जादूई कहानियाँ Kartik Arya द्वारा प्रेरक कथा में हिंदी पीडीएफ

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जादूई कहानियाँ

1. जादुई गाय

शिवपुर नाम का एक गांव था। जिसमें दो किसान रहते थे। वह एक दूसरे के बहुत अच्छे दोस्त थे। वह दोनों बहुत अमीर थे। उनके पास 3-3 खेत थे। उनके पास कई गाये और भैंसें भी थी। वे उस गांव के सबसे अमीर किसान थे। वह इतनी अमीर होने के बावजूद भी खुश नहीं थे। उन्हें इससे भी बहुत अमीर बनना था।

उस गांव में इन दोनों किसानों के अलावा ओर एक किसान था। जो गरीब था‌। उसका एक छोटा-सा खेत था और एक गाय थी। जिसे वह बहुत प्यार करता था। गरीब होने के बावजूद भी बहुत खुश रहता था।

वह अपना जीवन शांति से जीता था। वह सोने के वक्त भगवान को याद करता और उसके पास जो कुछ भी है उसके लिए भगवान को धन्यवाद कहता।

वह दो अमीर किसान उस गरीब किसान को हमेशा खुश देखते थे। उसे इतना खुश देख कर वह इस सोच में पड़ जाते कि यह इतना खुश कैसे है?‌ जबकि वह हमसे बहुत गरीब है। उसके पास ज्यादा धन भी नहीं है। उसके पास हमारी तरह ज्यादा खेत या गाये-भैंसें भी नहीं है।

तब भी वह इतना खुश कैसे रह सकता है। वह दोनों जब भी उसको मिलते तब उसका बहुत मजाक उड़ाते। वह उससे अपने धनवान होने का दिखावा करते। वह उसकी गरीबी का मजाक उड़ाते।

फिर भी वह गरीब किसान उनको कुछ भी नहीं कहता। उस पर उनकी मजाक का कोई भी प्रभाव नहीं पड़ता था। इससे वह अमीर किसान क्रोध में आ जाते। यह कहानी ऐसी ही चल रही थी।

एक दिन की बात है। उन अमीर किसानों ने उस गरीब किसान को दुखी करने का सोचा। उन्होंने उस गरीब किसान के पास जाकर कहा कि हमें तुम्हारी गाय दे दो। उसके बदले हम तुम्हें सो चांदी के सिक्के देगे। जो तुम्हारे गाय के लिए पर्याप्त है।

उस किसान ने गाय बेचने के लिए मना कर दिया। क्योंकि वह अपनी गाय से बहुत प्रेम करता था। इसलिए वह किसी भी कीमत पर अपनी गाय को बेचना नहीं चाहता था।

गाय बेचने के लिए उस गरीब किसान का इनकार अमीर किसानों को पसंद नहीं आया‌‌। उन्होने बदला लेने की ठानी।
वह रात को उस गरीब किसान के खेत में गए और सारी फसल जला दी। जिससे वह गरीब किसान के पास धन की कमी हो जाए। और वह अपनी गाय बेचने पर मजबूर हो जाए।

जब वह गरीब किसान सुबह उठा और अपने खेत में गया तो वह अपनी खेत की ऐसी दशा देखकर दुख के कारण रोने लगा। वह बहुत उदास हो गया।

उसके पास अब धन की कमी हो गई थी। अब उसके पास पर्याप्त इतना भी धन नहीं था कि वह अपनी गाय को चारा लाकर खिला सके।

बिना खाना खाए गाय मर जाती। इससे अच्छा वह अपनी गाय को बेच दे। इसीलिए उसने अपनी गाय को बेचने का तय किया।

वह अपनी गाय को लेकर दूसरे गांव बेचने के लिए गया। उसने अपने साथ दस चांदी के सिक्के भी लिए थे। वहां रास्ते में एक जंगल आया।

उसने सोचा की किसी ने मुझको हमला कर दिया तो मेरे चांदी के सिक्के वह लेकर चला जाएगा। इसलिए उसने चांदी के सिक्के की पोटली गाय के गले में बंधी घंटी में बांधकर छिपा दीए।

थोड़ी देर मुसाफारी करने के बाद वह थक गया। इसीलिए उसने एक सराय‌ (मुसाफ़िरख़ाना) में आराम करने का सोचा। उसने अपनी गाय को सराय‌ के बाहर बांध दिया। वह बांध कर सराय‌ मे चला गया।

उस गाय की पोटली में से एक चांदी का सिक्का गिर गया। जिसे उस सराय‌ के मालिक ने देख लिया। उसको लगा की यह एक जादुई गाय है। जिसमें से चांदी के सिक्के निकलते हैं। यह चांदी का सिक्का भी उसी गाय से निकला है।

जब वह गरीब किसान आराम कर सराय‌ में से बाहर निकला। तब उस सराय‌ के मालिक ने उसे पूछा कि आप कहा जा रहे हो?

तब उस गरीब किसान ने जवाब दिया कि वह अपनी गाय को बेचने दूसरे गांव जा रहा है। यह सुनकर वह सराय‌ का मालिक खुश हो गया।

उसने कहा कि अब आपको दूसरे गांव जाने की जरूरत नहीं है। मैं आपकी गाय को खरीद लूंगा। उसने उस किसान को हजार चांदी के सिक्के दिए। और उसे अपनी गाय को देने को कहा। यह मूल्य उस गाय के मुल्य से बहुत अधिक था।

फिर भी उस किसान ने इसे भगवान का संकेत समझकर उस गाय को सराय के मालिक को दे दिया।

वह किसान खुश होकर अपने गांव वापस चला गया। वह अपने घर जाकर बैठकर चांदी के सिक्के गिनने लगा। वह दोनों अमीर किसान आए और उस गरीब किसान के पास हजार चांदी के सिक्के देख कर चौक गए।

उसने उस गरीब किसान से पूछा कि तुम्हारे पास इतने सारे चांदी के सिक्के कैसे आए? तब वह गरीब किसान मुस्कुराते बोला कि उसे गाय के बेचने पर इतने सारे सिक्के मिले हैं।
अब वह इन सिक्कों से बहुत सारी गाय खरीदेगा। और उससे बहुत ज्यादा धन कमाएगा। उनकी चाल उल्टी पड़ गई यह जानकर अमीर किसान दुखी हो गए।

सीख: बुरे कर्म का नतीजा हमेशा बुरा होता है।




2. जादुई पतीला

एक गांव था। जिसमें एक मजदूर रहता था। वह बहुत गरीब था। वह दिन-भर मजदूरी करता था। उसको इतनी मजदूरी करने के बावजूद भी ज्यादा मजदूरी नहीं मिलती थी।

एक दिन की बात है। वह एक शेठ के खेत में खुदाई कर रहा था। खुदाई करते-करते उसकी कुल्हाड़ी एक चीज पर पड़ी। उसे लगा कि जमीन के अंदर कोई बहुत कीमती चीज है।

उसने उस जगह खोदना शुरू किया। बहुत समय खोदने के बावजूद भी उस चीज का अंत भाग नहीं मिला। बहुत समय खुदाई के बाद एक बहुत बड़ा पतीला जमीन में से निकला। पतीला इतना बड़ा था कि जिससे एक साथ सो लोगों का खाना बन सकता था।

वह बहुत उदास हो गया। उसने सोचा कि इतनी सारी मेहनत करने पर भी एक पतीला निकला। मेरे घर में तो मैं सिर्फ अकेला ही रहता हूं। तो मैं इस पतीले का क्या करूंगा?

वह खुदाई की वजह से बहुत ज्यादा थक गया था। इसीलिए वह एक पेड़ के नीचे आराम करने के लिए गया। उस समय उसकी कुल्हाड़ी उस पतीले में गिर गई।

जब वह आराम कर उठा तो उस पतीले में बहुत सारी कुल्हाड़ीया थी। वह इसे देखकर चौक गया। उसने आसपास देखा तो उसे कोई ना दिखा।

उसने सारी कुल्हाड़ीया गिनी। उस पतीले में सो कुल्हाड़ीया थी। उसको लगा कि यह कोई मामूली पतीला नहीं है जरूर यह कोई जादुई पतीला है।

यह पतीला जादुई है कि नहीं इसके लिए उसने उसमें से एक कुल्हाड़ी को पतीले में डाली। वह एक कुल्हाड़ी थोड़ी ही क्षणों में सो कुल्हाड़ीयो में बदल गई। वह यह देखकर बहुत खुश हो गया।

वह उस पतीले को लेकर अपने घर गया और उसमें कुल्हाड़ीयो को सो गुनी करने लगा। उसने खेत में मजदूरी करना छोड़ दिया।

वह कुल्हाड़ीयो को बेचकर धन कमाने लगा। अब वह धन को सो गुना करने लगा। और सो गुने धन को को फिर से सो गुना करने लगा। ऐसा करते-करते वह अमीर बन गया।

यह सारी बात उस शेठ को पता चली। शेठ उस मजदूर के घर गया। मजदूर बहुत धनवान हो गया था।

उसने उस मजदूर से अपना पतीला वापस मांगा और कहा कि यह पतीला मेरे खेत में से निकला है, इसीलिए यह मेरा पतीला है।

उस मजदूर ने उनसे कहा कि यह मुझे मिला है इसलिए यह मेरा पतीला है।

पर आखिर में उस मजदूर को पतीला देना पड़ा। पतीला चले जाने पर भी वह मजदूर उदास नहीं था। क्योंकि मजदूर ने सोचा कि अब मेरे पास बहुत सारा धन है जिससे मैं बिना कुछ करे बहुत ऐश्वर्य भरी जिंदगी जी सकता हूँ।

वह शेठ उस पतीले को अपने घर ले गया और उसमें उसके घर के सारे कीमती सोने के जवेरात और आभूषण सबको पतीले में डालकर सो गुना करने लगा।

सो गुना सोने-जवेरात और आभूषणों को भी वह सो गुना करने लगा।‌‌ ऐसा करते-करते वह पुरे गांव का ही नहीं परंतु पूरे देश का सबसे अमीर शेठ बन गया।

यह सारी बात उस नगर के राजा को पता चली।

वह राजा सैनिक लेकर उस शेठ के घर पहुंचा। उसने उससे कहा कि इस नगर की प्रत्येक चीज पर उसका अधिकार है इसीलिए यह जादुई पतीला उसका हुआ। ऐसा कह कर उसने उस शेठ को धक्का दिया और वह पतीला लेकर चला गया।

वह राजा उन दोनों से बहुत ज्यादा लालची था। उसने अपना सारा खजाना सो गुना कर दिया। उस सो गुना खजाने को भी वह सो गुना करने लगा। ऐसा करके वह दुनिया का सबसे अमीर राजा बन गया।

एक दिन वो राजा उस पतीले के पास आया। और सोचने लगा कि इस पतीले में जरूर कुछ होगा जो इसको जादुई बनाता है। क्योंकि यह पतीला दिखने में बहुत साधारण-सा है।

इसलिए वह उस पतीले के अंदर गया और उस पतीले में ढूंढने लगा। तभी उस पतीले में उस राजा के हमशकल राजा आने लगे।

धीरे-धीरे करके उस पतीले में से सो राजा निकले। वह राजा अपने सो हमशकल को देखकर घबरा गया और अपने आप को मारने लगा और कहने लगा कि यह मैंने क्या कर दिया? मैंने अपने ही सो गुना कर दिए।

वह सो राजा अपने आप को राजा बताने लगे। वहां जो सही में उस नगर का राजा था उसने कहा कि मैं इस नगर का राजा हूं। तुम सब तो सिर्फ मेरे हमशक्ल हो। इसीलिए तुम लोग चले जाओ।

पर उनमें से कोई भी ना माना। यह बात बहुत बढ़ गई। बात इतनी बढ़ गई कि सभी राजा बनने के लिए एक-दूसरे से लडने लगे और अंत में उस नगर का राजा और उसके सो हमशक्ल इस लड़ाई में मारे गए।

सीख: ज्यादा लालच का परिणाम बहुत विनाशकारी होता है।




3. जादुई मटका

एक गांव था। जिसका नाम सुखपुर था। उस गांव में एक किराने की दुकान थी। जिसके मालिक का नाम सीताराम था।

वह बहुत दयालु और अच्छा इंसान था। वह जब भी किसी को जरूरत पड़े तो मदद के लिए तत्पर रहता था।

परंतु वह गांव में हमेशा सूखा रहता था। उस गांव में वर्ष में सिर्फ एक ही बार बारिश होती थी। इसीलिए गांव में पानी की बहुत दिक्कत होती थी। गांव में पानी के लिए बहुत दूर जाकर‌ मटके में पानी लाना पड़ता था।

एक बार की बात है। गर्मी का मौसम था। सीताराम अपनी दुकान पर बैठा था। एक बुड्ढा इंसान इतनी गर्मी में उसकी दुकान पर आया और आकर उसने सीताराम से पानी मांगा।
सीताराम के पास एक मटका था। जिसमें बहुत मुश्किल से सीताराम ने पानी भरा था। सीताराम ने सोचा कि मैंने बहुत मुश्किल से यह पानी का मटका भरा है।

अब अगर यह मटका खाली हो गया तो इतनी गर्मी में यह मटका भरने में बहुत दिक्कत होगी। परंतु सीताराम बहुत दयालु था।

उसने उस बुड्ढे इंसान को पानी दिया। बुड्ढे इंसान ने पानी पिया। फिर उस बुड्ढे इंसान ने ओर पानी मांगा। सीताराम मटके से पानी दे उससे पहले ही उसने पूरा मटका उठाकर सारा पानी पी लिया। सीताराम यह देखता ही रह गया।
उस बुड्ढे ने सीताराम को कहा कि धन्यवाद! तुमने मेरी आज प्यास बुझाई हैं। किसी की प्यास बुझाना यह बड़े पुण्य का काम है। इसीलिए तुम्हारा भगवान भला करेंगा। ऐसा का कहकर वह बुड्ढा इंसान चला गया।

थोड़े समय बाद उस गांव के सरपंच विनोद दास आए। उन्होंने सीताराम को कहा कि यह पकड़ो पर्ची इसमें मैंने जो समान लिखा है वह मुझे जल्दी से दे दो। क्योंकि आज मेरे घर में मेहमान आने वाले हैं।

सीताराम ने पर्ची के अनुसार सामान देना शुरू किया। विनोद दास ने पानी मांगा परंतु उससे सीताराम ने कहा कि मटके में पानी खत्म हो गया है। इसीलिए मैं आपको पानी नहीं दे सकता।

परंतु विनोद दास ने कहा कि क्यों झूठ बोल रहे हो! तुम्हारे पीछे मटका तो भरा हुआ है। यह सुनकर जब सीताराम ने पीछे मुड़कर देखा तो वह आश्चर्य में पड़ गया।

सीताराम ने सोचा अभी कुछ देर पहले तो वह बुड्ढे इंसान ने पूरा पानी खतम किया है। तो अचानक यह क्या हो गया।
उसने मजाक का बहाना कर विनोद दास को पानी दिया। पानी पी कर विनोद दास चले गए।

विनोद दास के चले जाने के बाद सीताराम ने मटके को देखा तो वह फिर से भर गया था। उसको लगा कि यह कोई भगवान का चमत्कार है।

फिर उसने मटके से पानी पिया। और पानी फिर से भर गया। वह यह देख खुश हो गया।

थोड़े समय बाद सरपंच दौड़ते हुए उसके पास आया। और उसके साथ उसकी बीमार एक लड़की भी आई थी। जो कई हफ्तों से बीमार थी।

सरपंच बोला कि मेरी बेटी को अभी इसी वक्त मटके का पानी दे दो।

आश्चर्य से सीताराम बोला, ऐसा क्यों?

विनोद दास ने कहा कि मेरा पैर एक अकस्मात के कारण टूट गया था। जो सारवार लेने के बाद भी ठीक नहीं हो पा रहा था। परंतु तुम्हारा पानी पीने के बाद से ही मेरा पैर बिल्कुल पहले की तरह हो गया है।

इसीलिए मुझे तुम्हारी मटके का पानी दे दो जिससे मैं अपनी बेटी को ठीक कर सकूं।

सीताराम ने ठीक ऐसा ही किया। मटके का पानी पीकर सरपंच की बेटी भी ठीक हो गई। यह देखकर सीताराम खुशी के मारे झूम उठा।

पूरे गांव में यह बात फैल गई। सीताराम ने सोचा कि शायद वह बुड्ढा इंसान कोई भगवान का फरिश्ता होगा। और उसी की वजह से यह साधारण से जादुई मटका बन गया।
सीताराम की दुकान के बाहर लोगों की लाइन लगने लगी। सब अपनी-अपनी बीमारियां ठीक करने के लिए सीताराम के पास आने लगे।

सीताराम उनका इलाज मुफ्त में करने लगा। क्योंकि उसको लोगों की सेवा करने में आनंद आता था। फिर भी लोग कुछ ना कुछ दे कर जाते। सीताराम कुछ ही दिनों में धनवान हो गया।

एक दिन की बात है। एक बुड्ढा इंसान सीताराम के दुकान पर आया और पानी मांगा। सीताराम उसको पानी दे उससे पहले कई सैनिक उसके पास आए।

और सीताराम को कहा कि जल्द से जल्द हमारे साथ चलो रानी जी बहुत बीमार है। इसलिए उनको मटके का पानी चाहिए।

सीताराम ने कहा कि सिर्फ 2 मिनट रुक जाइए मैं इस बुड्ढे इंसान को पानी देदु। परंतु सैनिकों ने कहा कि नहीं! तुम हमारे साथ चलो। राजा रानी के ठीक हो जाने पर तुम्हें बहुत सारा धन देगे।

सीताराम लालच में आ गया। और उस बुड्ढे इंसान को पानी दिए बिना ही चला गया। जब वह मटका लेकर महल पहुंचा और मटके में देखा तो पानी ही नहीं था।

सीताराम बड़े आश्चर्य में पड़ गया। राजा ने उसे रानी को ठीक करने को कहा। तब उसने कहा कि मटके में पानी नहीं है। राजा बहुत क्रोध में आ गए और धक्के मारकर सीताराम को राजमहल से निकाल दिया।

राजमहल से निकलने के बाद सीताराम ने सोचा कि वह बुड्ढा इंसान वही फरिश्ता होगा जो पहले मेरी दुकान पर आया था।

मैं आज उनको पानी दिए बिना धन के लालच में राजमहल गया। यह सब उसी का नतीजा है। सीताराम को बड़ी आत्मग्लानि हुई।

और उसने मटके की वजह से कमाया हुआ सारा धन मिलाकर एक पाइपलाइन बनाई। जो गांव से दूर स्थित तालाब और गांव को जोड़ती थी।

उस पाइप के जरिए पानी गांव में लगे एक नल के माध्यम से आता था। जिससे किसी को भी गांव से दूर तालाब में पानी भरने ना जाना पड़े और ना कोई भी व्यक्ति गांव में प्यासा रहे।

सीख: हम कितने भी सफल हो जाये। हमें अपना वह स्वभाव नहीं छोड़ना चाहिए, जिसे हम इतने सफल हुए है।