पौराणिक कथाये - 10 - महाशिवरात्रि व्रत की पौराणिक कथा Devaki Ďěvjěěţ Singh द्वारा पौराणिक कथा में हिंदी पीडीएफ

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पौराणिक कथाये - 10 - महाशिवरात्रि व्रत की पौराणिक कथा

शिवरात्रि तो हर महीने में आती है लेकिन महाशिवरात्रि सालभर में एक बार आती है।
फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को महाशिवरात्रि का त्योहार मनाया जाता है।

महाशिवरात्रि का महत्व इसलिए है क्योंकि यह शिव और शक्ति की मिलन की रात है। आध्यात्मिक रूप से इसे प्रकृति और पुरुष के मिलन की रात के रूप में बताया जाता है।

शिवभक्त इस दिन व्रत रखकर अपने आराध्य का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
शंकर भगवान को भांग बहुत प्रिय है इसलिए इस दिन भांग को दूध में मिलाकर शिवलिंग पर चढ़ाया जाता है l इस दिन मंदिरों में जलाभिषेक का कार्यक्रम दिन भर चलता है।

महाशिवरात्रि व्रत कथा

शिव पुराण के अनुसार, प्राचीन काल में चित्रभानु नामक एक शिकारी था l जानवरों की हत्या करके वह अपने परिवार को पालता था l वह एक साहूकार का कर्जदार था, लेकिन उसका ऋण समय पर न चुका सका l क्रोधित साहूकार ने शिकारी को शिवमठ में बंदी बना लिया l संयोग से उस दिन शिवरात्रि थी l साहूकार के घर पूजा हो रही थी तो शिकारी ध्यानमग्न होकर शिव-संबंधी धार्मिक बातें सुनता रहा l चतुर्दशी को उसने शिवरात्रि व्रत की कथा भी सुनी l

शाम होते ही साहूकार ने उसे अपने पास बुलाया और ऋण चुकाने के विषय में बात की l शिकारी अगले दिन सारा ऋण लौटा देने का वचन देकर बंधन से छूट गया l अपनी दिनचर्या की भांति वह जंगल में शिकार के लिए निकला l लेकिन दिनभर बंदी गृह में रहने के कारण भूख-प्यास से व्याकुल था l शिकार खोजता हुआ वह बहुत दूर निकल गया l जब अंधेरा गया तो उसने विचार किया कि रात जंगल में ही बितानी पड़ेगी l वह वन में एक तालाब के किनारे एक बेल के पेड़ पर चढ़ कर रात बीतने का इंतजार करने लगा l

बिल्व वृक्ष के नीचे शिवलिंग था जो बिल्वपत्रों से ढंका हुआ था l शिकारी को उसका पता न चला l पड़ाव बनाते समय उसने जो टहनियां तोड़ीं, वे संयोग से शिवलिंग पर गिरती चली गई l इस प्रकार दिनभर भूखे-प्यासे शिकारी का व्रत भी हो गया और शिवलिंग पर बिल्वपत्र भी चढ़ गए l एक पहर रात्रि बीत जाने पर एक गर्भिणी हिरणी तालाब पर पानी पीने पहुंची l

शिकारी ने धनुष पर तीर चढ़ाकर ज्यों ही प्रत्यंचा खींची, हिरणी बोली, ‘मैं गर्भिणी हूँ l शीघ्र ही प्रसव करूंगी l तुम एक साथ दो जीवों की हत्या करोगे, जो ठीक नहीं है l मैं बच्चे को जन्म देकर शीघ्र ही तुम्हारे समक्ष प्रस्तुत हो जाऊंगी, तब मार लेना l’

शिकारी ने प्रत्यंचा ढीली कर दी और हिरणी जंगली झाड़ियों में लुप्त हो गई l प्रत्यंचा चढ़ाने तथा ढीली करने के वक्त कुछ बिल्व पत्र अनायास ही टूट कर शिवलिंग पर गिर गए l इस प्रकार उससे अनजाने में ही प्रथम प्रहर का पूजन भी सम्पन्न हो गया l

कुछ ही देर बाद एक और हिरणी उधर से निकली l शिकारी की प्रसन्नता का ठिकाना न रहा l समीप आने पर उसने धनुष पर बाण चढ़ाया l तब उसे देख हिरणी ने विनम्रतापूर्वक निवेदन किया, ‘हे शिकारी! मैं थोड़ी देर पहले ऋतु से निवृत्त हुई हूं. कामातुर विरहिणी हूं l अपने प्रिय की खोज में भटक रही हूं l मैं अपने पति से मिलकर शीघ्र ही तुम्हारे पास आ जाऊंगी l’

शिकारी ने उसे भी जाने दिया l दो बार शिकार को खोकर उसका माथा ठनका l वह चिंता में पड़ गया l रात्रि का आखिरी पहर बीत रहा था l इस बार भी धनुष से लग कर कुछ बेलपत्र शिवलिंग पर जा गिरे तथा दूसरे प्रहर की पूजन भी सम्पन्न हो गई l तभी एक अन्य हिरणी अपने बच्चों के साथ उधर से निकली l शिकारी के लिए यह स्वर्णिम अवसर था l उसने धनुष पर तीर चढ़ाने में देर नहीं लगाई l वह तीर छोड़ने ही वाला था कि हिरणी बोली, ‘हे शिकारी!’ मैं इन बच्चों को इनके पिता के हवाले करके लौट आऊंगी l इस समय मुझे मत मारो l

शिकारी हंसा और बोला, सामने आए शिकार को छोड़ दूं, मैं ऐसा मूर्ख नहीं l इससे पहले मैं दो बार अपना शिकार खो चुका हूं l मेरे बच्चे भूख-प्यास से व्यग्र हो रहे होंगे l उत्तर में हिरणी ने फिर कहा, जैसे तुम्हें अपने बच्चों की ममता सता रही है, ठीक वैसे ही मुझे भी l हे शिकारी! मेरा विश्वास करों, मैं इन्हें इनके पिता के पास छोड़कर तुरंत लौटने की प्रतिज्ञा करती हूं l

हिरणी का दीन स्वर सुनकर शिकारी को उस पर दया आ गई l उसने उस मृगी को भी जाने दिया l शिकार के अभाव में तथा भूख-प्यास से व्याकुल शिकारी अनजाने में ही बेल-वृक्ष पर बैठा बेलपत्र तोड़-तोड़कर नीचे फेंकता जा रहा था l पौ फटने को हुई तो एक हृष्ट-पुष्ट मृग उसी रास्ते पर आया l शिकारी ने सोच लिया कि इसका शिकार वह अवश्य करेगा l

शिकारी की तनी प्रत्यंचा देखकर मृग विनीत स्वर में बोला, हे शिकारी! यदि तुमने मुझसे पूर्व आने वाली तीन मृगियों तथा छोटे-छोटे बच्चों को मार डाला है, तो मुझे भी मारने में विलंब न करो, ताकि मुझे उनके वियोग में एक क्षण भी दुख न सहना पड़े l मैं उन हिरणियों का पति हूं l यदि तुमने उन्हें जीवनदान दिया है तो मुझे भी कुछ क्षण का जीवन देने की कृपा करो l मैं उनसे मिलकर तुम्हारे समक्ष उपस्थित हो जाऊंगा l

मृग की बात सुनते ही शिकारी के सामने पूरी रात का घटनाचक्र घूम गया, उसने सारी कथा मृग को सुना दी l तब मृग ने कहा, ‘मेरी तीनों पत्नियां जिस प्रकार प्रतिज्ञाबद्ध होकर गई हैं, मेरी मृत्यु से अपने धर्म का पालन नहीं कर पाएंगी l अतः जैसे तुमने उन्हें विश्वासपात्र मानकर छोड़ा है, वैसे ही मुझे भी जाने दो l मैं उन सबके साथ तुम्हारे सामने शीघ्र ही उपस्थित होता हूं l ’

शिकारी ने उसे भी जाने दिया l इस प्रकार प्रात: हो आई l उपवास, रात्रि-जागरण तथा शिवलिंग पर बेलपत्र चढ़ने से अनजाने में ही पर शिवरात्रि की पूजा पूर्ण हो गई l पर अनजाने में ही की हुई पूजन का परिणाम उसे तत्काल मिला l शिकारी का हिंसक हृदय निर्मल हो गया l उसमें भगवद्शक्ति का वास हो गया l

थोड़ी ही देर बाद वह मृग सपरिवार शिकारी के समक्ष उपस्थित हो गया, ताकि वह उनका शिकार कर सके l, किंतु जंगली पशुओं की ऐसी सत्यता, सात्विकता एवं सामूहिक प्रेमभावना देखकर शिकारी को बड़ी ग्लानि हुई l उसने मृग परिवार को जीवनदान दे दिया l

अनजाने में शिवरात्रि के व्रत का पालन करने पर भी शिकारी को मोक्ष की प्राप्ति हुई l जब मृत्यु काल में यमदूत उसके जीव को ले जाने आए तो शिवगणों ने उन्हें वापस भेज दिया तथा शिकारी को शिवलोक ले गए l शिव जी की कृपा से ही अपने इस जन्म में राजा चित्रभानु अपने पिछले जन्म को याद रख पाए तथा महाशिवरात्रि के महत्व को जान कर उसका अगले जन्म में भी पालन कर पाए l
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🕉🕉अन्य पौराणिक कथा के अनुसार 🕉🕉
🕉महा शिवरात्रि के दिन पहली बार प्रकट हुए थे शिवजी🕉
पौराणिक कथाओं के अनुसार, महाशिवरात्रि के दिन शिवजी पहली बार प्रकट हुए थे। शिव का प्राकट्य ज्योतिर्लिंग यानी अग्नि के शिवलिंग के रूप में था। ऐसा शिवलिंग जिसका ना तो आदि था और न अंत।

बताया जाता है कि शिवलिंग का पता लगाने के लिए ब्रह्माजी हंस के रूप में शिवलिंग के सबसे ऊपरी भाग को देखने की कोशिश कर रहे थे लेकिन वह सफल नहीं हो पाए। वह शिवलिंग के सबसे ऊपरी भाग तक पहुंच ही नहीं पाए।

दूसरी ओर भगवान विष्णु भी वराह का रूप लेकर शिवलिंग के आधार ढूंढ रहे थे लेकिन उन्हें भी आधार नहीं मिला।

🕉64 जगहों पर प्रकट हुए थे शिवलिंग🕉
एक और कथा यह भी है कि महाशिवरात्रि के दिन ही शिवलिंग विभिन्न 64 जगहों पर प्रकट हुए थे। उनमें से हमें केवल 12 जगह का नाम पता है। इन्हें हम 12 ज्योतिर्लिंग के नाम से जानते हैं।

महाशिवरात्रि के दिन उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर में लोग दीपस्तंभ लगाते हैं। दीपस्तंभ इसलिए लगाते हैं ताकि लोग शिवजी के अग्नि वाले अनंत लिंग का अनुभव कर सकें।
यह जो मूर्ति है उसका नाम लिंगोभव, यानी जो लिंग से प्रकट हुए थे। ऐसा लिंग जिसकी न तो आदि था और न ही अंत।

🕉शिव और शक्ति का हुआ था मिलन🕉

महाशिवरात्रि को पूरी रात शिवभक्त अपने आराध्य जागरण करते हैं। शिवभक्त इस दिन शिवजी की शादी का उत्सव मनाते हैं।
मान्यता है कि महाशिवरात्रि को शिवजी के साथ शक्ति की शादी हुई थी।
इसी दिन शिवजी ने वैराग्य जीवन छोड़कर गृहस्थ जीवन में प्रवेश किया था। शिव जो वैरागी थी, वह गृहस्थ बन गए।
माना जाता है कि शिवरात्रि के 15 दिन पश्चात होली का त्योहार मनाने के पीछे एक कारण यह भी है।