होलिका दहन, होली त्योहार का पहला दिन, फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है।
इसके अगले दिन रंगों से खेलने की परंपरा है जिसे धुलेंडी, धुलंडी ,होली और धूलि आदि नामों से भी जाना जाता है।
होली बुराई पर अच्छाई की विजय के उपलक्ष्य में मनाई जाती है। होलिका दहन (जिसे छोटी होली भी कहते हैं) के अगले दिन पूर्ण हर्षोल्लास के साथ रंग खेलने का विधान है और अबीर-गुलाल आदि एक-दूसरे को लगाकर व गले मिलकर इस पर्व को मनाया जाता है।
होली की कई कहानियां प्रचलित है। वैष्णव परंपरा मे होली को, होलिका-प्रहलाद की कहानी का प्रतीकात्मक सूत्र मानते हैं।
1* होलिका दहन की पौराणिक कथा
उत्तर प्रदेश का हरदोई जिला पहले हरि द्रोही के नाम से जाना जाता था जिसका राजा हिरण्यकश्यप था।
हिरण्यकश्यप के भाई का वध भगवान विष्णु ने कर दिया था वेदों और पुराणों के अनुसार राजा हिरण्यकश्यप का पुत्र प्रहलाद भगवान विष्णु का परम भक्त था।
जिसे मारने के लिए हिरण्यकश्यप ने कई प्रयास किए थे। अंतिम प्रयास में उसने अपनी बहन होलिका से अग्नि की चिता में प्रहलाद को लेकर बैठने की अपील की थी क्योंकि होलिका को विष्णु द्वारा वरदान स्वरूप एक चुनरी मिली थी, जिसे ओढ़ने के बाद वह भस्म नहीं होती थी।
प्रहलाद की बुआ चुनरी ओढ़ कर प्रहलाद को गोद में लेकर चिता पर बैठ गई।
इसके बाद होलिका की चिता में आग लगा दी गई बताया जाता है कि तेज हवाओं के कारण वह चुनरी भक्त प्रहलाद से लिपट गई और हिरण्यकश्यप की बहन होलीका उसी चिता में जल गई।
तब से लेकर आज तक उसी जगह पर होलीका का दहन बुराई पर अच्छाई की विजय के स्वरुप में किया जाता है ।
और बाद में लोग नाच गाकर लोकगीतों के साथ एक दूसरे को रंग लगाकर आपसी भाईचारे को बढ़ावा देने के लिए होली मनाते चले आ रहे हैं।
अब यह त्यौहार भारत के साथ-साथ कई देशों में धूमधाम से मनाया जाता है
2 * कामदेव को किया था भस्म
देव लोक के राजा इंद्र ने कामदेव को शिव की तपस्या भंग करने का आदेश दिया।
तब कामदेव ने वसंत को याद किया और अपनी माया से वसंत का प्रभाव सारे जगत में फैला दिया। तब सभी प्राणी काममोहित होने लगे।
शिव को मोहित करने का यह प्रभाव होली तक चला।
कहते है कि होली के ही दिन शिव की तपस्या भंग हो गई।
वह रौद्र रूप में आ गए। शिव रोष में आकर कामदेव को भस्म कर दिए।
फिर सब को संदेश दिया कि होली के दिन काम (मोह, इच्छा, लालच, धन, मद) अपने पर हावी न होने दें।
तब से ही होली पर वसंत उत्सव एवं होली जलाने की परंपरा है।
इस घटना के बाद शिवजी ने पार्वती से विवाह की सम्मति दी।
जिससे सभी देवी-देवताओं और मनुष्यों में हर्ष फैल गया। सभी ने एक-दूसरे को रंग गुलाल लगाकर उत्सव मनाया, जो आज होली के रूप में घर-घर मनाया जाता है।
3 * महाभारत की कहानी
राजा रघु और ढुण्डा नाम के एक राक्षसी की कहानी
महाभारत की एक कहानी के मुताबिक युधिष्ठर को श्री कृष्ण ने बताया- एक बार श्री राम के एक पूर्वज
राजा रघु के राज्य में ढुण्डा नाम की एक राक्षसी थी।
जिसको भगवान शिव से अमरत्व का वरदान था।
जो खासकर बच्चों को परेशान करती थी।
राज्य की भयभीत प्रजा ने अपनी पीड़ा राजा रघु को बताई।
तब राजा रघु ने पूरा घटनाक्रम महर्षि वशिष्ठ को बताया।
फिर ऋषि ने उपाय बताया कि फाल्गुन पूर्णिमा का दिन शीत ऋतु की विदाई तथा ग्रीष्म ऋतु के आगमन का होता है।
उस दिन सारे लोग एकत्र होकर आनंद और खुशी के साथ हंसे, नाचे, गाएं, तालियां बजाएं। लकडिय़ां, घास, उपलें आदि इकट्ठा कर मंत्र बोलकर उनमें आग जलाएं, अग्नि की परिक्रमा करें व उसमें हवन करें।
राजा द्वारा प्रजा के साथ इन सब क्रियाओं को करने पर अंतत: ढुण्डा नामक राक्षसी का अंत हुआ।
इस प्रकार बच्चों पर से राक्षसी बाधा तथा प्रजा के भय का निवारण हुआ। यह दिन ही होलिका तथा कालान्तर में होली के नाम से लोकप्रिय हुआ।
4 * श्रीकृष्ण और पूतना की कहानी
होली का श्रीकृष्ण से गहरा रिश्ता है। जहां इस त्योहार को राधा-कृष्ण के प्रेम के प्रतीक के तौर पर देखा जाता है।
वहीं,पौराणिक कथा के अनुसार जब कंस को श्रीकृष्ण के गोकुल में होने का पता चला तो उसने पूतना नामक राक्षसी को गोकुल में जन्म लेने वाले हर बच्चे को मारने के लिए भेजा।
पूतना स्तनपान के बहाने शिशुओं को विषपान कराना था। लेकिन कृष्ण उसकी सच्चाई को समझ गए।
उन्होंने स्वंम दुग्धपान करते समय ही पूतना का वध कर दिया। कहा जाता है कि तभी से होली पर्व मनाने की मान्यता शुरू हुई।
होलिका दहन का इतिहास
विंध्य पर्वतों के निकट स्थित रामगढ़ में मिले एक ईसा से 300 वर्ष पुराने अभिलेख में भी इसका उल्लेख मिलता है। कुछ लोग मानते हैं कि इसी दिन भगवान श्री कृष्ण ने पूतना नामक राक्षसी का वध किया था। इसी ख़ुशी में गोपियों ने उनके साथ होली खेली थी।