फादर्स डे - 79 Praful Shah द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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फादर्स डे - 79

लेखक: प्रफुल शाह

खण्ड 79

मंगलवार 14/02/2017

डॉक्यू-नॉवेल ‘दृश्यम अदृश्यम’ प्रकरण अंतिम चरण में है। इसके वास्तविक पात्रो की जीवन यात्रा निरंतर बढ़ती रहेगी। कथा-प्रवाह को घटनास्पद बनाने के लिए पात्रों की मन-वेदनाएं भला कितना उठाव दे सकती हैं? भले ही ये कथा पूरी हो गई हो, फिर भी वे वेदनाएं समाप्त नहीं हुई हैं। उनके मनजगत पर एक दृष्टिपात करने की मंशा से तीनों मुख्य पात्रों से की गई थोड़ी-सी बातचीत के अंशः

“गाडीत फिरण्याचा संकेतच हट्ट सुर्यकांत कधी ही विसरणार नाही.”(संकेत की गाड़ी में घूमने की जिद सूर्यकान्त कभी-भी भूल नहीं सकता)

मासूम बेटे के अपने जीवन से अचानक बहुत दूर निकल जाने की वजह से अनुभव की गई एक ‘बाबा’ की व्यथा स्याह शब्दों के माध्यम से अखबारों में या फिर लंबी कहानी के रूप में लिखी नहीं जा सकती। सूर्यकान्त भांडेपाटील ने 49 साल की उम्र में बेहद पीड़ा भोगी। दुःख पचाया। नियति से साहस के साथ जूझे। उनके इसी ‘हटके’ व्यक्तित्व के कारण वह इस डॉक्यू-नॉवेल ‘दृश्यम अदृश्यम’ के नायक बने। सूर्यकान्त के दिल में अभी-भी बहुत कुछ समाया हुआ है, जो दीर्घ कथाविस्तार में भी व्यक्त नहीं किया जा सकता। यह इंसान, उसकी मनःस्थिति और भावनाओं का संपूर्ण आलेख जान पाने के लिए कथा नयाक सूर्यकान्त विष्णु भांडेपाटील से कुछ सवाल-जवाबः

-संकेत प्रकरण में आपकी ओर से अनजाने में कौन-सी गलती अगर न हुई होती तो संकेत आज आपके साथ होता?

0अभिभावक के नाते खासतौर पर मैंने कुछ अधिक ही आत्मविश्वास के साथ व्यवहार किया। एक तो गांव छोटा है। सभी लोग जान-पहचान के हैं इसलिए कोई बड़ी समस्या खड़ी नहीं होगी, मैं ऐसा समझते रहा। 1999 की बदनसीब तारीख 29 नवंबर को हममें से कोई भी संकेत को स्कूल से घर वापस लाने के लिए समय पर तो क्या, देर से भी नहीं पहुंचे। एकदूसरे के भरोसे पर रह गए, इस वास्तविकता को स्वीकार करना ही होगा। वैसे देखा जाए तो दिवाली के पहले संकेत हमारे पुराने घर से स्कूल रिक्शे में जाता था। बाद में हमने घर शिफ्ट कर लिया। स्कूल शुरू होने के बाद ऑटोरिक्शा तय करना था, लेकिन गांव में सभी पहचानते हैं, केवल डेढ़ किलोमीटर का फासला है, रास्ता सुनसान नहीं, उसपर कई मकान हैं-ये अतिविश्वास हमें बहुत भारी पड़ गया। कम और साफ शब्दों में मैं स्वीकार करता हूं कि संकेत प्रकरण लिए हम अभिभावक ही जिम्मेदार हैं। इसके बाद स्कूल प्रबंधन की भी गलती है।

- एक पिता के नाते क्या न कर पाने का दुःख जीवन के अंत समय तक रहेगा?

0 ऑटोरिक्शे की व्यवस्था समय पर न किए जाने का अफसोस जीवन भर रहेगा। लेकिन ऐसा कुछ घट जाएगा, इसकी कल्पना भी मन में कभी नहीं आई, इसका भी बुरा लगता रहेगा।

-आपके मुताबिक पुलिस को इस केस में सफलता क्यों नही मिल पाई?

0 साफ शब्दों में कहूं तो पुलिस का व्यवहार लापरवाही भरा रहा। पुलिस को फरियादी की, या संदिग्ध व्यक्तियों की बातों पर विश्वास न करते हुए अपने तरीके से काम करना था। अपहरण के दिन अपराधी कहां था-इस सवाल का लहू ढेकणे की ओर दिया गया जवाब पुलिस ने सही मान लिया। यदि उसके जवाब की ठीक से जांच-पड़ताल की गई होती तो अमित सोनावणे और दत्तात्रय नायकुड़े आज जिंदा होते। साथ कानून-व्यवस्था के कीमती पंद्रह साल बेकार न गए होते।

-संकेत अपहरण घटना के दौरान परिवार, गांव और समाज का व्यवहार आपके प्रति कैसा था, सच्चा या बनावटी? इस दौरान उनसे क्या किया जाना अपेक्षित था?

0 संकेत अपहरण की घटना में जो सामान्यतौर पर होना था, वैसा ही हुआ। हमारी ही तरह हमारे गांववासी भी अतिआत्मविश्वासी साबित हुए। शुरु में तो लोगों ने घटना की गंभीरता को ही नहीं समझा और दूसरे तरह के विचार करने लगे। जब फिरौती की मांग हुई तब सभी को अपहरण की गंभीरता समझ में आई और फिर घटना की तरफ सहानुभूति से देखा जाने लगा।

-इस घटना में सबसे बड़ा आघात या भावनात्मक झटका कब अनुभव किया?

0 सच कहूं तो, कभी नहीं। इसलिए क्योंकि इस घटना में एकदम पहले से ही मेरा ही इन्वॉल्वमेंट अधिक था। सभी शुभ-अशुभ संभावनाएं-आशंकाएं, सभी अच्छे-बुरे अनुभव और घटने वाली हर घटना के बारे में मैं अलग-अलग दृष्टिकोणों से विचारमंथन कर रहा था। संभव है कि इस प्रकिया में एक ‘पिता’ की भावना की बजाय एक नागरिक के नाते न्याय पाने की इच्छा अधिक बलवान थी।

-अन्य छोटे बच्चों को बचाने और उनके गुनाहगारों को गिरफ्तार करवाने की आपकी मुहिम से आपको क्या सीखने को मिला? इस मुहिम की अगली गतिविधियों के बारे में क्या विचार किया है?

0 मैं रोज सीखता रहता हूं। बहुत कुछ नया सीखने-समझने को मिलता है। जिस वेदना को मैंने अनुभव किया, वो अब भूतकाल बन चुकी है। वही भूतकाल में फिर से जी रहा होता हूं। भोगता रहता हूं। परफेक्टली कहूं तो उस वक्त संकेत केवल तीन साल दो महीनों का था। उस समय हमारे जीवन से अचानक निकल गया। उसकी परवरिश में अधिक समय या अधिक भावनाएं तब तक उतरी नहीं थीं। वह बहुत छोटा होने के कारण उस पर निर्भर होने का तो सवाल ही नहीं उठता था। अब, जबकि बहुत सी घटनाओं पर विचार करने पर महसूस होता है कि यदि किसी बड़ी उम्र के बच्चे का अपहरण हुआ होता तो सबकुछ ही हाथ से निकल जाने का मानसिक झटका लगा होता। क्योंकि उसके लिए बहुत सारी यादें, मानसिक इनवॉल्वमेंट, असमय ही सपनों का बिखर जाना वगैरह कारणीभूत होते। यह भयंकर ह्रदय विदारक स्थिति होती है। मैं अपनी वर्तमान मुहिम को अधिक मजबूत, सार्थक और आसान और यशस्वी बनाने के लिए लगातार प्रयासरत रहता हूं। नब्बे प्रतिशत मामलों में वाहन अथवा मोबाइल फोन का प्रयोग किया ही जाता है। इसके लिए मुझे आधुनिक टेक्नीक और टेक्नोलॉजी का उपयोग करके आगे जाना है। अब आधार कार्ड बैंक के साथ लिंक हो जाने से संदिग्ध आरोपी या अपराधी की जानकारी बैंक से मिल सकती है। साथ ही, मोबाइल कंपनियों द्वारा ग्राहकों से आधार कार्ड की कॉपी भी ली जाने लगी है। ये कदम बहुत फायदेमंद साबित होगा। एकही जगह पर सभी जानकारी इकट्ठी हो जाएगी। इस कारण किसी भी व्यक्ति के संबंध में सारी जानकारी आसानी से मिल सकेगी। इसके उपयोग से अपराधों पर अंकुश लगाने के लिए कम, लेकिन अपराधी को पकड़ने के लिए अधिक हो पाएगा।

-लगातार बिखर रही समाज व्यवस्था और निरुपयोगी साबित हो रही कानून-व्यवस्था के बीच कैसे टिके रहा जा सकता है?

0 प्रत्येक को अपनी जवाबदारी सही तरीके से निभानी होगी। सबसे अपने बच्चों की देखरेख से ठीक से करना सीखें। जरूरत महसूस हो तो दूसरे बच्चों पर भी नजर रखें। दूसरों को दिए गए आपके चार-पांच मिनट भविष्य में बहुत उपयोगी साबित हो सकते हैं। कभी, किसी परिचित का अथवा अनजान बच्चा अकेला दिखाई पड़े तो उस पर ध्यान रखें। हर दिन अपने बच्चे को छोड़ने और लेने जाते रहें। किसी अनजान, पराये व्यक्ति पर भरोसा न करें। अपने बच्चे की चिंता हमें खुद करनी होगी। मान लीजिए किसी कारणवश आप सबकुछ नहीं कर पा रहे हों और आपको किसी दूसरे को जिम्मेदारी डालनी पड़ रही हो तो अचानक इंसपेक्शन की आदत डाल रहें। पुलिस को भी अतिरिक्त काम के बीच भी अपहरण और फिरौती की घटनाएं सामने आऩे पर उन पर गंभीरता से तत्काल ध्यान देना चाहिए। वास्तव में देखा जाए तो इस काम के लिए किसी खास मशीनरी या मनुष्यबल की आवश्यकता ही नहीं है। मैंने अकेले ही ये करके दिखा दिया है। प्रत्येक घटना में सिर्फ एक आदमी ऐसा होना चाहिए जिसके पास केस की छोटी से छोटी जानकारी रहनी चाहिए। फिर चाहे वह कॉन्स्टेबल स्तर का पुलिस कर्मी ही क्यों न हो। अब तो पुलिस मैकेनिज्म साइबर के साथ कनेक्ट हो गया है, इस वजह से जानकारियां तेज गति से मिल सकती हैं। इस तरह की जानकारियां इकट्ठी करने में बीस से तीस मिनट का समय लगता है। परंतु लालफीताशाही के कारण तीन-चार दिन लग जाते हैं, ये पूरी तरह गलत है। इस विलंब को टालना चाहिए। साथ ही, पुलिस के कामकाज को स्पेशलाइज करने की आवश्यकता है। एक ही पुलिस कर्मी यदि एक जैसे अपराधों की जांच करता रहेगा तो समय के साथ वह उसमें कुशल और निपुण हो सकेगा। अनुभवसिद्ध हो जाएगा। एक फेरबदल और करना चाहिए। कोई अपराध घटित हो जाए तो पुलिस को उस घटना के बारे में वायरलेस के बारे में सूचना दी जाती है। अब समय के साथ चलने की जरूरत है। वायरलेस के साथ-साथ जगह-जगह लगाए गए सीसीटीवी स्क्रीन पर अपराध को पंजीबद्ध करना, संदिग्धों की जानकारी और फोटो दिखाए जाने चाहिए। इसके कारण जनजागृति बढ़ेगी और अपराधी जल्दी पकड़ में आएगा। सोशल नेटवर्किंग द्वारा इस दिशा में मजबूती से काम किया जा सकता है। यदि हमने किसी भी पोस्ट को चेक किए बिना फॉरवर्ड करने से टाला तो? व्हॉट्सऐप और अन्य सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के माध्यम से यह काम बहुत आसान और परिणामकारक साबित होगा।

-मान लीजिए, आप उस भूतकाल में फिर लौट पाए तो संकेत के लिए क्या करेंगे?

0 यदि ऐसा संभव हुआ तो मैं 1999 की 29 नवंबर को संकेत के स्कूल में जाकर उसको घर वापस लाऊंगा। यानी फिर आगे कुछ घटेगा ही नहीं...सच कहूं तो फातिमा ने मुझे मैसेज दिया भी था कि प्रतिभा ने कहा है कि मैं संकेत को लेने के लिए स्कूल जाऊं लेकिन मैं....

-आज संकेत की कौन-सी बात सबसे अधिक याद आती है?

0 मेरे साथ गाड़ी में घूमने जाने के लिए उसकी जिद मैं अपनी अंतिम सांस तक भूल नहीं पाऊंगा। मैं उन दिनों बहुत व्यस्त रहता था। घर की तरफ भी अधिक ध्यान नहीं दे पाया लेकिन संकेत के असमय निकल जाने के बाद उसकी एक-एक इच्छा जान पाया और मुझे समझ में आया कि मैं जीवन में बहुत कुछ गंवा बैठा हूं।

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“रोज सकाळी संकेत चा आवाज ऐकू येतोच येतो...”(रोज सुबह प्रतिभा को संकेत की आवाज सुनाई देती ही है...): प्रतिभा

संतान यानी एक मॉं का सर्वस्व। उसमें भी संकेत जैसे बेटे का अकल्पनीय और धक्कादायक घटना के जरिए यूं चले जाने से मॉं के कलेजे पर कितने और कैसे-कैसे घाव लगे होंगे इसकी कल्पनामात्र से दिल दहल जाता है। पचास साल की शिक्षिका प्रतिभा सूर्यकान्त भांडेपाटील एक सामान्य स्त्री होकर भी एकदम अलग हैं।

- संकेत अपहरण की घटना के बाद एक मॉं होने के नाते क्या ऐसा लगता है कि यदि कुछ अलग किया होता तो परिणाम कुछ अलग मिले होते?

0 बात मेरी हो या किसी भी मॉं की, सबको एक ही सलाह है-ध्यान रखें, बच्चे को जन्म देना खूब आसान है लेकिन उनको अच्छे संस्कार देना और बच्चों का पालन-पोषण करना बहुत कठिन काम है। अपने बच्चों का अच्छे से ध्यान रखें। इस काम के लिए किसी पर भी भरोसा न करें। एकदम नजदीक के व्यक्ति पर भी नहीं। हमने इस गलती की बहुत बड़ी कीमत चुकाई है।

-संकेत सुरक्षित रह पाता, इसके लिए पति, परिवार और गांववालों की ओर से आपको कौन सी अपेक्षा करना अच्छा लगता?

0 सच कहूं तो संकेत के अपहरण की कालावधि में सूर्यकान्त जी का ध्यान घर की ओर नहीं था। वह काम-धंधे में बहुत व्यस्त थे। इसी लिए अपहरण के बाद गुस्से के कारण बहुत समय तक मैं उनसे ठीक से बोलचाल नहीं करती थी। मैं हर पिता को बताना चाहती हूं कि बिजनेस, नौकरी से अधिक अपने बच्चों पर दें। वास्तव में मेरी सासूमां हमारे साथ रहकर मेरे संकेत को संभालने के लिए तैयार थीं लेकिन सूर्यकान्त जी का आग्रह था कि मॉं केवल एक ही महीना रहेंगी, नहीं तो संकेत को उनकी आदत पड़ जाएगी और फिर वह किसी और के साथ नहीं रहेगा। संकेत जब छोटा था तब उसकी देखभाल के लिए दो महिलाओं की मदद ली थी।  उन्होंने उसकी देखभाल बहुत अच्छे तरीके से की थी। लेकिन जब संकेत स्कूल जाने लगा तो उसे हमने अपने पास रखना शुरू किया, उसके बाद ही उसका अपहरण हुआ, इस बात का मुझे बहुत दुःख है। संकेत को संभालने वाली एक महिला जब घटना के बाद मुझसे मिलने के आई तो बोलीं, “तुम्ही स्वतःच्या मुलाला सांभाळू शकल्या नाहीत” (आप अपने ही बच्चे को संभाल नहीं पाईँ)। यह सुनना मेरे लिए वज्राघात की तरह था। हमारी तरह ही गांववालों ने भी शुरुआत में अपहरण की घटना को गंभीरता से नहीं लिया था। स्पष्ट शब्दों में कहा जाए तो संकेत के साथ जो कुछ हुआ उसके लिए मुझे अपने आप पर बहुत गुस्सा आता है।

- संकेत की खोजखबर जल्दी नहीं मिली। सबसे अधिक झटका कब महसूस हुआ?

0 छह-सात महीने तक अलग-अलग तरह की बातें कानों पर पड़ती रहीं। उन सभी का सार और मेरी इच्छा के बीच एक समानता थी कि संकेत कहीं हैं और सुरक्षित घर वापस आ जाएगा। मन ही मन भरोसा था कि ईश्वर मेरे साथ अन्याय नहीं करेंगे। परंतु संकेत की हत्या हो गई है, यह जानने के बाद बहुत गहरा झटका लगा था। यह सब मेरे साथ ही क्यों होना था? संकेत के साथ जो हुआ, वह मेरे साथ क्यों नहीं हुआ? इस घटना के बाद मैंने ज्योतिष विद्या पर विश्वास करना छोड़ दिया।

- अपने अनुभव के आधार पर सभी मॉंओं को क्या सलाह देंगी?

0 कई स्त्रियों को यह बात पसंद नहीं आएगी, लेकिन साफ शब्दों में बताती हूं-करियर बाद में, पहले अपने बच्चों का ध्यान रखें। उस पर भी बच्चा जब तक तीन से चार साल का नहीं हो जाता तब तक विशेष ध्यान रखें। छोटे बच्चों को यथासंभव पालना घर में मत रखें। किसी भी स्थिति में बच्चे के पांच साल तक होने तक अपने घर में ही रखें, अपने पास रखें।

- संकेत के अपहरण की घटना के बाद सूर्यकान्त जी छोटे बच्चों के अपहरण की घटनाओं में मदद के लिए दौड़कर जाते हैं, इस बारे में क्या कहेंगी ?

0 इस काम में मैं पूरे मन से उनका साथ देती हूं। एक डॉक्टर दंपती के तेरह साल के बच्चे का अपहरण हुआ था। पत्नी कमरे का दरवाजा बंद करके अंदर बैठी रही, न किसी से बात करती थीं न रोती थीं। टेंशन में आकर डॉक्टर ने सूर्यकान्तजी की मदद मांगी कि आप ऐसी स्थिति से कैसे निपटे थे। सूर्यकान्तजी मुझे अपने साथ लेकर गए। एक स्त्री की आवाज सुनकर और मुझ पर यह बीता है, यह सुनकर और मेरा थोड़ा-सा परिचय पाकर उस दुःखियारी मॉं ने दरवाजा खोला। वह खूब रोने लगी। उसको अजीब लगा कि मैंने इतना दुःख सहन करने के बाद भी उसका दुःख हल्का करने के लिए दौड़कर आई। उस महिला डॉक्टर ने रोते-रोते ही मुझे वचन दिया कि आपकी तरह मैं भी किसी दुखियारी मॉं की मदद करने के लिए जाऊंगी। सूर्यकान्त जी की इस मुहिम में शामिल होकर मेरा मन परम शांति और संतोष का अनुभव करता है।

-संकेत के साथ आपकी बहुत सी यादे हैं पर कभी न भूल सकने वाली कोई खास?

0 संकेत को रोज सुबह उठते साथ ‘मम्मी’ कहकर मुझे बुलाने की आदत थी। जब तक मैं उसके पास पहुंच नहीं जाती तब तक वह बिस्तर से नीचे पैर नहीं रखता था। उसके पास पहुंचते ही वह मुझसे पहला सवाल करता था, “मम्मी चहा केला?” (मम्मी चाय बना ली?) उसे चाय बहुत पसंद थी। रोज सुबह संकेत की आवाज सुनाई देती ही है...(ऐसा कहते हुए प्रतिभा का गला रुंध गया)

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“संकेतने शेवटच्या दिवशी माझी वोटरबॉटल परत का केली?” (संकेत ने आखरी दिन मेरी वॉटरबॉटल वापस क्यों की): सौरभ

सौरभ सूर्यकान्त भांडेपाटील यानी ‘दृश्यम अदृश्यम’ में लगातार हाजिर रहने वाला सबसे अधिक अकथनीय वेदना अनुभव करने वाला लेकिन अकारण महत्व न पा सका व्यक्ति। आज चौबीस साल का सौरभ सिविल इंजीनियर हो गया है, पिता के साथ स्वीमिंग के रेकॉर्ड बना रहा है। बिजनेस में साथ दे रहा है परंतु नजरों के सामने से अपने लाड़ले भाई को हमेशा के लिए खो देने की पीड़ा और उसकी यादें सौरभ की दुनिया से अब तक परदे के पीछे नहीं गई हैं।

-सौरभ, तुम संकेत के अपहरण के समय छोटे ही थे, फिर भी तुमने क्या अनुभव किया?

0 उस समय मैं बहुत छोटा था। इस ट्रैजेडी की गंभीरता समझने लायक नहीं था। इसलिए पूरी तरह रिएक्ट नहीं कर पाया होऊंगा। बढ़ती उम्र के साथ हकीकत समझ में आने लगी। उस समय अपनी भावनाएं व्यक्त न कर पा सकने का शूल आज भी चुभता रहता है। बहुत छोटी उम्र में यह शोकांतिका घटी इस वजह से संकेत के साथ की मेरी यादें बहुत अधिक नहीं हैं पर जो कुछ भी बालसुलभ याद आती है, वह वाकई बहुत मीठी हैं।

- संकेत के अचानक एक्जिट ले लेने से तुम्हारे जीवन में क्या बदलाव आया?

0 मेरा और संकेत का स्कूल एक ही था। उसके जाने की वजह से मुझे इंग्लिश मीडियम से निकालकर मराठी स्कूल में स्विच किया गया। मेरी दादी ने लगातार बीस दिन मेहनत करके मुझे मराठी सिखाई। इंग्लिश स्कूल में मैं एवरेज स्टूडेंट था लेकिन मराठी स्कूल में मेरी गिनती होनहार विद्यार्थी में की जाने लगी। इसी के साथ मुझे इस ट्रैजेडी की जानकारी थी और आगे लगातार घटने वाली घटनाओं को सुनकर और समझकर मैं खुद ही समझदार बनता चला गया। अनजाने ही मेरा बचपन मुझसे खोता गया. सातवीं-आठवीं में ही मैं किसी वयस्क की तरह व्यवहार करने लगा था, उसी तरह विचार करता था, वैसा ही बोलता भी था।

-तुम संकेत अपहरण की घटना के मूक गवाह हो। आज भी अपने पप्पा को इस तरह की घटनाओं में सक्रियता से काम करते हुए देखकर क्या तुम यह बता  सकते हो कि अपहरण जैसी घटनाओं को रोकने केलिए क्या किया जाना चाहिए?

0 जनजागृति लानी होगी। ऐसी घटनाएं अचानक क्यों घटती हैं? खासतौर पर इस तरह की घटना होने के बाद किस तरह का व्यवहार करना चाहिए? पप्पा ने जिन घटनाओं में मदद की उन सभी में एक बात सामान्य तौर पर प्रमुखता से दिखाई देती है कि अपह्रत बच्चे की हत्या कर दी जाती है। इस वजह से पहले दो दिनों में घटी छोटी से छोटी बात को नजरंदाज न करें। संकेत जिस दिन गुमा उसी रात को लहू ढेकणे पुलिस स्टेशन में था लेकिन...

-संकेत की कौन-सी ऐसी याद है, जिसे तुम कभी-भी भुला नहीं पाओगे?

- मम्मी ने मेरे लिए वॉटरबॉटल लाई थी। लेकिन संकेत रोज मुझसे झगड़कर, जिद करके उस बॉटल को ले जाया करता था। अपहरण की घटना वाले दिन पता नहीं क्यों, उसने खुद ही वह बॉटल मुझे वापस कर दी और बोला, “दादा ही बॉटल तू घेऊन टाक”(दादा, यह बोतल तुम रख लो)। मुझे आज तक यह समझ में नहीं आया कि उसने अचानक ऐसा क्यों किया होगा?

 

अनुवाद: यामिनी रामपल्लीवार

©प्रफुल शाह