हनुमान जन्मोत्सव
हिन्दू कैलेंडर के अनुसार, हनुमान जी का जन्म चैत्र पूर्णिमा को हुआ था, इस वजह से हर साल चैत्र पूर्णिमा को हनुमान जन्मोत्सव मनाया जाता है।
हनुमान जी भगवान शिव के अंश थे और उनके पिता केसरी और माता अंजना थीं। कहा जाता है जब उनका जन्म हुआ तो वे बहुत ही तेजवान, कांतिमय, बुद्धिमान एवं बलशाली थे।
उसके बाद जैसे जैसे वह बड़े हुए, वैसे वैसे उनकी बाल्यकाल की शरारतें भी बढ़ने लगीं। इसी तरह उनके बाल्यावस्था से जुड़ी एक कथा है, जिसमें उनके महावीर बनने का वर्णन मिलता है।
महावीर हनुमान की कथा-
पौराणिक कथा के अनुसार, एक दिन बालक हनुमान आंगन में खेल रहे थे, उस दौरान उनको भूख लगी। उन्होंने उगते हुए सूर्य को फल समझ लिया।
उन्होंने उस लाल रंग के चमकीले फल को खाने के लिए आसमान में छलांग लगा दी। वे वायु के वेग से आसमान में उड़ने लगे और देखते ही देखते सूर्य लोक पहुंच गए।
जैसे ही वे सूर्य देव के पास पहुंचे, उनको निगलने के लिए अपना मुंह खोल दिया। यह देखकर सूर्य देव वहां से भागने लगे।
अब सूर्य देव आगे आगे और बाल हनुमान उनके पीछे पीछे। यह देखकर देवराज इंद्र आश्चर्य में पड़ गए। उन्होंने सूर्य देव को बचाने के लिए हनुमान जी पर वज्र से प्रहार कर दिया। इसके परिणाम स्वरुप बाल हनुमान पृथ्वी पर गिर पड़े।
इस बात की ज्ञान जब पवन देव को हुआ तो वे क्रोधित और दुखी हो गए क्योंकि हनुमान जी पवन पुत्र भी हैं।
शोकाकुल पवन देव मूर्छित हनुमान जी को लेकर एक गुफा में चले गए और वहां पर उनकी मूर्छा टूटने की प्रतीक्षा करने लगे।
उधर, वायु देव के न होने के कारण पशु, पक्षी, मनुष्य सब त्राहि त्राहि करने लगे। पृथ्वी पर हाहाकार मच गया।
उधर इंद्र देव को भी पता चल चुका था कि जिस बालक पर उन्होंने प्रहार किया था, वह कोई सामान्य बालक नहीं हैं।वह रुद्रावतार हनुमान हैं।
वायु देव के दुख को दूर करने और पृथ्वी पर वायु के संकट को दूर करने के लिए त्रिदेव के साथ सभी प्रमुख देवता उस गुफा में प्रकट हुए।
वहां पर सभी देवों को रुद्रावतार हनुमान जी के बारे में पता चला। ब्रह्मा, विष्णु, महेश समेत सभी देवताओं ने हनुमान जी को अपनी दिव्य शक्तियों से सुसज्जित कर दिया। सूर्य देव ने हनुमान जी को शिक्षा देने का दायित्व लिया। बाद में वे हनुमान जी के गुरु बने।
इस प्रकार सभी देवों की शक्तियों के मिलने से पवनपुत्र महावीर हनुमान बन गए, जो अपने प्रभु श्रीराम के संकटमोचन कहलाए।
हनुमान जी को सिंदूर चढ़ाने और उन का नाम बजरंगबली पड़ने के पीछे एक पौराणिक कथा
बल और बुद्धि के देवता रामभक्त हनुमान बेहद शक्तिशाली है, उन्होंने एक हाथ से पूरा पर्वत उठा लिया था। पुराणों के मुताबिक उनका शरीर वज्र के समान है इसलिए उन्हें बजरंगबली कहते हैं।
वहीं एक पौराणिक कथा के अनुसार एक बार माता सीता को सिंदूर लगाते देख हनुमान जी ने पूछा कि आप सिंदूर क्यों लगाती हैं?
तब सीता जी ने कहा कि यह सुहाग का प्रतीक है। अपने पति श्रीराम की लंबी आयु और अच्छे स्वास्थ्य के लिए वे अपनी मांग में सिंदूर भरती हैं ।
हनुमान जी ने माता सीता की बात सुनकर सोचा कि जब केवल मांग में सिंदूर लगाने से भगवान को इतना लाभ होता तो मैं पूरे शरीर में ही सिंदूर लगा लेता हूं, इससे प्रभु श्रीराम अमर हो जाएंगे।
हनुमान जी को पूरे शरीर में सिंदूर लगाए देखकर श्रीराम इसकी वजह पूछते हैं और फिर कारण जानकर उनकी भक्ति से बहुत प्रसन्न होते हैं।
तब वे हनुमान जी से कहते हैं कि आज से आपका नाम बजरंगबली भी होगा। बजरंगबली दो शब्दों बजरंग (केसरी) और बली (शक्तिशाली) से मिलकर बना है।
तब से ही रामभक्त हनुमान को सिंदूर चढ़ाने की प्रथा है, इससे वे बहुत प्रसन्न होते हैं।
सिंदूर चढ़ाते वक्त करें इस मंत्र का जप
सिन्दूरं रक्तवर्णं च सिन्दूरतिलकप्रिये।
भक्तयां दत्तं मया देव सिन्दूरं प्रतिगृह्यताम।।
हनुमान पुत्र मकरध्वज की कथा
इस कथा का उल्लेख बाल्मीकि रामायण में मिलता है।
हनुमान जी जब लंका दहन कर रहे थे तब लंका नगरी से उठने वाली ज्वाला की तेज आंच से हनुमान जी को पसीना आने लगा।
पूंछ में लगी आग को बुझाने के लिए हनुमान जी समुद्र में पहुंचे तब उनके शरीर से टपकी पसीने की बूंद को एक मछली ने अपने मुंह में ले लिया।
इससे मछली गर्भवती हो गयी। कुछ समय बाद पाताल के राजा और रावण के भाई अहिरावण के सिपाही ने, समुद्र से उस मछली को पकड़ लाए।
मछली का पेट काटने पर उसमें से एक मानव निकला जो वानर जैसा दिखता था। सैनिकों ने वानर रूपी मानव को पाताल का द्वारपाल बना दिया।
उधर लंका युद्घ के दौरान रावण के कहने पर अहिरावण राम और लक्ष्मण को चुराकर पाताल ले आया। हनुमान जी को इस बात की जानकारी मिली तब वे पाताल पहुंच गये।
यहां द्वार पर ही उनका सामना एक और महाबली वानर से हो गया। हनुमान जी ने उसका परिचय पूछा तो वानर रूपी मानव ने कहा कि वह पवनपुत्र हनुमान का बेटा मकरध्वज है।
अब हनुमान जी और ज्यादा अचंभित हो गए। वो बोले कि मैं ही हनुमान हूं लेकिन मैं तो बालब्रह्मचारी हूं। तुम मेरे पुत्र कैसे हो सकते हो।
हनुमान जी की जिज्ञासा शांत करते हुए मकरध्वज ने उन्हें पसीने की बूंद और मछली से अपने उत्पन्न होने की कथा सुनाई। कथा सुनकर हनुमान जी ने स्वीकार कर लिया कि मकरध्वज उनका ही पुत्र है।
हनुमान ने मकरध्वज को बताया कि उन्हें अहिरावण यानी उसके स्वामी की कैद से अपने राम और लक्ष्मण को मुक्त कराना है। लेकिन मकरध्वज ठहरा पक्का स्वामी भक्त। उसने कहा कि जिस प्रकार आप अपने स्वामी की सेवा कर रहे हैं उसी प्रकार मैं भी अपने स्वामी की सेवा में हूं, इसलिए आपको नगर में प्रवेश नहीं करने दूंगा।
हनुमान जी के काफी समझाने के बाद भी जब मकरध्वज नहीं माना तब हनुमान और मकरध्वज के बीच घमासान युद्घ हुआ।
अंत में हनुमान जी ने मकरध्वज को अपनी पूंछ में बांध लिया और नगर में प्रवेश कर गये। अहिरावण का संहार करके हनुमान जी ने मकरध्वज को भगवान राम से मिलवाया और भगवान राम ने मकरध्वज को पाताल का राजा बना दिया।