एक थी नचनिया--भाग(१६) Saroj Verma द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

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एक थी नचनिया--भाग(१६)

सभी डाकू इधर उधर छुपने की जगह बनाने लगें ,कोई पेड़ की ओट में छुप गया तो कोई मंदिर के पीछे छुप गया तो कोई वहाँ के खेतों में घुस गया और तभी पुलिस वहाँ आ पहुँची,पुलिस की जीप मंदिर के अहाते में खड़ी हो गई और फिर एक हवलदार ने लाउडस्पीकर निकालकर एनाउंसमेंट किया...
"सभी सरेंडर कर दो,तुम्हें पुलिस कोई नुकसान नहीं पहुँचाएगी और अगर सरेंडर नहीं किया तो सभी को गोलियों से भून डाला जाएगा"
लेकिन पुलिस के एनाउंसमेंट करने से कोई भी डाकू बाहर ना निकला तो फिर पुलिस ने भी अपना काम शुरू कर दिया और एक एक डकैत को पुलिस वाले ढूढ़ ढूढ़कर मारने लगी,गोलियाँ उस तरफ से भी चल रहीं थीं,इधर कुछ डाकू खेतों की ओर भाग रहे थे इसलिए कुछ पुलिस वाले उनके पीछे पीछे गए और कुछ पुलिस वाले जो मंदिर के अहाते में खड़े थे वें डकैतों की गोली खाकर धरती पर घायल होकर गिर पड़े,जब अहाते में तयनात पुलिस वाले घायल हो गए तो डाकुओं के मुखिया ने कहा,....
"सब पक्की सड़क की तरफ भागो",
और तभी वो ट्रक वाला भी अपनी जान बचाने के लिए ट्रक की ओर भागा और उसे वहाँ से भागता देख श्यामा भी उसके पीछे पीछे भागी,सभी डाकू वहाँ से भागकर उस ट्रकवाले के ट्रक पर चढ़ गए,लेकिन वहाँ ट्रक का ड्राइवर अभी नहीं पहुँचा था,वें लोंग ट्रक में चढ़कर ड्राइवर का इन्तजार कर ही रहे थे कि तभी ड्राइवर वहाँ पहुँचा,उसके साथ में श्यामा भी थी,तभी डाकूओं का मुखिया बोला...
"तुम हो ड्राइवर!"
"हाँ! सरकार! हम ही ड्राइवर हैं",ड्राइवर बोला...
"चलो..यहाँ से जल्दी चलो,हमें यहाँ से जितनी दूर हो सके तो ले चलो,चिन्ता ना करो,हम सब तुम्हें कोई भी नुकसान नहीं पहुँचाऐगें",डाकुओं का मुखिया बोला....
और फिर वो ट्रकवाला उन सबको ले चला,जब वें सभी लगभग पचास साठ कीलोमीटर दूर आ गए तो डाकुओं के मुखिया ने ट्रक ड्राइवर को ट्रक रोकने को कहा,ट्रक वाले ने ट्रक रोक दिया तो सभी डाकू उस ट्रक से उतर पड़े और साथ में श्यामा भी उनके साथ साथ उतर गई,उन सबको वहीं उतारकर ट्रक वाला ट्रक लेकर आगें बढ़ गया,वें सभी खेतों से होकर चम्बल नदी की ओर जाना चाहते थे,जहाँ से वें किसी नाव में सवार होकर चम्बल की घाटी पहुँच जाते क्योंकि जो डाकू पुलिस से मुठभेड़ के वक्त मंदिर में छूट गए थे वें भी उन सभी को वहीं मिलने वाले थे....
वें सब खेतों के बीच से होकर जाने लगे तो श्यामा भी उन सभी के पीछे पीछे अपनी बंदूक और कुल्हाड़ी लेकर चल पड़ी तभी डाकूओं के मुखिया ने श्यामा से कहा....
"ओ...मोड़ी हमाय पछाय पछाय काहे चली आ रई",(ए लड़की हमारे पीछे पीछे क्यों आ रही हो)
"हमें भी अपने संगे लिवा लो",(मुझे भी अपने संग ले चलो),श्यामा बोली...
"पगला गई है का,अभे चिन्हों नईया का हमें कि हम सब डाकू हैं.....डाकू"(पागल हो गई है क्या,अभी पहचाना नहीं है क्या कि हम सभी,डाकू हैं....डाकू),डाकुओं का मुखिया बोला....
"हमें भी डाकू बनने है"(मुझे भी डाकू बनना है),श्यामा बोली...
"औरतें जो सब काम नई करती"(औरते ये सब काम नहीं करतीं),डाकुओं का मुखिया बोला...
"लेकिन हमें जोई काम करने"(लेकिन मुझे यही काम करना है),श्यामा बोली....
"तुमे डाकू काय बनने"(तुम्हें डाकू क्यों बनना है)?,डाकूओं के मुखिया ने पूछा...
"बहुत जी ऊब चुको है हमाओ इ दुनिया से,येई से अब हमें डाकू बनने "(बहुत जी ऊब चुका है मेरा इस दुनिया से इसलिए अब मुझे डाकू बनना है),श्यामा बोली....
"जे बंदूक और जे गोली तुमाय लाने नहीं बनी है,बेटा! जाओ और अपने घरे जाके अपनी गृहस्थी सम्भारो",(ये बंदूक और ये गोला तुम्हारे लिए नहीं बनी है बेटा! अपने घर जाओ और अपनी गृहस्थी सम्भालो), डाकुओं का मुखिया बोला...
"गृहस्थी नई बची कक्का! हमाये घरवाले को उन औरन ने मार दओ"(काका! मेरी गृहस्थी खतम हो चुकी है,उन लोगों ने मेरे पति को मार दिया है),श्यामा बोली...
"किनने करो जो सब कछु"(किसने किया वो सब),डाकुओं के बूढ़े मुखिया ने पूछा...
"हम उनसे अपनो बदला ले चुके हैं"(मैं उनसे अपना बदला ले चुकी हूँ),श्यामा बोली.....
"जब तुमाओ बदला पूरो हो चुको है तो फिर तुम डाकू बनने की काय सोच रई"(जब तुम अपना बदला ले चुकी हो तो फिर तुम डाकू बनने की क्यों सोच रही हो),डाकुओं के बूढ़े मुखिया ने पूछा...
"बस! ऐसई! हमने तो डाकू बनन की ठान लई है"(बस ऐसे ही अब मैंने डाकू बनने की ठान ली है),श्यामा बोली...
"एक बार और सोच लो",डाकुओं का मुखिया बोला...
"सोच लओ,बहुतई सोचे के बाद हमने जो फैसला लाओ है"(सोच लिया,बहुत सोचने के बाद मैनें ये फैसला लिया है),श्यामा बोली...
"तो फिर ठीक है आ जाओ तुम हमाई टोली में,हो आओ हमें संगे शामिल,हमें कौन्हों दिक्कत नईया,लेकिन देखिओं बीहड़ में रहने आ हे,इते ना खाबे को ठिकानो और ना नींद को ठिकानों,इत्ती सरल नई होत डकैत वाली जिन्दगी" (ठीक है तो आ जाओ तुम हमारी टोली में लेकिन देख लो बीहड़ में रहना पड़़ेगा,जहाँ ना खाने का ठिकाना और ना सोने का ठिकाना,इतनी आसान नहीं होती डकैतों की जिन्दगी),डाकुओं का मुखिया बोला...
"हाँ! हमें मंजूर है,हम रह लेहे इते"(हाँ मुझे मंजूर है,मैं रह लूँगी इधर),श्यामा बोली....
फिर उस दिन के बाद श्यामा उन डाकुओं की टोली में रहने लगी,उस टोली के कई डाकुओं को श्यामा के वहाँ रहने से एतराज़ भी हुआ लेकिन डाकुओं के बूढ़े मुखिया ने सभी को समझाया कि बेचारी विपत्ति की मारी है,रह लेगी हम लोगों के साथ,इसके रहने से हमलोगों को कम से कम ढंग का खाना तो मिलेगा....
बुढ़े मुखिया का नाम भवानी सिंह था,पहले वो पुलिस में था और बहुत ईमानदार अफ्सर हुआ करता था,अपनी ईमानदारी के चलते उसने अपने इलाके के एक विधायक के भतीजे पर जाँच बैठा दी,उस विधायक के भतीजे ने किसी गरीब विधवा की बेटी के साथ कुकृत्य करके उसे ईटों के भट्टे में झोंक दिया था,गरीब विधवा ने भवानी सिंह के पास अपनी रिपोर्ट दर्ज करवा दी,
भवानी सिंह ने जाँच करने पर विधायक के भतीजे को दोषी पाया और उसे जेल भिजवा दिया,अब विधायक भवानी सिंह से चिढ़ गया और एक रात जब भवानी सिंह थाने में अपनी ड्यूटी पर था तो उसके घर जाकर उसके पूरे परिवार को गोलियों से भुनवा दिया,आक्रोशित भवानी सिंह बेचारा क्या करता उसने पुलिस की नौकरी छोड़ दी और फिर उसने भी विधायक के घरवालों को उसी तरह मार दिया जैसे कि उसके घरवालों को मारा गया था और फिर भवानी सिंह डकैत बनकर बीहड़ो में आ गया, वहाँ उसने अपनी टोली बनाई,उसकी डोली म़े सभी समाज से सताए हुए सदस्य थे और फिर श्यामा भी उन सभी को अपना परिवार मानकर उनके साथ रहने लगी....

क्रमशः....
सरोज वर्मा....