऐसी चीजें निकलवा दूँ जो मैंने कभी यूज़ ही नहीं की हैं | रतनी को कहीं डिजाइनिंग में काम आ जाएंगी | ”कहकर मैं गैलरी में चली गई  | अम्मा का बाथरूम और ड्रेसिंग स्पेस तो मुझसे भी बड़ी थी | हाँ, उन्होंने डिजाइनिंग दोनों की एक जैसी ही कारवाई थी | विनोदिनी ने अम्मा की नई-पुरानी साड़ियों के अलग-अलग ढेर लगा रखे थे और बड़ी तल्लीनता से सफ़ाई करने में लगी हुई थी | 

मैंने जल्दी से हाथ मुँह धोए और नैपकिन हाथों में पकड़े ही बाहर निकल आई | पापा क्या बताने वाले थे। मेरे मन में उत्सुकता भर गई थी | अम्मा-पापा कुछ बात तो कर रहे थे जो मुझे सुनाई नहीं दी | 

“अमी!बेटा बहुत केयरलैस होती जा रही हो तुम ?”अम्मा ने मुझे देखते ही शिकायत की | 

“क्या हुआ अम्मा?”मैं अब हाथ में नैपकिन पकड़कर पापा के पास सोफ़े में बैठ चुकी थी | 

“चेहरा तो देखो अपना, कितना ड्राई हो रहा है | मुँह धोती हो तो थोड़ा मॉस्चराइज़र लगा लिया करो न | ”अम्मा को अब भी बच्चे की तरह मेरी स्किन की चिंता होती थी शायद उस चिंता के पीछे वही था जो मैं सोचती थी | उन्हें क्या मालूम कि मुझसे कितने छोटे भी मेरी इसी त्वचा और मेरे व्यक्तित्व पर रीझे बैठे थे | हाँ, मैं अगर सिम्पल रहती थी तो वह अम्मा का ही तो प्रभाव था मुझ पर | 

“लगाती हूँ अम्मा, अब मैं कोई बच्ची थोड़े ही हूँ?वही सब आयुर्वेदिक यूज़ करती हूँ जो आप मेरे लिए मँगवाती आई हैं | ”मैंने कहा लेकिन अम्मा को कहाँ चैन था ?

“विनोदिनी ! ज़रा ले आना मॉस्चराइज़र----” और विनोदिनी हाज़िर !

वह मेरे हाथों में बॉटल पकड़ाकर वापिस चली गई | 

“फिर से झगड़ा हुआ है क्या तुम दोनों का?”अम्मा के इस अटैक के प्रति मैं सचेत नहीं थी | अम्मा का ऐसे पूछना अच्छा नही लगा मुझे;

“अम्मा---आपको ऐसा क्यों लगा?”

“अरे!वो बच्चा भी साथ ही कॉफ़ी पी लेता तो---तुम्हारा मूड नहीं था उसके साथ कॉफ़ी पीने का---!” अम्मा को अच्छा नहीं लगा था कि मैंने उसे इग्नोर क्यों किया था?

“अरे ! बताइए, न क्या बताने वाले थे पापा---”मैंने पापा से इसरार किया | 

“हाँ, तुम्हारे मौसी, मौसा जी और बहन सब लोग जर्मनी से आ गए हैं | ”पापा ने कहा तो मेरा और अम्मा का चेहरा खिल उठा | कितना लंबा समय हो गया था सबसे मिले हुए | मौसी की बेटी अंतरा और उसका जर्मन पति साथ ही उसकी किशोरी बेटी भी आए थे | सब पापा से पता चला | 

अंतरा और उसका परिवार जल्दी चले जाएंगे इसलिए वे सब कल मिलने आने वाले थे | अफसोस की बात यह थी कि कोविड मौसी के वकील ससुर और उनकी सास को निगल गया था और वे लोग अपने माता-पिता से मिल भी नहीं सके थे | पापा ने उन सभी को डिनर पर इन्वाइट कर लिया था | 

“वैसे तो हमें जाना चाहिए था---” अम्मा ने धीरे से कहा | 

“हाँ, मैंने सोचा था लेकिन जब उन्होंने बताया कि अंतरा की फैमिली जल्दी चली जाएगी तब मैंने उन्हें डिनर के लिए कह दिया---कुछ गलत किया क्या?”

“नहीं, नहीं---ऐसी बात नहीं है, वो तो मैं----ऐसे ही कह रही थी | ”कहकर अम्मा चुप हो गईं फिर बोलीं;

“अब फिर वह मेरे से अमी की शादी की बात करेगी---”अम्मा के चेहरे पर कई भाव उमड़ने घुमड़ने लगे | 

“प्रमेश बर्मन की दीदी जान खा रही हैं ---”फिर मेरी ओर मुड़कर बोलीं | 

“एक बार मिल ही लेतीं तुम प्रमेश से---”

“ठीक है अम्मा---”मैंने अम्मा से कह दिया | 

“तो ठीक है, कल उन्हें भी डिनर पर बुला लें?”अम्मा ने पापा की ओर देखा | 

“अभी डिक्लेयर क्या करना, अब तो ये लोग यहीं रहेंगे तो बाद में मिलवा देना | पहले हमारी अमी और प्रमेश तो बात कर लें आपस में---”पापा ने कहा | 

ठीक ही तो कहा पापा ने, अभी न बात न बात का सिर–पैर, बेकार ही मौसी के सामने---मैं मन में दुखी सी हो गई | क्या सच में यह प्रमेश जैसा चुप्पी वाला ही मिलेगा मुझे? कैसे गुजरेगी इसके साथ ?मुझे खुद पर गुस्सा भी आ रहा था कि मैं अम्मा-पापा से क्यों नहीं कह सकती कि मुझे शादी करनी ही नहीं है | मेरे भीतर तो उत्पल हलचल मचा रहा था जो मौसी का रिश्तेदार था | और छोटा कितना ? मैं सोचते हुए भी असहज महसूस करती लेकिन---