फादर्स डे - 36 Praful Shah द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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फादर्स डे - 36

लेखक: प्रफुल शाह

खण्ड 36

रविवार -13/12/1999

अजीतदादा पवार यानी महाराष्ट्र की राजनीति का एक महत्वपूर्ण स्तंभ और उन्हें शरद पवार के राजनैतिक वारिस के रूप में भी देखा जाता था। अल्पभाषी, प्रखर और मुद्दों पर बात करने वाले नेता।

मकरंद, सूर्यकान्त और नितिन उनके सामने बैठे ही थे और उन्होंने अपने पीए को आदेश दिया, “सातारा के एसपी सुरेश खोपडे को फोन लगाइए।”

कुछ ही देर में खोपड़े साहब लाइन पर आ गए। अजीत दादा ने सीधा सवाल किया, “संकेत भांडेपाटील नाम के एक छोटे बच्चे के अपहरण के मामले को तेरह दिन बीत गए, पुलिस कर क्या रही है?”

सुरेश खोपडे उधर से जवाब दे रहे थे और इधर दादा बीच-बीच में “हम्मम...हम्मम...” करते हुए ध्यानपूर्वक उनकी बात सुन रहे थे। जब उधर की बात पूरी हो गई, तो दादा ने दूसरा सवाल किया, “आपने स्पॉट विजिट किया?”

उधर से नकारात्मक जवाब मिलते ही अजीत दादा भड़क गए।

“देखिए, आप स्वयं रोज शाम को संकेत के मामले की रिपोर्टिंग मुझे कीजिए। केस में जो भी प्रगति हो, वह मुझे मालूम होनी चाहिए। ध्यान रखिए संकेत मेरे मित्र का बेटा है, काम में ढिलाई बिल्कुल बर्दाश्त नहीं की जाएगी...समझ गए?”

उन्होंने फोन रख दिया। मकरंद पाटील और नितिन भारगुडे पाटील कृतज्ञ भाव से उनकी ओर देखने लगे। सूर्यकान्त मन ही मन सोच रहा था, ‘इस व्यक्ति को इंसान की भावनाओं की कितनी कद्र है, चिंता है। अब तो मेरा संकेत निश्चित ही वापस आएगा।’

अजीत दादा को एयरपोर्ट जाना था, वे हड़बड़ी में उठे। उन्होंने सूर्यकान्त के कंधे पर हाथ रखा और सांत्वना के दो शब्द कहे, “सब ठीक हो जाएगा, चिंता मत करिए।”

चिंता, चिंता और सिर्फ चिंता। विष्णु, शामराव और संजय सूर्यकान्त की चिंता करते हुए बैठे थे। चिंता के साथ-साथ उसकी तारीफ भी करते जा रहे थे। इतने टेंशन में भी यह आदमी भागदौड़ में कोई कमी नहीं छोड़ रहा। कितनी शिद्दत के साथ कोशिशें कर रहा है। विष्णु को सूर्यकान्त जैसे होशियार और साहसी बेटे का पिता होने का घमंड तो था ही, लेकिन दूसरी तरफ वह यह भी सोच रहा था कि कितनी विचित्र बात है कि इतने होशियार और सफलता के कई पायदान चढ़ चुके व्यक्ति के बेटे को कोई उठाकर ले जाता है और उसका आज तक पता नहीं चल पाता।

विष्णु और शामराव की बातचीत में संजय भी शामिल हो गया। उसकी पुलिसिया समझ और इतने सालों का अनुभव भी संकेत की खोज में उलझे सवालों के जवाब नहीं दे पा रहा था। संजय को उसके विचारों के चक्रव्यूह में उलझा छोड़कर विष्णु और शामराव घर के लिए कुछ जरूरी सामान के लिए बाजार की ओर निकल गए।

अब, बाहर निकलने के अलावा कोई बेहतर विकल्प सातारा पुलिस सुपरिटेंडेंट सुरेश खोपड़े को नजर नहीं आ रहा था। आदेश दिया और तत्काल पुलिस काफिले के साथ रवाना हो गए। ऑफिस में किसी को कुछ समझ में नहीं आया कि पहले से कोई ऑफिशियल विजिट तय न होने के बावजूद साहब ऑफिस से अचानक कहां निकल गए। सुरेश खोपडे की गाड़ी हवा से बातें करती हुई दौड़ रही थी।

पहिए तो सफारी के भी भाग रहे थे।  उसमें बैठे मकरंद पाटील, सूर्यकान्त और नितिन भारगुडेपाटील के प्रयासों को भी उतनी ही गति मिल गई थी। अब तो फटाफट संकेत का पता चल जाएगा। गुनाहगार जेल के अंदर बंद होगा, इसमें कोई शंका ही शेष नहीं रह गई थी। अजीत दादा पवार की त्वरित निर्णय क्षमता और कामों को आगे बढ़ाने की कार्यकुशलता जैसे विषयों पर चर्चा करते हुए सभी अपने गंतव्य सातारा पहुंच गए।

यहां मकरंद पाटील की सफारी छोड़कर सूर्यकान्त और नितिन खुद की जीप में सवार होकर शिरवळ के रास्ते पर निकल गए। उस वक्त घड़ी के कांटे दोपहर के तीन बजा रहे थे।

इधर तीन बजे के आसपास ही सातारा एसपी सुरेश खोपडे के काफिले ने शिरवळ में तेजी से प्रवेश किया। वायरलेस के जरिए स्थानीय पुलिस चौकी को संदेश भेज ही दिया गया था। एसपी साहब की कुमुक ने सीधे साई विहार परिसर में ही रुकी। यह सब देखकर शिरवळ सिहर गया। एक बार फिर गप्पबाजी करने वालों को मौका मिल गया।

“अब ये नया क्या?”

“संकेत....बच्चा मिल गया शायद?”

“संकेत के बारे में ऐसी कौन-सी जानकारी हाथ लग गई कि इतना बड़ा पुलिस दल यहां दौड़ा चला आया?”

“ओहहो...ये कैसा दल गांव में आ गया?”

“अरे बाप रे... खुद ...एसपी...आए हैं...एसपी। ”

“शिरवळ में पहली बार पुलिस सुपरिटेंडेंट देखने को मिला है।”

“लिख लो...खुद एसपी घर चलकर आए हैं इसका मतलब है कोई बड़ी बात हुई होगी...”

इन सभी बातों को दरकिनार करते हुए सुरेश खोपडे ने साई विहार में प्रवेश किया। उनका स्वागत पुलिस बल ने सैल्यूट ठोंक कर किया। संजय भांडेपाटील आश्चर्यचकित होकर खोपडे सर को देखता ही रह गया। संजय का सैल्यूट देखकर खोपडे को जरा अजीब लगा। फिर उनके ध्यान में आया कि संजय भांडेपाटील सातारा पुलिसकर्मी है। संजय को वहां देखकर एसपी को खुशी हुई साथ ही उनकी चिंता भी कुछ कम हुई। खोपडे ने संजय से कहा कि आज से उसकी ड्यूटी शिरवळ पुलिस चौकी पर लगाई जा रही है। वरिष्ठ अधिकारियों को भी इस संबंध में उन्होंने बता दिया।

एसपी ने संजय को अपने पास बुलाया। अपनी बातों में खूब मिठास घोलते हुए संजय को समझाना शुरू किया, “अपने सूर्यकान्त भाऊ को समझा दो। इस केस में नेताओं को शामिल करने की जरूरत नहीं है। ये हमारा काम है और इस काम को हम लोग अच्छी तरह से निभाएंगे।”

खोपडे ने प्रतिभा को भी आश्वासन दिया।

“आपका संकेत जल्द ही मिल जाएगा। मैं इस केस में और अधिक पुलिस बल लगा रहा हूं। चिंता न करें।”

सुरेश खोपडे साई विहार में करीब आधा घंटा ठहरे। उन्होंने भांडेपाटील परिवार को उनकी सुरक्षा का बंदोबस्त करने का भी आश्वासन दिया। इधर सुरेश खोपडे का पुलिस बल तेजी से शिरवळ के बाहर निकला, उधर गांव में गप्पबाजों का काम जोर-शोर से शुरू हो गया।

एसपी के शिरवळ से बाहर निकलने के करीब एक घंटे बाद सूर्यकान्त भांडेपाटील और नितिन भारगुडे की जीप ने गांव में प्रवेश किया।

“देखो... अब ये सूर्यकान्त तो घर वापस आ गया। संकेत के मामले में वास्तव में चल क्या रहा है, ये मालूम करने का कोई रास्ता ही नहीं है। दिमाग का दही हो गया है. अब जब तक बीड़ी का सुट्टा नहीं मार लेंगे, तब तक दिमाग काम ही नहीं करेगा।”

अजीत दादा पवार का फोन और एसपी सुरेश खोपडे की शिरवळ में उपस्थिति से एक नया असर दिखाई देने लगा था। संकेत अपहरण मामले को सातारा स्थानीय अपराध शाखा को सौंप दिया गया था। पहले भी सातारा पुलिस इस जांच में लगी हुई थी लेकिन सरकारी आदेश न होने के कारण उन्हें जितनी और जैसी विभागीय मदद की जरूरत थी, वह मिल नहीं पा रही थी। कभी गाड़ी नहीं, तो कभी रात में ठहरने का बंदोबस्त नहीं।

सातारा स्थानीय अपराध शाखा की स्पेशल टीम में शामिल पीआईएलपी शेजाळ, पीएसआई सदानंद बेलसरे, कॉंस्टेबल रमेश देशमुख और राजेंद्र कदम को सख्त आदेश दे दिए गए थे कि केवल वे ही लोग संकेत अपहरण मामले की जांच पड़ताल करेंगे।

अनुवाद: यामिनी रामपल्लीवार

©प्रफुल शाह

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