फादर्स डे - 78 Praful Shah द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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फादर्स डे - 78

लेखक: प्रफुल शाह

खण्ड 78

सोमवार 13/02/2017

सूर्यकान्त भांडेपाटील की सुबह रोज की आदत के मुताबिक अखबार और चाय के कप के साथ हुई। उसकी खोजी नजरें खबरों के महासागर में से कोने में दबी छिपी, अधम वृत्ति के शिकार हुए संकेत को खोजती थीं। वह नए लहू को गिरफ्तार करवाने के लिए दृढ़संकल्प था। कुछ दूर पर खड़ी प्रतिभा शांति से चाय का कप हाथ में पकड़कर उसको देख रही थी। अब, चाय का कप टीपॉय पर छोड़ने की जगह उसे इंतजार करना अच्छा लगने लगा था। पति ने इतना बड़ा सेवायज्ञ करने का व्रत लिया हो तो फिर दो-पांच मिनट चाय का कप हाथ में लेकर खड़े होने में उसे कोई हर्ज नहीं दिखता था, बल्कि आनंद मिलता था। सूर्यकान्त ने अखबार नीचे रखा। होठों पर एक मधुर मुस्कान खिली। हुश्श्श.… आज सारे बच्चे सुरक्षित हैं। प्रतिभा चाय का कप टीपॉय पर रखकर उसकी बगल में बैठ गई। अब केवल अभियान में ही नहीं, तो पिता के व्यवसाय में भी सौरभ हिस्सेदार हो गया था। सौरभ भी उन दोनों के पास आकर बैठ गया। तीनों ने संकेत के फोटो की तरफ देखकर ‘गुड मॉर्निंग’ कहा। पूरे घर में सुबह का वातावरण सूर्यकिरणों से खिल गया था। सुबह का पवन हिलोरे ले रहा था। पत्ते-बेल बूटे आनंद से हिलडुल रहे थे। सुंदर सुबह ने नई किरणों के सुनहरे वस्त्र लेकर घर में प्रवेश किया था।

सूर्यकान्त को आनंद, गर्व और संतोष था कि संकेत के निधन का शोक अपने ह्रदय से हमेशा के लिए चिपकाए रखने की बजाय एक नई दिशा की ओर कदम बढ़ रहे थे। दुःखी होकर कुढ़ते बैठे नहीं रहे। पुलिस पर दोषारोपण नहीं करते रहे। व्यवस्था को जवाबदार साबित करके अपना मुंह सिल कर चुप नहीं बैठे रहे, बल्कि अपनी वेदना को वज्रास्त्र, पीड़ा को प्रेरणास्त्र और सपनों को लक्ष्य बना लिया।

सूर्यकान्त ने सही निर्णय लिया। परिवार ने उसका पूरा साथ दिया। संकल्पना स्पष्ट थी। वह स्वयं जिन परिस्थितियों से तपकर-झुलसकर बाहर निकला था, उन परिस्थितियों से किसी और को दो-चार न होना पड़े, यही एकमेव दृष्टिकोण सामने रखकर सूर्यकान्त हमेशा पुलिस की सहायता करता था। संकेत के अपहरण के बाद कितने ही सालों तक अनेक अपहरण की घटनाओं का बारीकी से अध्ययन किया। प्रत्येक घटना में एक समानता दिखाई पड़ती ही है। उस समानता पर ध्यान देकर संपूर्ण प्रकरण का अध्ययन करता है। जहां कहीं भी फिरौती या अपहरण की घटना होती है, वहां खुद जाकर जांच करता है। तभी पीड़ित परिवार ठीक से जानकारी नहीं देता या फिर अनजाने में ही अपमान कर बैठता है, लेकिन उस समय की उनकी मानसिक स्थिति को समझकर परिस्थिति को स्वीकार करके सूर्यकान्त अपने प्रयास जारी रखता है। संकट से घिरा व्यक्ति या परिवार पराए इंसान पर भरोसा नहीं करेगा, इस सत्य को वह स्वीकार करके चलता है। ऐसी घटनाओं की जांच को अपने अंजाम तक पहुंचाने में मदद करता है। काम पूरा करने के लिए किसी से भी किसी भी तरह की उम्मीद नहीं करता या फिर समय, काल परिस्थिति या पैसे की चिंता नहीं करता। एक-दो घटनाओं में तो जांच-पड़ताल करने में अपने पास से भी तीन-चार लाख रुपए खर्च कर दिए हैं। वैसे भी, छोटे बच्चों के अपहरण मामले में जांच का मानधन तो लेना भूल ही जाइए, लेकिन खोजबीन के लिए आऩे-जाने का राह खर्च या फिर चाय-पानी या मेहमाननवाजी भी स्वीकार नहीं करता।

सूर्यकान्त को अब अपराधी को पकड़ने में मदद करने की बजाय किसी निर्दोष को बचाने का आनंद अधिक है। अब तक उसने पचास के करीब आपराधिक प्रकरणों में पुलिस की मदद की है। लेकिन सर्वाधिक आनंद उसे छोटे बच्चों के अपहरणकर्ता को जेल की सींखचों के पीछे भेजने में आया। क्योंकि इन नराधमों के हाथ अन्य किसी मासूम तक न पहुंचने पाए, उसकी कोशिश यही होती है। फुरसत के क्षणों में या फिर संकेत की याद जब आती है तब प्रत्येक घटना का भूतकाल नजरों के सामने तैर जाता है। पहले संकेत..और उसके बाद अमित सोनावणे...

साल 2000 में महाराष्ट्र के इस्लामपुर में हुपरी से सात साल के ऋषिकुमार पिंपलगावकर का अपहरण हुआ था। एक लाख रुपए की फिरौती मांगी गई थी। परंतु बदनसीब ऋषिकुमार की गन्ने के खेत में हत्या कर दी गई थी। पुलिस से जानकारी हासिल करके सूर्यकान्त ने अपनी जांच शुरू की। इन मृत बच्चे के पिता चांदी के कारखाने के मालिक थे। उन्हें तीन मजदूरों पर संदेह था। इन तीनों खूनियों को जेल भिजवाने में सूर्यकान्त ने मदद की। आगरानिवासी ये त्रिकुट जेलवासी हुए।

साल 2003 में महाराष्ट्र के सासवड़ निवासी बारह साल के ऋषिकेष माईनकर की हत्या भी फिरौती की लालच में अपहरण करने के बाद कर दी गई। केस अजीब था। आरोपी सोलह, सत्रह और अठारह साल की उम्र के थे। पुलिस ने एक आरोपी को पकड़कर फाइल बंद कर दी थी लेकिन सूर्यकान्त फरार हुए दोनों अन्य कम उम्र के आरोपियों को पुलिस कोठड़ी में भिजवाने में सफल हुआ।

साल 2009 में मुंबई-अंधेरी के साहिल अंकुश दलवी के साथ दुर्घटना हुई।

साल 2010 में पुणे-वाकड़ से सागर नवले गायब हो गया था। पुलिस ने जांच की। सूर्यकान्त ने अथक मेहनत की लेकिन अभी तक सागर वापस नहीं आया न ही उसकी कोई जानकारी मिल पाई है। इस घटना का दर्द अभी तक सूर्यकान्त को सताता है।

साल 2010 में हैदराबाद में फिरौती की लालच में दीप पटेल अपहरण कांड हुआ। पटेल कनेक्शन होने के कारण जानकारी सूर्यकान्त के सामने रखी गई। दीप पटेल के परिवार के लोग हैदराबाद से सीधे पुणे आए। वस्तुस्थिति मालूम करने के बाद सूर्यकान्त ने पुणे में रहकर ही दो आरोपियों को पकड़ने में सहायता की परंतु तब तक दीप के नसीब में चिरनिद्रा में खो जाना लिखा था।

साल 2010 में डोंबिवली में सात साल के यश शाह को गायब किया गया था। उसका शव मिला था। एक पत्रकार के माध्यम से यह खबर सूर्यकान्त तक पहुंची। सूर्यकान्त ने सक्रिय होकर अपराधी तक पहुंचने में पुलिस को मदद की।

साल 2011 में मुंबई के कर्णित शाह प्रकरण को सूर्यकान्त कभी-भी भूल नहीं सकता। इस केस में उसको जो सफलता मिली और जिस तरह की सहायता की उसके लिए उसको अपने आप पर गर्व महसूस होता है। इस केस के बारे में बताते समय उसके चेहरे की दृढ़ता, संकल्पबद्धता और नजरों की चमक बहुत कुछ कह जाती है। कर्णित शाह केस में दीपक गुप्ता नाम के आरोपी को नासिक से प्रारंभ करके उत्तर प्रदेश तक जाकर खोज निकालने में सूर्यकान्त ने पुलिस की सहायता की थी। आरोपी दीपक गुप्ता पकड़ा गया। सबसे बड़ी सफलता यह थी कि कर्णित शाह जीवित मिल गया। सूर्यकान्त को सिर्फ इसी बात का खेद है कि इतनी घटनाओं में से कर्णिक शाह ही केवल एक ऐसा भाग्यवान साबित हुआ, जो जीवित वापस मिल पाया...अन्य सभी दुर्भाग्य से मौत के मुंह में चले गए. यदि और कई कर्णितों को मैं बचा पाता तो...?

सूर्यकान्त खुद इस बात को अच्छी तरह से समझ चुका है और लोगों को भी समझाकर बताता है कि छोटे बच्चे अपहरणकर्ताओं के लिए एकदम ‘सॉफ्ट टारगेट’ होते हैं। उन्हें बड़ी आसानी से बहकाया जा सकता है। उनको तुरंत बड़ी आसानी के साथ कहीं भी उठाकर ले जाया जा सकता है। जरूरत पड़ने पर उस बच्चे से बड़ी आसानी से छुटकारा भी पाया जा सकता है क्योंकि उसमें प्रतिरोध करने की शक्ति और समझ नहीं होती है। स्कूल जाने वाले विद्यार्थियों का अपहरण करके फिरौती वसूल करने का धंधा इन दिनों जोरों पर चल रहा है। ऐसे वक्त में अपराधी को पकड़ना तो जरूरी है ही परंतु उसको कानूनसम्मत सजा मिलना भी उतना ही जरूरी है। यदि फिरौतीबाज निर्दोष छूट गया तो उसका आत्मविश्वास और बढ़ जाएगा और वह एक और अपराध करने के लिए बढ़ेगा। इसके लिए फिरौती मांगने वाले को कठोर सजा दिलवाने के लिए यथासंभव अधिकाधिक सबूत और जानकारी हासिल करके पुलिस को सौंपी जानी चाहिए। साथ ही हम सबको अपनी निरीक्षण और श्रवण शक्ति भी तेज रखनी चाहिए।

छोटे अपह्रत बच्चों को खोजना और फिरौतीखोरों को सजा दिलवाना सूर्यकान्त का व्यवसाय नहीं है, न ही लोकप्रियता हासिल करने का रास्ता। ये तो उसका कभी न टूटने वाला स्वप्न है। निरंतर चलते रहने वाला सेवायज्ञ है। संकेत के प्रति अटूट प्रेम है। संकेत को प्रत्येक क्षण अर्पित की जाने वाली स्मरणांजलि है।

अपनी अकथ वेदनाओं को नियति के गहरी तह में दबाकर रखते हुए पराये लोगों की खुशियों के लिए, उनके आनंद के लिए, उनकी जीवन की बगिया में चमकने वाले सुंगधित सुमनों को खिलाने के लिए यह सिंह शावक लगातार प्रयासरत रहता है। यह हीरो न तो समाज का आदर्श है, न किसी का प्रेरणास्रोत ही है। समाज इससे एकदम अनजान है। आइए, समाज में घुल-मिल गए, एकरूप हो चुके इस साहसी मित्र का हम सब साथ दें। निरंतर उसके साथ रहकर कई-कई मासूम बच्चों के जीवन की सुरक्षा करे

अनुवाद: यामिनी रामपल्लीवार

©प्रफुल शाह