संजना : अतीत ऐसा जो पीछा छोड़ना नहीँ चाहता !
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श्री सूर्य नारायण शुक्ल का लिखा उपन्यास "संजना" एक ऐसी कैशोर्य उम्र की लड़की संजना की रोचक कहानी का ताना बाना लिए हुए है जिसके जीवन में अनेक प्रत्याशित अथवा अप्रत्याशित घटनाएं -दुर्घटनाएं होती रहती है। एक हादसे से उबरी नहीं कि एक और हादसे का शिकार हो गई। मानो यह सब क्रिया की प्रतिक्रिया के चलते भी हो रहा था। किशोर उम्र में उसका विपरीत लिंग के प्रति आकर्षित हो जाना स्वाभाविक था, अपने प्रेमी के आकर्षण में आकर लापरवाह होकर प्रिगनेंट हो जाना भी कुछ हद तक स्वाभाविक था। लेकिन उसके बाद एक के बाद एक उपजती जा रही परिस्थितियाँ वह भी इस दौर में जबकि गर्भ रोकने अथवा गर्भ गिराने के तमाम उचित अनुचित तरीके सुलभ हैँ लगभग अपवाद का ही विषय प्रतीत होती हैँ।
संजना और उमेश, उपन्यास के दो प्रमुख पात्रों के चाल,चरित्र और चेहरे अर्थात उन दोनों के व्यक्तित्व सरसरी निगाह में तो मन में क्षोभ पैदा कर रहे हैँ लेकिन उनके जीवन में आ रहे अप्रत्याशित मोड़ उनके प्रति धीरे - धीरे पाठकों के मन में उनके प्रति हमदर्दी दिखाने लगते हैँ।उनके जीवन में जो कुछ घटित हो रहा था वह अप्रत्याशित था। सत्य के निकट प्रतीत हो रहा है। संजना और उमेश अजीब जीवट वाले चरित्र हैँ जो पीछे मुड़कर देखना नहीँ चाहते और उनका अतीत ऐसा है कि वह पीछा छोड़ना नहीँ चाहता है। उपन्यास में उपजी इन विचित्रजन्य परिस्थितियों को मैं उपन्यासकर की कल्पनाशीलता और उनके कुशल और दक्ष लेखन से जोड़कर देखता हूं।इसके लिए निश्चित रूप से वे बधाई के सुपात्र हैँ।
उपन्यास का कथानक सारांश में यह है कि गांव के एक मनचले युवा उमेश से अल्हड़ किशोरी संजना का प्यार हो जाता है। प्यार हद की सभी दीवार पार कर जाता है और संजना गर्भवती हो जाती है। उसके परिजनों को जब इस बात की भनक लगती है तो उसको मारा पीटा जाता है। वह एक बार फिर उमेश के पास जाती है और उमेश उसको पोखरा (नेपाल ) ले जाकर नाव से गिराकर मार डालने का यत्न करता है।लेकिन वह बच जाती है। इधर लड़की के बाप उमेश को किसी हत्या के मुकदमेँ में फंसा देते हैँ, उसे जान से मरवाने का प्रयास करते हैँ ।उमेश भागकर अमृतसर चला जाता है और नाम बदल कर जोगिंदर सिंह के यहां नौकरी करने लगता है । वहाँ भी उसको मालिक की लड़की मनप्रीत से प्यार हो जाता है। एक रात रंगे हाथ पकड़े जाने पर उमेश वहाँ से भी भागता है। अब एकपूर्व परिचित सोमन माली की लड़की चंदा उसके मायाजाल में फंस जाती है और बैसाखी में शादी तय होती है । लेकिन इसी बीच उमेश का भाई दिनेश जब उससे अमृतसर में मिलता है और उसको फर्जी मुकदमेँ से छूट जाने का समाचार देता है और परिजनों के अपार दुःख को बताता है तो उमेश अपने घर वापस आ जाता है। उपन्यास में उमेश के चलते उसकी एक प्रेमिका मनप्रीत आत्महत्या कर लेती है, दूसरी चंदा उमेश की तलाश में भटकती रहती है , तीसरी संजना उमेश के बच्चे को किसी को गोद देकर घर वापस आकर पढ़ाई पूरी करती है और सामान्य जीवन बिताने लगती है।वह जिस स्कूल में टीचर होकर जाती है उसी में उसका जन्मा बेटा भी पढ़ रहा होता है।
अब इंट्री होती है एक बार फिर उमेश की। उमेश गीडा की जिस मिल में काम कर रहा होता है उसका वारिस ही उससे जन्मा बेटा है।एक दिन जब वह मालिक के बेटे के साथ स्कूल गया तो उसकी संजना से भेंट होती है। संजना उसके मुंह पर थूक देती है। वह उसकी फिर से जान मारने पर उतारू हो जाता है।
उधर मालिन की बेटी चंदा किसी माध्यम से जान ले रही है कि उमेश गोरखपुर में दुकान करता है और अब शादी करने जा रहा है। ठीक समय पर वह गोरखपुर आ जाती है और मंडप में ही धोखेबाज का पोल खोल देती है।विरोध पर उमेश पर चाकू से उस पर वार करती है जिससे उमेश की मृत्यु हो जाती है।उधर मिल मालकिन संजना को बुलाकर अपना गोद लिया बेटा उसको सौंप देती है जिसकी जान के लाले पड़े थे ।अंत में संजना प्रोफेसर आलोक और अपनी कोख से जनमें बच्चे के साथ नया जीवन बिताने लगती है।
इस उपन्यास को पढ़कर यही महसूस हुआ कि जैसे किसी सधे हुए हाथों से इसे लिखा गया है। इसके पूर्व भी श्री शुक्ल की तीन चार पुस्तकें आ चुकी हैँ। हार मेरी, जीत मेरी (2018), नया सबेरा (2021), रमली (2022) आदि ! साहित्य के सुधी पाठकों को "संजना" अवश्य पढ़नी चाहिए क्योंकि इसके कथानक में रहस्य है, रोमांच है, मन की गुदगुदी है, आज की अनुशासन हीन पीढ़ी के प्रति गुस्सा और गुबार भी महसूस करने को मिलेगा।पुस्तक का आवरण और मुद्रण आकर्षक है।
पेशे से अध्यापक रह चुके शुक्ल जी ने जनपद न्यायालय गोरखपुर में वकालत की प्रेक्टिस भी की है।उम्र के ऊपरी पायदान पर पहुंच कर भी उनमें इतनी साहित्यिक ऊर्जा देखकर किंचित आश्चर्य मिश्रित सुख का भी अनुभव हो रहा है।बताते चलें कि उनके विलक्षण अध्यापन का अनुभव एक शिष्य के रूप में मैं स्वयं वर्ष 1969 में कर चुका हूं जब मैंने गोरखपुर रहकर हाई स्कूल की परीक्षा दी थी और कठिन गणित रूपी वैतरिणी उन्हीं की कृपा से पार कर सका था।
उनके जीवन में भी तमाम अवरोध आते रहे हैँ लेकिन उन्होंने उसे एक चुनौती की तरह स्वीकार किया और सफल रहे।इन दिनों अस्वस्थ चल रहे हैँ उन्होंने बताया कि वे आजकल से अस्वस्थ हैँ और उनका वजन लगभग दस किलो घट गया है। वे अपने संघर्ष के दिनों को याद करते हुए बताते हैँ कि उन्होंने अपना जीवन ट्यूशन करने और परिवार पालने में बीता दिया। दुखी मन से यह भी बताए कि वर्ष 2017 में पत्नी का साथ छूट गया था तो सबसे पहले मैंने अपने ही जीवन पर आधारित एक उपन्यास लिखा जिसकी बड़ी सराहना हुई थी। श्री शुक्ल के शब्दों में, " अब लोगों की मुझसे अपेक्षाएं जब बढ़ गई ,तब मैंने दूसरा उपन्यास लिखा "नया सवेरा"! उसकी सराहना से मेरा उत्साह और बढ़ गया। फिर एक भिखारिन पर मैंने उपन्यास लिखा - "रमली" जिसे शायद मेरे जीवन की सबसे सुंदर कृतियों में गिनी जाय ,फिर तो लोगो की अपेक्षाएं और बढ़ गई और "संजना" को लिखा है। यह रही मेरी लेखन की यात्रा...!"
श्री सूर्य नारायण शुक्ल,मेरे गुरु, आप शतायु हों और आगे भी इसी तरह अपना सर्वोत्कृष्ट साहित्यिक योगदान देते रहें यही प्रभु से प्रार्थना है।
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पुस्तक -संजना (उपन्यास ):लेखक -सूर्य नारायण शुक्ल :मूल्य -250/-:प्रकाशक -अमिधा प्रकाशन, जी -72, गंगा विहार, गोकुलपुरी, दिल्ली -110094