सुशांत सिंह राजपूत Kartik Arya द्वारा जीवनी में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

सुशांत सिंह राजपूत

सुशांत सिंह राजपूत का जन्म 21 जनवरी 1986 मे हुआ था और उनकी मत्यु 14 जून 2020 को हुआ था। सुशांत सिंह राजपूत एक प्रमुख भारतीय अभिनेता थे, जिन्होंने बॉलीवुड में अपनी प्रतिभा के साथ पहचान बनाई। उन्होंने कई टेलीविजन शो और फिल्मों में काम किया और उनकी अद्वितीय अभिनय क्षमता को पहचानी गई।

सुशांत का जन्म पटना, बिहार में हुआ था और उन्होंने इंडियन टेक्नोलॉजिकल इंस्टीट्यूट (IIT) दिल्ली में मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की थी। बाद में, उन्होंने अपनी प्रियक्ता को पुरस्कृत करने के लिए मुंबई आने का फैसला किया और अभिनय की दिशा में अपने करियर की शुरुआत की।

सुशांत की करियर की शुरुआत उनके टेलीविजन शो "किस देस में है मेरा दिल" से हुई, जिसमें उन्होंने पहली बार दर्शकों का दिल जीता। इसके बाद उन्होंने फिल्मों में भी कदम रखा और "काय पोछे" और "शुद्ध देसी रोमांस" जैसी फिल्मों में अभिनय किया। लेकिन उनका असली प्रशंसा प्राप्त करने का मौका 2013 में आई फिल्म "कैइ पोचे" में मिला, जिसमें उन्होंने प्रमुख भूमिका निभाई और अद्वितीय अभिनय प्रदर्शित किया।

उनकी कैरियर के दौरान, सुशांत ने बॉलीवुड के साथ-साथ टेलीविजन और वेब सीरीज में भी काम किया। उनकी मौत ने एक विवाद को उत्पन्न किया, जिसमें उनकी आत्महत्य की वजह से जुड़े कई सवाल उठे। इसके बाद, लोगों ने उन्हें श्रद्धांजलि देने के लिए सामाजिक मीडिया पर आए और उनकी यादों को निरंतर जिन्दा रखने का प्रयास किया।

सुशांत सिंह राजपूत ने अपनी पढ़ाई की शुरुआत बिहार के पटना शहर में की थी। उन्होंने वहाँ के सेंट कैरेल स्कूल में प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त की। बाद में, उन्होंने दिल्ली के इंडियन टेक्नोलॉजिकल इंस्टीट्यूट (IIT) में मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की। यही उनकी पहली प्राथमिकता थी उनके पिता की ख्वाहिश के आधार पर।

जब उन्होंने अपनी अद्वितीय प्रतिभा की ओर देखने लगा, तो वे अपनी अध्ययन की दिशा में बदल गए और उन्होंने ड्रेम स्कूल के परीक्षाओं में प्रवेश प्राप्त किया, जिसके बाद वे मुंबई आए।

मुंबई में आकर, उन्होंने एक्टिंग की दिशा में अपनी करियर की शुरुआत की। वे एक टेलीविजन शो "किस देस में है मेरा दिल" में काम करने लगे, जिससे उनका अभिनय क्षेत्र में प्रवेश हुआ। इसके बाद, उन्होंने बॉलीवुड में भी कदम रखा और "कैइ पोचे", "शुद्ध देसी रोमांस" जैसी फिल्मों में अभिनय किया। उनका प्रतिभा से भरपूर अभिनय और मेहनत ने उन्हें बॉलीवुड के प्रमुख अभिनेताओं में से एक बनाया।

सुशांत सिंह राजपूत की करियर की शुरुआत काफी संघर्षपूर्ण थी, और उन्होंने अपनी मेहनत, संघर्ष और सामर्थ्य के साथ अपनी उच्चाकंक्षा को पूरा किया।



बिना शक के, सुशांत सिंह राजपूत का जीवन एक विचित्र मिश्रण था जिसमें उन्होंने विभिन्न क्षेत्रों में उनके रुचियों और पैशन को प्रकट किया। जैसे कि

1. पहली कदमें टेलीविजन: सुशांत ने अपनी करियर की शुरुआत टेलीविजन के माध्यम से की थी। उनका पहला टेलीविजन शो "किस देस में है मेरा दिल" था, जिसमें उन्होंने सुराज प्रताप सिंह की भूमिका निभाई थी। यह उनकी पहचान बनने में मदद की और उन्होंने अपनी अद्वितीय अभिनय क्षमता को प्रकट किया।

2. संघर्ष की कहानी: अपने करियर की शुरुआत में, सुशांत को रोज़गार की कई मुश्किलें आईं। वे मुंबई में आकर परेशानियों का सामना करने के बावजूद अपने सपने को पूरा करने में संकोच नहीं किया।

3. ब्रेकथ्रू फिल्म: सुशांत की करियर की बड़ी धाराप्रवाही फिल्म "कैइ पोचे" के साथ आई, जिसमें उन्होंने मैनीश शर्मा की भूमिका निभाई और उनका अद्वितीय अभिनय सबके सामने आया। इस फिल्म ने उन्हें बॉलीवुड में मान्यता दिलाने में मदद की और उनकी करियर में एक महत्वपूर्ण मोड़ बनाया।


4. अद्वितीय सपना: सुशांत का एक सपना था कि वह कभी भी नासा के एक एक्सचेंज प्रोग्राम के माध्यम से अंतरिक्ष जा सकेंगे। उन्होंने इस सपने को पूरा करने के लिए कठिनाइयों का सामना किया और उनका उत्कृष्ट मेकेनिकल इंजीनियरिंग के गवाह बने।

5. मनोरंजन के शौक: सुशांत के पास डांस के साथ-साथ म्यूजिक, फिल्म देखना और जिम जाने के भी शौक थे। उन्होंने "कॉफी विद करण" में अपने डांस मूव्स को प्रदर्शित किया और उन्होंने "पर्फेक्ट एक्शन हीरो" के अन्तर्गत भी अपने आत्मीय अद्वितीय म्यूजिकल प्रस्तुतियों को साझा किया।

6. व्यायाम और आत्मिक विकास: सुशांत एक उत्कृष्ट फिटनेस प्रशंसक थे और योग और मेडिटेशन के प्रति उनकी गहरी रुचि थी। वे समय-समय पर योग और मेडिटेशन के बारे में अपनी सोशल मीडिया पर साझा ज्ञान भी देते थे।

7. रेडिंग और फिल्ममेकिंग: सुशांत एक उत्कृष्ट पढ़ाकू भी थे और उन्होंने फिल्ममेकिंग के क्षेत्र में उनकी शिक्षा पूरी की थी। उन्होंने एक फिल्म के निर्माण को निर्देशित किया था जिसका नाम "चिच्छोरे" था, जिसमें उन्होंने अपने महत्वपूर्ण संवादों के साथ मुख्य भूमिका निभाई थी।

8. अच्छे कले: सुशांत का अद्वितीय दृष्टिकोण उनके अच्छे कले की ओर पोइंट करता है। उन्होंने फोटोग्राफी में भी अपनी क्षमताओं को प्रदर्शित किया और उनके खास कले के कुछ दृश्यों को सोशल मीडिया पर साझा किया।

9. फिल्मी संग्रहालय: सुशांत का घर उनके प्यारे फिल्मी संग्रहालय से भरपूर था जिसमें फिल्मी सामग्री जैसे कि पोस्टर्स, किताबें और अन्य सामग्री थी। यह उनकी गहरी फिल्मी प्रेमिका को दिखाता है।


सुशांत सिंह राजपूत की करियर की शुरुआत में कई मुश्किलें थीं, लेकिन उन्होंने आत्मविश्वास और संघर्ष के साथ अपने सपनों को पूरा किया और बॉलीवुड में अपनी पहचान बनाई।



अगर हम बात करे सुशांत सिंह की पहली मूवी '' काई पो चे '' के कहानी की तो कहानी कुछ इस प्रकार हैं। गुजरात में हुए दंगों पर आधारित 'काई पो छे' तीनों दोस्तों - इशान भट्ट (सुशांत सिंह राजपूत), ओमकार शास्त्री (अमित साध) और गोविंद पटेल (राजकुमार यादव)की कहानी बताती है। तीनों दोस्त अपने सपनों को सच करने के लिए नयी सदी में किस तरह की जद्दोजहद करते हैं इसे बहुत ही खूबसूरती के साथ दिखाया गया है फिल्म में। फिल्म की कहानी की शुरुआत होती है उस वक्त से जब भारत न्यूक्लियर पावर में आगे बढ़ रहा था। अहमदाबाद शहर में रह रहे तीन लड़कों के पास ये सबसे अच्छा वक्त था अपना बिजनेस शुरु करने का।

भारत जैसे देश में जहां क्रिकेट को धर्म माना जाता है वहां तीनों दोस्त मिलकर एक क्रिकटे ट्रेनिंग अकेडमी खोलने का प्लान करते हैं। ताकि वो क्रिकेट के क्षेत्र में अगले कुछ सुपरस्टार्स बना सकें। लेकिन इनकी किस्मत इनका साथ नहीं देती और इनका प्लान फ्लॉप हो जाता है। गोधरा में हुए दंगों की वजह से इनका प्लान मिट्टी में मिल जाता है और तीनों को बहुत ही बुरे वक्त का सामना करना पड़ता है। लेकिन इनकी दोस्ती पहले की तरह ही मजबूत बनी रहती है।


फिर आई सुशांत सिंह राजपूत की दूसरी मूवी '' शुद्ध देसी रोमांस '' की जो कहानी इस प्रकार हैं। रघुराम उर्फ़ रघु (सुशांत सिंह राजपूत) जयपुर में एक पर्यटक गाइड है। उसकी बारातों में केटरिंग की भूमिका निभाने वाले गोयल (ऋषि कपूर) से उसकी मित्रता है। रघु विवाह पूर्व की घबराहट से गुजरता है। उसका विवाह तारा (वाणी कपूर) से तय होता है। वो बारात लेकर वाणी के नगर की ओर रवाना होता है। बारात में गोयल और गायत्री (परिणीति चोपड़ा) भी शामिल है। गायत्री एक ऐसी लड़की है जो खुली सोच रखती है और अपना जीवन अपने सिद्धान्तों पर जीती है। इससे रघु बहुत ही प्रभावित होता है। वो यात्रा के दौरान ही गायत्री से घुल मिल जाता है और तारा के शहर पहुंचते पहुंचते गायत्री से प्यार करने लगता है और तारा को छोड़कर भाग खड़ा होता है। जल्द ही रघु और गायत्री 'लिव इन पार्टनर' की तरह रहने लगते हैं। कुछ दिनों बाद रघु, गायत्री से शादी करने का फै़सला करता है। लेकिन इससे पहले ही उसे गायत्री छोड़कर भाग जाती है। कुछ दिनों बाद रघु की मुलाक़ात अजीबोगरीब परिस्थिति में एक बार फिर से तारा से होती है। तारा उससे मिलती है और जल्द ही दोनों में प्यार हो जाता है। दोनों के बीच सब कुछ ठीक चल रहा होता है कि एक दिन अचानक फिर से गायत्री रघु की ज़िंदगी में दस्तक देने लगती है।

फिर आई सुशांत सिंह राजपूत की तीसरी मूवी '' पीके '' की जो कहानी कुछ इस प्रकार हैं। यह कहानी एक परग्रही (आमिर खान) की है। जो पृथ्वी में आता है और उसका उसके यान को बुलाने वाला रिमोट एक चोर लेकर भाग जाता है। इसके बाद वह धरती पर ही घूमता रहता है और उसी दिन जग्गू (अनुष्का शर्मा), सरफराज (सुशांत सिंह राजपूत) से मिलती है। दोनों एक दूसरे से प्यार करने लगते हैं। जग्गू जब यह बात अपने पिता (परीक्षित साहनी) को बताती है तो वह साफ मना कर देते हैं, क्योंकि वह एक पाकिस्तानी रहता है। उसके पिता फिर अपने स्वामी (सौरभ शुक्ल) से बात करते हैं। वह बताता है कि यह जग्गू को धोका देगा। जग्गू उसकी बात को गलत साबित करने के लिए शादी करने का निर्णय लेती है। लेकिन जब वह शादी के लिए पहुँचती है तो उसे एक पत्र मिलता है। जिसमें उसके शादी नहीं करने के बारे में लिखा होता है।

इसके बाद जग्गू बृगेस से सीधे भारत लौट आती है। इसके बाद जग्गू की मुलाक़ात पीके से होती है। पीके उसे अपने पिछले किए गए कार्यों के बारे में बताता है। वह बताता है कि किस तरह उसने कपड़ा पहनना और सामान लेना आदि सीखा। इसके अलावा वह बताता है कि वह भैरों सिंह (संजय दत्त) से मिलता है वह उसे एक जगह ले जाता है, जहाँ वह एक युवती के हाथ पकड़ कर छः घंटो में भोजपुरी सीख लेता है। पीके को पता चलता है कि उसका रिमोट को चोर लेकर दिल्ली में बेच दिया होगा। इस लिए वह राजस्थान से दिल्ली आता है। जहाँ उसे जग्गू मिलती है।

एक दिन जग्गू के मन को पीके पढ़ता है तो उसे सरफराज के बारे में पता चलता है। वह जग्गू को बताता है कि यह भी हो सकता है कि वह पत्र किसी और के लिए हो। उसमें किसी का भी नाम नहीं लिखा था। और जिस बच्चे ने उसे वह पत्र दिया वह भी उसे नहीं पहचानता है। जग्गू जब सरफराज से संपर्क करती है तो उसे सच्चाई का पता चलता है। इसके बाद पीके को अपना रिमोट मिल जाता है और वह अपने गृह लौट जाता है। और आपको बता दूँ ये मूवी सबसे ज्यादा चली थी।



फिर आई सुशांत सिंह राजपूत की चौथी मूवी '' डिटेक्टिव ब्योमकेश बक्शी!'' जिसकी कहानी कुछ इस प्रकार हैं। वर्ष 1942 के समय जब भारत आजाद नहीं हुआ था, तब ब्योमकेश (सुशांत सिंह राजपूत) कलकत्ता में थे और उनके सहपाठी अजित के पिता और रसायन विज्ञानी भुवन बेनर्जी लगभग दो महीनों से लापता थे। ब्योमकेश को लगता है की उनकी ह्त्या हुई है और अपराधी ने उसकी लाश को किसी जगह छुपा दिया है जिससे सभी को लगे की वे लापता हैं।

ब्योमकेश, अजित के पिता को ढूंढने से इंकार कर देता है और कहता है की उसके पिता डोडगी के व्यापार में मिले हुए है। इससे अजित को क्रोध आ जाता है और वह ब्योमकेश को थप्पड़ मार देता है। उसी दिन ब्योमकेश की प्रेमिका लीला भी उसके पास आती है और बताती है की वह किसी ओर से शादी कर रही है।

ब्योमकेश अजित के पास जाता है और वह उसके पिता को खोजने के लिए सहमत हो जाता है। वह भुवन के फ़ैक्टरी आदि में उसे खोजने के लिए सुराग ढूंढने लगता है। बाद में उसे पता चलता है की भुवन ने कुछ ऐसा आविष्कार किया था। जो वह गलत हाथों से बचाना चाहते थे। जैसे ही यह प्रकरण हल हो जाता है तो वह सत्यवती को शादी के लिए पूछता है और वह मान जाती है।


फिर आई सुशांत सिंह राजपूत की चौथी मूवी '' एम॰ एस॰ धोनी: द अनटॉल्ड स्टोरी '' जिसकी कहानी आप सभी जानते ही हैं। इस मूवी मे सुशांत सिंह राजपूत बहुत ही प्रचलित हुआ और साथ ही सुशांत सिंह राजपूत ने दर्शको का भी दिल जीत लिया। इस मूवी मे सुशांत सिंह राजपूत ने कड़ी मेहनत की थी तब जाके ये मूवी उस चीज़ को दिखा पाई जिस चीज़ को दिखाना चाहते थे।


फिर आई सुशांत सिंह राजपूत की पांचवी मूवी ''राब्ता '' जिसकी कहानी कुछ इस प्रकार हैं। शिव कक्कड़ अमृतसर के एक बैंकर हैं जिनमें उनके बचपन की दोस्त राधा के साथ बुडापेस्ट में काम करने का आकर्षण अवसर शामिल है। वह अपने घर में एक मौज-मस्ती पसंद प्लेबॉय है और बुडापेस्ट में उसका भी यही व्यवहार जारी है। सायरा सिंह एक युवा महिला है जो जन्मदिन के रहस्यमय दुःस्वप्न से चिंतित रहती है। वह बुडापेस्ट में पर्यटकों के बीच रहती है और चॉकलेट बनाने का काम करती है । एक महिला के साथ डेट पर जाते समय शिव सायरा की दुकान पर अचानक पहुंच गया, लेकिन खुद को सायरा की प्रति गहराई से खींचा गया है। शिव के साथ उनके अजीब रिश्ते से हैरान होकर, सायरा ने अपनी बातें ठीक से शुरू कीं, लेकिन अंततः हार मान ली।अगले दिन, सायरा ने खुलासा किया कि उसे पहले कभी ऐसा रिश्ता महसूस नहीं हुआ था लेकिन वह परेशान है क्योंकि उसका एक प्रेमी है।अपने रिश्ते को छोड़ने के लिए तैयारी नहीं की जा रही है, शिव सायरा ने अपने प्रेमी के साथ डेट में बाधा डाली है और उसे सिखाया है कि वह अपने प्रेमी के साथ रहने के बजाय अपने साथ रहना पसंद करती है। इंसान अलग-अलग हो जाते हैं, और शिव और सायरा एक साथ समय पर रुकना शुरू कर देते हैं, करीब आते हैं। एक रात, वे एक क्लब में गए, जहां सायरा ने शिव को चित्रित करते हुए बताया कि वह पानी से डरता था, क्योंकि जब वह दो साल का था, तो उसके माता-पिता एक कार दुर्घटना के बाद डूब गए थे।

शिव ने सायरा को बताया कि वह उसे एक सप्ताह के लिए बिजनेस ट्रिप पर ले जाए। वे यह देखने का निर्णय लेते हैं कि एक सप्ताह के अंतराल के बाद वे कैसा महसूस करते हैं। शिव की अनुपस्थिति के दौरान, सायरा को जाकिर के बारे में पता चला और उसने उसे अपने बुरे सपने के बारे में बताया। उनके एक रात्रि भोज के दौरान, जाकिर सायरा को नशीला पदार्थ दिया जाता है और वह अपने साथी को ले जाता है।

सायरा जगती है और खुद को तट से दूर एक द्वीप पर जाकिर की अलग हवेली में बंधक बना लिया है। वह उसे देने की मांग करता है, लेकिन उसने यह कहते हुए मना कर दिया कि उसने अपना पूरा जीवन उसे नामांकित किया है। वह बताती है कि पिछले जन्म में उसका प्यार पागल था, लेकिन उसका प्यार अधूरा रह गया। वह उसे फिर से जाने से लेकर लोच कर देता है। जब वह उस पर विश्वास नहीं करता है, तो वह उसे अलग-अलग उम्र में अचुक टीचर पेंटिंग का एक संग्रह बनाकर बनाता है और कहता है कि वह अपने विश्वास का अनुयायी है। यह संकेत है कि वह पागल है, वह गोली चलाने की कोशिश करता है लेकिन अंत में समुद्र में गिर जाता है, जिससे उसे पिछले जीवन की यादें ताजा हो जाती हैं।

आठ सौ साल पहले, सायरा वयोवृद्ध राजकुमारी, सायबा थी। उनका बचपन का सबसे अच्छा दोस्त कबीर (वर्तमान जाकिर) था, जो उनके कबीले का एक दोस्त था जिसे वे प्यार करते थे। उनके राज्य को बुद्धिजीवियों, बोस्टन राजपूत शासक मुवक्किल के नेतृत्व वाले मुराक़ियों से ख़तरा था। कबीर को भयंकर दुर्बल जिलेदार (वर्तमान शिव) ने गंभीर रूप से घायल कर दिया है, जो कबीर को समर्पण करने का अंतिम रूप देता है। साईबा ने जिले को चुनौती दी, और वे खुद को एक-दूसरे के प्रति आकर्षित कर गए। साइबा ने मुराकिस को स्वीकार कर ली और राज्य को जीत दिलाई और खुद को जिले को जीत दिलाई। कबीर साइबा को वापस पाने का प्रयास करते हैं, लेकिन वह बताते हैं कि वह और ज़िला एक दूसरे से प्यार करते हैं। उनकी शादी की रात, एकधूमकेतुगिर जाता है, और मुवक्किल को पता चलता है कि यह एक मनहूस रात होगी। कबीर जिलान साइलेंट अरबिया पर घाट पर हमला करता है और जिलान को घायल कर उसकी हत्या कर देता है और उसे समुद्र में फेंक देता है। साइबा उसे बचाने के लिए समुद्र में कूद गई, लेकिन कोई लाभ नहीं हुआ। जिलेन को मरते देख दुखी सायबा ने भी लिया सूर्योदय का फैसला। साइबा को मरा हुआ देख कबीर ने अपना गला काट लिया और खुद को मार डाला। मुवक्किल ने भविष्यवाणी की कि ये घटनाएँ दोहराई गई हैं।

इस बार, जब शिव आता है, तो सायरा जाकिर के खिलाफ लड़ाई का फैसला करती है। जब उनके पिछले जीवन की घटनाएँ दोहराई जाती हैं, तो जाकिर शिव को समुद्र में फेंक दिया जाता है, शिव जाकिर को अपने साथ नीचे खींच लेते हैं और जाकिर मर जाते हैं। सायरा पानी में कूद जाती है और शिव को बचाने में सफल हो जाती है। वे दोनों समुद्री तट के किनारे थे, लेकिन नाव में आग लगी थी और राधा कहीं दिखाई नहीं दे रही थीं। शिव एक स्थान पर उसकी तलाश करता है लेकिन कुछ समय बाद, उसे अपने गुर्गों को मारने के लिए एक जादुई चित्र दिखाया गया जो कि जाकिर की बंदूक से नहीं फटा था।

10 साल बाद शिव अपने दो जुड़वाँ बच्चे करण और अर्जुन को अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में ले गए । उसी सायरा उन त्रि को बुलाती है और उसके पास जाती है।

इस मूवी में सुशांत सिंह राजपूत का सोंग '' मैं तेरा बॉयफ्रेंड तू मेरी गर्लफ्रेंड'' का डांस बहुत प्रसिद्ध हुआ था।



फिर आई सुशांत सिंह राजपूत की सप्तमी मूवी '' केदारनाथ '' जिसकी कहानी कुछ इस प्रकार हैं। इस कहानी को केदारनाथ में साल 2013 में आए प्रलय से जोड़ा गया है। लड़का, लड़की, प्यार, इजहार, इनकार और फिर इकरार के साथ कहानी में दो परिवारों के बीच होने वाला घमासान युद्ध भी है।

केदारनाथ की कहानी एक हिन्दू पंडित की बेटी मंदाकिनी उर्फ़ मुक्कु (सारा अली खान) से शुरू होती है जो की बेहद जिद्दी, खुशमिज़ाज़ और अल्हड़ हैं। मुक्कु को एक मुस्लिम पिट्ठू (तीर्थयात्रियों को कंधे पर उठानेवाला) मंसूर (सुशांत सिंह राजपूत) से प्यार हो जाता है। दो अलग धर्म के लोगों का प्यार वादी के लोगों को पसंद नहीं आता और फिर इस प्यार को तोड़ने की भरपूर जद्दोजहद शुरू हो जाती है। इस पूरी कहानी में ट्विस्ट तब आता है जब मंदाकिनी और मंसूर के प्यार को तोड़ने के लिए पंडितों और पिट्ठुओं के बीच जंग छिड़ जाती है और इसी बीच कुदरत भी अपना कहर बरपा देता है।

यह एक अमीर हिंदू लड़की की कहानी बताती है जो उत्तराखंड पहाड़ों के ऐतिहासिक केदारनाथ मंदिर की तीर्थ यात्रा लेती है, जहां वह एक विनम्र मुस्लिम लड़के के साथ मिलती है और प्यार करती है जो उसकी मार्गदर्शिका बन जाती है। जैसे-जैसे उनके रिश्ते यात्रा के करीब बढ़ते हैं, इस जोड़ी को पारिवारिक अस्वीकृति और विपरीत पृष्ठभूमि सहित कई बाधाओं का सामना करना पड़ता है; जब 2013 उत्तराखंड बाढ़ की अचानक बारिश इस क्षेत्र को तबाह कर देती है, तो जोड़े को तत्वों के खिलाफ जीवित रहने और अपने प्यार के अंतिम परीक्षण का सामना करने के लिए मजबूर होना पड़ता है।


फिर आई सुशांत सिंह राजपूत की आठवीं मूवी '' छिछोरे '' जिसकी कहानी कुछ इस प्रकार हैं। इस कहानी की शुरुआत अनिरुद्ध पाठक उर्फ अन्नी (सुशांत सिंह राजपूत) एक तलाकशुदा और अधेड़ उम्र के व्यक्ति से होती है, जो अपने बेटे राघव (मोहम्मद समद) के साथ रहता है। उसका बेटा राघव इंजीनियर बनने का इच्छुक रहता है और आईआईटी में प्रवेश परीक्षा के परिणाम का इंतेजार कर रहा होता है।

परिणाम पता चलने से पहले अन्नी अपने बेटे को शैंपेन का बोतल गिफ्ट करता है और बोलता है कि वे सफलता को साथ मिल कर मनाएंगे। इस बात से वो बेखबर रहता है कि राघव काफी ज्यादा दबाव में है और शैंपेन की बोतल बस उस दबाव को और बढ़ाने का ही काम कर रही है। अगले दिन राघव अपने अपार्टमेंट में परिणाम देखता है, उसे पता चलता है कि उसे आईआईटी में प्रवेश नहीं मिल पाएगा। घबराया हुआ राघव सीधे बालकनी से छलांग लगा देता है।

अन्नी को जैसे ही ये बात पता चलती है तो वो तुरंत अस्पताल का रुख करता है और वहाँ वो अपनी पूर्व-पत्नी और राघव की माँ माया (श्रद्धा कपूर) से मिलता है। माया इन सब का दोष अन्नी पर लगा देती है कि उसके दबाव के कारण ही राघव ने ऐसा किया। डॉक्टर उन दोनों को बताता है कि राघव की स्थिति लगातार खराब हो रही है क्योंकि वो जीना ही नहीं चाह रहा है। अन्नी अपने बेटे के भीतर जीने की चाहत लाने के लिए अपने कॉलेज के समय के किस्से सुनाता है। राघव को शक होता है कि क्या ये सब सच में हुआ था? इस बात को साबित करने के लिए अन्नी अपने कॉलेज के सारे दोस्तों को राघव से मिलने के लिए बुलाता है। वे सब मिल कर कहानी की शुरुआत करते हैं।

वर्ष 1992 में कॉलेज के पहले दिन में अन्नी को एच4 हॉस्टल का कमरा मिलता है, जो "लूजर्स (हारे हुए लोग)" नाम से मशहूर था। उसे ये नाम इस कारण मिला था, क्योंकि वहाँ वार्षिक स्पोर्ट्स प्रतियोगिता में उस ब्लॉक का ही स्कोर हमेशा कम रहता था। अन्नी अपना ब्लॉक बदलना चाहता था और इस कारण वो क्लर्क से मिलता है, वो अन्नी से कहता है कि इसमें काफी समय लग सकता है। इस दौरान अन्नी के उस ब्लॉक में पाँच अच्छे दोस्त बन जाते हैं।

इन सभी के बीच ही दो महीने गुजर जाते हैं और उसकी उन पांचों से काफी गहरी दोस्ती हो जाती है। इसी के साथ साथ वो माया के साथ डेटिंग भी शुरू कर देता है। एच3 ब्लॉक से रघुवीर (रैगी) (प्रतीक बब्बर) अन्नी के खेलने की क्षमता को देख कर उसके ब्लॉक बदलने के एप्लिकेशन को तेजी से आगे बढ़ा देता है और उससे एच3 में आने के लिए बात करता है। पर अन्नी की एच4 ब्लॉक में काफी लोगों से अच्छी दोस्ती हो जाये रहती है, इस कारण वो इस ऑफर को ठुकरा देता है। इसके बार रघुवीर उसे बताता है कि ऐसा ही ऑफर उसने डेरेक को भी दिया था, पर वो एच4 ब्लॉक में रहकर बस लूजर बन कर रह गया।

अन्नी किसी तरह लूजर का टैग उस ब्लॉक से हटाने की सोचता है और वे अपने दोस्तों के साथ टीम बना कर प्रतियोगिता जीतने की योजना बनाता है। जल्द ही उन्हें पता चल जाता है कि ये उतना आसान नहीं, जितना वे सोच रहे थे। काफी मेहनत के बाद वे फ़ाइनल के लिए क्वालिफ़ाय हो जाते हैं। अंत में एच3 और एच4 ब्लॉक के बीच बास्केटबाल का गेम होता है, जिसमें अन्नी आखिरी समय पर स्कोर करने की कोशिश करता है, पर विफल हो जाता है और उसी के साथ एच4 ब्लॉक दूसरे नंबर पर आ जाती है, जो हमेशा से सबसे नीचे रहती थी। रघुवीर भी अच्छे मुक़ाबले के लिए एच4 ब्लॉक के टीम को बधाई देता है।

कहानी वापस से वर्तमान में आ जाती है। अन्नी और उसके दोस्त राघव से बोलते हैं कि प्रतियोगिता हारने के बाद भी एच4 ब्लॉक आगे कभी "लूजर" नहीं कहलाया, क्योंकि वे हार के डर से पीछे हटते की जगह वे जीतने की कोशिश करते थे। इन सब से राघव का मन फिर जीने को करता है और लगभग साल भर बाद वो अपने कॉलेज के पहले दिन में जाते हुए दिखता है। दर्शकों से अनुरोध किया जाता है कि वे उससे कॉलेज का नाम या कितना रैंक आया आदि न पूछें।

ये मूवी भी बहुत ही अधिक पसंद किया गया। कहा जाता है कि सुशांत सिंह राजपूत ने इस फिल्म के निर्माण को निर्देशित भी किया था।



फिर आई सुशांत सिंह राजपूत की नौवीं मूवी '' सोनचिड़िया '' जिसकी कहानी कुछ इस प्रकार हैं। चंबल वैली के बीहड़ों पर आधारित यह फिल्म 1975 में डकैतों की कहानी कहती है, जो खुद को बागी विद्रोही कहते थे।

लच्छू बागियों की जानकारी में बताया गया है कि दुल्हन को उसके पिता ने टनों सोना और डिक्शन दी जाएगी, इसलिए डाकू मान सिंह नी 'दद्दा' को उस पर छापा मारना चाहिए। स्पेशल टास्क फोर्स (एसटीएफ) के इंस्पेक्टर इंस्पेक्टर सिंह गुर्जर के नेतृत्व में एक हमले के दौरान लूटपाट की गई, जिसमें दद्दा की मौत हो गई थी। इस गैंग के बीच फूट पैड मिलता है। लखनऊ पुलिस के सामने समर्पण करना चाहता है, जबकि वकील सिंह विद्रोह के बागी धर्म (जीवन जीने का तरीका) का पालन करना चाहता है।

भागते समय, वे ठाकुर की पत्नी इंदुमती तोमर से सोनचिरैया नी 'लल्ली' नाम की लड़की से मिले थे, जिसके साथ इंदुमती के परिवार के मुखिया ने बलात्कार किया था। इंदुमती ने सोनचिरैया को बचाने के लिए उसे मार डाला था और उसे बचाने और अस्पताल ले जाने के लिए भाग गई थी। इंदुमती का पूरा परिवार उसे मरवाना चाहता है। वह बागियों से सोनचिरैया को अस्पताल ले जाने में मदद करने की विनती करती है। बाघी सहमत हैं.

इंदुमती का परिवार आता है और खुशी को अपने साथ ले जाने की कोशिश करता है। उसी समय, वकील सिंह ने उन्हें सहमति दे दी। लखना विद्रोह करती है और अशमता होती है। इस श्रेणी में, इंदुमती का अपना बच्चा वकील से वकील के भाई को मार देता है। लखना और टीम, इंदुमती और सोनचिरैया के साथ, भाग जाते हैं और वकील सिंह उनका शिकार करते हैं और उन सभी को मारने की धमकी देते हैं। यह पता चला है कि मान सिंह ने लच्छू के पिता को बचाने के लिए इंस्पेक्टर गुज्जर के घर में लूटपाट की थी, यह अच्छी तरह से पता चला है कि यह उन्हें मारने के लिए एक जाल था। गुज्जर ने उसे बंधक बना लिया था और वादा किया था कि जब लच्छू बाघियों को उस गांव में ले जाया जाएगा तब वह उसे मुक्त कर देगा ताकि पुलिस एक बार ही सभी बाघियों को मार सके और सरकार से स्वीकृति प्राप्त कर सके।

अस्पताल के बीच में, लाखा ने एक कमरे के अंदर मासूम बच्चों को मारने के अभिशाप के बारे में एक पृष्ठभूमि कहानी बताई, जिसके कारण बाघियों का पूरा समूह एक-एक करके मारा गया। श्राप से प्राप्त के लिए उन्हें सोनचिरैया ('उद्धारकर्ता लड़की' का एक रूप) पुनर्जीवित करने की आवश्यकता है।बाघी डकैत फुइल्यासे मिलते हैं , और वह लड़की बच जाती है और उन्हेंधौलपुरअस्पताल ले जाने के लिए लखनऊ में शामिल हो जाते हैं। कार्य में वकील सिंह और गैंग फिर से उनके साथ जुड़ जाते हैं। वकील कहते हैं, "अभिशाप से बच जाओ, इस लड़की को मार डालो। ये लड़की बनाने का मौका है, ये लड़की "हमारी सोनचिरैया, हमारी रक्षक" है। सच्चाई यह है कि उनके दादा उनके जैविक पिता थे। लक्ना और इंदुमती अस्पताल जाते हैं।

जब लड़की को अस्पताल में भर्ती कराया जा रहा था, तो लाखा, जो गुज्जर का पीछा कर रहा था, पेड़ के पीछे छिप गया था, आत्मसमर्पण करने के लिए बाहर आया क्योंकि सोनचिरैया को बचाने का काम पूरा हो गया था। लेकिन श्राप के कारण, लाखा को गुज्जर द्वारा गोली मार दी जाती है।

बाद में पता चला कि वकील सिंह के साथ रेलवे स्टेशन पर पुलिस ने असल में मारपीट की है, क्योंकि उनकी लाश एक मृतक की लाडली के पास है। बाद में, लाखा की हत्या के बाद पुलिस स्टेशन से बाहर निकलते समय, गुज्जर ने अपने एक ठाकुर पर गोली चलाकर हत्या कर दी, चाचा (उसकी जिप्सी में उसके एक और वकील के साथ) पर पहले हमला किया गया और उसका अपमान किया गया किया गया था



फिर आई सुशांत सिंह राजपूत की दसवीं मूवी ''ड्राइव'' जिसकी कहानी कुछ इस प्रकार हैं। विभा सिंह भारत सरकार के लेखा विभाग में एक भ्रष्ट नौकरशाह हैं, जो अपने कई ग्राहकों को उनके पैसे का "प्रतिशत" देने के लिए प्रेरित करती हैं, जो या तो चोरी हो गए या जब्त कर लिए गए। अपने सहायक हामिद के समर्थन से, वह ऐसा करना जारी रखती है और राष्ट्रपति भवन के एक तहखाने में पैसा छिपाती रहती है, जो केवल उसे पता है, और अपनी जीवन शैली को फिर से शुरू करता है जब तक कि उसे प्रधान सचिव के मानद सचिव किरीट ओझा से खबर नहीं मिलती। मंत्री, कि एक निश्चित कार्य के लिए प्रधान मंत्री द्वारा उनकी मदद की गंभीर रूप से आवश्यकता होती है, और ओझा अपने आदमी, इरफान को उनके साथ काम करने के लिए भेजता है और पकड़े जाने से बचने के लिए अपने विभाग के भीतर से एक जांच शुरू करता है, क्योंकि पूछताछ की जांच कुख्यात के खिलाफ है क्रिमिनल किंग, जिसने हाल ही में एक ज्वेलरी हाउस के मालिक मेहता से गहने चुराए हैं, और दावा किया है कि उसका अगला निशाना राष्ट्रपति भवन होगा। उसी के लिए, राज नामक तकनीकी विभाग के एक हैकर को गिरोह के संदेशों को समझने के लिए चुना जाता है।

हामिद और इरफ़ान एक स्ट्रीट रेसिंग गैंग की जांच करते हैं जिसके सदस्य किंग के करीब आने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं। नेता, तारा और उसके सहयोगियों और दोस्तों बिक्की और नैना से बना गिरोह, अवैध स्ट्रीट रेसिंग में लिप्त है, और जबकि इरफान अनुमान लगाते हैं कि एक निश्चित अर्जुन गिरोह में घुसपैठ कर सकता है और राजा के बारे में अधिक जानकारी अर्जित कर सकता है, एक आदमी कहीं से भी प्रकट होता है। वह आदमी, समर, तारा को बाधित करता है जब वह हाल ही में एक स्ट्रीट रेस विजेता से मिलने की कोशिश करती है, और कुछ पैसे के साथ उसे दी गई कार को वापस पाकर तारा का विश्वास जीत लेती है, जब वह एक पुलिसकर्मी, राठौर द्वारा पकड़े जाने पर दोनों को खो देता है। इसके बाद होने वाली घटनाओं के माध्यम से, समर तारा, बिक्की और नैना के साथ अच्छी तरह से बंध जाता है, अगले कुछ दिनों के लिए इज़राइल में समूह के साथ छुट्टियां मनाता है, जब इरफ़ान को सिंह और हामिद के साथ, उस दौरान कई संदेशों का पता चलता है कि वे रहे हैं ग्राहक सेवा प्रस्ताव संदेशों के रूप में प्रत्यक्ष रूप से प्राप्त करना वास्तव में कोडित संदेश हैं। वे राज से रेल कोड संदेशों को समझने के लिए कहते हैं, और पता चलता है कि राजा की लूट गोपीगंज पुलिस स्टेशन के पास स्थित है। तारा संदेश प्राप्त करती है और उसे पुनः प्राप्त करने के लिए बिक्की और नैना के साथ निकलती है, पुलिस के साथ, इरफान और हामिद के नेतृत्व में, गर्म खोज में, जब यह पता चलता है कि घुसपैठिया, अर्जुन, स्ट्रीट रेसिंग सभाओं का हिस्सा था, और किया गया है तीनों के खिलाफ नेतृत्व करने में सक्षम है, लेकिन तारा, बिक्की और नैना को एक रहस्यमय इकाई द्वारा बचाया जाता है, जो तब स्वयं समर के रूप में प्रकट होता है। खुद को राजा मानते हुए, भले ही उन्होंने डकैती करने के लिए एक साधारण आपराधिक उपनाम के रूप में नाम का इस्तेमाल किया, समर ने समूह को राष्ट्रपति भवन डकैती पर जाने के लिए प्रेरित किया, जिसका उद्देश्य उन्हें सिंह के पैसे पर अपना हाथ रखना है, और उनकी योजना शुरू होती है काम करता है, लेकिन कुछ दिनों बाद, डकैती के काफी करीब, इरफान को पता चलता है कि राज वास्तव में किंग के साथ संबद्ध था, और उसे पूछताछ के लिए रखता है, जिससे समूह की योजना के हैकिंग पहलुओं में बाधा उत्पन्न होती है।



फिर आई सुशांत सिंह राजपूत की ग्यारहवीं और आखिरी मूवी '' दिल बेचारा '' जिसकी कहानी कुछ इस प्रकार हैं। इक्कीस वर्षीय किज़ी बसु थायराइड कैंसर से लड़ रही है, जब उसकी मुलाकात तेईस वर्षीय इमैनुएल "मैनी" राजकुमार जूनियर से होती है, जो पहले ऑस्टियोसारकोमा से पीड़ित था और उपचार में है। मैनी और उनके दोस्त जगदीश "जेपी" पांडे, जो ग्लूकोमा से पीड़ित हैं और एक आंख से अंधे हैं, एक साथ मिलकर एक फिल्म बना रहे हैं जिसमें मैनी ने मुख्य भूमिका निभाई है, जो प्रसिद्ध अभिनेता रजनीकांत से प्रेरित है । मैनी किज़ी को मुख्य भूमिका के लिए आमंत्रित करता है। रजनीकांत की फिल्मों के प्रति उनके प्रेम और हिंदी संगीत के प्रति उनके प्रेम, विशेष रूप से सेवानिवृत्त गीतकार अभिमन्यु वीर के एक अधूरे गीत के कारण दोनों के बीच संबंध बने। मैनी और जेपी की फिल्म के दृश्यों की शूटिंग के दौरान किज़ी और मैनी को धीरे-धीरे प्यार हो जाता है। उन्होंने 'सेरी' बनाने का फैसला किया,'ओके' के लिए तमिल शब्द, उनका गुप्त शब्द जो उन्हें यह याद रखने में मदद करेगा कि जीवन में सब कुछ ठीक होगा और सकारात्मक रहना महत्वपूर्ण है। एक ऑपरेशन के बाद, जेपी की दूसरी आंख की रोशनी चली गई, जिससे वह अंधा हो गया।

एक दिन, मैनी ने किज़ी को सूचित किया कि वह अभिमन्यु को ट्रैक करने और उससे संपर्क करने में कामयाब रहा है। किज़ी अभिमन्यु को ई-मेल करती है, जो जवाब देता है कि अगर वह पेरिस में , जहां वह रहता है, उससे मिलने आ सके तो वह उसके सभी सवालों का जवाब देगी। किज़ी और मैनी किज़ी के माता-पिता को उन्हें यात्रा पर जाने की अनुमति देने के लिए मनाने की कोशिश करते हैं। वे उन्हें समझाने में कामयाब होते हैं, इस शर्त पर कि किज़ी की माँ उनके साथ शामिल हो। जैसे ही वे यात्रा की व्यवस्था कर रहे थे, किज़ी का कैंसर बिगड़ गया और उसे अचानक अस्पताल में भर्ती कराया गया।

उसके ठीक होने के बाद, वह कमजोर हो गई और शुरू में उसने खुद को मैनी से दूर कर लिया, लेकिन अंततः वे फिर से जुड़ गए। वे अभिमन्यु से मिलने पेरिस जाते हैं, जिसके पास कोई निर्णायक जवाब नहीं होता है और गाना खत्म न करने का कोई कारण नहीं होता है, जिससे किज़ी निराश हो जाती है। इसके तुरंत बाद, मैनी ने किज़ी को सूचित किया कि उसका कैंसर वापस आ गया है और वह अब लाइलाज स्थिति में है।

जैसे ही मैनी की तबीयत बिगड़ती है, किज़ी उसे और जेपी को फिल्म खत्म करने के लिए मना लेती है। मैनी फिर जेपी और किज़ी को अपने नकली अंतिम संस्कार के लिए आमंत्रित करता है, जहां वे स्तुतिगान देते हैं जो उन दोनों ने तैयार किया है। कुछ दिनों बाद मैनी की मृत्यु हो जाती है, और वह किज़ी के लिए एक पत्र छोड़ जाता है, जिसमें बताया गया है कि उसने उसके लिए अभिमन्यु का गाना पूरा कर लिया है और अभिमन्यु को एक भयानक व्यक्ति मानने के बावजूद उसे संगीत में मदद करने के लिए मना लिया है।

जेपी की तैयार फिल्म का प्रीमियर एक ओपन-एयर थिएटर में किया गया, जिसे भीड़ से उत्साहजनक प्रतिक्रिया मिली, जिसमें किज़ी और मैनी के दोस्त और परिवार शामिल थे। अपनी फिल्म के अंतिम दृश्य में, मैनी चौथी दीवार को तोड़ता है और सीधे किज़ी से बात करता है, और उसे पूरी जिंदगी जीने के लिए कहता है, जिस पर वह जवाब देती है "सेरी"।

ये मूवी सुशांत सिंह राजपूत के मृत्यु के एक महीने बाद रिलीज की गई थी। दर्शकों ने इस मूवी को ढेर सारा प्यार दिया था।