पौराणिक कथाये - 9 - बसंत पंचमी की पौराणिक कथा Devaki Ďěvjěěţ Singh द्वारा पौराणिक कथा में हिंदी पीडीएफ

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पौराणिक कथाये - 9 - बसंत पंचमी की पौराणिक कथा

वसंत को ऋतुओं का राजा कहा जाता है। इस ऋतु में मौसम खूबसूरत हो जाता है। फूल, पत्ते, आकाश, धरती सब पर बहार आ जाती है। सारे पुराने पत्ते झड़ जाते हैं और नए फूल आने लगते हैं। प्रकृति के इस अनोखे दृश्य को देख हर व्यक्ति का मन मोह जाता है। मौसम के इस सुहावने मौके को उत्सव की तरह मनाया जाता है। वसंत पंचमी को श्री पंचमी तथा ज्ञान पंचमी भी कहते हैं।


हर वर्ष माघ माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी के दिन बसंत पंचमी का त्योहार मनाया जाता है।

इस दिन संगीत, ज्ञान, कला, विद्या, वाणी की देवी मां सरस्वती की पूजा होती है ।

शास्त्रों में बसंत पंचमी के दिन पीले रंग का विशेष महत्व होता है । ऐसा माना जाता है कि इस दिन मां सरस्वती को पीले फूल अर्पित करने चाहिए। इसके साथ ही, इस दिन मां को पीले रंग के वस्त्र और पीला ही भोजन का भोग लगाया जाना चाहिए।

इसकी मुख्य वजह बसंत पंचमी के दिन से मौसम सुहावना होने लग जाता है।

पेड़-पौधों पर नए पत्ते, फूल और कलियां भी खिलने लगती हैं ।इस कारण इस दिन पीले रंग को महत्व होता है।

बसंत के मौसम में सरसों की फसल पक कर तैयार होती है। धरती पीले फूलों से पीली नजर आती है ।

इसके साथ ये भी मान्यता है कि बसंत पंचमी के दिन सूर्य उत्तरायण में होता है। सूर्य की किरणों से पृथ्वी पीली होती जाती है। आज के दिन कपड़े भी पीले रंग के पहने जाते हैं ।

लोक कथा के अनुसार,

एक बार ब्रह्मा जी धरती पर विचरण करने निकले और उन्होंने मनुष्यों और जीव-जंतुओं को देखा तो सभी नीरस और शांत दिखाई दिए।

यह देखकर ब्रह्मा जी को कुछ कमी लगी और उन्होंने अपने कमंडल से जल निकालकर पृथ्वी पर छिड़क दिया।

जल छिड़कते ही 4 भुजाओं वाली एक सुंदर स्त्री प्रकट हुई जिसके एक हाथ में वीणा, एक में माला, एक में पुस्तक और एक हाथ में वर मुद्रा थी।

चतुरानन ने उन्हें ज्ञान की देवी मां सरस्वती के नाम से पुकारा। ब्रह्मा जी की आज्ञा के अनुसार सरस्वती जी ने वीणा के तार झंकृत किए, जिससे सभी प्राणी बोलने लगे, नदियां कलकल कर बहने लगी हवा ने भी सन्नाटे को चीरता हुआ संगीत पैदा किया।

तभी से बुद्धि व संगीत की देवी के रुप में सरस्वती की पूजा की जाने लगी।

पौराणिक कथानुसार,

एक बार देवी सरस्वती ने भगवान श्रीकृष्ण को देख लिया था और वह उन पर मोहित हो गई थी।

वह उन्हें पति के रूप में पाना चाहती थी, लेकिन जब भगवान कृष्ण को पता चला तो उन्होंने कहा कि वह केवल राधारानी के प्रति समर्पित हैं।

लेकिन सरस्वती को मनाने के लिए उन्होंने वरदान दिया कि आज से माघ के शुक्ल पक्ष की पंचमी को समस्त विश्व तुम्हारी विद्या व ज्ञान की देवी के रुप में पूजा करेगा।

उसी समय भगवान श्री कृष्ण ने सबसे पहले देवी सरस्वती की पूजा की तब से लेकर निरंतर बसंत पंचमी के दिन मां सरस्वती की पूजा लोग करते
आ रहे हैं लोग l


"विद्या दायिनी, हंस वाहिनी
माँ भगवती तेरे चरणों में झुकाते शीष
देवी कृपा कर हे मैया दे अपना आशीष
सदा रहे अनुकम्पा तेरी रहे सदा प्रविश
बसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएँ"