फादर्स डे - 53 Praful Shah द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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फादर्स डे - 53

लेखक: प्रफुल शाह

खण्ड 53

गुरुवार 16/02/2000

शेंदूरजणे गांव के रास्ते पर गाड़ी अचानक बंद पड़ गई। रास्ते के दोनों तरफ गन्ने के हरे-भरे खेत थे। सूर्यकान्त को ऐसा भ्रम होने लगा कि इन खेतों के बीच से संकेत दौड़ता हुआ उसकी ओर आ रहा है। संकेत की आवाज सुनाई देने लगी, “बचाओ, बचाओ...।”

राजेंद्र कदम को कुछ सूझ नहीं रहा था। सूर्यकान्त ने दोनों हाथों से अपना सिर पकड़ लिया। चक्कर आ जाने की वजह से वह गाड़ी का आधार लेकर खड़े होने की कोशिश कर रहा था। राजेंद्र घबरा गया।

“भाऊ, तबीयत ठीक है न? ”

सूर्यकान्त ने धीरे से आंखें खोलीं। कदम ने गाड़ी से निकाली हुई पानी की बोतल उसके सामने रखी। सूर्यकान्त ने ‘नहीं’ कहकर पानी की बोतल वापस गाड़ी में रख दी। वह बहुत कोशिश करके केवल इतना ही कह पाया, “चलो, यहां से निकलें।”

दोनों कार को धक्का मारते हुए शेंदुरजणे से दूर निकलने लगे। उस समय सूर्यकान्त को इस बात का एहसास नहीं था कि वह किससे दूर जा रहा है। उसे दोबारा शेंदुरजणे आना पड़ेगा, इसकी रंचमात्र कल्पना नहीं थी।

..................................................

शुक्रवार 17/02/2000

शिरवळ गांव में अब संकेत को कहीं छुपाकर रखने की और भांडेपाटील परिवार की दिशाहीन दौड़भाग हंसी का विषय बनती जा रही थी। गांव के बेकार, आवारा और कामचोर लड़के एकदूसरे को ताली दे-देकर मजाक उड़ा रहे थे।

“अपन तो पहले ही बोल रहे थे कि लड़का गुम गया, अपहरण हुआ है, ये सब नाटक है। सही बात तो यह है कि किसी का भी अपहरण वपहरण हुआ ही नहीं है। सब उस नवाबजादे सूर्यकान्त का खेल है, खेल...। किसी को यह बात समझ में आ रही है कि नहीं? गांव वाले मूर्ख हैं क्या? सब लोगों को ये घुमा रहा है। खिलाड़ी नंबर वन... ”

“माने तुम्हारा कहना है कि इसने लड़के को कहीं अच्छी तरह से छुपा कर रखा है और ये दौड़धूप-रोना-धोना सब नाटक है?”

“अरे....उसकी मॉं की....माने सब लोगों सूर्यकान्त ही भुलावा दे रहा है, ऐसा?”

“ और क्या पट्ठे...तुमने उसको समझ क्या रखा है? तुम ही सोचो जरा...पुलिस पार्टी पर इतना दबाव बनाया उसने, तो क्या वो चुपचाप बैठे रहेंगे भला? पाताल से भी अपराधी को ढूंढ़ लाते हैं वो लोग, पर पहले अपराध तो होना चाहिए कि नहीं?” एक कामचोर अपनी लॉजिकल स्मार्टनेस दिखाते हुए बोला।

गप्पी मंडल का चौथा प्रमुख अपने माथे पर हाथ रखकर किसी बुद्धिमान की भूमिका में आ गया।

“हां, ... वैसे यह बात विचार करने लायक तो है...मेरा कहना है...पहली फेरी में फिरौती के पैसे लेने के लिए कोई नहीं आया, क्योंकि वहां पर पुलिस वाले मौजूद थे। उसके बाद शाम को पुलिस के पहुंचने तक पैसे गायब हो गए। वही पैसे घूम-फिर कर बैंक में जमा हो गए। अमजद शेख के नाम का खूब ढिंढोरा पीटा गया, फिर उसको भी छोड़ दिया गया। डेढ़ महीना हो गया कि नहीं? कोई अनाथ आश्रम छोड़ा नहीं, कोई सुधार घर छूटा नहीं। फिर भी इसको छोटा-सा बच्चा नहीं मिल पाया? इसका क्या अर्थ है ? लेकिन लड़का कहीं जाएगा, तब तो मिलेगा ना? देखो भाई, अपहरण की बात में तो अपन को कोई दम नहीं लगता...मरने दो...अपने को न लेना न देना....क्या करना है। ”

इस प्रकरण की तह तक अब पहुंचना ही होगा, चाहे कुछ भी हो जाए ये पहेली अब सुलझानी ही होगी- यही विचार करते हुए सूर्यकान्त, रफीक़ मुजावार और मर्डेकर घर में साथ-साथ बैठे हुए थे। सबके मन में विचार चक्र चालू था। ‘पुलिस को उसके तरीके, उसके अनुभव के हिसाब काम करने दिया जाए। पुलिस के लिए तो मेरा संकेत केवल अपहरण केस है, लेकिन मेरे लिए तो मेरे बेटे के जीवन का सवाल है, उसकी जान की बाजी लगी हुई है।’

सूर्यकान्त, रफीक़ मुजावार और विष्णु मर्डेकर फर्श पर ही पालथी मार कर बैठ गए। संकेत के अपहरण के बाद की सभी घटनाओं को फिर से बारीकी से याद करते हुए नए तरीके से एक कागज पर उन घटनाओं की सूची बनाने लगे। सूची में कोई भी नाम छूटना नहीं चाहिए, इस बात का खास ख्याल रखा जा रहा था। सभी रिश्तेदार, संदिग्ध और गवाहों की अलग-अलग सूची बनाते चले गए। संदिग्धों विचार-विमर्श होने लगा। कोई संभावना दिखाई दे रही है क्या-इस पर चर्चा होने लगी।

इस काम के लिए तीनों ने एक टीम बनाई-सूर्यकान्त, रफीक़ मुजावार और मशीनगनधारी विष्णु मर्डेकर और उनका वफादार साथी एमएच 11-5653 जीप। क्या कर रहे हैं? कहां जा रहे हैं? किससे मिलने वाले हैं-ये जानकारी किसी को भी मालूम नहीं पड़नी चाहिए, इस बात का तीनों विशेष ध्यान रखने लगे थे।

संकेत को आखरी बार देखने वाली शिक्षिका अंजली वाळिंबे से एक बार फिर जांच-पड़ताल की गई। सूर्यकान्त को लगा कि कहीं ये महिला कोई बात छिपा रही हो तो? लेकिन क्या छिपा सकती है, और भला क्यों छिपाएगी? शायद लाचारीवश, भूलवश या किसी गलतफहमी के कारण कुछ बताना भूल तो नहीं गई होगी?

अचानक खबर आई कि सातारा एसपी सुरेश खोपड़े का तबादला हो गया है। उनकी जगह पर रामराव पवार की नियुक्ति की गई थी। सूर्यकान्त तय नहीं कर पाया कि इसे गुड न्यूज समझा जाए, या नहीं। लेकिन भविष्य में ये फेरबदल ही उसके लिए बहुत काम आने वाला है, नियति ने पहले से ही निर्धारित कर रखा था।

इस ट्रांसफर और पोस्टिंग को सरकारी रूटीन मानकर त्रिकुट फिर से अपने काम में जुट गया। कात्रज घाट के पास रखी गई लाख रुपए की रकम किसने गायब की, उस जगह पर सिविल ड्रेस में पुलिस वाला सालुंके मिला था। मोटे-तगड़े सालुंके को डोगरा के नाम से पहचाना जाता था। इसलिए उस तक आसानी से पहुंचा जा सका। संकेत अपहरण कांड पर हुआ हल्ला-गुल्ला, सूर्यकान्त का पॉलिटिकल कनेक्शन और तगड़ी पूछताछ के सामने सालुंके ने घुटने टेक दिए। उसने कबूल किया कि वह जगह सुनसान होने के कारण कई प्रेमी युगल वहां आते हैं, उसके हाथ में सौ-दो सौ टिका देते हैं और फिर वह उनके लिए उस जगह की रखवाली करता रहता है।

उस दिन कात्रज घटनास्थल पर मौजूद अन्य पुलिसकर्मियों से भी पूछताछ की गई। हाथ आया कुछ भी छूटना नहीं चाहिए, इस बात को लेकर तीनों बड़ी सावधानी बरत रहे थे। पुलिस वाले भी इस त्रिकुट के संदेह के घेरे में थे, लेकिन इसका नजीता भी शून्य ही निकला।

अनुवाद: यामिनी रामपल्लीवार/ ©प्रफुल शाह