चिराग का ज़हर - 15 Ibne Safi द्वारा जासूसी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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चिराग का ज़हर - 15

(15)

फिर वह जैसे ही बररादे से उतरकर अन्धकार की ओर बढ़ा वैसे ही उसे फायरिंग की आवाजें सुनाई दीं ।

गोलियां इस प्रकार तड़तड़ाई थीं जैसे रायफल और रिवाल्वर के बजाय टामीगन प्रयोग की गई हो। उसने भागने के बजाय धरती का सहारा लिया और पेट के बल रेंगता हुआ उसी ओर बढ़ने लगा जिधर से फायरिंग की आवाजें आई थीं।

तड़तड़ाहट जब समाप्त हुई तो भागते हुये कदमों की आवाजों के साथ पुलिस की सीटियां गूंजने लगीं।

इन्स्पेक्ट आतिफ ने यही उचित समझा था कि वह नीलम हाउस वाले बरामदे ही में रह कर खम्बे की आड़ से आदेश प्रसारित करता रहे। प्रकट है कि जब आफिसर ही कायरता का प्रदर्शन करेगा तो सिपाही भी वीरता नहीं दिखा सकते— इसलिये कुछ दूर तक वह दौड़ते हुये चले- फिर उन्होंने भी धरती पकड़ ली। अब बिल्कुल सन्नाटा छा गया था ।

हमीद अब भी पेट के बल रेंगता हुआ उसी ओर बढ़ता जा रहा था। फिरोजा की बातें उसके दिमाग पर हथौडे बरसा रही थी। वह सोच रहा था कि पता नहीं फिरोजा आई या नहीं—अगर आई तो उसका क्या परिणाम हुआ।

चार दीवारी से लगी हुई मालती की बाढ़ थी और फिर कोने में झाड़ भखांड़ और उसी और से फायरिंग की आवाजें सुनाई दी थीं। हमीद मुड़ मुड़ कर पीछे भी देखता जा रहा था । आसिफ के सिपाही कुछ दूर तक आने के बाद लौट गये थे। आसिफ की आवाज साफ सुनाई दे रही थी। वह कह रहा था।

"तुम सब लोग यहीं रहो। अपराधी इस कोठी पर डाका डालना चाहता है इसीलिये कोठी की ओर से हमारा ध्यान हटाना चाहता है- तुम लोगों का एक ही जगह और एक ही साथ रहना अच्छा है। भला सिपाहियों को क्या गरज थी कि वह अपनी जानें मुसीबत में फसाते और फिर उनके आफिसर का यह आदेश - वह सब बरामदे में आ गये ।

हमीद उस कोने पर पहुँच कर उठ ही रहा था जहाँ झाड़ भखांड़ थी कि किसी ने पीछे से उसकी गर्दन दबोच ली-फिर हमीद पलटना ही चाहता था कि उसके चेहरे पर पेन्सिल टार्च का मन्द सा प्रकाश था और कहा गया ।

"अरे,-यह तुम हो-?"

इसी वाक्य के साथ हमीद की गर्दन पर से हाथ भी हट गया। हमीद ने आवाज पहचान ली थी। यह कर्नल विनोद था। उसने चिड़चिड़े पन का प्रदर्शन करते हुये कहा।

"दबा दीजिये गर्दन---- कत्ल कर दीजिये----मार डालये- सीना किसका है मेरी जाने जिगर किसका है।"

"मुझे आशा नहीं थी कि तुम से इस जगह मुलाकात होगी ।"

विनोद ने कहा।

"क्यों आशा नहीं थी ?" हमीद्र ने पूछा ।

"मैं समझ रहा था कि अभी थोड़ी देर तक और तुम नूरा के कमरे में बैठे रहोगे- विनोद ने कहा ।

"फायरिंग किसने की थी?"

"उसी का तो दर्शन करना चाहता था....” विनोद ने कहा 'गोली मुझ पर चलाई गई थीं।"

"आप यहाँ आये कब?" मैं यहाँ से गया ही कब था जो आता...." विनोद ने मुस्कुरा कर कहा ।

"तो नूरा ने सच ही कहा था-" हमीद ने ठण्डी साँस खींच कर कहा....“इन्हीं बातों पर तो कलेजा खून होता है । गजब ख़ुदा का। आप अपने प्रोग्राम नूरा जैसी थर्ड क्लास की लड़कियों को तो बताते फिरें और उल्लू का पठ्ठा हमीद अनभिज्ञ रहे- 'मिर्चे मत चवाओ प्यारे " विनोद ने उसकी पीठ थपथपाते हुये कहा "आओ घर चलें ।"

"इतनी जल्दी !" हमीद ने व्यंग भरे स्वर में कहा "अभी न तीन बजे हैं और न चार ! कमसे कम इस ठण्डक में मेरी लाश तो वर्फ हो जाने दीजिये।"

"मैं अकारण समय नष्ट करना नहीं जानता- "

"कम से कम आज फिर इस कोठी का उत्पात देख लें-"

"आज कोई उत्पात नहीं होगा-"

"उस मनहूस कमरे की तलाशी न लीजियेगा ?"

"और अब तक करता क्या रहा बर्खुर्दार” विनोद ने कहा "आज मैंने उत्पात मचाने वाले भूत की आंख फोड़ दी है!"

"अभी मुझे फिरोजा को चेक करना है—'

फिरोजा से कोठी पर मिलना।"

"अर्थात आप घर पर ?" हमीद ने विसमय के साथ कहा।

"हाँ- -जब मैंने यह देखा कि मेरे प्यारे कैप्टन को फिरोजा से दिलचस्पी हो ही गई है तो- "

"तौबा तौबा..." हामिद को घृणा हुई साथ कहा "मैं घटिया शौक रखने वाला नहीं हूँ। फिरोजा को मर्दानी आवाज सुन कर और उसके मर्दाना हाथ देख कर घिन छूटती है ।'

विनोद हँसने लगा, फिर उसका हाथ पकड़ कर चार दीवारी तक आया और दूसरे ही क्षण छलांग कर दूसरी ओर कुछ गया । हमीद ने भी उसका अनुकरण किया ।

पूरा वातावरण सन्नाटे में दबा हुआ था कुहरे के कारण कुछ दिखाई नहीं दे रहा था।

यदि हमीद ने चमड़े का जैकेट पहन रखा होता तो न जाने क्या दशा हुई होती। फिर भी ठण्ड के कारण चेहरा बर्फ  हो रहा था और नाक श श कर रही थी। क्या इस ओर कोई आबादी नहीं है? हमीद ने कहा। "तुम दिन में भी यहां आ चुके हो और फिर भी इस प्रकार का प्रश्न कर रहे हो - कमाल है--- विनोद ने कहा फिर बोला "फरामुज जी ने यह इमारत गैर आबाद इलाके में बनवाई थी।"

"फिर आप किधर चल रहे हैं ?"

"चक्कर काट कर सड़क पर आयेंगे नहीं मेरी गाड़ी बड़ी है।

"और मेरी मोटर सायकिल ?"

"तुमने उसे ऐसी जगह खड़ा किया था कि उस पर नजर पड़ रही थीं। मैंने मोटर सायकिल कोतवाली वापस भिजवा दी है।'

"और आपने अपनी गाड़ी उस गैराज में खड़ी कर रखी है जो यहां सड़क के किनारे आपने कल ही बनवाई है।" हमीद ने बड़े जहरीले स्वर में कहा।

"अभी चल कर देख लेना-" विनोद ने कहा। कुछ दूर तक खामोशी छाई रही फिर हमीद ने कहा। "आपने नूरा से मुलाकात की? '

"नहीं।"

"तब तो आपने उसकी गुड़ियाँ भी न देखी होगी।"

"तुम अच्छी तरह जानते हो कि इस प्रकार के इन्द्रजालों में मुझे कोई दिलचस्पी नहीं।"

"नूरा से तो है—?"

"नहीं - बिल्कुल नहीं।"

"मगर नूरा को आपसे दिलचस्पी है-" हमीद ने कहा। फिर वह बातें दुहराने लगा जो उसके और नूरा के मध्य हुई थीं—फिर बोला " नूरा के बयान से |

" विनोद ने कहा । 'क्या आप यह कहना चाहते हैं कि वह अपने क्वार्टर से बाहर लिकली थी ?"

"नतीजा निकालना तुम्हारा काम है।"

विराण का जहर

"हांय... तो आखिर किस प्रकार निकली थी ?"

"कल बताऊँगा..." विनोद ने कहा ।

“आप सब कुछ कल पर टाल रहे हैं जब कि बड़े बूढ़ों ने यही उपदेश दिया है कि आज का काम कल पर नहीं टालना चाहिये..." हमीद ने कहा।

"न आप उस मनहूस कमरे के बारे में बता रहे हैं न उसकी तलाशी के बारे में और न यही बता रहे हैं कि नूरा अपने क्वार्टर से कैसे बाहर निकली थी।"

विनोद कुछ नहीं बोला । हमीद समझ गया कि अगर वह पत्थरों से सर टकराने लगे तब भी विनोद इस समय कुछ नहीं बतायेगा इसलिये वह भी खामोश हो गया था।

सड़क पर आने के बाद हमीद ने देखा कि दो ट्रक आड़े तिरछे खड़े हैं। उन पर बोरे लदे हुये हैं। एक ट्रक का इन्जिन ठीक किया जा रहा था और दूसरे ट्रक का एक पहिया बदला जा रहा था और उन्हीं दोनों ट्रकों के मध्यवर्ती स्थान पर विनोद की लिंकन खड़ी है ।

विनोद को देखने के बाद न ट्रकों वालों ने उससे कुछ कहा और न विनोद ही ने उनमें से किसी से कोई बात की। हमीद को लिये हुये लिंकन पर बैठा और चल दिया।

हमीद की जबान फिर चल पड़ी। नूरा की रिपोर्ट तो वह दे ही चुका था। कासिम से सम्बन्धित रिपोर्ट रह गई थी वह भी उसने सुना दो । रेमन्ड का नाम भी बताया मगर विनोद पर कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई। उसके होंठों में सिगार दबा हुआ था। हाथ स्टेयरिंग पर थे और आँखें विन्ड स्क्रीन पर जमी हुई थीं। उसने किसी बात पर "हूँ हाँ "भी नहीं कही थी। इसलिये हमीद ने झल्ला कर कहा ।

"आप कुछ बोल नहीं रहे हैं- क्या मैं पागल हूँ ।"

"कार ड्राइव करते समय बात करने में ऐक्सीडेन्ट का खतरा रहता है।"

"यह खयाल आपको कैसे पैदा हुआ?" हमीद ने फिर व्यंग किया । “जब से फिरोजा जैसी लड़कियों से तुम्हें कोई दिलचस्पी नहीं रह गई—'' विनोद ने कहा—और हमीद विनोद को इस बात का अर्थ निकालने में डूब गया-। चौंका उस समय जब लिंकन विनोद की कोठी के कम्पाउन्ड में दाखिल हो गई ।

"अब इतनी रात को उन मर्दाना आवाज वाली लड़की |" "इस समय नहीं..." विनोद ने लिंकन रोकते हुये कहा "इन समय वह आराम से तहखाने में सो रही होती अब सबेरे उनसे मिलना।"

फिर हमीद ने एक सेकेन्ड की भी देर नहीं की। लिंकन से उतरा और सीधे अपने कमरे में पहुँचा। कोट और जैकेट उतार कर एक और फेंका और गाउन पहन कर पतलून और जूते सहित बिस्तर में घुसने ही जा रहा था कि फिर न जाने क्या सोच कर जूते उतारे पतलुन उतारा और पायजामा पहन कर बिस्तर में घुस गया ।

सर्दी ने कचूमर निकाल दिया था अब जो गम नसीब हुई। तो आंखें बोझिल होने लगी सो भी जाता मगर अचानक फोन की घन्टी बज उठी। वह दांत पीसता हुआ उठा और रिसीवर उठा कर माउथ पीस में बोला ।

"मैं दूसरा दुनिया से बोल रहा हूँ।"

"मुझे खुशी है कि तुम बोल तो रहे हो।" दूसरी ओर से विनोद की आवाज आई।

"मैं यह कहना चाहता हूँ कि इस वक्त मैं सर के बल खड़ा हूँ--- क्या आप मुझे देख रहे हैं?".

"मेरे देखने या न देखने से कोई अन्तर नहीं पड़ता। बस इसका विचार रखना कि आज रात तुम्हारी गर्दन न टूटने पाये." विनोद की आवाज आई।" सवेरे नाश्ते की मेज पर मुझसे मुलाकात न हो सकेगी। कल दो पहर में मुझसे नीलम हाउस में मिलना

"यह बात तो सवेरे भी कही जा सकती थी। हमीद ने चिल्लाकर कहा । दूसरी ओर से सम्बन्ध विच्छेद कर दिया गया था। हमीद ने क्रेडिल पर रिसीवर पटक दिया फिर रजाई में घुस गया। उसे इत्मीनान हो गया था कि अब कोई जगाने वाला नहीं है। मगर यह उसकी अभाग्यता ही थी कि जैसे ही शरीर गर्म हुआ फिर फोन की घन्टी बज उठी।

इस बार तो उसकी खोपड़ी ही आउट हो गई। वह बड बड़ाया। "बजती रहो साली। इस बार तो कयामत तक नहीं उठूंगा।"

उधर "टरन - टरन" की आवाज ऐसी लग रही थी जैसे थोड़ी थोड़ी देर के बाद कान में सांप डस रहा हो। उसने लिहाफ से मुँह निकाल कर पूरी आवाज में कहा ।

"बजे जाओ और खूब जोर जोर से बजो ।”

फिर अचानक उसे ख्याल आया कि कहीं विनोद ही को कोई खास' बात न करनी हो। उसने जल्दी से रिसीवर उठा कर लिहाफ के अन्दर खींच लिया और कण्ठ फाड़ कर चीखा ।

"हाँ अब क्या आफत आई है ?"

"क्षमा करना प्यारे कैप्टन- -" कानों में जैसे अमृत घुल गया और हमीद ने इस प्रकार रिसीवर पकड़ लिया जैसे वह किसी औरत की कलाई रही हो ।

"किस प्रकार क्षमा करू..." हमीद ने भर्राई हुई आवाज में कहा।

"ऐसे में जब मैं आत्महत्या करने का प्रण कर चुका हूँ-तुम्हारी आवाज मेरे पैरों में बाटा शू बन गई है ।"

"तुमने मुझे पहचाना?" आवाज आई ।

"केवल इस सीमा तक कि जन्नत की हूरें अपनी संगीतमय आवाज टेलीफोन से भी सुना सकती हैं और चूँ कि जन्नत की किसी हूर का कोई नाम नहीं होता इसलिये तुम्हारा भी कोई नाम नहीं होगा — वैसे हो तो बता दो- "

"मेरा नाम रोमा है—'"

"वाह वाह- कितना हसीन नाम है-ऐसा लगता है जैसे रसीली मिठाई मुँह के अन्दर पिघली जा रही हो- काश यह नाम पहले भी सुना होता ।"

" बनो नहीं प्यारे हमीद -"

"अच्छी बात है—थोड़ी देर में बिगड़ जाऊँगा"

"नूरा तुम से मेरा उल्लेख कर चुकी है―" आवाज आई "कासिम मी तुमसे मेरे बारे में बता चुका है और मैं खुद तुमसे नीलम हाउस के कम्पाउन्ड में मिल चुकी हूँ ।"

"बड़ा अच्छा किया जो मिल चुकी थीं... अगर न मिली होतीं तो रात में अपने बिस्तर के बजाय तुम्हारे विरह में किसी होटल में बैठकर दावत खा रहा होता ... वैसे क्या तुम मुझे यह बता सकोगी कि कितनी देर तक भेजा चाटती रहोगी?"

"तुम खुद ही उटांग पटांग हाँक रहे हो— मैंने तो इसलिये तुम्हें फोन किया था कि तुमको दो एक बातें बताऊँ — " "तो बताओ न जल्दी से।"